Friday, April 29, 2011

'सिनेमा और दलित' विषय पर आयोजित विशेष कार्यक्रम का निमंत्रण

मित्रो,

डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 120वीं जयंती, अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस और अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के शताब्दी वर्ष को एक साथ मनाया जा रहा है। आप सभी सादर आमंत्रित हैं।

दिन और समयः 1 मई 2011, शाम ठीक 6 बजे से
स्थानः अक्षरा थिएटर
बाबा खड़ग सिंह मार्ग, गेट नं 5 के आगे, राम मनोहर लोहिया अस्पताल
गोल डाक खाना के पास
नई दिल्ली-110001

कार्यक्रम- सिनेमा और दलित
वक्ता- सुधा अरोड़ा
डॉ. आनंद प्रकाश
सुजाता पारमिता
रामजी यादव

धन्यवाद ज्ञापन- आस्था आर एस

फिल्म प्रदर्शन- बवंडर
वी शैल रिजेक्ट (डॉ. जगमोहन मुंधरा द्वारा निर्देशित हिन्दी फीचर फिल्म)
रामजी यादव द्वारा निर्मित-निर्देशित वृत्तचित्र

निवेदक-
सुजाता पारमिता
विजडम ट्री

डॉ॰ आनंद प्रकाश, रामजी यादव
पीपुल्स विजन

साहित्य का सच वास्तविक सच से भिन्न होता है : संजीव


"जबानें दिलों को जोड़ने के लिए होती हैं तोड़ने के लिए नहीं" ये उदगार पूर्व अध्यक्ष महाराष्ट्र राज्य उर्दू अकादमी के डा. अब्दुल सत्तार दलवी ने २३ अप्रैल २०११ को बेंक्वेट हाल, गोरेगांव [पूर्व] मुम्बई में हेमंत फ़ाउंडेशन द्वारा आयोजित विजय वर्मा कथा सम्मान समारोह में व्यक्त किये। उन्होंने आगे कहा- 'नौजवनों की हौसला अफ़जाई वक्त की अहम जरूरत है और यह काम हेमंत फ़ाउंडेशन बखूबी कर रहा है।' हिन्दी उर्दू के साहित्यकारों, टी.वी. कलाकारों, साहित्यप्रेमियों , मीडिया प्रेस से संलग्न तथा बाहर से आये हुए साहित्यप्रेमियों की उपस्थिति में तालियों की गड़गड़ाहट तथा संगीत की सुमधुर ध्वनि के बीच वर्ष २०११ का 'विजय वर्मा कथा सम्मान' मनोज कुमार पांडे [लखनऊ] को उनके कथा संग्रह 'शहतूत' के लिए तथा ' हेमंत स्मृति कविता सम्मान' वाजदा खान [दिल्ली] को उनके कविता संग्रह 'जिस तरह घुलती है काया' के लिए प्रमुख अतिथि श्री संजीव [कार्यकारी संपादक हंस] एवं अध्यक्ष श्री अब्दुल सत्तार दलवी ने प्रदान किया। पुरस्कार के अंतर्गत ग्यारह हजार की धनराशि,शाल,पुष्पगुच्छ, एवं स्मृति चिह्न प्रदान किया गया।
कार्यक्रम का आरंभ दीप प्रज्वलन एवं सरस्वती वंदना से हुआ। संस्था के निदेशक श्री विनोद टीबड़ेवाला एवं श्री जे.जे.टी. विश्वविद्यालय झुंझनू के कुलपति ने इस समारोह पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा- उन्हें गर्व है कि उनका विश्वविद्यालय ऐसे साहित्यिक समारोह से जुड़ा है। उन्होंने दोनों पुरस्कृत रचनाकारों का सम्मान करते हुए उन्हें युवा पीढ़ी का मील का पत्थर बताया।
संस्था की अध्यक्ष व प्रबन्धन्यासी साहित्यकार संतोष श्रीवास्तव ने ट्रस्ट का परिचय देते हुए उसकी गतिविधियों के बारे में बताते हुए कहा कि ट्रस्ट शीघ्र ही हिन्दी-उर्दू मंच तैयार करेगा ताकि दो जबानें मिलकर नए पथ का निर्माण करें।
समारोह में पुरस्कृत कविता संग्रह पर डा. करुणाशंकर उपाध्याय ने अपने वक्तव्य में कहा- वाजदाखान की कविताएं चित्र से परिपूर्ण हैं और कविताएं बिम्ब पूर्णता को दर्शाती हैं।
लेखिका डा. प्रमिला वर्मा ने संयोजक श्री भारत भारद्वाज द्वारा भेजी गई संस्तुति प्रस्तुत की। सम्मानित रचनाकार वाजदाखान ने अपनी रचनाओं का पाठ किया एवं अपने वक्तव्य पर बोलते हुए कहा - चित्रकला मेरा क्षेत्र रहा, मगर कविताओं को लिखना पढ़ना हमेशा आकर्षित करता रहा। कविताएं अन्तश्चेतना के किसी हिस्से को बड़ी ही आहिस्ता से स्पर्श करती हैं। यह जादुई स्पर्श कई-कई दिनों तक वजूद पर छाया रहता है।
मनोज कुमार पांडे ने अपने वक्तव्य में कहा कि मैं विजय वर्मा कथा सम्मान मिलने पर खुश हूं। और सचमुच सम्मानित महसूस कर रहा हूं। इसलिए भी क्योंकि यह सम्मान अपनी शुरूआत से ही विश्वसनीय रहा है और कई ऐसे कथाकारों को मिल चुका है जिनकी रचनाएं मैं गहरे लगाव के साथ पढ़ता रहा हूं।
प्रमुख अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार श्री संजीव ने अपने रोचक वक्तव्य में कहा- साहित्य का सच वास्तविक सच से भिन्न होता है। प्रगटत: मिथ्या सा लगता है लेकिन वह उस वास्तविक सत्य से ज्यादा बड़ा सत्य होता है। उदाहरण स्वरूप उन्होंने रवीन्द्रनाथ ठाकुर की काबुलीवाला का जिक्र किया जिसमें रहमत नायक जेल में १२ वर्ष गुजार कर जब घर लौटता है तो अपनी ५ वर्ष की बेटी के लिए चूड़ियां ले जाता है । उसके लिए बेटी आज भी पांच वर्ष की है। रहमत के लिए वक्त वहीं ठहर गया है। उन्होंने कहा कि ''अपने यहां किसी भी ऐतिहासिक सच से रामायण-महाभारत का सच समाज को ज्यादा प्रभावित करता रहा है।''
मनोज कुमार पांडे की कहानी 'पत्नी का चेहरा' आवाज तथा रंगमंच की दुनिया के प्रखर कलाकार सोनू पाहूजा ने अपने रोचक अंदाज में प्रस्तुत की।
कार्यक्रम का संचालन कवि आलोक भट्टाचार्य ने किया एवं समारोह का समापन लेखिका सुमीता केशवा के आभार से हुआ।

Tuesday, April 26, 2011

नागार्जुन जन्मशती विशेषांक के बहाने हुआ नागार्जुन-संवाद


मिथिलेश श्रीवास्तव, विष्णुचंद्र शर्मा, डॉ आनंद प्रकाश एवं राम कुमार कृषक (मंच पर बैठे हुए क्रमश: बाएं से दायें)

कविता और विचार के मंच लिखावट, साहित्यिक पत्रिका अलाव और स’आदतपुर साहित्य समाज के संयुक्त तत्वावधान में “नागार्जुन-संवाद” नामक चार सत्रीय कार्यक्रम दिनांक 24 - 4 -11 को संपन्न हुआ। कार्यक्रम के पहले दूसरे और तीसरे सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार विष्णु चंद्र शर्मा ने तथा संचालन राम कुमार कृषक ने किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. आनंद प्रकाश थे। कार्यक्रम के पहले सत्र में कृष्ण कल्पित, डॉ. बली सिंह, मणिकांत ठाकुर, महेश दर्पण, उमेश चतुर्वेदी, डॉ. आनंद प्रकाश, मिथिलेश श्रीवास्तव और विष्णु चन्द्र शर्मा जी नें बाबा नागार्जुन की रचनाओं पर अपने अपने वक्तव्य दिए साथ ही साथ कई रोचक संस्मरण भी सुनाये। महेश दर्पण नें कहा कि हमारे देश में विकास की दर इतनी धीमी है कि बाबा की प्रासंगिकता बहुत अधिक समय तक बनी रहेगी साथ साथ उन्होंनें यह भी कहा कि बाबा अपने समय के निर्देशक थे। मिथिलेश श्रीवास्तव कुछ लोगों द्वारा नागार्जुन के साहित्य का लगातार अवमूल्यन करने से काफी आहात दिखे, उन्होंनें कहा कि नागार्जुन और शमशेर पर लगातार बात चीत होनी चाहिए क्यूंकि कुछ लोग उन्हें दूसरे सन्दर्भों में चुराने की कोशिश कर रहे हैं। उमेश चतुर्वेदी नें बाबा से जुड़ी कुछ बातों की चर्चा तथा पत्रकारिता में बाबा के योगदान पर चर्चा की। मुख्य अतिथि डॉ. आनंद प्रकाश नें नागार्जुन की कविता “हरिजन गाथा” के शीर्षक के पीछे की कहानी बताई और कहा कि नागार्जुन की कविता जनता की तरफ से संवाद करती है इसलिए इस गोष्ठी का नाम “नागार्जुन-संवाद” भी सार्थक है। इस सत्र का समापन अध्यक्ष विष्णुचंद्र शर्मा के वक्तव्य के साथ हुआ। उन्होंनंन कहा कि जहाँ भी क्रांति कि सम्भावना है वहाँ नागार्जुन हैं, आज नागार्जुन होते तो उस व्यक्ति के लिए कविता लिखते जो भ्रष्टाचार के विरुद्ध हम सबके लिए भूखा बैठा था।


अपनी कहानी का पाठ करते हुए हीरालाल नागर

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में नागार्जुन की एक कविता का पाठ राम कुमार कृषक जी ने किया तथा उसके बाद नागार्जुन की एक कविता मन्त्र का संगीतबद्ध प्रसारण किया गया जिसे दस मिनट तक सभी श्रोतागण ध्यान लगाकर सुनते रहे। कार्यक्रम के तीसरे सत्र में हीरालाल नागर नें एकल कहानी पाठ किया। खिड़की नाम की उनकी कहानी नें श्रोताओं को बांधे रखा। इसके बाद इस कहानी पर महेश दर्पण जी ने अपनी विशेष टिपण्णी दी और कहानी को सराहा।


काव्यपाठ करते हुए सुरेन्द्र श्लेष
कार्यक्रम के चौथे और अंतिम सत्र में विभिन्न कवियों नें कविता पाठ किया। इस गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ. आनंद प्रकाश नें तथा संचालन मुकेश मानस नें किया। गोष्ठी में सुरेन्द्र श्लेष, अभिषेक, प्रताप अनम, रमेश प्रजापति, रजनी अनुरागी, बागी चाचा, राधेश्याम बंधु, राधेश्याम तिवारी, स्वप्निल तिवारी “आतिश”, अशोक तिवारी, प्रदीप गुप्ता, मणिकांत ठाकुर, मुकेश मानस, मिथिलेश श्रीवास्तव एवं राम कुमार कृषक नें अपनी अपनी कविताओं का पाठ किया। उसके बाद डॉ. आनंद प्रकाश नें अपना वक्तव्य दिया और कविता की संभावनाओं को देखकर हर्षित हुए। डॉ. बली सिंह नें अपनी अपनी कविता के साथ धन्यवादयापन करते हुए कार्यक्रम का समापन किया।

डायलॉग गोष्ठी का आमंत्रण


डायलॉग गोष्ठी का आमंत्रण पत्र

Friday, April 22, 2011

आमंत्रणः नागार्जुन-जन्मशती विशेषांक के बहाने 'नागार्जुन संवाद'

10वां राष्ट्रीय विश्व भोजपुरी सम्मलेन 23 -24 अप्रैल को, ऋषिकेश में

१०वें राष्ट्रीय विश्व भोजपुरी सम्मलेन का आयोजन २३ -२४ अप्रैल को त्रिवेणी घाट,ऋषिकेश (उतराखंड ) में किया जा रहा है जिसमें देश व देश के बाहर से हज़ारों की संख्या में साहित्यकार , कलाकार, गायक और भोजपुरी प्रेमी भाग लेंगे. सम्मलेन का उदघाटन माननीय मुख्यमंत्री ,उतराखंड श्री रमेश पोखरियाल निशंक करेंगे . मुख्य अतिथि वरिष्ठ नेता कलराज मिश्र , अध्यक्ष सतीश त्रिपाठी (राष्ट्रीय अध्यक्ष ,विश्व भोजपुरी सम्मलेन),अति विशिष्ट अतिथि -डा ० राजा वशिष्ठ (अमेरिका ),महामहिम राजदूत ( त्रिनिदाद) ,डा ० सरिता बुधू (मारीशस ),विशिष्ट अतिथि -श्री कमल नारायण मिश्र (प्रदेश अध्यक्ष ,उतराखंड ),श्री अरुणेश नीरन (अंतर राष्ट्रीय महासचिव ,विश्व भोजपुरी सम्मलेन ),माननीय हरीश रावत (सांसद , हरिद्वार ) और माननीय ओम प्रकाश यादव (सांसद, सीवान ) आदि उदघाटन सत्र में भाग लेंगे.
इस दो दिवसीय आयोजन में इस वर्ष भी साहित्यिक परिचर्चा , विचार गोष्ठी , लोकरंग , नटरंग , कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह का कार्यक्रम होगा .

उक्त आशय की जानकारी देते हुए विश्व भोजपुरी सम्मेलन दिल्ली के अध्यक्ष श्री मनोज भावुक ने बताया कि '' विश्व भोजपुरी सम्मलेन २० करोड़ भोजपुरी भाषी लोगों का एक विश्व संगठन है तथा सोलह देश इसके सदस्य हैं . भारत एवं भारत के बाहर अब तक इसके चार विश्व सम्मेलन और नौ राष्ट्रीय अधिवेशन हो चुके हैं . इनमें भारत और मारीशस के राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री , मंत्री , सांसद , संस्कृतिकर्मी , कलाकार , भाषाविद एवं साहित्यकारों ने उपस्थित होकर भोजपुरी का मान बढाया है .

श्री भावुक ने आगे कहा कि ' विश्व भोजपुरी सम्मलेन भोजपुरी भाषा , साहित्य , कला , संस्कृति एवं जीवन शैली के प्रचार-प्रसार , संरक्षण एवं संवर्धन के लिए समर्पित एक विश्व स्तरीय संगठन है . विश्व भर में अपने श्रम , प्रतिभा , कल्पनाशक्ति और समर्पण के कारण अपना विशेष स्थान बनाने वाले बीस करोड़ भोजपुरियों की एकता , आपसी संवाद , पहचान और अपनी मिट्टी की गंध बनाए रखने और उनके लिए एक विश्व मंच उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सन १९९५ में सेतु न्यास मुम्बई की सहायता से संस्था की स्थापना हुई थी . मात्र पंद्रह वर्ष की अल्पावधि में सम्मेलन ने भोजपुरिया कला और संस्कृति के क्षेत्र में तो कीर्तिमान स्थापित किया ही है , लाखो लोगों को एक मंच पर जुटाकर उनकी अस्मिता का बोध भी कराया है .

सुविख्यात भाषाविज्ञानी और आलोचक प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी की मॉरिशस यात्रा



विश्व हिन्दी सचिवालय, मॉरिशस के तृतीय आधिकारिक कार्यारंभ दिवस पर भारत के सुविख्यात भाषाविज्ञानी और आलोचक प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी को मुख्य अतिथि के रूप में मॉरिशस में आने का निमंत्रण दिया गया। प्रो. गोस्वामी 06 फ़रवरी, 2011 को मॉरिशस पहुँचे और उनका स्वागत विश्व हिन्दी सचिवालय के महासचिव डॉ. राजेन्द्र प्रसाद मिश्र और उप महासचिव गंगाधर सिंह गुलशन सुखलाल ने किया।

11 फ़रवरी, 2011 को सचिवालय का आधिकारिक कार्यारंभ दिवस पर महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट के सभाकक्ष में सचिवालय की कार्यकारिणी परिषद् के सदस्य और मॉरिशस के सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री माता बदल अजामिल की अध्यक्षता में आयोजित किया गया। इसमें प्रो. गोस्वामी ने मुख्य अतिथि के रूप में अपने वक्तव्य में ‘अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में हिन्दी’ विषय पर चर्चा करते हुए कहा कि विदेशों में रह रहे हिन्दी भाषी भारतीयों को चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है - एक वर्ग में वे देश आते हैं जिनमें भारतीय मूल के लोग वर्षों पहले गए थे और वहीं बस गए हैं। इनमें मॉरिशस, फीजी, गुयाना, सूरिनाम, टोबेगो एवं त्रिनिदाद देश आते हैें। इन देशों में हिन्दी का व्यापक प्रयोग होता है। इनमें हिन्दी का सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ है, साहित्यिक सृजन का संदर्भ है और प्रयोजनमूलक संदर्भ है। इन देशों में साहित्य रचना तो होती है, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अस्मिता का भी प्रश्न ज्वलंत रहता है। दूसरे वर्ग में वे देश आते हैं जो आधुनिक युग में नौकरी के लिए भारत से बाहर गए और वही अल्पसंख्यक वर्ग के रूप में प्रयोजनमूलक कार्य के लिए वहीं बस गए। इनमें अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, कनाडा, इंग्लैंड, हालैंड, मलेशिया, सिंगापुर आदि देश हैं जिनके प्रवासी भारतीय अर्थात् ‘डायस्पोरा’ अपनी सामाजिक-सांस्कृतिक अस्मिता बनाए रखने के लिए अपनी भाषा हिन्दी को आवश्यक मानते हैं। तीसरे वर्ग में पाकिस्तान, नेपाल, अफ़गानिस्तान, श्रीलंका आदि पड़ोसी देश एक ही भाषा-परिवार की भाषाएं बोलते हैं और इसी कारण उनका हिन्दी से परिचय होना स्वाभाविक है। चौथे वर्ग में रूस, जापान, कोरिया, मंगोलिया, चीन आदि देशों तथा एशिया, अफ्रीका, यूरोप, अमेरिका महाद्वीपों के लगभग 150 देशों में हिन्दी शिक्षण की व्यवस्था है। इन देशों में हिन्दी बोली-सुनी नहीं जाती, किंतु भारतीय दर्शन, संस्कृति और साहित्य के अध्ययन के लिए हिन्दी की आवश्यकता महसूस की जाती है। इसीलिए यहाँ हिन्दी के शैक्षिक संदर्भ का विशेष महत्व है। इसके बाद काव्यगोष्ठी का कार्यक्रम आयोजित किया गया। अंत में अजामिल जी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में मॉरिशस में हिन्दी में रचे जा रहे साहित्य का परिचय दिया। भारतीय उच्चायुक्त के द्वितीय सचिव श्री मीमांसक ने अपने धन्यवाद प्रस्ताव में हिन्दी की गरिमा को बढ़ाने में मॉरिशस के योगदान की प्रशंसा की। इसका संचालन सचिवालय के उप महासचिव श्री गुलशन सुखलाल ने किया। इसमें मॉरिशस के हिन्दी साहित्यकार रामदेव धुरंधर, श्रीमती भानुमति नागदान, हिन्दी संगठन के अध्यक्ष श्री राजनारायण गति, महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट के प्रोफ़ेसर डॉ. सुंदर, डॉ. राजरानी गोबिन और श्री कुमारदत्त गुदारी विनय ने सक्रिय भाग लिया।

प्रो. गोस्वामी ने 10 फरवरी, 2011 को सचिवालय के महासचिव और उपमहासचिव सहित मॉरिशस के राष्ट्रपति महामहिम श्री अनिरुद्ध जगनाथ से राष्ट्रपति निवास में भेंट की। उनके साथ भारत-मॉरिशस के संबंधों तथा हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार पर बातचीत हुई। भारत के उच्चायुक्त माननीय श्री मधुसूदन गणपति से भी भेंट हुई और उनके साथ हिन्दी के प्रचार-प्रसार पर चर्चा हुई। प्रो. गोस्वामी ने महामहिम राष्ट्रपति को ‘हिंदी का भाषिक और सामाजिक परिदृश्य’ पुस्तक भेंट की। माननीय उच्चायुक्त को ‘आधुनिक हिंदीः विविध आयाम’ पुस्तक भेंट की। इसके अतिरिक्त उपउच्चायुक्त श्री प्रशांत पिसे से भी औपचारिक भेंट हुईै।



प्रो. गोस्वामी ने मॉरिशस ब्रॉडकास्टिंग कार्पोरेशन में दो रेडियो कार्यक्रम तथा टेलीविज़न कार्यक्रम प्रस्तुत किए। इनमें भी हिन्दी के प्रचार-प्रसार पर गंभीर चर्चा हुईं दो दिन मॉरिशस भ्रमण करते हुए प्रो. गोस्वामी ने मॉरिशस के सौंदर्य के दर्शन किए। इस समूची यात्रा में सचिवालय के महासचिव डॉ. राजेन्द्र प्रसाद मिश्र और उप महासचिव श्री गंगाधर सिंह गुलशन सुखलाल का आतिथ्य-सत्कार स्तुत्य था।

Wednesday, April 20, 2011

अजीत दूबे को चंद्रशेखर सम्मान


पूर्व प्रधानमंत्री एवं समाजवादी नेता स्‍व. श्री चन्‍द्रशेखर जी के जन्‍म दिन के अवसर पर नेशनल थिंकर्स फोरम द्वारा दिल्‍ली के लक्ष्‍मीपति सिंहानिया आडिटोरियम में "चन्‍द्रशेखर: एक राष्‍ट्रवादी चिंतक" विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया एवं साथ ही विभिन्‍न क्षेत्रों में सराहनीय कार्य कर रहे लोगों को फोरम द्वारा पहली बार चंद्रशेखर सम्‍मान प्रदान किया गया। इस कडी में भोजपुरी भाषा के विकास एवं उसे संवैधानिक मान्‍यता दिलाने हेतु किये जा रहे सराहनीय प्रयास के लिए भोजपुरी समाज, दिल्‍ली के अध्‍यक्ष श्री अजीत दुबे (पूर्व कार्यपालक निदेशक , भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण) को भी सम्‍मानित किया गया । चंद्रशेखर जी के बारे में अपने विचार व्‍यक्‍त करते हुए फोरम के महासचिव डा. एस.पी. सिंह ने कहा श्री चंद्रशेखर जी न केवल एक राजनेता थे बल्कि एक महान राष्‍ट्रवादी चिंतक भी थे जिसकी राज‍नीति के केन्‍द्र में आम आदमी होता था । स्‍व. श्री चन्‍द्रशेखर जी के सुपुत्र एवं बलिया से सांसद श्री नीरज शेखर ने अपने पिता को याद करते हुए कहा कि वे अपने पिता के पदचिन्‍हों पर चलने की पूरी कोशिश कर रहे हैं । समारोह के मुख्‍य अतिथि पूर्व केन्‍द्रीय मंत्री श्री रामविलास पासवान ने कहा कि चन्‍द्रशेखर जी केवल व्‍यक्ति नहीं थे बल्कि अपने आप में एक संस्‍था थे, उन जैसे विलक्षण प्रतिभा के राजनेता का भारतीय राजनीति में न होना एक बहुत बडे शून्‍यता का बोध कराता है । पूर्व केन्‍द्रीय मंत्री डा. संजय सिंह ने कहा चंद्रशेखर जी ने राजनीति में अपने सिद्धांतों को ही सर्वोपरि माना । आज उनके विचारों को जिन्‍दा रखने के लिए चंद्रशेखर जी की संस्‍कृति को आगे बढाने की आवश्‍यकता है । इस अवसर पर पत्रकार व पूर्व सांसद श्री संतोष भारती, सांसद श्री लोकेन्‍दर सिंह काल्‍वी, गाजीपुर एवं बलिया के पूर्व कलेक्‍टर क्रमश: श्री कमल टावले एवं श्री शंकर अग्रवाल, चंद्रशेखर जी के पूर्व राजनीतिक सलाहकार श्री एच.एन. शर्मा आदि ने भी श्री चंद्रशेखर जी से जुडे अपने संस्‍मरण से लोगों को अवगत कराया ।

इस अवसर पर भोजपुरी में किए गए अपने संबोधन में श्री अजीत दुबे ने भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने हेतु उनके द्वारा किए जा रहे प्रयासों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह अत्‍यंत दुखद है कि देश में हिन्‍दी के बाद सबसे ज्‍यादा लोगों द्वारा तथा विश्‍व भर में बीस करोड. से भी ज्‍यादा लोगों द्वारा बोली जाने वाली भोजपुरी भाषा आज भी संवैधानिक मान्‍यता से वंचित है । इस मंच से उन्‍होंने पुन: यह आवाज उठाई कि सरकार इस भाषा को जल्‍द से जल्‍द संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करे ।

नेशनल थिंकर्स फोरम द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में विभिन्‍न क्षेत्रों से अन्‍य कई विशिष्‍ट लोगों जैसे इरमल मारला एवं सर्वश्री प्रमोद कुमार दूबे(विधि क्षेत्र), अंबारी कृष्‍णमूर्ति(ट्रेड यूनियन क्षेत्र), ए.एस.कुमार, संतोष कुमार सिंह, कल्‍पनाथ चौबे (शिक्षा क्षेत्र), प्रमोद कुमार उपाध्‍याय एवं रवि सिंह (पत्रकारिता क्षेत्र), प्रहलाद सिंह(कृषि क्षेत्र), गोपाल नस्‍कर, खुशवंत सिंह राव और बृज किशोर पाण्‍डेय इत्‍यादि को भी सम्‍मानित किया गया ।

सेमिनार एवं सम्‍मान समारोह के पश्‍चात कार्यक्रम के दूसरे सत्र में सांस्‍कृतिक कार्यक्रम के तहत भोजपुरी गायक श्री मोहन राठौर एवं अनामिका सिंह द्वारा भोजपुरी लोकगीतों की शानदार प्रस्‍तुति की गई ।

Monday, April 18, 2011

आप भी बनिए हिन्दी की श्रेष्ठ 111 महिला लेखिकाओं में से एक

14 भारतीय भाषाओं में प्रकाशित होने वाली समाचार पत्रिका 'द संडे इंडियन', हिन्दी ने हिन्दी की 111 श्रेष्ठ महिला लेखिकाओं का चयन करने का निश्चय किया है। इसके लिए प्रविष्टियाँ आमंत्रित की गई हैं। अंतिम तिथि 30 अप्रैल 2011 है।

पूरा विवरण नीचे देखें।
(विवरण की मूल प्रति देखने के लिए नीचे के चित्र पर क्लिक करें।


अगर आप ऊपर पूरा विवरण ठीक ढंग से नहीं देख पा रहे हैं तो यहाँ से फाइल डाउनलोड कर लें।

प्रविष्टियाँ ईमेल द्वारा editoronkar@planmanmedia.com पर भेजी जा सकती हैं। और अधिक जानकारी के लिए 120-4170139 पर फोन करके (सुबह 11.00 बजे से शाम 6.30 बजे तक- रविवार और वृहस्पतिवार बंद) भी ली जा सकती है।

Saturday, April 16, 2011

इस वर्ष का इंदु शर्मा कथा सम्मान एवं पद्मानंद साहित्य सम्मान घोषित

कथा (यू. के.) के महा-सचिव एवं प्रतिष्ठित कथाकार श्री तेजेन्द्र शर्मा ने लंदन से सूचित किया है कि वर्ष 2011 के लिए अंतर्राष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान पत्रकार कथाकार श्री विकास कुमार झा को उनके (राजकमल प्रकाशन से 2010) में प्रकाशित उपन्यास मैकलुस्कीगंज पर देने का निर्णय लिया गया है। यह उपन्यास दुनियां के एक अकेले एंगलो-इंडियन ग्राम की महागाथा है। इस सम्मान के अन्तर्गत दिल्ली-लंदन-दिल्ली का आने-जाने का हवाई यात्रा का टिकट एअरपोर्ट टैक्स़, इंगलैंड के लिए वीसा शुल्क़, एक शील्ड, शॉल, तथा लंदन के खास-खास दर्शनीय स्थलों का भ्रमण आदि शामिल होंगे। यह सम्मान श्री विकास कुमार झा को लंदन के हाउस ऑफ कॉमन्स में 27 जून 2011 की शाम को एक भव्य आयोजन में प्रदान किया जायेगा। सम्माुन समारोह में भारत और विदेशों में रचे जा रहे साहित्या पर गंभीर चिंतन भी किया जायेगा।
इंदु शर्मा मेमोरियल ट्रस्ट की स्थापना संभावनाशील कथा लेखिका एवं कवयित्री इंदु शर्मा की स्मृति में की गयी थी। इंदु शर्मा का कैंसर से लड़ते हुए अल्प आयु में ही निधन हो गया था। अब तक यह प्रतिष्ठित सम्मान चित्रा मुद्गल, संजीव, ज्ञान चतुर्वेदी, एस आर हरनोट, विभूति नारायण राय, प्रमोद कुमार तिवारी, असग़र वजाहत, महुआ माजी, नासिरा शर्मा, भगवान दास मोरवाल एवं हृषिकेश सुलभ को प्रदान किया जा चुका है।

7 अक्टूबर 1963 को जन्मे विकास कुमार झा ने सोशियॉलोजी में एम.ए. की डिग्री हासिल की है। वे रविवार, आउटलुक, एवं माया जैसी पत्रिकाओं के संपादन विभाग से जुड़े रहे। आजकल वे राष्ट्रीय प्रसंग पत्रिका के संपादक के रूप में कार्यरत हैं। वे हिन्दी एवं अंग्रेज़ी में समान रूप से लिखते रहे हैं। सम्मानित उपन्यास के अतिरिक्त उनका कविता संग्रह इस बारिश में, उपन्यास भोग, निबन्ध संग्रह – परिचय पत्र एवं स्वतंत्र भारत का राजनीतिक इतिहास – सत्ता के सूत्रधार प्रकाशित हो चुके हैं। वे टेलिविज़न पर ऐंकर के रूप में भी काम कर चुके हैं।

इस कार्यक्रम के दौरान भारत एवं विदेशों में रचे जा रहे हिन्दी साहित्य के बीच के रिश्तों पर गंभीर चर्चा होगी।
वर्ष 2011 के लिए पद्मानन्द साहित्य सम्मान इस बार लेस्टर निवासी कथाकार एवं ग़ज़लकार नीना पॉल को उनके उपन्यास तलाश (अयन प्रकाशन) के लिये दिया जा रहा है। अम्बाला (भारत) में जन्मी नीना पॉल ने एम.ए., बी.एड. की डिग्रियों के अतिरिक्त संगीत की भी बाक़ायदा शिक्षा ली है। सम्मानित उपन्यास के अतिरिक्त उनके पांच ग़ज़ल संग्रह कसक, नयामत, अंजुमन, चश्म-ए-ख़्वादीदा, मुलाक़ातों का सफ़र और एक उपन्यास रिहाई प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी ग़ज़लों का एक ऑडियो सी.डी. कसक के नाम से भी जारी हो चुका है।
इससे पूर्व ब्रिटेन के प्रतिष्ठित हिन्दी लेखकों क्रमश: डॉ सत्येन्द श्रीवास्तव, दिव्या माथुर, नरेश भारतीय, भारतेन्दु विमल, डा. अचला शर्मा, उषा राजे सक्से्ना, गोविंद शर्मा, डा. गौतम सचदेव, उषा वर्मा, मोहन राणा, महेन्द्र दवेसर एवं कादम्बरी मेहरा को पद्मानन्द साहित्य सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है।
कथा यू.के. परिवार उन सभी लेखकों, पत्रकारों, संपादकों मित्रों और शुभचिंतकों का हार्दिक आभार मानते हुए उनके प्रति धन्यवाद ज्ञापित करता है जिन्होंने इस वर्ष के पुरस्कार चयन के लिए लेखकों के नाम सुझा कर हमारा मार्गदर्शन किया।

Friday, April 15, 2011

कॉलेज ऑफ़ स्टडीज में दो दिवयीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न



‘जो बीत जाता है उसके पुर्नावलोकन की बाते उठती है और जब हम इनपर चर्चा करते हैं तो नई बातें सामने आती हैं। आवश्यक्ता है इस निरंतर पुर्नावलोकन की। कविता की प्रासंगिकता को समय पाठक और अभिरुचि की दृष्टि से परखा जाना चाहिए। और जब हम अज्ञेय, नागार्जुन, शमेशर बहादुर सिंह, एवं केदारनाथ अग्रवाल की जन्मशताब्दी के अवसर पर उनके रचनाकर्म को देख रहें तो बहुत आवश्यक हो जाता है कि पहले से ही कठघरे में बांधकर देखने की छवि को तोड़कर पढ़ा जाए।’ यह उद्गार कॉलेज ऑफ वोकेशनल स्टडीज ,दिल्ली विश्वविद्यालय, द्वारा ‘कविता की प्रासंगिकता: संदर्भ अज्ञेय, नागार्जुन, शमेशर बहादुर सिंह, एवं केदारनाथ अग्रवाल’ विषय पर कॉलेज ऑफ वोकेशनल स्टडीज द्वारा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सहयोग से आयोजित, दो दिवयीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन करते समय प्रसिद्ध आलोचिका निर्मला जैन ने कहे । उन्होंने कहा कि अज्ञेय ने उपन्यास तथा कथा को नयी दिशा दी, छायावाद को उखाड़ा तथा नागार्जुन और केदार ने राजनीति को काव्य का विषय बनाया। शमशेर संवेदना,आत्मसंवाद और आवेग के कवि हैं तथा उनकी राजनीतिक कविताएं स्थूल और सपाट हैं। इन चारों कवियों में से अज्ञेय एकमात्र ऐसे कवि हैं जिन्होने शरणार्थी समस्या पर कविताएं लिखीं। नागार्जुन की राजनीतिक कविताएं गहरी तकलीफ की कविताएं हैं। आलोचकों ने केदार जी को मात्र राजनीतिक कवि कहकर सीमित किया है और उनका अवमूल्यन किया है।’ प्रो0 निर्मला जेन ने केदारनाथ अग्रवाल की अनेक प्रेम कविताओं को उद्धृत भी किया।

अपने अध्यक्षीय भाषण में अशोक वाजपेयी ने कहा-इन चारों कवियों ने यथार्थ और वैकल्पिक यथार्थ की कल्पना की। ये चारों कवि गहरी प्रश्नवाचकता के कवि हैं। इन्होने स्वयं की कविता पर संदेह किया है। जन्म-शताब्दी पर इन चारों को याद करना एक जैविक घटना है। इन चारों कवियों में सौंदर्यबोध, संघर्षबोध है । शब्द की विपुलता से ही जीवन की विपुलता का बोध होता है जो अज्ञेय में सर्वाधिक है। अज्ञेय हिंदी के अंतिम प्रकृतिपरक बौद्धिक कवि हैं। शब्द की विपुलता से ही जीवन की विपुलता का बोध होता है और यह अज्ञेय में सर्वाधिक है। नागार्जुन का शिल्प अभिधात्मक है। वे सामान्य जीवन के कवि हैं। नागार्जुन को पश्चिमी सभ्यता के क्रिटीक के रूप में पढ़ा जा सकता है। चारों कवि बंधे-बंधाए उत्तरों को अस्वीकार करते हैं। इन चारों कवियों में शिल्प की अपार विविधता है जबकि आज की अधिकांश कविता अखबारी है।

विशिष्ट अतिथि विश्वनाथ त्रिपाठी ने कहा - इन कवियों की राजनतिक समझ को स्वातंत्र्य प्रेम की नज़र से भी देखा जाए क्योंकि ये चारो कवि स्वाधीनता काल के कवि हैं। उन्होंने पाब्लो नेरूदा का उदाहरण देते हुए कहा कि जिन कवियों ने राजनीतिपरक रचनाएं की हैं उन्होंने प्रेम पर भी खूब लिखा है। केदार और नागार्जुन को इस परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। आज ग्लोबल बाजारवाद के चक्कर में ग्लोबल संवेदना को केंद्र में रखकर लिखा जा रहा है। अज्ञेय की निजता एक ऐतिहासिक जरूरत थी।’
प्राचार्य डॉ0 इंद्रजीत ने अतिथियों का स्वागत एवं धन्यवाद किया और संगोष्ठी को ऐतिहासिक बताते हुए कहा - आज जिस संगोष्ठी का उद्घाटन होने जा रहा है, वह आप सबकी उपस्थिति से एक ऐतिहासिक अवसर बन गया है। अज्ञेय, नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल और शमशेर बहादुर सिंह का यह शताब्दी वर्ष है। इस वर्ष पूरे भारत में अनेक महत्वपूर्ण कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं । आज का कार्यक्रम उसी श्रृंखला की एक महत्वपूर्ण कड़ी कहा जा सकता है। उद्घाटन सत्र के आरंभ में संगोष्ठी के संयोजक डॉ0 प्रेम जनमेजय ने प्रस्तावित विषय के संबंध में विस्तार से बताया एवं आज के समय में जब कविता अन्य विधाओं के संदर्भ में छूटती जा रही है, ऐसे में अज्ञेय, शमशेर, नागार्जुन और केदार की कविता हमारे आज के समय को क्या संबल देती है।

उद्घाटन सत्र में प्रेम जनमेजय द्वारा संपादित पुस्तक ‘श्रीलाल शुक्लः विचार विश्लेषण एवं जीवन’ का लोकार्पण भी किया गया।

संगोष्ठी का पहला सत्र केदारनाथ अग्रवाल पर केंद्रित था जिसकी अध्यक्षता डॉ0 नित्यानंद तिवारी ने की तथा मुख्य अतिथि थे डॉ0 खगेंद्र ठाकुर। इस सत्र में डॉ0 बली सिंह, डॉ0 द्वारिकाप्रसाद चारुमित्र एवं डॉ0 विनय विश्वास ने अपने आलेख पढ़ें। डॉ0 नित्यानंद तिवारी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा- हम इस पूंजीवादी सभ्यता में अनुकूलित हो जाना चाहते हैं या अपनी मानवीय भूमिका निभाना चाहते हैं, यह निर्णय हमें ही करना है। रामविलास शर्मा ने केदार को कामचेतना के आंचलिक कवि कहा है जिसमें उन्होंने स्थानीय तस्वीर पैदा कर दी है। चारों कवियों के पास मनुष्य के रूप हैं चाहे अलग-अलग रूप में हों। आज के युग में मनुष्य सूचनाओं का मात्रा यंत्र हो गया है।’ तिवारी जी ने केदार की दो कविताओं ‘न घटा जो यहां कभी पहले’ और ‘अब’ कविताओं के संदर्भ में कहा कि केदार जी के यहां सही मनुष्य की उपस्थिति है। मुख्य अतिथि खगेंद्र ठाकुर ने कहा - आज के युग में पूंजीवाद को मनुष्य की मनुष्य के रूप में जरूरत नहीं है, उसकी जरूरत है तो खरीददार के रूप में। राजनीति सिर्फ पार्टीबाजी में नहीं अन्य चीजों में भी देखी जा सकती है। केदार की फुटकल कविताओं में मनुष्य के संघर्षों का जो रूप है वह महामानव का रूप दिखाता है। केदार के यहों प्रकृति की अनेक ऐसी कविताएं हैं जो छायावाद से भी अच्छी हैं। आज का समाज यदि हमंे अच्छा नहीं लगता है तो केदार प्रासंगिक कवि हैं। डॉ0 बलीसिंह ने कहा- केदार व्यक्ति को महत्व देते हैं, उसकी आईडेंटीटी को महत्व देते हैं। केदार ने न केवल नदी में सौंदर्य देखा अपितु नाले में भी सौंदर्य देखा और उसे काव्य का विषय बनाया।’ डॉ0 द्वारिकाप्रसाद चारुमित्रा ने कहा - अज्ञेय को छोड़कर सभी कवि जनपद के कवि के परिचायक लेते हैं। नागार्जुन और केदार में विद्यापति की प्रेरणा बोलती है और उनकी कविताओं में सास्कृतिक आवाज बोलती है। केदार की कविता की कविता मानव की कविता है। उनकी कविता अमानवीय संसार में इंसानियत की खोज की कविता है।’ डॉ0 विनय विश्वास ने कहा - अशोक वाजपेयी ने जो कहा कि अज्ञेय प्रकृति के अंतिम कवि है, इससे मैं सहमत नहीं। केदार की कविताएं प्रकृति के हर रंग को उकेरती हैं। केदार की कविताओं में ‘ध्ूप’ पर लिखा बहुत कुछ मिलता है।’ विनय विश्वास ने केदार की अनेक प्रकृतिपरक कविताओं को प्रस्तुत किया। सत्र का संचालन डॉ0 रत्नावली कौशिक ने किया।

संगोष्ठी का दूसरा सत्र नागार्जुन पर केंद्रित था जिसकी अध्यक्षता प्रो0 गोपश्वर सिंह ने की तथा मुख्य अतिथि थे डॉ0 विजय बहादुर सिंह। अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रो0 गोपेश्वर सिंह ने कहा- नागार्जुन मुक्तिकामी कवि हैं। वे बड़े रेंज के कवि हैं। इनकी काव्य विशाल भूमि है तथा इनमें छंदों और काव्य रूपों की बहुलता है। प्रश्नाकुलता यदि आध्ुनिकता का लक्षण है तो नागार्जुन आधुनिकता के कवि हैं। मनुष्य की मानवीयता में विश्वास ही आधुनिकता की सर्वोत्तम कसौटी है। नागार्जुन भावुकता के नहीं आवेग के कवि हैं। नागार्जुन काव्य की बारिकियों के लिए हलकान रहने वाले कवि नहीं हैं। अज्ञेय नागर रुचि के कवि है तो नगार्जुन बोली के कवि हैं। दिनकर और बच्चन के बाद नागार्जुन ऐसे कवि हैं जिनको आनंद से पढ़ा जा सकता है। ‘नई कविता’ के महल में सेंध लगाने वाली कविता नागार्जुन की है।’ मुख्य अतिथि डॉ0 विजय बहादुर सिंह ने कहा - कविता की प्रासंगिकता समाज में मनुष्य के बचे रहने की प्रासंगिकता है। मनुष्य को मनुष्य बनाए रखने के लिए कविता लिखना और चर्चित होने के लिए कविता लिखना दो अलग- अलग बातें हैं। बहुत लोग लिखना जानते हैं पर नहीं जानते कि लिखना क्या है। साहित्य को कला समझने वाले नागार्जुन की कविता को समझ नहीं सकते हैं। प्रेमचंद, नागार्जुन खेतिहर समाज के रचनाकार हैं। नागार्जुन जनता के पक्ष में उसी की भाषा में लिखने वाले कवि हैं। नागार्जुन और निराला समान संवेदना के कवि है। डॉ0 अनामिका ने ‘नागार्जुन के काव्य में स्त्री-पक्ष’ पर बोलते हुए कहा -नागार्जुन ने अपने साक्षात्कारों में कम-से- कम पांच वर्ष के लिए अपने स्त्री बन जाने की इच्छा का जिक्र किया है। बाबा स्त्रियों के दोस्त बन गए थे और उनकी रसोईघर में उनका आना जाना था। नागार्जुन ने प्रतिबद्ध कविताएं लिखीं।राधेश्याम तिवारी ने कहा- नागार्जुन ने ज्ञानात्मक संवेदना वाली कविता का महत्व बताया, न कि ज्ञान से लिखी कविताओं का। नागार्जुन की कविताओं में बौद्धिकता का आतंक नहीं है। जो बौद्धिक कविताएं लिखते हैं वे अपने समय से तो कटते ही हैं, बाद के समय से भी कट जाते हैं। बचे रहेंगे शब्द और बची रहेगी संवेदनाए।’ डॉ0 बागेश्री चक्रधर ने नागार्जुन को बौद्ध धर्म से मिली प्रेरणा की चर्चा करते हुए कहा - नागार्जुन पर सिद्धों-नाथों जैसी जीवन-प्रणाली का प्रभाव था। उन्होंने विचारधाराओं से अनुभव तक की यात्रा की।’ बागेश्री चक्रध्र ने बाबा नागार्जुन से जुड़े अनेक रोचक संस्मरणों का उल्लेख करते हुए कहा कि बाबा मानते थे कि पेट से बड़ा कोई आंदोलनकारी नही होता और बाबा दूसरी विचारधारा के लोगों से भी संवाद करते थे। डॉ0 हरीश नवल ने नागार्जुन से जुड़े अनेक रोचक संस्मरण सुनाते हुए कहा- वे सही अर्थों में जनकवि थे। उनके साथ गुजरे हुए मेरे और मेरे दादा जी के क्षण मेरे लिए अविस्मरणीय हैं। इस सत्रा का संचालन डॉ0 वीनू भल्ला ने किया ।

संगोष्ठी का तीसरा सत्र अज्ञेय पर केंद्रित था जिसकी अध्यक्षता श्री ओम थानवी ने की तथा मुख्य अतिथि थे डॉ0 कृष्णदत्त पालीवाल । अपने अध्यक्षीय भाषण में ओम थानवी नेकहा- अज्ञेय एक बड़े कवि थे जिनका मूल्यांकन करते समय अक्सर उनके व्यक्तित्व से जुड़े हुए संदर्भों को आधर बना लिया जाता है। प्रेम जनमेजय ने सही सवाल उठाया है कि रचनाकार के व्यक्तित्व को क्या साहित्यकार के रचनाकर्म की कसौटी माना जाए। अब अज्ञेय पर सी आई ए का एजेंट होने से लेकर उनके दंभी व्यक्तित्व को लेकर अनेक आरोप लगाए जाते है। इस आधर पर क्या अज्ञेय के साहित्य को खारिज कर दिया जाए। आप जितनी देर शेक्सपीयर की रचना को पढ़ते हैं उतनी देर शेक्सपीयर के रचना संसार में खो जाते हैं, न कि उनके व्यक्तिगत जीवन में खोते हैं। साहित्य की आलोचना करने का अपना ये ‘व्यक्तिवादी ’ दृष्टिकोण हम न जाने कब बदलेंगे?’ मुख्य अतिथि डॉ0 कृष्णदत्त पालीवाल ने कहा - अज्ञेय की अब तक सही आलोचना नहीं हुई है। नददुलारे वाजपेयी ने जो आक्षेप लगाए वे तर्क की विकृति कहे जाएंगे। डॉ0 नगेंद्र ने रस सिद्धांत के आधर पर आलोचन की जो कि विडंबनापूर्ण था। रामविलास शर्मा ने अज्ञेय की कविता को जड़ाउफ, कड़ाउफ आदि बताया जो कि निराधर था। नामवर सिंह ने अज्ञेय को व्यक्तिवादी और कलावादी कहा, ‘कविता के प्रतिमान’ के द्वारा अज्ञेय की नाक पर घूसंा जड़ा। अज्ञेय को टी एस इ।लियट, डी एच लॉरेंस आदि से तुलना करने वाले झूठे हैं। अज्ञेय की तुलना यदि किसी से हो सकती है तो वे हैं प्रसाद। हिंदी आलोचना ने अज्ञेय के साथ न्याय नहीं किया है। अज्ञेय पर नए ढंग से सोचा जाना चाहिए।’ डॉ0 प्रेम जनमेजय ने अज्ञेय की व्यंग्य चेतना पर बोलते हुए कहा- नागार्जुन, केदार और अज्ञेय पर हुई बातचीत में हम देख रहे हैं कि व्यक्तित्व को कवियों के रचनाकर्म की कसौटी माना जा रहा है। क्या रचनाकार के व्यक्तित्व को उसकी कसौटी माना जा सकता है? अज्ञेय विसंगतियों पर प्रखर प्रहार करने वाले रचनाकार हैं। आधुनिक व्यंग्य का चेहरा अज्ञेय के व्यक्तित्व जैसा-- सौम्य,धीर -गंभीर और स्मित हास्य वाला होना चाहिए जिसमें हंसी आए तो अनावश्यक न लगे।’ रमेश मेहता ने अज्ञेय पर बनी डाक्यूमेंटरी का प्रदर्शन करते हुए कहा -अज्ञेय मौन के कवि थे। वे बहुत ही व्यवस्थित व्यक्तित्व के स्वामी थे। पर जिस दंभ की उनके संबंध् में चर्चा होती है, वह मुझे उनमें कभी नहीं मिला।1983 में जम्मू में युवा कवियों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा था कि जिसे छंद का ज्ञान होगा वही तो मुक्त छंद की कविता लिख पाएगा। डॉ0 अवनिजेश अवस्थी ने कहा- अज्ञेय के संबंध् में अध्ूरी आलोचनाएं की जा रही हैं। अज्ञेय को आजतक एक ही चश्मे से देखा गया है। अज्ञेय ने हिंदी साहित्य को ऐतिहासिक योगदान दिया है। डॉ0 अर्चना वर्मा ने ‘अज्ञेय के भाषिक रहस्यवाद’ पर अपना आलेख पढ़ा। डॉ0 वीनू भल्ला ने अज्ञेय से जुड़े संस्मरण के साथ-साथ अज्ञेय के साहित्यिक अवदान की भी चर्चा की। कार्यक्रम का संचालन विनय विश्वास ने किया।

संगोष्ठी का चौथ सत्र शमशेर बहादुर सिंह पर केंद्रित था जिसकी अध्यक्षता डॉ0 हरिमोहन शर्मा ने की । सत्र के अध्यक्ष डॉ0 हरिमोहन शर्मा ने कहा - शमशेर में एक जैनुअन आदमी बनने की चाहत थी। आलोचक किसी रचनाकार को एक कठघरे में बांधकर सरल मार्ग अपना लेते हैं। इससे कवि की विचारधरा जानकर उसी फ्रेम में कवि के काव्य-कर्म की व्याख्या कर ली जाती है। शमशेर ने न केवल कविता की भाषा सीखी अपितु अपने मामा से रंगों की भाषा भी सीखी। वे खूब पढ़ने वाले रचनाकार थे जो साहित्य के माध््यम से जीवन की लय को स्वयं में जब्त कर लिया करते थे।’ डॉ0 हरिमोहन ने शमशेर की ‘बैल’ कविता के माध्यम से उनके का्रपफट और विचार को व्याख्यायित किया। डॉ0 दिविक रमेश ने कहा- शमशेर प्रेम के पीछे पड़ने वाले नही, उसपर रीझने वाले कवि हैं। शमशेर जनता के हित में काम करने वाले कवि हैं। शमशेर का क्रापफट सबसे अलग है। डॉ0 अजय नावरिया ने कहा - शमशेर काल से होड़ की शक्ति रखते हैं, जबकि सुविधसंपन्न लोग कतरा कर निकल जाते है। शमशेर ने कहा था कि मुझे अमेरिका का स्टेच्यू ऑपफ लिबर्टी भी उतना ही प्यारा है जितना रूस का लालतारा। यानि शमशेर आजादी को स्पेस देते हैं। कला का संघर्ष समाज के संघर्ष से अलग की चीज नहीं हो सकता है। शमशेर और नागार्जुन, दोनो ने, बात को हथियाद माना है।’ भारत भारद्वाज ने कहा- शमशेर का साहित्यिक व्यक्तित्व एक कवि का है पर उन्होने ‘चांद का मुह टेढ़ा’ है की भूमिका के रूप में जो गद्य लिख है वह अद्भुत है। शमशेर की काव्य-पंक्तियां अपने समय में ही मुहावरा बन गई थंी। अज्ञेय ही नहीं शमशेर की कविता में भी सन्नाटा और मौन है। डॉ0 हेमंत कुकरेती ने कहा - आज प्रेम कामकाजी कुटीर उद्योग बन गया है जिसमें निजीपन नहीं रह गया है किंतु शमशेर में यह निजीपन मिलता है। उनके यहां प्रेम निरा शरीरिक नहीं है।’
अंत में प्रेम जनमेजय ने चारों सत्रों में चर्चित मुद्दों की संक्षिप्त रिपोर्ट प्रस्तुत की तथा प्रचार्य डॉ0 इंदजीत ने सभी का आभार व्यक्त किया।


प्रस्तुति: शशिभूषण
114 ई, ब्रह्मपुत्र छात्रावास, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली।

Thursday, April 14, 2011

अंजना के प्रथम आयोजन का निमंत्रण


निमंत्रण

डॉ. अंजना सहजवाला
की स्मृति में स्थापित नवीन संस्था
'अंजना: एक विचार मंच'
के प्रथम समारोह में
आप सदर आमंत्रित हैं.
(यह संस्था समय समय पर महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार विमर्श के लिए समाज के विशिष्ट विद्वानों के व्याख्यान आयोजित करेगी).

दि. 15 अप्रैल 2011
'गाँधी शांति प्रतिष्ठान' दीन दयाल उपाध्याय मार्ग,दिल्ली सायं 5 से 0830 तक
के इस प्रथम समारोह में व्याख्यान का विषय होगा:

क्या आज़ादी के बाद से अब तक दलित की शक्ति बढ़ी है? वर्तमान परिदृश्य में दलित की स्थिति क्या है?

मुख्य अतिथि : रमणिका गुप्ता

विशिष्ट वक्ता : डॉ. अभय दुबे, डॉ. धीरूभाई शेठ, श्री कमल किशोर कठेरिया व श्रीमती अनीता भारती.

कृपया इस महत्वपूर्ण विषय पर अपनी उपस्थिति अवश्य दें.

निवेदक : प्रेमचंद सहजवाला

Wednesday, April 13, 2011

डॉ. हैनिमन का जन्म दिवस समारोह संपन्न



नई दिल्ली: होम्योपैथी की खोज करने वाले डॉ सैमुएल फेडरिक हैनिमन का २५६ वा जन्म दिवस भारतीय चिकित्सा पद्धति एवं होम्योपैथी पर कार्यरत संस्था सिम्पैथी ने अपने मुख्यालय ओमनगर,बदरपुर में दिल्ली रत्न लाल बिहारी लाल द्वारा दीप प्रज्वाल्लन के साथ मनाया. इस अवसर पर सिम्पैथी के निदेशक डॉ. आर. कान्त ने डॉ हैनिमन को याद करते हुए उनके द्वारा होम्योपैथी के लिए किये गए त्याग और समर्पण के बारे में विस्तृत रूप से बताया. डी.आई.एच पी.पी.एस के निदेशक डॉ.के. के. तिवारी ने विश्व में चर्चित हो रही होम्योपैथी की सफलता पर ख़ुशी जाहिर करते हुए कहा की यह डॉ. हैनीमन की एक अच्छी सोंच का परिणाम है. डॉ अख्तर हुसैन अंसारी ने उनके जीवन और संघर्ष के बारे में लोगों को बताया और कहा की होम्योपैथी ही एक ऐसी पद्धति है जो बिना कुप्रभाव डाले अपना असर दिखाने में सक्षम है. इस अवसर पर राकेश कनौजी, के. पी. सिंह.लाल कला मंच की अध्यक्ष सोनू गुप्ता,मनोज गुप्ता सहित कई गणमान्य व्यक्ती उपस्थित थे.

Monday, April 11, 2011

लिखावट ने आयोजित किया कैम्पस में काव्यपाठ



कविता और विचार के मंच लिखावट तथा भारती परिषद्, हिंदी विभाग, मिरांडा हाउस, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली के संयुक्त आयोजन में मिरांडा हाउस में हुई काव्य गोष्ठी का 8-4-11 को सफल आयोजन हिंदी के वरिष्ठ कवि इब्बार रब्बी की अध्यक्षता में
कविता पाठ या कविता पर संगोष्ठी रखना एक गंभीर जबावदेही और जटिल संयोजन है। मेरे प्रिय कवि रघुवीर सहाय ने भी तो यही कहा था---‘कविता जीने का उद्देश्य बता नहीं देती, वह स्वंय उद्देश्य बन जाती है।’ इस दौर में सर्वत्र पसरी निर्मम चुप्पी को तोड़ेने की कोशिश कर रही है ‘लिखावट’। 8 अप्रैल 2011 की दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज के इस कविता पाठ में मौजूद रहने का मुझे भी सौभाग्य मिला। इनमें लगभग सभी प्रतिभागी कवियों को मैं अलग-अलग मंच पर सुन चुकी हूं। इब्बार रब्बी जी को मंचीय सभी सम्मोहक मंत्र आते हैं। तभी तो उनकी अति सहज शैली पूरे सभागार से संलाप करती है, जो कि अद्भुत है। मंगलेश डबराल को सुनना सचमुच सुखद एहसास था। उनकी कविताएं प्राय: प्रतिरोध की भाषा अपनाती है। स्वाभिमान से फूटती हैं और मानवीयता और मानवता को स्थापित करने के लिए अंतिम सांस तक लड़ती हैं। अर्चना वर्मा जी की कहानियां और कविताएं सदैव मुझे प्रेरणा देती रही हैं। खुद उनके मुख से उनकी कविता सुनकर उन कविताओं में नए मायने भी मिले। ठीक इसी तरह मिथिलेश श्रीवास्तव जी की कविताओं में मुझे एक प्रतिबद्धता और जिजीविषा दिखाई देती है। हर वह छोटी बड़ी चीज जो समय और समाज के सुर ताल लय में खटकती है मिथिलेश जी उसी पर बखूबी कलम चलाते हैं। मुकेश मानस जी की प्राय: सभी कविताएं शोषितों प्रवंचितों और बेजुवानों की आवाज़ बनती हैं। रजनी अनुरागी मेरी आत्मीया हैं। उनकी कविता समय और समाज के प्रति अपनी जिस जबावदेही तो तलाशती हैं उसे पाने में वे बहुत हद तक सफल भी हुई हैं। कुल मिलाकर इस सफल आयोजन के लिए ‘लिखावट’ के तत्वाधान में मिरांडा हाउस के हिंदी विभाग को मेरा कोटि-कोटि साधुवाद।

डॉ सुधा उपाध्याय
sudhaupadhyaya@gmail.com
mobile-9971816506
हुआ। कार्यक्रम में आये इब्बार रब्बी, अर्चना वर्मा, मिथिलेश श्रीवास्तव, मुकेश मानस, रजनी अनुरागी, और मंगलेश डबराल जैसे कवियों नें अपनी कविताओं के साथ वहाँ अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। कार्यक्रम का संचालन चंदा सागर नें किया। कार्यक्रम की शुरुवात रजनी अनुरागी की कविता “कविता से हुई जिसने काफी तालियाँ बटोरी इसके बाद रजनी अनुरागी नें औरत, नेपथ्य, मजदूरों की बस्ती, जन ज्वार और दिल्ली मेट्रो आदि कवितायें सुनायीं। रजनी जी के बाद आये कवि मुकेश मानस नें गंभीरता को कम करते हुए कुछ व्यंगात्मक रचनाएँ सुनाई जिसमें “बजाओ ताली” प्रमुख रही, इसके अलावा उन्होंनें नें भेड़ीये, भेडियाधसान, हत्यारा और बेटी का आगमन जैसी कुछ कवितायें उल्लेखनीय कवितायें सुनाई।


वरिष्ठ कवियित्री अर्चना वर्मा नें सिर्फ अपनी उपस्थिति भर से माहौल को गर्म कर दिया था उसके बाद उनकी सुनाई कविताओं आसमान पर ताला और मल्लिका शेरावत के नाम जैसी कविताओं नें गोष्ठी को और ऊँचाई प्रदान की। मिथिलेश श्रीवास्तव की हर कविता नें श्रोताओं के मन पर गहरी छाप छोड़ी एक तरफ “एक जैसे घर” नें समाज में उपस्थित विसंगतियों की पड़ताल की तो दूसरी “कबूतर जैसे हम” नें आम आदमी के मजबूर होने की बात कही साथ ही उन्होंनें “शिविर एक दिन खाली हो गया” जैसी कविता सुनाई जिसनें हर श्रोता को निस्तब्ध कर दिया। मंगलेश डबराल नें छुपम–छुपाई और छुओ जैसी कविताओं के माध्यम से हृदय के सबसे नर्म कोनों को छू लिया और भूमंडलीकरण तथा टोर्च जैसी कविता के माध्यम से बदलते हुए समाज की तरफ इशारा किया। कार्यक्रम के अंत में इब्बार रब्बी नें घना में पक्षी विहार, अरहर की डाल और मधुमेह जैसी कविताओं से श्रोताओं का न सिर्फ मनोरंजन किया बल्कि उन्हें सन्देश भी दिए इसके अलावा उन्होंनें दुर्गा सप्तशती, जब चली रेल, कटोरी में वसंत, और अंतिम कविता जैसी कवितायें सुनाई। रजनी जी द्वारा धन्यवादयापन करने के साथ ही कार्यक्रम सफलता पूर्वक संपन्न हो गया।

Wednesday, April 6, 2011

मिरांड हाउस में काव्यगोष्ठी, आप भी ज़रूर आएँ



लिखावट

(कविता और विचार का मंच)

मित्रो,
कविता और विचार का मंच लिखावट
और
भारती परिषद्, हिंदी विभाग, मिरांडा हाउस, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
के संयुक्त आयोजन में

कैम्पस में कविता

आमंत्रित कवि
इब्बार रब्बी, अर्चना वर्मा, मिथिलेश श्रीवास्तव, मुकेश मानस, रजनी अनुरागी, और मंगलेश डबराल

अध्यक्षता
इब्बार रब्बी

संचालन : चंदा सागर (संपर्क: 9871442565)

दिनांक: शुक्रवार, 8 अप्रैल, 2011
समय : 11:30 दिन से
स्थान : सेमिनार रूम, मिरांडा हाउस

आपका स्वागत है|

सादर
लिखावट / भारती परिषद्, हिंदी विभाग, मिरांडा हाउस
मिथिलेश श्रीवास्तव (संपर्क: 9868628602)