tag:blogger.com,1999:blog-7559724675575137248.post8502416033454695908..comments2023-06-05T17:28:04.334+05:30Comments on हिन्दी खबरें: ‘यूटोपिया’ के अंत की बात करना, भारतीय संदर्भों में सही नहीं है- पद्मश्री लीलाधर जगूड़ीनियंत्रक । Adminhttp://www.blogger.com/profile/02514011417882102182noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-7559724675575137248.post-42112718520339874702009-04-14T20:00:00.000+05:302009-04-14T20:00:00.000+05:30संगोष्ठी के निमित्त आपने
समकालीन रचनाधर्मिता के
क...संगोष्ठी के निमित्त आपने <br />समकालीन रचनाधर्मिता के<br />कई पहलू उजागर कर दिए.<br />समकालीन और विषमकालीन में<br />ध्वनि साम्य का रोचक किन्तु<br />व्यंजनात्मक प्रयोग चिंतन का<br />नया फलसफ़ा दे गया....आभार<br />===========================<br />डॉ.चन्द्रकुमार जैनDr. Chandra Kumar Jainhttps://www.blogger.com/profile/02585134472703241090noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7559724675575137248.post-23785653835882707172009-04-06T22:49:00.000+05:302009-04-06T22:49:00.000+05:30रपट विस्तृत, जरूरी और सामान्य पाठक की दृष्टि से कठ...रपट विस्तृत, जरूरी और सामान्य पाठक की दृष्टि से कठिन है. यूटोपिया जैसे अप्रचलित शब्दों के प्रचलित पर्याय कोष्ठक में रपटकरता या संपादक जी दे सकते तो बेहतर होता. तथाकथित आधुनिक कविता में रसहीनता की जिस चिंता की चर्चा विद्वानों ने की है उसे तो अपनी टिप्पणियों में इंगित कर मैं कई मित्रों का कोपभाजन बना हूँ. यह रसहीनता कविता मात्र में नहीं समूचे जीवन वे घर कर रही है तभी तो उत्सव के समय हर्ष के स्थान पर करुण रस को रचना अप्रसांगिक नहीं लगती. क्या कोइ जन्मदिन पर शोकगीत सुनता-सुनाता है? अस्तु...शायद इस रपट को पढ़कर अवसर के अनुकूल रस की रचना का औचित्य सिद्ध हो सके. रपटकरता को श्रम के लिए धन्यवाद.Divya Narmadahttps://www.blogger.com/profile/13664031006179956497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7559724675575137248.post-39725002886382930492009-04-06T08:39:00.000+05:302009-04-06T08:39:00.000+05:30रिपोर्ट काफी विस्तृत है ..फिर भी पढा ! कई विषयों प...रिपोर्ट काफी विस्तृत है ..फिर भी पढा ! कई विषयों पर मौलिक विमर्श ! अगर जगूड़ी जो ने नहीं बताया तो यह आपको चाहिए था कि एक छोटे से वाक्य में पहले यूटोपिया को व्याख्यायित कर देते क्योंकि -<BR/>‘"यूटोपिया’ के अंत की बात करना, भारतीय संदर्भों में सही नहीं है। भारत में साहित्य लोक से गहन संबंद्ध है। अतः यूटोपियाज के अंत का प्रश्न ही नहीं उठता। लीलाधर जगूड़ी ने समकालीन कविता के साथ ही सूचनाओं के विस्फोट काल में हिन्दी भाषा की स्थिति पर भी अपने विचार व्यक्त किये। "<BR/><BR/>एक तो यह रिपोर्ट का शीर्षक वाक्य चुना गया है ! और यूटोपिया को बिना परिभाषित किये उसके अंत की बात कर दी गयी है ! आप लोग ज्ञानी हैं -रिपोर्ट पढने वाला नहीं ! वह यूटोपिया का अंत या /और डिसटोपिया के बारे में बहुत संभव है ना जानता हो ! उसके ज्ञान में वृद्धि इस छोटी सी सदाशयता से हो जाती ! और यह भी उसके मन में कौंधता कि अपना रामराज्य भी कहीं एक यूटोपिया ही तो नहीं या कुछ अलग सी अवधारणा है/महज एक आकाश कुसुम ही नहीं ! <BR/><BR/>अब कुछ और कहूँगा तो बात बेबात हो जायेगी ! <BR/>रिपोर्ट के लिए शुक्रिया !Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.com