दिनांक 8.2.2009 रविवार को आनन्दम की 7वीं मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन जगदीश रावतानी के निवास स्थान पर पश्चिम विहार में हुआ। गोष्ठी की शुरुआत युवा कवि पंडित प्रेम बरेलवी ने अपनी नज़्म की इन पंक्तियों से की-
प्यास उभरी थी समंदर सी मगर, एक प्याला नज़र का पी न सके।
कहाँ तो कम थी ज़िन्दगी भी यहाँ, मगर इक साँस तक को जी न सके।।जहाँ भूपेन्द्र कुमर ने अपनी कविता में अपने प्रियतम को व्याख्यायित करने की कोशिश की-
लगता है तुम कोई जीवित रहस्य हो, कहीं प्रकृति में चेतल की तो कहीं चेतन में प्रकृति की छाया हो....... वहीं जितेन्द्र प्रीतम ने अपनी ग़ज़ल की ये पंक्तियाँ पढ़ीं -
पस्त सारे दुश्मनों के हौसले हो जाएँगे।
हम जो सीना तान कर सीधे खड़े हो जाएँगे।।ग़ज़ल के ही क्रम में आशीष सिन्हा क़ासिद ने कुछ इस अंदाज़ में अपने शेर कहे-
यूँ मिले अबके गले हम हर गिला जाता रहा।
दरमियाँ कड़वाहटों का सिलसिला जाता रहा।।कवयित्री शोभना मित्तल अपनी क्षणिकाओं से सभी को भाव विभोर किया।
जनाब वीरेन्द्र क़मर ने अपनी सशक्त ग़ज़लों से ख़ूब वाहवाही लूटी। एक शेर देखें -
दाद दीजिएगा हमारी सोच को, राज़ ये हमने नुमायाँ कर दिया
आईने सच बोलते हैं झूठ है, दाएँ पहलू को ही बायाँ कर दियावरिष्ठ शायर मुनव्वर सरहदी ने आजकल समाज में व्याप्त रिश्वत ख़ोरी पर अपनी सशक्त व्यंग्य रचना पेश की। इसके अलावा उन्होंने अनेक हास्य शेर सुनाकर श्रोताओं को गुदगुदाया।
इस गोष्ठी में रमेश सिद्धार्थ, ज़र्फ देहलवी, डॉ. विजय कुमार, शैलेश सक्सैना, डॉ मनमोहन शर्मा तालिब, क़ैसर अज़ीज़, कैलाश दहिया, साक्षात भसीन, प्रेम चन्द सहजवाला,जगदीश रावतानी आदि ने भी अपनी सशक्त रचनाओं से श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया। गोष्ठी का संचालन प्रेमचन्द सहजवाला ने अपनी लुभावनी शैली में किया।
अंत मे आनन्दम संस्था के संस्थापक जगदीश रावतानी ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।
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2 पाठकों का कहना है :
अच्छी प्रस्तुति,
शे'र पढकर अच्छा लगा
यूँ मिले अबके गले हम हर गिला जाता रहा।
दरमियाँ कड़वाहटों का सिलसिला जाता रहा।।
ये शे'र बहुत ही अच्छा लगा
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