Friday, November 28, 2008

प्रमोद वर्मा पर केंद्रित दो दिवसीय राष्ट्रीय आयोजन

1800 पृष्ठीय प्रमोद वर्मा समग्र का संपादन विश्वरंजन द्वारा

रायपुर। हिंदी के प्रखर आलोचक और कवि प्रमोद वर्मा पर अभिकेंद्रित दो दिवसीय राष्ट्रीय आयोजन आगामी फरवरी-मार्च माह में किया जायेगा, जिसमें देश के प्रमुख आलोचकों, संपादकों, साहित्यकारों के अलावा विदेश के साहित्यकारों को आमंत्रित किया जा रहा है । यह महती आयोजन छत्तीसगढ़ के बहुमुखी प्रतिभा के धनी एवं राष्ट्रीय स्तर पर राज्य का नाम उजागर करने वाले विभूतियों की स्मृति को चिरस्थायी बनाने की दिशा में सतत् क्रियाशील एवं राज्य की बहुआयामी सांस्कृतिक संस्था सृजन-सम्मान की राज्य इकाई और नव गठित प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान के बैनर तले किया जायेगा । उक्त अवसर पर प्रमोद वर्मा समग्र साहित्य एवं उन पर केंद्रित ग्रंथ का विमोचन भी किया जायेगा। इसके अलावा उनकी स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए देश के एक वरिष्ठ कवि आलोचक को प्रतिवर्ष दिये जाने वाला प्रमोद वर्मा स्मृति राष्ट्रीय सम्मान भी प्रारंभ किया जा रहा है।

प्रमोद वर्मा समग्र का संपादन उनके मित्र और वरिष्ठ कवि (पुलिस महानिदेशक, छत्तीसगढ़) श्री विश्वरंजन कर रहे हैं। इस संकलन में श्री प्रमोद वर्मा द्वारा लिखित सभी 17 काव्य संग्रह, निबंध, आलोचना, मोनोग्राफ, यात्रा-संस्मरण, डायरी, नाटक सहित अप्रकाशित कृतियों का प्रकाशन भी किया जा रहा है। इसमें साहित्य रूप और सृजन-प्रक्रिया के संदर्भ, अँगरेज़ी की स्वच्छंद कविता, रोमान की वापसी, हलफ़नामा, कविता दोस्तों में बुलाने से नहीं आती नदी, मुक्तिबोध पर मोनोग्राफ़, कल और आज के बीच, लंबा मारग दूरी घर, कदाचित् संदर्शन प्रकाशित संग्रह हैं और यूरोप प्रवास पर एक डायरी, सामारुमा एवं अन्य कविता, समालोचना तथा नाटक की एक-एक अप्रकाशित कृतियाँ समादृत की जा रही हैं । यह समग्र कुल 1800 पृष्ठों का होगा जिसमें 4 खंड होंगे। इसमें उनकी 4 अप्रकाशित पांडुलिपियाँ भी सम्मिलित हैं जिसे उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कल्याणी वर्मा सौजन्यवश उपलब्ध करा रही हैं।

इसके अलावा स्व. प्रमोद वर्मा पर केंद्रित एक किताब भी 'न होना प्रमोद वर्मा का' के नाम से से प्रकाशित की जा रही है । इसका संपादन युवा साहित्यकार जयप्रकाश मानस एवं सुरेन्द्र वर्मा कर रहे हैं । इस कृति में श्री वर्मा जी के समकालीन रचनाकारों के मध्य हुए पत्राचारों, उन्हें लेकर रचनाकारों के संस्मरणों, आलोचनात्मक लेखों, फ़ोटोग्राफ आदि समादृत की जा रही है।

सृजन-सम्मान के महासचिव राम पटवा द्वारा जारी विज्ञप्ति में रचनाकारों से आग्रह किया गया है कि श्री प्रमोद वर्मा से जुड़े संस्मरण, तस्वीरें, आलोचनात्मक लेख, प्रकाशित या अप्रकाशित सामग्री आदि जयप्रकाश मानस, सृजन-सम्मान, एफ-3, छग माध्यमिक शिक्षा आवासीय कॉलोनी, पेंशनवाड़ा, रायपुर के पते पर या srijan2samman@gmail.com से भेज सकते हैं।

माया गोविन्द के आवास पर कृष्ण कुमार का सम्मान



बर्मिंघम (यू.के.) से पधारे प्रतिष्ठित कवि एवं हिन्दी सेवी डॉ. कृष्ण कुमार के मुम्बई आगमन पर कवयित्री माया गोविन्द के आवास पर जीवंती संस्था की ओर से उनका सार्वजनिक अभिनन्दन किया गया| डॉ. कृष्ण कुमार का परिचय कराते हुए कवि-संचालक देवमणि पाण्डेय ने कहा कि कवि और लेखक होने के साथ ही डॉ. कृष्ण कुमार 'गीतांजलि बहुभाषीय साहित्यिक समुदाय' के ज़रिए पिछले 12 सालों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार और भाषायी समन्वय के अभियान में पूर्णरूप से समर्पित हैं| अपने सम्मान के उत्तर में डॉ. कृष्ण कुमार ने कहा कि वक़्त की चुनौतियों को देखते हुए आज यह ज़रूरी हो गया है कि हम अपनी मातृभाषा को जीवित माँ समझें और अपनी भाषाओं के सम्मान में ज़रा भी शर्म न महसूस करें| कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध रंगकर्मी नादिरा बब्बर, प्रतिष्ठित फ़िल्म लेखिका डॉ. अचला नागर, कवि डॉ. बोधिसत्व, कथाकार अलका अग्रवाल और गायिका डॉ. रश्मि चौकसे जैसे कई गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे| इस अवसर पर आयोजित काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार नंदलाल पाठक ने की| पाठक जी ने चुनिंदा शेर सुनाए-

मैं यूं तो डाल से टूटा हुआ सूखा सा पत्ता हूं
मुझे सर पे उठाए फिर रही हैं आंधियां कितनी

हमने ही सपने बोए थे तब तुम आज फ़सल तक पहुंचे
आँसू बहुत बहाए हमने तब तुम गंगाजल तक पहुंचे



काव्य-पाठ करते कार्यक्रम-संचालक देवमणि पाण्डेय, साथ में नंदलाल पाठक और डॉ॰ कृष्ण कुमार

माया गोविंद ने ब्रजभाषा के कुछ छंद तथा एक ग़ज़ल सुनाई-

सूनी आँखों में जलीं देखीं बत्तियां हमने
जैसे घाटी में छुपी देखीं बस्तियां हमने
अब भटकते हैं हम सहरा में प्यास लब पे लिए
हाय क्यूं बेच दीं सावन की बदलियां हमने


डॉ. कृष्ण कुमार ने सामयिक कविता पढ़ी-

परबतों से पत्थरों को काटकर लाना सरल
पत्थरों को काटकर मूरत बनाना भी सरल
किन्तु इनमें प्राण का लाना नहीं आसान है
चेतना को बेच अब सोया हुआ इंसान है



माया गोविंद जी को अपनी काव्य-पुस्तक 'बस एक नज़्म और' भेंट करते हुए ओ॰एन॰जी॰सी॰ के राजभाषा प्रमुख दिनेश थपलियाल, साथ में डॉ॰ कृष्ण कुमार

संचालक देवमणि पाण्डेय ने ग़ज़ल सुनाई-

इस जहां में प्यार महके ज़िंदगी बाक़ी रहे
ये दुआ मांगो दिलों में रोशनी बाक़ी रहे
आदमी पूरा हुआ तो देवता हो जाएगा
ये ज़रूरी है कि उसमें कुछ कमी बाक़ी रहे


नवभारत टाइम्स से जुड़े पत्रकार कैलाश सेंगर ने भी ग़ज़ल सुनाई-

गूंगी चीखें, बांझ भूख और उस बेबस सन्नाटे में
हमने अपनी ग़ज़लें खोजीं चूल्हे, चौके, आटे में


इनके अलावा गोष्ठी में कवितापाठ करने वाले मुम्बई महानगर के प्रमुख रचनाकार थे- डॉ. सुषमासेन गुप्ता, देवी नागरानी, कविता गुप्ता, रेखा रोशनी, राम गोविन्द, दिनेश थपलियाल, दीपक खेर, और अनंत श्रीमाली | 'जीवंती' के अध्यक्ष वेद रतन ने आभार व्यक्त किया |


Tuesday, November 25, 2008

ग़ज़लों, गीतों और कविताओं का रस छलकाता आनंदम




मंज़िलें उनके मुक़द्दर में भला क्या होंगी
कोशिश जिनके इरादों में नहीं आती
इत्र कितना भी छिड़क दीजिए गुलदानों पर
तितलियाँ कागज़ी फूलों पे नहीं आतीं।


यदि आपको इस तरह के शे'रों का रस लेना है तो आनंदम की मासिक काव्य-गोष्ठी में भाग लीजिए। यह गोष्ठी प्रत्येक महीने के दूसरे रविवार को किसी न किसी कवि के घर पर ही आयोजित होती है। मैं भी पहली दफ़ा कविताओं से मिलने पहुँचा नवम्बर माह की आनंदम काव्य गोष्ठी में पहुँचा। उपर्युक्त पंक्तियाँ को रचने और सुनाने वाले वीरेंद्र कमर ने ऐसा समा बाँधा कि कम से कम मैं तो कायल ही हो गया।

नवम्बर माह की आनंदम गोष्ठी (चौथी गोष्ठी) की शुरूआत कार्यक्रम के मेजबान प्रेमचंद सहजवाला के ग़ज़लपाठ से हुई। प्रेमचंद सहजवाला अपनी ग़ज़लों से सामाजिक अव्यवथाओं, बुराइयों पर प्रहार करने के लिए जाने जाते रहे हैं। उन्होंने कहा। कछेक तेवर देखें-

सब रसूलों में बहुत तकरार है,
टूट जाएगा किसी दिन ये मकाँ

बो रहे थे कल तलक जो खुशबुएँ
आज वो तामीर करते है धुआँ


इस गोष्ठी में वरिष्ठ कवि (८४ वर्षीय) मनमोहन तालिब मौज़ूद थे, वहीं २० वर्षीय जितेन्द्र प्रीतम। मतलब अनुभव के हर रंग की कविता, ग़ज़ल, गीत। मनमोहन जी ने पढ़ा-

इस ढलती हुई उमर की भी अपनी शान है
चेहरे पे जाल बुनती लकीरों का मान है।


कार्यक्रम में हिन्दी कवियों की प्रसिद्ध संस्था 'हल्का-ए-तश्नागन-ए-अदब' के प्रमुख जगदीश जैन भी उपलब्ध थे, जिनके काव्यपाठ से गोष्ठी का समापन हुआ। जगदीश जैन ने आज की तत्कालीन विडम्बना पर प्रहार करते हुये कहा-

लाओ अपने दिल का काग़ज़
उसपे खुदा का नाम लिखो
लिखते रहना फिर रामायण
सबसे पहले राम लिखो


दिल्ली में रोज की शाम को कविता की शाम में तब्दील करने के प्रति कटिबद्ध संस्था 'देल्ही पोएट्री' के संस्थापक अमित दहिया बादशाह भी मौजूद थे। उनका भी काव्य-पाठ हुआ। मैंने आनंदम प्रमुख जगदीश रावतानी और साथ ही साथ अमित दहिया बादशाह को मदद का प्रस्ताव दिया और कहा कि अपने यहाँ की कवि गोष्ठियों की रिकॉर्डिंग के चुनिंदा अंश हमें भेजें। हम उसे अपने 'आवाज़' पर प्रसारित करेंगे ताकि वेब के श्रोता भी काव्य-गोष्ठियों को दूर बैठे-बैठे आनंद ले सकें। खुशखबरी यह है कि वे तैयार दिखे। जगदीश रावतानी औपचारिक काव्य-गोष्ठी को महत्व देते हैं, इसलिए अपनी प्रत्येक गोष्ठी पूरी तैयारी और तौर-तरीके से करते हैं।

इनके अतिरिक्त कार्यक्रम में वरिष्ठ कवि मुनव्वर सरहदी, जगदीश रावतानी, अहमद अली बरक़ी आज़मी, पी .के. स्वामी, भूपेन्द्र कुमार, कविता विराट, राजिंदर नटखट, रमेश सिद्धार्थ, साक्षात भसीन, विद्याभूषण तिवारी, अशरफ साहिब, डॉ॰ दीपांकर गुप्ता, राम निवास इंडिया, जितेंदर प्रीतम इत्यादि कवियों का भी काव्य-पाठ हुआ।

कभी विस्तार से॰॰॰

शैलेश भारतवासी


अरविंद कुमार सिंह हिंदी सेवी सम्मान से सम्मानित



वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह को इंडियन फारमर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड (इफको) की तरफ से वर्ष 2008 के हिंदी सेवी सम्मान से सम्मानित किया गया है। इफको द्वारा 17-18 नवंबर को दिल्ली में आयोजित हिंदी सम्मेलन के दौरान यह सम्मान अरविंद कुमार सिंह के अलावा डा. जे लक्ष्मी रेड्डी को भी दिया गया। एस सुब्रह्मण्यम और विकास नारायण राय को इफको राजभाषा सम्मान प्रदान किया गया। अरविंद को यह सम्मान राष्ट्र भाषा हिंदी के प्रति उनके विशेष लगाव, प्रेम एवं समर्पण को देखते हुए दिया गया है। उल्लेखनीय है कि अरविंद द्वारा लिखित 'भारतीय डाक- सदियों का सफरनामा' किताब का प्रकाशन नेशनल बुक ट्रस्ट (एनबीटी) ने किया है। हिंदी में लिखी गई इस किताब का अंग्रेजी समेत कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है।
इस किताब के एक हिस्से 'चिट्ठियों की अनूठी दुनिया' को राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने आठवीं क्लास की हिंदी की किताब में शामिल किया है। अरविंद ने किताब लिखने के लिए भारतीय डाक पर लंबे शोध और अध्ययन के बाद इसे किताब का शक्ल लिखी है। 7 अप्रैल 1965 को यूपी के बस्ती जिले में जन्मे अरविंद कुमार सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कला स्नातक हैं।
43 वर्षीय अरविंद दो दशक से हिंदी पत्रकारिता में सक्रिय हैं। जनसत्ता, चौथी दुनिया, अमर उजाला और हरिभूमि के साथ लंबी पारी खेलने वाले अरविंद कई पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजे जा चुके हैं। भारत सरकार की तीन महत्वपूर्ण पत्रिकाओं योजना, कुरुक्षेत्र और भारतीय रेल के विशेषज्ञ लेखकों के पैनल में वे शामिल हैं। अरविंद कुमार सिंह बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। पत्रकारिता के साथ साहित्य में भी उनकी गहरी रुचि है। उनकी लिखी सैकड़ों काव्य रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है।
अरविंद चुपचाप काम करने में यकीन रखते हैं, तभी तो वो विभिन्न विषयों पर आधा दर्जन से ज्यादा ब्लाग चला रहे हैं पर इसकी खबर हिंदी वालों को न के बराबर है। अरविंद के काम की एक झलक उनके ब्लागों के जरिए भी मिल सकती है। अरविंद के ब्लागों का विवरण इस प्रकार है- आमने-सामने (amne-samne), भारतीय रेल (Indian Railways), भारतीय डाक (INDIA POST), मेरा संकल्प (कविता संकलन), खेत-खलिहान, ARVIND KUMAR SINGH, 1857 की जनक्रांति, चौथी दुनिया। अरविंद की प्रोफाइल व उनके ब्लागों के बारे में जानने के लिए यहां भी क्लिक कर सकते हैं।
अरविंद कुमार सिंह से संपर्क 09810082873 पर फोन करके या फिर arvindksinghald@gmail.com पर मेल भेजकर किया जा सकता है।
साभार- बी४एम रीपोर्टर

Saturday, November 22, 2008

'आनंदम' संगीत व साहित्य सभा : अक्टूबर गोष्ठी

'आनंदम' साहित्य व संगीत सभा की तृतीय गोष्ठी दिनांक 12 अक्टूबर 2008 (रविवार) को 'आनंदम' सचिव श्री जगदीश रावतानी के निवास पर सायं पाँच बजे हुई. 'आनंदम' संगीत व साहित्य सभा प्रति माह दूसरे रविवार को एक काव्य गोष्ठी का आयोजन करती है. इस बार भी सभागार खचाखच भर गया था. गोष्ठी में हिस्सा लेने वाले प्रमुख कवि थे - शशिकांत, मुनव्वर सरहदी, सीमाब साहिब , नरेश शांडल्ये, मनमोहन तालिब, भूपेंद्र कुमार, डॉ. विजय कुमार, प्रेमचंद सहजवाला, उर्मिल सत्यभूषण, रविन्द्र रवि, नमिता राकेश, बागी चाचा, सुषमा भंडारी, कैलाश दहिया, एस एस पम्मी, जगदीश रावतानी, अनिल मीत व राजेश राज.

गोष्ठी का संचालन श्री जगदीश रावतानी ने बहुत सुंदर तरीके से किया. नरेश शांडल्ये ने उर्दू और हिन्दी ग़ज़ल के बीच अक्सर होती तकरार पर एक ग़ज़ल पढ़ी:

ग़ज़ल को संभालो ग़ज़ल मर न जाए
कोई हल निकालो ग़ज़ल मर न जाए
यूँ हिन्दी और उर्दू में पाले न खींचो
न यूँ बैर पालो ग़ज़ल मर न जाए

कई कवि यथा रविन्द्र शर्मा 'रवि', नमिता राकेश, उर्मिल सत्यभूषण आदि पहली बार पधारे थे व उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से अन्य सभी कवियों का मन मोह लिया. रविन्द्र शर्मा 'रवि' कविता व ग़ज़ल के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं. उनकी गजलें शहरी परिवेश पर बहुत तीखे प्रहार करती हैं. यथा:

गुफ्तगू उन से शुरू हो भी तो किस बात के साथ,
लोग इस शह्र के वाकिफ नहीं जज़्बात के साथ.


शह्र में व्याप्त संवेदनहीनता पर एक सशक्त शेर:

साथ के पेड़ के खामोश खड़े थे पत्ते,
जब किसी पेड़ के पतझड़ में गिरे थे पत्ते.

राजनैतिक नेता अक्सर जीवन के अंत में कोई न कोई किताब लिख कर प्रसिद्धि कमाते हैं, इस पर व्यंग्य करता सहजवाला का यह शेर बहुत पसंद किया गया:

मुल्क की हालत पे लिख डाली उन्होंने इक किताब,
उस के पन्नों पर कहीं सच हो तो पढ़वाना मुझे.

प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को संसद में परमाणु करार पर हुए वाद विवाद में स्पष्ट बहुमत पाने के लिए वामपंथी दलों को छोड़ कर समाजवादी पार्टी का सहारा लेना पड़ा था. इस पर करारा व्यंग्य करता सहजवाला का यह शेर:

एक खलनायक से अपनी जाँ छुडाने के लिए,
दूसरे के पास यारो कल पड़ा जाना मुझे..

गोष्ठी के वातावरण को मुनव्वर सरहदी की कविता 'बीबी हो तो ऐसी' ने कहकहों से भर दिया. शायर मुनव्वर सरहदी की खूबी यह है कि वे हास्य-व्यंग्य तथा गंभीर शायरी, दोनों ही आसानी से व बराबर की खूबसूरती से करते हैं. . श्री जगदीश रावतानी ने अंत में सब को धन्यवाद देते हुए आशा व्यक्त की कि आगामी गोष्ठियां इस से भी अधिक जीवंत होंगी.

'आनंदम'
'आनंदम' संगीत व साहित्य सभा
बीएस/19 शिवा एन्क्लेव , पश्चिम विहार A/4 नई दिल्ली.
दूरभाष 9811150638, 011-25252635.