Sunday, May 31, 2009

युवा संस्कृति संसद की गोष्ठी


बीते 16 मई को दिल्ली में कथा यू.के. के सौजन्य से युवा संस्कृति संसद की पहली गोष्ठी हुई, जिसमें युवा लेखकों, कवियों, फिल्म समीक्षकों ने अपनी सक्रिय भागीदारी दी।

समारोह की शुरुआत में युवा कथाकार और कला-समीक्षक अभिषेक कश्यप ने संस्कृति संसद के उद्देश्य के बारे में बात करते हुए कहा—'हमारा मकसद प्रतिभाशाली युवाओं का एक ऐसा समूह तैयार करना है जो साहित्य के साथ-साथ शास्त्रीय संगीत, शास्त्रीय नृत्य, थियेटर और सिनेमा सरीखे कला-माध्यमों में गहरी रुचि रखता हो।

इसके पश्चात दिल्ली विश्वविद्यालय के शोध छात्र मिहिर ने फिल्मकार दिवाकर बैनर्जी की चर्चित फिल्म 'खोसला का घोंसला पर बोलते हुए कहा—'इस फिल्म में इंडिया गेट, कुतुब मीनार सरीखे दिल्ली के लोकेल नजर नहीं आते, फिर भी यह फिल्म दिल्ली के बारे में है। इस फिल्म में दिल्ली खुद एक किरदार है। यह फिल्म दिल्ली के उच्च मध्य वर्ग (संसाधनों पर जिसका कब्जा है) व निम्र मध्य वर्ग के बीच वर्ग-संघर्ष और निम्र मध्य वर्ग के भीतर वर्गांतरण की ललक को भी दर्शाता है। चंद्रप्रकाश तिवारी ने समकालीन सांगीतिक परिदृश्य में ध्रुपद गायन के उभार पर चर्चा की।

इससे पहले आकांक्षा पारे ने अपनी कहानी 'प्रश्न' और शिखा गुप्ता व अभिषेक सिंह ने अपनी कविताओं का पाठ किया। गोष्ठी में उपस्थित चर्चित कला-समीक्षा अजित राय ने कहा कि ऐसी गोष्ठियां युवा रचनाकर्मियों की सृजनात्मकता को बढ़ावा देगी और उन्हें साहित्य व कला-माध्यमों पर निरंतर नए ढंग से सोचने के लिए प्रेरित करेगी।

प्रस्तुति- नुपुर शर्मा और पूनम अग्रवाल

Friday, May 29, 2009

लखनऊ में लगा गैरपेशेवर कवियों का जमावड़ा


पीसी शर्मा

श्री मोहम्मद अहसन, वरिष्ठ अधिकारी, उत्तर प्रदेश वन विभाग एवं श्री प्रदीप कपूर, वरिष्ठ पत्रकार लगभग ढाई वर्षो से नियमित रूप से लगभग तीन माह के अंतराल में लखनऊ में काव्य गोष्ठी आयोजित करते आ रहे है। इन गोष्ठियों में मुख्यतः गैर पेशेवर कवि/शायर आमंत्रित किये जाते है, जो विभिन्न सेवाओं/व्यवसाय में रहते हुए कविता लिखने का शौक/हाबी के रूप में अपनाये हुए है, और वे मुशायरो/गोष्ठियों में भाग नही लेते है। एक-आध बार अपवाद स्वरूप पेशेवर कवि/शायरों की शिरकत हुई है किन्तु पूर्णतः अव्यवसायिक तौर तरीके से। भाग लेने वाले कवि अधिकतर सरकारी अधिकारी, टेक्नोक्रेटर्स, डाक्टर्स, विद्यार्थी या अन्य किसी व्यवसाय से जुडे हुए होते है। इन कवि गोष्ठयों में श्रोताओं का भी लगभग यही प्रोफाइल होता है। कविता में हिन्दी व ऊर्दू को प्राथमिकता दी जाती है किन्तु कभी-कभी अपवाद स्वरूप अंग्रेजी को भी स्वीकार कर लिया जाता है।

दिनांक 24-05-2009 को आयोजित कवि गोष्ठी इसी क्रम में दसवीं थी और सामुदायिक हाल, सूर्योदय कालोनी, राणा प्रताप मार्ग में आयोजित की गयी थी। इससे पूर्व इसी स्थान पर माह अक्टूबर-2008 व मार्च-2009 में भी आयोजित की गयी थी। अन्य स्थलों पर जहां इस प्रकार के आयोजन हो चुके है वे है अवध जिमखाना क्लब, आर्यन रेस्टोरेंट का बेसमेंट हाल, संगीत नाटक एकेडमी, यूनिवर्सल बुक डिपो इत्यादि।

इस प्रकार के आयोजन पूर्णतया सहभागिता के आधार पर आयोजित किये जाते है। इन्हें कम से कम खर्चीला तथा अधिक से अधिक अनौपचारिक रखने के साथ ही साथ गरिमाशील बनाये जाने का प्रयास किया जाता है। इन गोष्ठियों में अनेक संभ्रांत भद्रजनों के अतिरिक्त पूर्व मेयर, हाई कोर्ट के कार्यरत न्यायाधीश, अवकाश प्राप्त व कार्यरत वरिष्ठ नौकरशाहो ने भी भाग लिया है। आयोजन की सूचना मुख्यतः ई-मेल, एस0एम0एस0 के माध्यम से दी जाती है तथा लिखित निमंत्रण कभी भी नही दिया जाता है। मीडिया से जुडे पत्रकार बंधु भी इन गोष्ठियों में कवि एवं रिपोर्टर के रूप में भाग ले चुके है। गोष्ठियों को अखबारों में प्रमुखता से स्थान प्राप्त हुआ है।

वर्तमान गोष्ठी के होस्ट सूर्योदय कालोनी का सम्मानित टंडन परिवार थे।

गोष्ठी का संचालन लखनऊ विश्वविद्यालय की भाषाविद प्रो0 साबिरा हबीब द्वारा किया गया। गोष्ठी का आरम्भ करते हुए श्री प्रदीप कपूर ने गोष्ठी के उद्देश्यों से लोगों को परिचित कराया तथा लोगों से प्राप्त हुए सहयोग के लिए धन्यवाद दिया।
कविता पाठ के क्रम को प्रारंभ करते हुए प्रो0 साबिरा हबीब ने मु0 अहसन को नज्में सुनाने की दावत दी। श्री अहसन ने श्री प्रदीप कपूर व अन्यों को धन्यवाद देते हुए आशा जताई कि भविष्य में भी इस प्रकार के आयोजन चलते रहेंगे। उन्होंने नज्म के स्थान पर अपनी हिन्दी की कुछ “प्रेम कविताएं“ सुनाने का अनुरोध किया। श्री अहसन द्वारा 4 “प्रेम कविताएं“ “उस वर्ष“, “जब कभी“, “कैसे प्रीत जुडे़“ तथा “क्या अन्तर“ सुनाई गयीं। कविताओं की भाषा व नई कल्पानाओं के कारण इन कविताओं का काफी सराहा गया। कविता “जब कभी“ निम्न प्रकार थी जो विशेष रूप से सराही गयी-

जब किसी आंगन में पल्लवित तुलसी दिखी,
जब किसी उपवन में धरा हरसिंगार के झरे पुष्पों से भर गई,
जब किसी रात के शांत आकाश से नक्षत्र टूट कर गिरता दिखा,
जब कभी थक कर वट वृक्ष की नीचे विश्राम करने को गयर,
न जाने क्यों बरबस तुम्हारी याद आ


इसके पश्चात सुश्री गजाला अनवर को ग़ज़लें पढ़ने की दावत दी गयी। सुश्री गजाला अनवर ने दो ग़ज़लें सुनाई तथा समिचित प्रंशसा पाई। उनकी निम्न पंक्तिया विशेष रूप से सराही गयी-

कैसा अंदर से है यह हुस्न का पैकर देखें।
चांदनी रात में हम चांद में जाकर देखें।।


तत्पश्चात श्री सोम ठाकुर, जो कि संयोगवंश अतिथि के रूप मे उपस्थित थे, द्वारा 25 शेरों की गजल तरून्नुम से पढ़ी गयी। निम्न शे'रों पर उन्हें विशेष सराहना प्राप्त हुई-

सारे कौल करार बदल के
लोग चल दिये आंख मल के
इतना खून बहा शहरों में
होश फाख्ता हैं जंगल के
छोटे-छोटे खेत न लहरे
कितने वादे थे बादल के


श्री सोम ठाकुर के पश्चात श्री आलोक शुक्ला जो कि पेशे से पत्रकार है को कविता पाठ करने का निमंत्रण दिया गया। श्री शुक्ला द्वारा वर्तमान राजनीतिक व सामाजिक परिदृश्य पर 2 कविताएं पढ़ी गयी। निम्न पंक्तियां विशेष उल्लेखनीय हैं-

बलई मिसिर का नन्हा बेटा सोच रहा था
बहुत से अनुत्तरितन प्रश्नों के उत्तर खोज रहा था
ये कैसा धर्म है जो दुःख में तो नही जाएगा
लेकिन सुख के समय खोपड़ी पर चढ़ जाएगा


इन्हीं तेवरों में श्री विनीत वाल जो कि एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी मे कार्यरत है द्वारा अंग्रेजी की दो कविताओं के माध्यम से वर्तमान सामाजिक व राजनीतिक परिदृश्य का जायजा लिया गया।

इसी क्रम में श्री जमील अहमद जमील द्वारा 2 ग़ज़लों का पाठ किया गया। उल्लेखनीय पक्तियां निम्न प्रकार रही-

बना ही लूंगा उसे आईना कभी न कभी
कि रंग लाएगी मेरी वफा कभी न कभी


श्री साबिरा हबीब द्वारा इस क्रम को आगे बढाते हुए श्री पी0सी0शर्मा, अवकाश प्राप्त वरिष्ठ आई0ए0एस0 अधिकारी से अपनी रचनाये सुनाने का आग्रह किया गया। श्री शर्मा द्वारा अपने कविता संकलन से 2 कविताएं सुनाई गयी जिनको उनकी सवेदनशीलता के कारण काफी सराहा गया। निम्न पंक्तियां विशेष उल्लेखनीय है-

तुम्हारे पूर्वसंचित संस्कार, तुम्हारे संकल्प,
तुम्हारी निष्ठाएं, तुम्हारे विश्वास, तुम्हारी मान्यताएं,
तुम्हारी आस्थाएं, तुम्हारे सम्बन्ध, तुम्हारी प्रार्थनाएं,
तुम्हे यही तक ला सकती थी,
जहां जब कुछ ठहरा हुआ है
सभी मार्ग यहीं तक आते है


इसके पश्चात बारी आयी श्री देवकी नन्दन शांत, अवकाश प्राप्त अभियंता जिन्होंने तरन्नुम में 2 गजले सुनाई। निम्न पंक्तियों ने खूब ताली बजवाई-

यादो की इक हाट सी लगती है शाम से
बिकते है मेरे गम जहां गीतों के नाम से


दो युवा कवि श्री अनूप पाठक, छात्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय तथा ध्रुव सिंह द्वारा संवेदनशीलता से भरी 2-2 कविताएं सुनाई गयी तथा विशेष रूप से सराही गयी-

मेरी इन प्यारी बहनों ने मेरी इन बूढ़ी माओं ने
मुझे तो जिंदा रखा है बुर्जगो की दुआओं ने।

( श्री अनूप पाठक)
हाल सभी को मालूम है कश्मीर के अत्याचारों का
बम फटता है हर रोज वहां जिन्दा इंसान ................
.
(श्री ध्रुव सिंह)

अंत में युवा शायर श्री मनीष शुक्ला (उत्तर प्रदेश वित्त एवं लेखा सेवाओं में अधिकारी) को ग़ज़लें सुनाने की दावत दी गयी। श्री शुक्ला ने 2 ग़ज़लें सुनाई और भूरि-भूरि प्रंशसा पायी। गजल का एक शे'र कई श्रोताओं के मस्तिष्क में चिपक गया-
रफ्ता रफ्ता रंग बिखरते जाते हैं
तस्वीरों के दाग उभरते जाते है।

समयाभाव के कारण कविता पाठ का दूसरा चक्र नहीं हो सका। प्रो0 साबिरा हबीब की वाकपटुता, हाजिर जवाबी तथा उच्च कोटि के शेर पाठन ने डेढ़ घन्टे से भी लम्बे कार्यक्रम की जीवन्तता बनाये रखी। अंत में श्री प्रदीप कपूर द्वारा कवियो व श्रोताओं को धन्यवाद देते हुए कार्यक्रम समाप्ति की औपचारिक घोषणा की गयी।
तत्पश्चात टंण्डन परिवार के आतिथ्य सत्कार के तहत सूक्ष्म जलपान ग्रहण किया गया।

श्रोता तथा कवियों की कुल संख्या लगभग 50 रही।

कुछ अन्य झलकियाँ-


मुहम्मद अहसन

आलोक शुक्ला

गज़ाला अनवर

सोम ठाकुर

देवकी नंदन शांत

जमेल अहमद

ध्रुव सिंह

मनीष शुक्ला

अनूप पाठक

Tuesday, May 26, 2009

331वीं गहन हिन्दी कार्यशाला सम्पन्न


भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग के केंद्रीय हिन्दी प्रशिक्षण संस्थान के 2-ए, पृथ्वीराज रोड, नई दिल्ली स्थित अल्पकालिक गहन प्रशिक्षण एकक द्वारा 331वीं गहन हिन्दी कार्यशाला का समापन समारोह सम्पन्न हुआ जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व सचिव श्री चंद्रधर त्रिपाठी एवं राजभाषा विभाग के संयुक्त सचिव श्री दिलीप कुमार पाण्डेय और संयुक्त निदेशक श्री एस॰एम॰ दोहरे उपस्थित थे। यह कार्यशाला दिनांक 18॰05॰2009 से 22॰05॰2009 तक आयोजित की गई जिसमें देशभर के विभिन्न केंद्रीय कार्यालयों के कार्मिक बड़ी संख्या में उपस्थित थे। इस अवसर पर कार्यशाला के प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र तथा हिन्दी की सी॰डी॰ उपलब्ध करवाई गई।

(प्रतिभागियों को संबोधित करते मुख्य अतिथि)

Sunday, May 24, 2009

बिना कल के आज की कल्पना बेमानी है- प्रो. नित्यानंद तिवारी

23 मई, नई दिल्ली।

‘‘पुराने का अध्ययन और विश्लेषण मुझे आज को समझने की अन्तर्दृष्टि देता है। जो लोग पुराने को काबू में करके केवल आज ही आज पर जोर दे रहे हैं वे नहीं जानते कि बिना कल के आज की कल्पना ही नहीं की जा सकती।’’

उक्त विचार सुप्रसिद्ध आलोचक प्रो. नित्यानंद तिवारी ने गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित विचार-गोष्ठी और वरिष्ठ कवि उद्भ्रांत की पुस्तकों के विमोचन के मौके पर व्यक्त किए। प्रो. तिवारी ने उद्भ्रांत जी की कविताओं पर बोलते हुए कहा कि ‘उनकी कविताएं हमारे दौर की चुनौतियों और द्वंद्वों को रेखांकित करती हैं। ये अभिधा की बहुत बड़ी ताकत है। उद्भ्रांत को कविताओं में ब्यौरों की अधिकता और परिणामवादी प्रवृत्ति से बचना चाहिए और कविता की वास्तविक ताकत के लिए प्रक्रिया तक ही सीमित रहना चाहिए।’

इस अवसर पर उद्भ्रांत की पुस्तकों-‘सदी का महाराग’ का लोकार्पण प्रो. तिवारी ने किया। यह रेवती रमण द्वारा सम्पादित उद्भ्रांत की बीसवीं सदी की कविताओं का संचयन है। उद्भ्रांत के नए कविता संग्रह ‘हँसो बतर्ज़ रघुवीर सहाय’ का विमोचन प्रो. नामवर सिंह द्वारा, उद्भ्रांत द्वारा सम्पादित लघु पत्रिका आंदोलन और युवा की भूमिका का विमोचन राजेन्द्र यादव द्वारा तथा शीतल शेटे द्वारा लिखित ‘राम की शक्तिपूजा एवं रुद्रावतार’ का विमोचन पंकज बिष्ट द्वारा किया गया। इस मौके पर रामप्रसाद शर्मा ‘महर्षि’ द्वारा लिखित पुस्तक ‘ग़ज़ल और ग़ज़ल की तकनीक’ का भी विमोचन संयुक्त रूप से किया गया। उल्लेखनीय है कि इन दोनों पुस्तकों का विमोचन क्रमशः श्री खगेंद्र ठाकुर और श्रीमती विमलेश्वरी सहाय द्वारा किया जाना था लेकिन कतिपय कारणों से वे आयोजन में न आ सके।

विमोचन समारोह के बाद आयोजित विचार-गोष्ठी ‘लघु के राग और विचार की आधी सदी’ पर बोलते हुए हिन्दी के वरिष्ठ कथाकार एवं हंस के सम्पादक राजेन्द्र यादव ने कहा कि ‘आज लघु पत्रिका को सीधे-सीधे चिह्नित करना बेहद कठिन है क्योंकि लघुपत्रिकाओं की स्पष्ट व्याख्या कहीं देखने को नहीं मिलती। शायद इसे अंग्रेजी के 'लिटिल मैगज़ीन' से लिया गया माना जाता है। फिर भी मौटे तौर पर हिन्दी में भी इनकी शुरूआत अंग्रेजी की तरह सत्ता और संस्थान के विचार के विरोध में व्यक्तिगत प्रयासों से हुईं। अब तो हिन्दी लघु पत्रिकाओं की संख्या साढे़ चार सौ से भी अधिक है और बहुत स्वस्थ हालत में प्रकाशित हो रही हैं। पहले कागज के जुगाड़ में बहुत सारा समय लगता था और इसे ही एक बड़ी उपलब्धि माना जाता था। तब संपादक झोला लटकाए रचना और साधन का सहयोग पाने के लिए घूमा करता था जबकि आज पत्रिकाओं के कागज की गुणवत्ता ही ऐसी है कि मैं हंस के कवर के लिए भी ऐसा कागज नहीं लगा पाता। समय के साथ सारी पत्रिकाएं दलित और स्त्री-विमर्श को तरज़ीह दे रही हैं वरना उनके पिछड़ जाने का खतरा है। ‘हंस’ भी एक लघु पत्रिका है जिसने समकालीन मुद्दों को उठाया।’

‘समयांतर’ के सम्पादक और वरिष्ठ कथाकार पंकज बिष्ट ने कहा कि ‘‘लघु पत्रिका हमेशा सत्ता के खिलाफ़ आवाज़ उठाती है। जिस पत्रिका में यह शक्ति नहीं होती वह लघु पत्रिका की श्रेणी में नहीं आ सकती।’’

बली सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि घरानों या संस्थानों से नहीं, पत्रिका का चरित्र सम्पादकों के सरोकारों से तय होता है। उन्होंने ‘युवा’ की सांस्कृतिक भूमिका को रेखांकित करते हुए उद्भ्रांत की भूमिका की सराहना की। उन्होंने शीतल शेटे की आलोचना-पुस्तक ‘राम की शक्तिपूजा एवं रुद्रावतार’ की चर्चा करते हुए कहा कि यह बेहद पठनीय पुस्तक है और इस दौर में मिथकीय कविता की वापसी का संकेत करती है।’’

हेमंत जोशी ने इस अवसर पर सवाल उठाया कि ‘‘इस बीच पुराने समय की याद करने का चलन जोर पकड़ रहा है। क्या यह इस बात का संकेत है कि अब उतने तीव्र और समकालीनताधर्मी आंदोलन नहीं हैं?’’

दूरदर्शन में अधिकारी श्री धीरंजन मालवे ने उद्भ्रांत की कविता ‘रुद्रावतार’ की प्रशंसा करते हुए कहा कि ‘‘यह कविता समकालीन दौर का एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है। हम अपने पूर्ववर्ती रचनाकारों को महान मान लेते हैं लेकिन मौजूदा रचनाकर्मी की महत्ता को स्वीकारने में संकोच करते हैं।’’

कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. नामवर सिंह ने उद्भ्रांत की कविताओं के बहाने कवि की चर्चा में कहा कि ‘‘वे अपनी बेबाकी में रिश्ता निभाने की औपचारिकता का हमेशा अतिक्रमण करते रहे हैं। उन्होंने आज के दौर की महत्त्वपूर्ण पत्रिकाओं में ‘समयांतर’ की भूमिका को महत्त्वपूर्ण मानते हुए उसे साहित्य समाज के पहरेदार की संज्ञा दी।’’

इससे पहले कवि उद्भ्रांत ने स्पष्ट किया कि ‘‘उनकी कविताओं की व्यंजना की शक्ति की लगातार अनदेखी की जाती रही है। उन्होंने आज की आलोचना के पूर्वाग्रहों के प्रति घोर असहमति जाहिर की।’’

दूरदर्शन की समाचार वाचिका श्रीमती मंजरी जोशी ने उद्भ्रांत जी की तीन कविताओं ‘हँसो बतर्ज़ रघुवीर सहाय’, ‘स्वाहा’ और ‘कविता के विरुद्ध’ का पाठ किया।

कार्यक्रम का संचालन पत्रकार और लेखक सुरेश शर्मा ने किया।

प्रस्तुतिः
रामजी यादव
द्वारा श्रीमती कृपा गौतम
एच-81, पालिका आवास,
सरोजिनी नगर,
नई दिल्ली - 110023

Thursday, May 21, 2009

हिन्दी साहित्य के शिखरनाम कल करेंगे कई पुस्तकों का विमोचन

जवाहर पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स, नई दिल्ली

आपको सादर आमंत्रित करते हैं

अपनी सद्यःप्रकाशित पुस्तकों के लोकार्पण एवं विचार-गोष्ठी में
सक्रिय सहभागिता के लिए।


लोकार्पण एवं विचार-गोष्ठी

उद्भ्रांत के नये कविता-संग्रह ‘हँसो बतर्ज़ रघुवीर सहाय’ का प्रो. नामवर सिंह द्वारा;
उद्भ्रांत द्वारा सम्पादित ‘लघु पत्रिका आंदोलन और युवा की भूमिका’ का श्री राजेन्द्र यादव द्वारा;
डॉ. रेवतीरमण द्वारा सम्पादित उद्भ्रांत की बीसवीं शताब्दी की कविताओं के संचयन
सदी का महाराग’ का प्रो. नित्यानंद तिवारी द्वारा;
श्री रामप्रसाद शर्मा ‘महर्षि’ की पुस्तक ‘ग़ज़ल और ग़ज़ल की तकनीक’ का श्रीमती बिमलेश्वरी सहाय द्वारा; और
सुश्री शीतल शेटे द्वारा लिखित ‘राम की शक्तिपूजा और रुद्रावतार’ का डॉ. खगेन्द्र ठाकुर द्वारा।

विचार-गोष्ठी का विषय होगा ‘लघु के राग और विचार की आधी सदी’।

अध्यक्षताः प्रो. नामवर सिंह, श्री राजेन्द्र यादव, प्रो. नित्यानंद तिवारी
मुख्य वक्ताः डॉ. खगेन्द्र ठाकुर
सान्निध्यः मुख्य अतिथि श्रीमती बिमलेश्वरी सहाय
विषय प्रवर्तनः डॉ. हेमंत जोशी
संचालनः सुरेश शर्मा

विचार-विमर्श में प्रमुख भागीदारी होगी सर्वश्री डॉ. हेतु भारद्वाज, प्रो. जानकी प्रसाद शर्मा, प्रो. रेवतीरमण, डॉ. बली सिंह, धीरंजन मालवे और आपकी

स्थानः सभागार, गांधी शांति प्रतिष्ठान, दीनदयाल उपाध्याय मार्ग, नई दिल्ली
दिन एवं तिथिः शुक्रवार, 22 मई, 2009
समयः सायं 5:30 बजे (चाय एवं नाश्ता)
सायं 6:00 बजे से 8:00 बजे (संगोष्ठी)


कृपया अवश्य पधारें। हम आपके स्वागत में प्रतीक्षारत हैं।

रवि मजुमदार
फोन:
(011) 26962973, 26962507, 9868103841

हिन्दी साहित्य सम्मलेन प्रयाग के शताब्दी वर्ष समारोह में कई विद्वान सम्मानित


अयोध्या, 10-11 मई 2009। समस्त हिन्दी जगत की आशा का केन्द्र हिन्दी साहित्य सम्मलेन प्रयाग अपने शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में देव भाषा संस्कृत तथा विश्व-वाणी हिन्दी को एक सूत्र में पिरोने के प्रति कृत संकल्पित है। सम्मलेन द्वारा राष्ट्रीय अस्मिता, संस्कृति, हिंदी भाषा तथा साहित्य के सर्वतोमुखी उन्नयन हेतु नए प्रयास किये जा रहे हैं। 10 मई 1910 को स्थापित सम्मलेन एकमात्र ऐसा राष्ट्रीय संस्थान है जिसे राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन तथा अन्य महान साहित्यकारों व समाजसेवियों का सहयोग प्राप्त हुआ। नव शताब्दी वर्ष में प्रवेश के अवसर पर सम्मलेन ने 10-11 मई '09 को अयोध्या में अखिल भारतीय विद्वत परिषद् का द्विदिवसीय सम्मलेन हनुमान बाग सभागार, अयोध्या में आयोजित किया गया। इस सम्मलेन में 21 राज्यों के 46 विद्वानों को सम्मलेन की मानद उपाधियों से सम्मानित किया गया।

10 मई को 'हिंदी, हिंदी साहित्य और हिंदी साहित्य सम्मलेन' विषयक संगोष्ठी में देश के विविध प्रान्तों से पधारे 11 वक्ताओं ने विद्वतापूर्ण व्याख्यान दिए। साहित्य वाचस्पति डॉ. बालशौरी रेड्डी, अध्यक्ष, तमिलनाडु हिंदी अकादमी ने इस सत्र के अध्यक्षता की। इस सत्र का संचालन डॉ. ओंकार नाथ द्विवेदी ने किया। स्वागत भाषण डॉ. बिपिन बिहारी ठाकुर ने दिया। प्रथम दिवस पूर्वान्ह सत्र में संस्कृत विश्व विद्यालय दरभंगा के पूर्व कुलपति डॉ. जय्मंत मिश्र की अध्यक्षता में 11 उद्गाताओं ने 'आज संस्कृत की स्थिति' विषय पर विचार व्यक्त किए। विद्वान् वक्ताओं में डॉ. तारकेश्वरनाथ सिन्हा बोध गया, श्री सत्यदेव प्रसाद डिब्रूगढ़, डॉ. गार्गीशरण मिश्र जबलपुर, डॉ. शैलजा पाटिल कराड, डॉ.लीलाधर वियोगी अंबाला, डॉ. प्रभाशंकर हैदराबाद, डॉ. राजेन्द्र राठोड बीजापुर, डॉ. नलिनी पंड्या अहमदाबाद आदि ने विचार व्यक्त किये।

अपरान्ह सत्र में प्रो. राम शंकर मिश्र वाराणसी, डॉ. मोहनानंद मिश्र देवघर, पर. ग.र.मिश्र तिरुपति, डॉ. हरिराम आचार्य जयपुर, डॉ. गंगाराम शास्त्री भोपाल, डॉ. के. जी. एस. शर्मा बंगलुरु, पं. श्री राम डेव जोधपुर, डॉ. राम कृपालु द्विवेदी बंद, डॉ. अमिय चन्द्र शास्त्री मथुरा, डॉ. भीम सिंह कुरुक्षेत्र, डॉ. महेशकुमार द्विवेदी सागर आदि ने संस्कृत की प्रासंगिकता तथा हिंदी--संस्कृत की अभिन्नता पर प्रकाश डाला. यह सत्र पूरी तरह संस्कृत में ही संचालित किया गया. श्रोताओं से खचाखच भरे सभागार में सभी वक्तव्य संस्कृत में हुए।

समापन दिवस पर 11 मई को डॉ. राजदेव मिश्र, पूर्व कुलपति सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी की अध्यक्षता में 5 विद्द्वजनों ने ज्योतिश्पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती के प्रति प्रणतांजलि अर्पित की। सम्मलेन के अध्यक्ष साहित्य वाचस्पति श्री भगवती प्रसाद देवपुरा, अध्यक्ष हिंदी साहित्य सम्मलेन प्रयाग की अध्यक्षता में देश के चयनित 5 संस्कृत विद्वानों डॉ. जय्म्न्त मिश्र दरभंगा, श्री शेषाचल शर्मा बंगलुरु, श्री गंगाराम शास्त्री भोपाल, देवर्षि कलानाथ शास्त्री जयपुर, श्री बदरीनाथ कल्ला फरीदाबाद को महामहिमोपाध्याय की सम्मानोपाधि से सम्मानित किया गया।

11 संस्कृत विद्वानों डॉ. मोहनानंद मिश्र देवघर, श्री जी. आर. कृष्णमूर्ति तिरुपति, श्री हरिराम आचार्य जयपुर, श्री के.जी.एस. शर्मा बंगलुरु, डॉ. रामकृष्ण सर्राफ भोपाल, डॉ. शिवसागर त्रिपाठी जयपुर, डॉ.रामकिशोर मिश्र बागपत, डॉ. कैलाशनाथ द्विवेदी औरैया, डॉ. रमाकांत शुक्ल भदोही, डॉ. वीणापाणी पाटनी लखनऊ तथा पं. श्री राम्दावे जोधपुर को महामहोपाध्याय की सम्मानोपाधि से सम्मानित किया गया।

2 हिन्दी विद्वानों डॉ. केशवराम शर्मा दिल्ली व डॉ वीरेंद्र कुमार दुबे को साहित्य महोपाध्याय तथा 28 साहित्य मनीषियों डॉ. वेदप्रकाश शास्त्री हैदराबाद, डॉ. भीम सिंह कुरुक्षेत्र, डॉ. कमलेश्वर प्रसाद शर्मा दुर्ग, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' जबलपुर, डॉ. महेश कुमार द्विवेदी सागर, श्री ब्रिजेश रिछारिया सागर, डॉ. मिजाजीलाल शर्मा इटावा, श्री हरिहर शर्मा कबीरनगर, डॉ, रामशंकर अवस्थी कानपूर, डॉ. रामकृपालु द्विवेदी बांदा, डॉ. हरिहर सिंह कबीरनगर, डॉ, अमियचन्द्र शास्त्री 'सुधेंदु' मथुरा, डॉ. रेखा शुक्ल लखनऊ, डॉ. प्रयागदत्त चतुर्वेदी लखनऊ, डॉ. उमारमण झा लखनऊ, डॉ. इन्दुमति मिश्र वाराणसी, प्रो. रमाशंकर मिश्र वाराणसी, डॉ. गिरिजा शंकर मिश्र सीतापुर, चंपावत से श्री गंगाप्रसाद पांडे, डॉ. पुष्करदत्त पाण्डेय, श्री दिनेशचन्द्र शास्त्री 'सुभाष', डॉ. विष्णुदत्त भट्ट, डॉ. उमापति जोशी, डॉ. कीर्तिवल्लभ शकटा, हरिद्वार से प्रो. मानसिंह, अहमदाबाद से डॉ. कन्हैया पाण्डेय, प्रतापगढ़ से डॉ, नागेशचन्द्र पाण्डेय तथा उदयपुर से प्रो. नरहरि पंड्याको ''वागविदांवर सम्मान'' ( ऐसे विद्वान् जिनकी वाक् की कीर्ति अंबर को छू रही है) से अलंकृत किया गया.
उक्त सभी सम्मान ज्योतिश्पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती के कर कमलों से प्रदान किये जाते समय सभागार करतल ध्वनि से गूँजता रहा।

अभियंता-आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ''वागविदांवर सम्मान'' से विभूषित

अंतर्जाल पर हिन्दी की अव्यावसायिक साहित्यिक पत्रिका दिव्य नर्मदा का संपादन कर रहे विख्यात कवि-समीक्षक अभियंता श्री संजीव वर्मा 'सलिल' को संस्कृत-हिंदी भाषा सेतु को काव्यानुवाद द्वारा सुदृढ़ करने तथा पिंगल व साहित्य के क्षेत्र में विशिष्ट अवदान के लिए 'वाग्विदान्वर सम्मान' से सम्मलेन द्वारा अलंकृत किया जाना अंतर्जाल जगत के लिया विशेष हर्ष का विषय है चूँकि उक्त विद्वानों में केवल सलिल जी ही अंतर्जाल जगत से न केवल जुड़े हैं अपितु व्याकरण, पिंगल, काव्य शास्त्र, अनुवाद, तकनीकी विषयों को हिंदी में प्रस्तुत करने की दिशा में मन-प्राण से समर्पित हैं।

अंतर्जाल की अनेक पत्रिकाओं में विविध विषयों में लगातार लेखन कर रहे सलिल जी गद्य-पद्य की प्रायः सभी विधाओं में सृजन के लिए देश-विदेश में पहचाने जाते हैं।
हिंदी साहित्य सम्मलेन के इस महत्वपूर्ण सारस्वत अनुष्ठान की पूर्णाहुति परमपूज्य ज्योतिश्पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती महाराज के प्रेरक संबोधन से हुई. स्वामी जी ने संकृत तथा हिंदी को भविष्य की भाषाएँ बताया तथा इनमें संभाषण व लेखन को जन्मों के संचित पुण्य का फल निरुपित किया।

सम्मलेन के अध्यक्ष वयोवृद्ध श्री भगवती प्रसाद देवपुरा, ने बदलते परिवेश में अंतर्जाल पर हिंदी के अध्ययन व शिक्षण को अपरिहार्य बताया।

Tuesday, May 12, 2009

आनंदम की 10वीं गोष्ठी सम्पन्न


नई दिल्ली के पश्चिम विहार इलाके में आनंदम ने रविवार 10 मई 2009 को अपनी 10वीं कवि गोष्ठी का आयोजन किया, जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ कवि मनमोहन तालिब ने की। कार्यक्रम में अमेरिका से पधारे मशहूर गीतकार राकेश खंडेलवाल की उपस्थिति ने इस गोष्ठी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का बना दिया।

कार्यक्रम की शुरूआत 'लेखक को अपने लेखन से पैसा कमाने के बारे में सोचना चाहिए या नहीं?' पर चर्चा से हुई जिसपर अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रेमचंद सहजवाला ने कहा कि लेखक को अपनी लेखनी से कमाने के बार में अवश्य सोचना चाहिए और अब स्थितियाँ बेहतर हैं, वो चाहे तो कमा भी सकता है। अगले वक्ता के रूप में आमंत्रित वरिष्ठ कवि मुन्नवर सरहदी ने कहा कि पब्लिक के बीच रचनाकार यदि खुद मक़ाम बनाये तो वह व्यवसायिक रूप से सफल हो सकता है। उन्होंने कहा कि इस दौर में शायरी के अलावा रोज़ी-रोटी का कोई और प्रबंध भी होना चाहिए।


अगले वक्ता में आमंत्रित हिन्द-युग्म के संपादक शैलेश भारतवासी ने कहा कि गैर-व्यवसायिक और व्यवसायिक लेखन का वर्गीकरण आवश्यक है। व्यवसायिक लेखन के लिए लेखक को खुद को ज़रूरतों के हिसाब से, धन मुहैया कराने वाले माध्यमों के हिसाब से ढालना होता है, फिर आप यह शिकायत नहीं कर सकते कि यह साहित्य के साथ मज़ाक है। अंतिम वक्ता के रूप में अमेरिका से पधारे कवि राकेश खंडेलवाल ने बताया कि बाहर के मुल्कों में लेखन की बहुत इज्जत है। मुझे कई बार कवि सम्मेलनों/मुशायरों में जब बुलाया जाता है तो ज़रूर पूछा जाता है कि आप कितना लेना चाहेंगे। हाँ, वो बात अलग है कि जब मैं फॉर्मासिटीकल से संबंधित कोई आर्टिकल लिखता हूँ तो 4000 डॉलर मिलते हैं, लेकिन कवि सम्मेलन के लिए 1100 डॉलर।

गोष्ठी में कुल 23 युवा-वरिष्ठ कवियों ने भाग लिया। कार्यक्रम का मोहक संचलान राकेश खंडेलवाल ने किया। प्रस्तुत चुनिंदा शे'र/काव्यांश और चित्र-

राकेश खंडेलवाल-
तुमने कहा न तुम तक पहुँचे मेरे भेजे हुए संदेसे
इसीलिये अबकी भेजा है मैंने पंजीकरण करा कर
बरखा की बूँदों में अक्षर पिरो पिरो कर पत्र लिखा है
कहा जलद से तुम्हें सुनाये द्वार तुम्हारे जाकर गा कर।

दर्द देहलवी-
किसे फरयाद की हाजत, शिकायत कौन करता है
अगर इन्साफ मिल जाए बग़ावत कौन करता है।

मजाज़ अमरोहवी-
उसका अनदाज़े तकल्लुम बड़ा शीरीं है मजाज़
वह बुरी बात भी कह दे भली लगती है।

डॉ॰ दरवेश भारती-
हालात देख आज के उभरा है ये सवाल
तुलसी कबीर सूर की बानी किधर गयी।
पल-पल थे जिसकी तोतली बातों पे झूमते
'दरवेश' होते ही वो सयानी किधर गयी।

सुनीता शानू-
उसकी आँखों से हक़ीक़त बयान होती है,
हर घड़ी एक नया इम्तिहान होती है।
घूरने लगती हैं दुनिया की निगाहें उसको
जब किसी ग़रीब की बेटी जवान होती है।

साक्षात भसीन-
तू बता या न बताम तेरा पता ढूँढ़ लेगे
लाख हमसे छिपले तू, छिपा कहाँ ढूँढ़ लेंगे
फर्श से अर्श तक है अजब दास्ताँ तेरी
क्या समां तू कहाँ वही लम्हा ढूँढ़ लेंगे।


अजन्ता शर्मा-
बनकर नदी जब बहा करूँगी
तब क्या मुझे रोक पाओगे?
अपनी आँखों से कहाँ करूँगी
तब क्या मुझे रोक पाओगे?

ज़र्फ़ देहलवी-
जो डरते हैं ज़माने से उन्हीं को ये डराता है
नहीं डरते जो इससे खुद ज़माना उनसे डरता है।

‌क़ैसर अज़ीज़-
जिसकी मिसाल मिल न सके काइनात में
पेशानिय हयात पे वह इन्क़लाब लिख
आईना बन के जीना तो दुशवार है बहुत
काँटों को फूल और चमन को सुराब लिख

मुन्नवर सरहदी-
फ़नकार कभी फ़न का तमाशा नहीं करते
हीरे हों तो फुटपाथ पर बेचा नहीं करते।


मनमोहन तालिब-
क्या हो गया इस दौर में नायाब है इन्सां
हम देर से बाज़ार में ख़ामोश खड़े हैं।

शैलेश सक्सेना-
जाने कौन सा नया खेल दिखायेगी ज़िन्दगी
अब कौन सा नया खिलौना दिलायेगी ज़िन्दगी।

जगदीश रावतानी-
मेरे लबों पे भी ज़रूर आयेगी हँसी कभी
न जाने कब से मेरे आईने को इंतज़ार है।
कभी तो आयेगी मेरे हयात में उदासियाँ
बहुत दिनों से दोस्तों का इसका इंतज़ार है।

अनुराधा शर्मा भी इस गोष्ठी में मौज़ूद थीं, उन्होंने जो नज़्म सुनाई उसे पूरी यहाँ पढ़ें। इनके अतिरिक्त नूर, डॉ॰ विजय कुमार, डॉ॰ महेश चंद्र गुप्त 'खलिश' , ओ पी विश्नोई, जीतेन्द्र प्रीतम, विक्रम भारतीय इत्यादि ने भाग लिया। अंत में आनंदम-प्रमुख जगदीश रावतानी ने सबका आभार व्यक्त किया।

इस कार्यक्रम को सुनना चाहें तो कृपया नीचे का प्लेयर चलायें।


कार्यक्रम यहाँ से डाउनलोड कर लें।

Monday, May 11, 2009

भगवानदास मोरवाल को कथा (यू. के.) तथा मोहनराणा को पद्मानंद सम्मान

पन्द्रहवाँ कथा यू.के. सम्मान हाउस ऑफ़ कामन्स में

कथा (यू के) के मुख्य सचिव एवं प्रतिष्ठित कथाकार तेजेन्द्र शर्मा ने लंदन से सूचित किया है कि वर्ष 2009 के लिए अंतर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान उपन्‍यासकार भगवान दास मोरवाल को राजकमल प्रकाशन से 2008 में प्रकाशित उपन्यास रेत पर देने का निर्णय लिया गया है। इस सम्मान के अन्तर्गत दिल्ली-लंदन-दिल्ली का आने जाने का हवाई यात्रा का टिकट (एअर इंडिया द्वारा प्रायोजित) एअरपोर्ट टैक्स़, इंगलैंड के लिए वीसा शुल्क़, एक शील्ड, शॉल, लंदन में एक सप्ताह तक रहने की सुविधा तथा लंदन के खास खास दर्शनीय स्थलों का भ्रमण आदि शामिल होंगे। यह सम्मान श्री मोरवाल को लंदन के हाउस ऑफ कॉमन्स में 09 जुलाई 2009 की शाम को एक भव्य आयोजन में प्रदान किया जायेगा।

इंदु शर्मा मेमोरियल ट्रस्ट की स्थापना संभावनाशील कथा लेखिका एवं कवयित्री इंदु शर्मा की स्मृति में की गयी थी। इंदु शर्मा का कैंसर से लड़ते हुए अल्प आयु में ही निधन हो गया था। अब तक यह प्रतिष्ठित सम्मान चित्रा मुद्गल, सर्वश्री संजीव, ज्ञान चतुर्वेदी, एस आर हरनोट, विभूति नारायण राय, प्रमोद कुमार तिवारी, असग़र वजाहत, महुआ माजी एवं नासिरा शर्मा को प्रदान किया जा चुका है।

23 जनवरी 1960 को नगीना, मेवात में जन्मे भगवान दास मोरवाल ने राजस्थान विश्वविद्यालय से एम.ए. की डिग्री हासिल की। उन्हें पत्रकारिता में डिप्लोमा भी हासिल है। मोरवाल के अन्य प्रकाशित उपन्यास हैं काला पहाड़ (1999) एवं बाबल तेरा देस में (2004)। इसके अलावा उनके चार कहानी संग्रह, एक कविता संग्रह और कई संपादित पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। दिल्ली हिन्दी अकादमी के सम्मानों के अतिरिक्त मोरवाल को बहुत से अन्य सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। उनके लेखन में मेवात क्षेत्र की ग्रामीण समस्याएं उभर कर सामने आती हैं। उनके पात्र हिन्दू-मुस्लिम सभ्यता के गंगा जमुनी किरदार होते हैं। कंजरों की जीवन शैली पर आधारित उपन्यास रेत को लेकर उन्हें मेवात में कड़े विरोध का सामना करना पड़ा।

वर्ष 2009 के लिए पद्मानन्द साहित्य सम्मान मोहन राणा को उनके कविता संग्रह धूप के अन्धेरे में (2008 – सूर्यास्त्र प्रकाशन, नई दिल्ली) के लिए दिया जा रहा है। मोहन राणा का जन्म 1964 में दिल्ली में हुआ. वे दिल्ली विश्वविद्यालय से मानविकी में स्नातक हैं, आजकल ब्रिटेन के बाथ शहर के निवासी हैं। उनके 6 कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। भारत में साहित्य की मुख्यधारा के आलोचक उन्हें हिन्दी का महत्वपूर्ण लेखक मानते हैं। कवि-आलोचक नंदकिशोर आचार्य के अनुसार - हिंदी कविता की नई पीढ़ी में मोहन राणा की कविता अपने उल्लेखनीय वैशिष्टय के कारण अलग से पहचानी जाती रही है, क्योंकि उसे किसी खाते में खतियाना संभव नहीं लगता।

इससे पूर्व इंगलैण्ड के प्रतिष्ठित हिन्दी लेखकों क्रमश: डॉ सत्येन्द श्रीवास्तव, दिव्या माथुर, नरेश भारतीय, भारतेन्दु विमल, डा.अचला शर्मा, उषा राजे सक्‍सेना,गोविंद शर्मा, डा. गौतम सचदेव और उषा वर्मा को पद्मानन्द साहित्य सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है।

कथा यू.के. परिवार उन सभी लेखकों, पत्रकारों, संपादकों मित्रों और शुभचिंतकों का हार्दिक आभार मानते हुए उनके प्रति धन्यवाद ज्ञापित करता है जिन्होंने इस वर्ष के पुरस्कार चयन के लिए लेखकों के नाम सुझा कर हमारा मार्गदर्शन किया और हमें अपनी बहुमूल्य संस्तुतियां भेजीं।



सूरज प्रकाश : भारत में कथा यूके के प्रतिनिधि, email: kathaakar@gmail.com mob: 9860094402
74-A, Palmerston Road, Harrow & Wealdstone (Middx.) HA3 7RW
E-mail: kathauk@gmail.com website: www.kathauk.connect.to Mobile: 07868 738 403

Saturday, May 9, 2009

न्यूयार्क विश्वविद्यालय में हिंदी-उर्दू का ग्रीष्म कालीन प्रशिक्षण

(समाचार-सौजन्यः डॉ.बिन्देश्वरी अग्रवाल, न्यूयार्क)

आगमी 7 जुलाई 2009 से 17 जुलाई 2009 तक से न्यूयार्क विश्वविद्यालय, अमेरिका में 10 दिनों का ग्रीष्म कालीन हिंदी-उर्दू का शिक्षक-प्रशिक्षण वर्कशॉप होने जा रहा है। यह वर्कशॉप अमेरिका में सूचीबद्ध विदेशी भाषायों को बढ़ावा देने हेतु हर वर्ष अलग-अलग कैम्पस में किया जाता है। हिंदी-उर्दू के अलावा स्टॉरटाक अरबी और फारसी में यह प्रशिक्षण देने का कार्य करता है। इस बार यह कार्यशाला न्यूयार्क विश्वविद्यालय एवं अमेरिका की "स्टारटाक प्रोग्राम" के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित किया जा रहा है। जिसके अंतर्गत प्रशिक्षु को विदेशी भाषा पढाने के नए तकनीक एवं भाषा का अनुवाद करने के तरीकों से अवगत कराया जाता है। इसमें प्रक्षिणुओं को अपने आस-पास के उपलब्ध उपकरणों, दृश्य-श्रव्य माध्यमों को पहचानने और इनका इस्तेमाल अपने विद्यार्थियों को भाषा की समझ विकसित करने की तरीके का प्रशिक्षण दिया जाता है। इसे न्यूयार्क राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त कोर्स का दर्जा भी प्राप्त है।

इस वर्कशॉप में स्नातक पास विद्यार्थी भाग ले सकते हैं। साथ-साथ वर्कशॉप के लिए कई सुविधाएँ हैं-
स्थान- न्यूयार्क विश्वविद्यालय, कैम्पस
तिथि- 7-17 जुलाई, 2009
प्रशिक्षण शुल्क- 900 डॉलर मात्र (जिसमें "स्टारटाक" को सरकार से 700 डॉलर का अनुदान प्राप्त है)
अत: हर प्रशिक्षु को मात्र 200 डॉलर देना होगा।
आवेदन-पत्र भेजने की अन्तिम तिथि 18 मई 2009 है ।
विशेष सुविधा- 10 दिनों की रहने की एवं भोजन की नि:शुल्क सुविधा है।

विदेशी भाषा को बढ़ावा देने का अमेरिकी सरकार का एक अच्छा कार्यक्रम है। विशेष जानकारी हेतु, कृपया यहाँ संपर्क करें-
STARTALK
Middle Eastern and Islamic Studies
New York University
50 Washington Square South, Room 200
New York, NY 10012

आवेदन पत्र डाउनलोड करने के लिए तथा इस कोर्स के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें।