Thursday, March 26, 2009

मुम्बई के पाँचसितारा होटल में खिले नए मौसम के फूल

मुम्बई।
उत्तर प्रदेश के रायबरेली ज़िले में 26 नवंबर 1952 को जन्मे शायर मुनव्वर अली राना की शायरी की 16 और गद्य की 1 यानी अब तक 17 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं । हाल ही में दिव्यांशु प्रकाशन. लखनऊ से उनकी शायरी की नई पुस्तक प्राकाशित हुई है – ‘नए मौसम के फूल’ । मुम्बई के पाँच सितारा होटल सहारा स्टार में शनिवार 21 मार्च को आयोजित एक भव्य समारोह में सहारा इंडिया परिवार के डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर श्री ओ.पी.श्रीवास्तव ने इस पुस्तक का विमोचन किया । श्रीवास्तवजी ने इस अवसर पर साहित्य, सिनेमा, मीडिया और व्यवसाय जगत की जानी मानी हस्तियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि जिस तरह स्लमडॉग मिलेनियर के जमाल के लिए ज़िंदगी ही सबसे बड़ी पाठशाला है, उसी तरह मुनव्वर राना की शायरी का ताना-बाना भी ज़िंदगी के रंग बिरंगे रेशों, सच्चाइयों और खट्टे-मीठे अनुभवों से बुना गया है । श्रीवास्तवजी ने उनके कुछ शेर भी कोट किए-

बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है
बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी ख़तरे में रहती है



(उपेंद्र राय, मुनव्वर राना, ओ.पी. श्रीवास्तव, नीरज अरोड़ा, देवमणि पाण्डेय पुस्तक विमोचित करते हुए)

कार्यक्रम के संचालक कवि देवमणि पाण्डेय ने मुनव्वर राना का परिचय कराते हुए कहा कि उनकी शायरी में रिश्तों की एक ऐसी सुगंध है जो हर उम्र और हर वर्ग के आदमी के दिलो दिमाग पर छा जाती है । पाण्डेयजी ने आगे कहा कि शायरी का पारम्परिक अर्थ है औरत से बातचीत । अधिकतर शायरों ने ‘औरत’ को सिर्फ़ महबूबा समझा । मगर मुनव्वर राना ने औरत को औरत समझा । औरत जो बहन, बेटी और माँ होने के साथ साथ शरीके-हयात भी है । उनकी शायरी में रिश्तों के ये सभी रंग एक साथ मिलकर ज़िंदगी का इंद्रधनुष बनाते हैं । कार्यक्रम के संयोजक एवं स्टार न्यूज के वरिष्ठ सम्पादक उपेन्द्र राय ने रानाजी का स्वागत करते हुए कहा कि वे हिंदुस्तान के ऐसे अज़ीम-ओ-शान शायर हैं जिसने ‘माँ’ की शख़्सियत को ऐसी बुलंदी दी है जो पूरी दुनिया में बेमिसाल है –

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई


मंच पर लगे बैनर पर भी ‘माँ’ इस तरह मौजूद थी-

इस तरह मेरे गुनाहों को धो देती है
माँ बहुत गुस्से में हो तो रो देती है



(डॉ रचना, देवमणि पाण्डेय,ओ.पी. श्रीवास्तव, मुनव्वर राना)

दरअसल पत्रकार उपेन्द्र राय ने अपनी जीवन संगिनी डॉ.रचना के जन्मदिन पर उनको 'शायरी की एक शाम' का नायाब तोहफा दिया था । उनकी तीन वर्षीय बेटी ऊर्जा अक्षरा ने जन्मदिन का केट काटकर 'माँ' लफ़्ज़ को सार्थकता प्रदान की । शायर मुनव्वर राना की रचनाधर्मिता और सरोकारों पर रोशनी डालते हुए संचालक देवमणि पाण्डेय ने उन्हें काव्यपाठ के लिए आमंत्रित किया –

न मैं कंघी बनाता हूं , न मैं चोटी बनाता हूं
ग़ज़ल में आपबीती को मैं जगबीती बनाता हूं


मुनव्वर राना ने काव्यपाठ की शुरुआत माँ से ही की-

ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटूं मेरी माँ सजदे में रहती है


अपने डेढ़ घंटे के काव्यपाठ में राना ने उस आदमी की भी ख़बर ली जो ज़िंदगी की दौड़ में सबसे पीछे है-

सो जाते हैं फुटपाथ पे अख़बार बिछाकर
मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते



(सुनील पाल, राजू श्रीवास्तव, पूनम ढिल्लन)

रानाजी के अनुरोध पर संचालक देवमणि पाण्डेय ने भी कुछ ग़ज़लें सुनाईं । कार्यक्रम के अंत में हास्यसम्राट राजू श्रीवास्तव और सुनीलपाल ने अपनी रोचक प्रस्तुतियों से माहौल को ठहाकों से सराबोर कर दिया । इस कार्यक्रम में उपस्थित प्रमुख लोगों में कुछ के नाम है- संजीव श्रीवास्तव (बीबीबीसी इंडिया के सम्पादक), अशोक कक्कड़ (इंडिया बुल्स के ग्रुपप्रेसीडेंट), अभिजीत सरकार (डॉयरेक्टर सहारा इंडिया परिवार), जगदीश चंद्रा (सीईओ ईटीवी), उमेश कामदार (निदेशक माई डॉलर्स स्टोर्स), अभिनेत्री पूनम ढिल्लन, उर्वशी ढोलकिया, हेज़ल, अभिनेता सुशांत सिह और साहित्यकार एवं रेलवे के वरिष्ठ अधिकारी सत्यप्रकाश । इनके साथ ही एक दर्जन से अधिक आई.ए.एस. तथा आई.आर.एस. अधिकारी उपस्थित थे ।

मुम्बई से देवमणि पाण्डेय

'वक़्त के आइने में' के विमोचन में आप सभी आमंत्रित हैं

रचना समय के संपादक हरि भटनागर ने ब्रिटेन के हिन्दी लेखक तेजेन्द्र शर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर एक आलोचनात्मक ग्रन्थ संपादित किया है। इस ग्रन्थ में राजेन्द्र यादव, परमानन्द श्रीवास्तव, असग़र वजाहत, जगदम्बा प्रसाद दीक्षित, ज़कीया ज़ुबैरी, ज्ञान चतुर्वेदी, पुष्पा भारती, सूर्यबाला, धीरेन्द्र अस्थाना, प्रेम जनमेजय, सूरज प्रकाश, शम्भु गुप्त, अजय नावरिया के साथ साथ ब्रिटेन, कनाडा, अमरीका एवं यू.ए.ई. के लेखकों आलोचकों के लेख शामिल हैं।

तेजेन्द्र शर्मा - वक़्त के आइने में का विमोचन राजेन्द्र प्रसाद भवन सभागार, 210 दीनदयाल उपाध्याय मार्ग (आई.टी.ओ. के निकट), नई दिल्ली-110002 में 4 अप्रैल 2009 की शाम 5.30 बजे कृष्णा सोबती, डा. नामवर सिंह एवं राजेन्द्र यादव के हाथों सम्पन्न होगा।

कृपया नोट कर लें -

दिनांकः 4 अप्रैल 2009
स्थानः राजेन्द्र प्रसाद भवन सभागार,
210 दीनदयाल उपाध्याय मार्ग, (आई.टी.ओ. के निकट)
नई दिल्ली - 110002
जलपानः शाम 5.30 बजे
विमोचनः शाम 6.15 बजे


आप सब मित्रों सहित कार्यक्रम में निमंत्रित हैं।

Wednesday, March 18, 2009

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा में एकदिवसीय शिविर और संगोष्ठी संपन्न

हिंदी में स्थानीयता के साथ वैश्विक होने की विचित्र क्षमता है - डॉ. गंगा प्रसाद विमल

कंप्यूटर पर हिंदी प्रयोग की बाधाएँ अतीत की बात - डॉ. कविता वाचक्नवी


हैदराबाद, 18 मार्च, 2009



दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, आंध्र के 12 वें राष्ट्रभाषा विशारद पदवीदान समारोह के उपलक्ष्य में एकदिवसीय ‘हिंदी प्रचारक शिविर’ का आयोजन केंद्रीय हिंदी निदेशालय, भारत सरकार, नई दिल्ली की अनुदान योजना के अंतर्गत किया गया। उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के संगोष्ठी कक्ष में आयोजित हिंदी शिविर का उद्घाटन केंद्रीय हिंदी निदेशालय के निदेशक डॉ. के. विजयकुमार ने किया। डॉ. विजयकुमार ने उद्घाटन भाषण में इस बात पर बल दिया कि परिवर्तित परिस्थितियों में हिंदी को आर्थिक लाभ की भाषा के रूप में प्रचारित करने की आवश्यकता है। इसके लिए उन्होंने विविध व्यावसायिक क्षेत्रों में हिंदी में कंप्यूटर के अनुप्रयोग की संभावनाओं को खोजने की जरूरत बताई।

मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए प्रसिद्ध साहित्यकार और केंद्रीय हिंदी निदेशालय के पूर्व निदेशक डॉ. गंगा प्रसाद विमल ने कहा कि वर्तमान समय में विश्वभर में भाषाओं का रूप बाज़ार द्वारा प्रभावित है। इस परिदृश्य में हिंदी का भविष्य स्थानीय होते हुए वैश्विक होने की उसकी क्षमता के कारण उज्ज्वल है। हिंदी की विचित्र वैश्विक क्षमता की चर्चा करते हुए डॉ. विमल ने जहाँ एक ओर यह ध्यान दिलाया कि हमारे आदिवासी लोकगीतों में ऐसे उत्पादों का विवरण है जिनका वैश्विक स्तर पर व्यापक प्रसार किया जा सकता है, वहीं दूसरी ओर बताया कि हिंदी केवल भारत ही नहीं बल्कि दक्षिण एशिया के सारे देशों में भ्रमण करने में संपर्क भाषा का काम कर रही है क्योंकि इसमें बोलचाल का स्वामित्व है तथा संस्कृति और राजनय के क्षेत्रों में भी हिंदी की क्षमता अद्वितीय है।

उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के कुलसचिव तथा प्रमुख भाषाचिंतक प्रो. दिलीप सिंह ने अपने व्याख्यान में हिंदी आंदोलन के हवाले से कहा कि हिंदी को कथित हिंदीतर क्षेत्रों से उठनेवाले आंदोलनों से ही राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली है। उन्होंने सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों के अनुरूप भाषा परिवर्तनों की चर्चा करते हुए कहा कि भारतीय भाषाओं की यह शक्ति है कि वे लोक संस्कार को कभी नहीं छोड़तीं। वे इस बात से संतुष्ट दिखाई दिए कि हिंदी तथा भारतीय भाषाओं ने बाज़ार के स्तर पर अंग्रेज़ी को चुनौती दे दी है। उन्होंने बलपूर्वक कहा कि हिंदी के विविध पाठ्यक्रमों को बदलकर प्रयोजनमूलक और रोजगारपरक बनाने की ज़रूरत है। उन्होंने कंप्यूटर को हिंदी के विकास से जोड़े जाने की वकालत करते हुए कहा कि सब प्रकार का ज्ञान-विज्ञान कंप्यूटर पर हिंदी के माध्यम से उपलब्ध कराना बेहद जरूरी है। ऐसी सामग्री के तीव्रगति से मशीनी अनुवाद की संभावना का उल्लेख करते हुए प्रो. सिंह ने यह भी जोड़ा कि मानक भाषा प्रयोग के कारण जहाँ साहित्येतर अनुवाद में कंप्यूटर अधिक सटीकता से कार्य कर सकता है वहीं साहित्यिक अनुवाद में शैली भेद के कारण अभी काफ़ी कठिनाइयों का समाधान करना शेष है।

दो सत्रों में आयोजित ‘हिंदी प्रचारक शिविर’ के प्रथम सत्र में ‘डेली हिंदी मिलाप’ के पत्रकार डॉ. रामजी सिंह ‘उदयन’ ने ‘हिंदी प्रचार की नई चुनौतियाँ’ विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी चुनौती तो हमारी पीढ़ी की निष्क्रियता की है। हिंदी के अनेक बोलीगत तथा क्षेत्रीय रूपों की चर्चा करते हुए डॉ. उदयन ने कहा कि ये सब हिंदी की विविध शैलियाँ हैं और इन सभी को खुले मन से स्वीकृति देना आवश्यक है क्योंकि हिंदी जैसी प्रसारशील भाषा को किसी भी प्रकार की कट्टरता से परहेज करना चाहिए। हिंदी को राष्ट्रभाषा से विश्वभाषा के स्तर तक ले जाने के लिए उन्होंने भाषाई स्वाभिमान को जगाने की जरूरत बताते हुए कहा कि हमारी जीवन शैली में जो द्वैत आ गया है, हमें उससे मुक्त होना होगा तथा चिंतन और व्यवहार की वास्तविक भाषा के रूप में मातृभाषाओं को सम्मानित करना होगा।

प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ हिंदी सेवी और दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, आंध्र के उपाध्यक्ष कडारु मल्लय्या ने याद दिलाया कि दक्षिण में हिंदी का प्रचार स्वतंत्रता आंदोलन के एक अंग के रूप में आरंभ हुआ था। उन्होंने आगे कहा कि स्वतंत्र भारत में हिंदी आंदोलन का उद्देश्य प्राथमिक शिक्षा से लेकर राजकाज, कोर्ट-कचहरी और विभिन्न व्यवसायों तक हिंदी को प्रतिष्ठित करना बन गया है जो निश्चय ही अंग्रेज़ी-मानसिकता के प्रभुत्ववाले इस बहुभाषी देश में अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य है। कडारु मल्लय्या ने यह भी कहा कि जब तक सरकारी सहायता के साथ-साथ आम जनता का सहयोग नहीं मिलता तब तक हिंदी प्रचार का कार्य पूरा नहीं हो सकता। वरिष्ठ हिंदी प्रचारक चवाकुल नरसिंह मूर्ति और वेंकट रामाराव ने भी स्कूली स्तर पर हिंदी की उपेक्षा को चिंताजनक बताया।

दूसरे सत्र में ‘कंप्यूटर पर हिंदीः दशा और दिशा’ विषय पर व्याख्यान देते हुए ‘विश्वम्भरा’ की महासचिव डॉ. कविता वाचक्नवी ने कहा कि हिंदी को रोजगारपरक स्वरूप देने में कंप्यूटर बहुत बड़ा वरदान सिद्ध हो सकता है। सारी ज्ञान शाखाओं को भारतीय भाषाओं में कंप्यूटरीकृत करने की चुनौती का उल्लेख करते हुए डॉ. वाचक्नवी ने बताया कि इंटरनेट पर हिंदी में शब्दकोश, पारिभाषिक कोश, मुहावरा कोश, कविता कोश और गद्य कोश की उपलब्धता ने कंप्यूटर पर हिंदी में काम करना आसान कर दिया है। उन्होंने कहा कि हिंदी में ‘सर्च-इंजन’ आ जाने से यह साफ हो गया है कि कंप्यूटर पर काम करने के लिए अंग्रेज़ी जानना अनिवार्य नहीं है। हिंदी के अनेक ‘फांट’ होने से पैदा हुई अराजकता को अतीत की बात बताते हुए उन्होंने कहा कि ‘यूनिकोड’ और ‘फांट परिवर्तकों’ की निःशुल्क उपलब्धता ने हिंदी में सामग्री लिखने, प्रेषित करने, प्राप्त करने और पढ़ने को अत्यंत सुविधाजनक बना दिया है तथा इन्हें न जाननेवाले ही दुरूहता का प्रलाप करते हैं। डॉ. कविता ने कंप्यूटर पर प्रस्तुतीकरण द्वारा हिंदी प्रचारकों को विभिन्न हिंदी ‘साइटों’ से भी परिचित कराया। साथ ही लिप्यंतरण और वर्तनी संशोधन की विधि भी प्रायोगिक रूप में समझाई।

इस अवसर पर दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, आंध्र के अध्यक्ष कोम्मा शिवशंकर रेड्डी ने कहा कि 21 वीं शताब्दी में हिंदी प्रचार के आधुनिकीकरण की आवश्यकता है। अतः इस क्षेत्र में कंप्यूटर की उपयोगिता का पूरा दोहन किया जाना चाहिए। उन्होंने हिंदी प्रचारकों के लिए ऐसे प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने की जरूरत बताई जिनमें वे हिंदी व्याकरण, हिंदी उच्चारण, वर्तनी और साहित्य शिक्षण के लिए कंप्यूटर का प्रयोग करना सीख सके। इसी प्रकार कोषाध्यक्ष एम. रघुपति ने हिंदी शिक्षण-प्रशिक्षण में पावर पाइंट पद्धति की व्यापक उपयोगिता पर प्रकाश डाला।

द्वितीय सत्र की अध्यक्षता करते हुए स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद के मुख्य प्रबंधक (राजभाषा) डॉ. विष्णु भगवान शर्मा ने कहा कि बहुभाषिकता भारत का एक सामाजिक यथार्थ है और यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि भाषा विभिन्न समाजों और संस्कृतियों को जोड़ने का काम करती है। हिंदी शताब्दियों से इसे सेतुधर्म का निर्वाह करती आई है और आज भी वह भारत की सामासिक संस्कृति का जीवंत प्रतीक है। उन्होंने कंप्यूटर को एक ऐसा वाहन बताया जिस पर आरूढ़ होकर हिंदी भारतीयता को आधुनिक विश्व में सफलतापूर्वक प्रसारित कर सकती है। इसके लिए उन्होंने ‘शब्द संसाधन’ और ‘डाटा संसाधन’ दोनों स्तरों पर व्यापक अनुसंधान की आवश्यकता बताई।

आरंभ में प्रचारक महाविद्यालय की छात्राओं प्रशांति, रेशमा, उर्मिला, नसरीन और सारिका ने मंगलाचरण किया। शिविर निदेशक प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने विषय प्रवर्तन और समाहार की जिम्मेदारी संभाली। सत्रों का संचालन डॉ. बलविंदर कौर और डॉ. जी. नीरजा ने किया। परिचर्चा में डॉ. वीणा कश्यप, आर.एल. दलाया, ए.जी. श्रीराम, डॉ. शिखा निगम, जुबेर अहमद, जानी बाषा, डॉ. मृत्युंजय सिंह, डॉ. पी. श्रीनिवास राव, संतराम यादव, शंकर सिंह ठाकुर, राधाकृष्णन, टी. रमादेवी, उमाराणी तथा डॉ. शक्तिकुमार द्विवेदी के अतिरिक्त बी.एड. और प्रचारक महाविद्यालयों के छात्र-छात्राओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। राष्ट्रगान के साथ शिविर संपन्न हुआ।

सी आर राजश्री के 'कलम और ख्याल' का विमोचन


कोयमब्टूर के डॉ जी आर दामोदरन महाविद्यालय में ०२-०३-०९ को आयोजित हिंदी विभागीय समारोह में मुस्कान की दसवीं सालगिरह को बड़े ही धूम-धाम से मनाया गया। माननीय मुख्य अतिथि के रूप में बाबा अनुसन्धान केंद्र से कुलवंत जी पधारे और इस समारोह की शोभा बढ़ाई। इस विभाग का उद्‌घाटन एक गौरवमयी और पारंपरिक रीति से किया गया। फिर पहले वर्ष की छात्रा पवित्रा द्वारा माँ सरस्वती की वंदना की गई। फिर दीप प्रज्वलन और पुष्पगुच्छ देने की वेला थी। प्रथम वर्ष के छात्र आशीष द्वारा स्वागत भाषण दिया गया। दस छात्रों ने अपनी कविताओं को प्रस्तुत किया।

महाविद्यालय के सलाहाकार लक्ष्मणन ने अपने वक्तव्य में हिंदी विभाग की प्रशंसा करते हुए इस विभाग के प्राध्यापकों को बधाइयाँ दी और आगे भी इस तरह के साहित्यिक समारोह का आयोजन करवाने के बारे में अपनी राय दी। सी. आर. राजश्री ने इस शुभ अवसर पर अपनी कविता संग्रह 'कलम और ख़याल' का विमोचन मुख्य अतिथि के करकमलों द्वारा किया।

फिर मुख्य अतिथि महोदय के संक्षिप्त परिचय के बाद अपने प्रभावपूर्ण भाषण से उन्होंने छात्राओं का दिल जीत लिया। पुस्तक की समीक्षा उन्होंने बड़े ही अद्भुत ढंग से किया और पुस्तक के हर आयाम पर प्रकाश डाला, साथ ही छात्रों को काव्य लेखन करने के लिए प्रोत्साहित किया। विभिन्न प्रतिभागियों के लिए पुरस्कार वितरित किया गया। सर्वश्रेष्ठ छात्रों को आधिक अंक मिलने के लिए भी पुरस्कार दिया गया। जिसमें रामचंद्रन, दीपिका, अनुपमा, मधुमिता और ऐथिह्या को पुरस्कार प्रदान किया गया। छात्राओं ने कर-घोष के साथ सबको बधाइयाँ दी। धन्यवाद एवं आभार प्रदर्शन के बाद इस समरोह समाप्त किया गया। इस प्रकार यह समारोह अपने आप में एक ख़ास थी और छात्र-संघठन और प्रयत्न का एक अनूठा उदाहरण साबित हुआ।

Sunday, March 15, 2009

पंकज उधास ने किया 'संस्कृति संगम' का लोकार्पण


बायें से दायें– शचीन्द्र त्रिपाठी (संपादक, नवभारत टाइम्स), सामाजिक कार्यकर्ता रानी पोद्दार, गायक पंकज उधास, संगीत-निर्देशक आनंदजी साह (कल्याण जी आनंद जी), संपादक देवमणि पाण्डेय, सुरेन्द्र गादिया और नवभारत टाइम्स के पत्रकार भूवेन्द्र त्यागी .

मुम्बई महानगर में दो ही जहान सक्रिय हैं – बॉलीवुड और क्रिकेट । इससे आगे भी कोई जहान है इस बारे में कोई सोचता ही नहीं । देवमणि पाण्डेय ने साहित्यकारों, पत्रकारों, रंगकर्मियों, सुगम-शास्त्रीय गायकों आदि के ज़रिए एक और जहान को प्रस्तुत करके साबित कर दिया है कि ‘सितारों से आगे जहां और भी हैं ।’ ये विचार जाने माने ग़ज़ल गायक पंकज उधास ने कवि देवमणि पाण्डेय द्वारा सम्पादित मुम्बई की सांस्कृतिक निर्देशिका 'संस्कृति संगम' के चौथे संस्करण के विमोचन के अवसर पर व्यक्त किए । उन्होंने इसे एक अतुलनीय प्रयास बताते हुए कहा कि अब इसके ज़रिए लोग आसानी से विभिन्न क्षेत्र के संस्कृतिकर्मियों से सम्पर्क कर सकेंगे । शनिवार 14 मार्च को चर्चगेट के होटल सम्राट में आयोजित इस समारोह की अध्यक्षता मशहूर संगीतकार आनंदजी शाह (कल्याणजी आनंदजी) ने की।

मुम्बई के सांस्कृतिक आकाश की तारिका रानी पोद्दार ने लेखकों,पत्रकारों और कलाकारों को जोड़ने वाली इस ख़ूबसूरत कड़ी की तारीफ़ करते हुए कहा कि 'संस्कृति संगम' महानगर के सांस्कृतिक आयोजनों के लिए बेहद उपयोगी साबित होगी । नवभारत टाइम्स के स्थानीय सम्पादक शचीन्द्र त्रिपाठी ने 'संस्कृति संगम' के सम्पादक देवमणि पाण्डेय के सतत श्रम की सराहना करते हुए कहा कि वे जो ठान लेते हैं उसे करके ही थमते हैं । उन्होंने हर संस्करण को पहले से और बेहतर बनाया है। अपनी कमियों को ख़ुद ही दूर किया । इस संदर्भ में त्रिपाठीजी ने देवमणिजी का ही एक शेर उध्दरित किया –


आदमी पूरा हुआ तो देवता हो जाएगा
ये ज़रूरी है कि उसमें कुछ कमी बाक़ी रहे



मुम्बई महानगर में देवमणि पाण्डेय के ढाई दशकों के योगदान को उन्होंने एक शेर के ज़रिए रेखांकित किया –


अपने मंसूबों को नाकाम नहीं करना है
मुझको इस उम्र में आराम नहीं करना है



हिन्दी सिनेमा में चार दशकों तक छाई रही संगीतकार जोड़ी कल्यानजी आनंदजी के आनंदजी शाह ने अपने रोचक अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि देवमणि पाण्डेय ने अपने इस प्रयास के ज़रिए मुम्बई महानगर के अलग अलग कोनों में मौजूद विभिन्न विधाओं के लोगों को न केवल एक साथ ला खड़ा किया है बल्कि उनकी यह पहल अनगिनत सांकृतिक आयोजनों के लिए वरदान साबित होगी । फिराक़ गोरखपुरी का शेर है –


ज़रा विसाल के बाद आइना तो देख ऐ दोस्त
तेरे जमाल की दोशीजगी निखर आई



इस शेर के हवाले से देवमणि पाण्डेय ने कहा कि जब हम बड़े लोगों से मिलते हैं तो उनकी प्रतिभा और गुण का कुछ असर हमारे व्यक्तित्व में भी शामिल हो जाता है । आभार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि आनंदजी से मिलकर मुझे भी ऐसा महसूस हुआ । उनसे मिलने के बाद मुझे लगातार कामयाबी हासिल हुई । रचनाकारों के प्रति पंकज उधास के सरोकारों का ज़िक्र करते हुए पाण्डेयजी ने कहा कि वे कवियों-शायरों की बेइंतहां क़द्र करते हैं । सबूत के तौर पर उन्होंने बताया कि ज़फर गोरखपुरी की पुस्तक ‘आर पार का मंज़र’ का विमोचन ख़ुद पंकजजी ने नेहरू सेंटर में आयोजित किया था । पाण्डेयजी ने आगे कहा कि मुम्बई के डॉ.सत्यदेव त्रिपाठी हों या डॉ.बोधिसत्व अथवा यूके के तेजेंद्र शर्मा हों या यूएसए की डॉ.सुधा ओम ढींगरा, सभी मित्रों ने दिल खोलकर मेरी सहायता की । मित्रों की सहायता और मेरा अपना परिश्रम 'संस्कृति संगम' के रूप में साकार हुआ । समाजसेवी सुरेन्द्र गाड़िया ने अतिथियों और पुस्तक के सज्जाकार शिव आर. पाण्डेय का स्वागत पुष्पगुच्छ से किया ।

नवभारत टाइम्स मुम्बई के मुख्य उपसम्पादक भुवेन्द्र त्यागी ने समारोह का संचालन किया । उन्होंने 'संस्कृति संगम' को गंगा-यमुना-सरस्वती का अदभुत संगम बताया । त्यागीजी ने कहा कि इसमें भारतीय दर्शन के संगम की तीनों नदियां नज़र आती हैं । संस्कृतिकर्मियों के रूप में गंगाजी मौजूद हैं तो 50 गीतों और 200 शेरों के रूप में यमुनाजी उपस्थित हैं। संगम की तीसरी नदी सरस्वती एक अंतर्धारा की तरह पुस्तक की सुरुचि के रूप में मौजूद हैं । वह सुरुचि है पुस्तक की सादा लेकिन आकर्षक डिजाइन । समारोह में रचनाकार जगत से वरिष्ठ पत्रकार नंदकिशोर नौटियाल, मनहर चौहान, डॉ.सुशीला गुप्ता, डॉ.राजम पिल्लै,डॉ.रत्ना झा, डॉ.बोधिसत्व,डॉ.दिनेशचंद्र थपलियाल, पुनीत पाण्डेय, शशांक दुबे, हरि मृदुल, शैलेश सिंह,खन्ना मुजफ्फरपुरी,चेतन दातार, केशव राय, संगीतकार आमोद भट्ट और उद्योगपति कैलाश पोदार उपस्थित थे ।

'संस्कृति संगम' के लिए सहयोग राशि है 200 रूपए । इसके प्रकाशक का पता है –

सार्थक प्रकाशन, ओ-301, सोनम आकांक्षा, न्यू गोल्डेन नेस्ट, फेज-8, भायंदर (पूर्व),मुम्बई – 401 105, फोन : 099694-91294 / 022-2814-8388 , ईमेल :

Shivpandey83@gmail.com

मुम्बई की सांस्कृतिक निर्देशिका 'संस्कृति संगम' के चौथे संस्करण में हिन्दी रचनाकारों, पत्रकारों, रंगकर्मियों, फ़िल्म लेखकों, गायक कलाकारों, गीतकारों-शायरों, समाचार पत्र- पत्रिकाओं, साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्थाओं के साथ ही अखिल भारतीय प्रमुख साहित्यकारों, मंच पर सक्रिय अखिल भारतीय प्रमुख कवियों एवं विदेशों में बसे प्रमुख हिन्दी रचनाकारों के नाम, पते, दूरभाष नं. एवं ईमेल शामिल हैं । 'संस्कृति संगम' के संपादक देवमणि पांडेय इस बार इस निर्देशिका में प्रमुख बैंकों और प्रमुख सरकारी उपक्रमों के राजभाषा अधिकारियों के साथ ही मुम्बई के प्रमुख कॉलेज और उनके विभागाध्यक्षों का विवरण भी उपलब्ध है । 'संस्कृति संगम' ने पिछले तीन संस्करणों के ज़रिए साहित्य, संगीत, पत्रकारिता, रंगमंच, आदि क्षेत्रों में सक्रिय रचनाकर्मियों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसका सर्कुलेशन मुम्बई के रचनाकारों-कलाकारों में होने के साथ-साथ अखिल भारतीय स्तर पर भी होता है । विदेशों में बसे हिन्दी रचनाकारों के बीच भी 'संस्कृति संगम' काफी लोकप्रिय है | इस तरह साहित्य, संगीत, मंच आदि से जुड़ी प्रतिभाओं को 'संस्कृति संगम' के ज़रिए अपने-अपने क्षेत्र की विशिष्ट हस्तियों से जुड़ने का सम्पर्क सूत्र सहज उपलब्ध हो जाता है। विविधतापूर्ण सांस्कृतिक आयोजनों के लिए भी 'संस्कृति संगम' बेहद उपयोगी है। मुम्बई की सांस्कृतिक सक्रियता को बढ़ावा देने में 'संस्कृति संगम' का उल्लेखनीय योगदान है.

मुम्बई से श्रद्धा उपाध्याय

Thursday, March 12, 2009

शीला दीक्षित करेंगी 13 नई हिन्दी पुस्तकों का विमोचन

मित्रो,

दिनांक १४ मार्च २००८ को सुबह ११ बजे से हिन्दी भवन सभागार, आईटीओ, नई दिल्ली में भारत की अतिसम्मानित साहित्यक संस्था भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित १३ नई पुस्तकों का विमोचन दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के हाथों किया जायेगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता २००६ के भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कवि कुँवर नारायण करेंगे।

इस कार्यक्रम में हिन्द-युग्म के कहानी-कलश के संपादक विमल चंद्र पाण्डेय के पहले कहानी-संग्रह 'डर' का विमोचन होगा। पाठक विमल जी की कहानियों से पहले से ही परिचित हैं। हिन्द-युग्म ने 'डर' कथा संग्रह की १२ में से ७ कहानियों (यथा सोमनाथ का टाइम टेबल, डर, चश्मे, 'मन्नन राय ग़ज़ब आदमी हैं', स्वेटर, रंगमंच और सफ़र) का प्रकाशन कर भी चुका है। गौरतलब है कि विमल चंद्र पाण्डेय के इस कहानी-संग्रह को वर्ष २००८ का नया ज्ञानोदय नवलेखन पुरस्कार मिला है।

इस कथा-संग्रह का ऑनलाइन विमोचन १४ मार्च की सुबह ६ बजे 'आवाज़' पर आम पाठकों-श्रोताओं के हाथों किया जायेगा। इस ऑनलाइन कार्यक्रम में आप इसी कहानी-संग्रह से 'स्वेटर' कहानी का कथापाठ भी सुन सकेंगे।

हिन्द-युग्म से जुड़े एक और कहानीकार पंकज सुबीर के भी कहानी-संग्रह 'ईस्ट इंडिया कम्पनी' का विमोचन १४ मार्च के कार्यक्रम में किया जायेगा। पंकज सुबीर ग़जलशिक्षण का ऑनलाइन प्रयास भी करते रहे हैं।

इनकी इस पुस्तक का विमोचन भी १४ मार्च को ही भारतीय समयानुसार सुबह ११ बजे 'आवाज़' पर किया जायेगा। इस कार्यक्रम में इस कथा-संग्रह से कम से कम एक कहानी का कथापाठ भी पॉडकास्ट किया जायेगा। पंकज सुबीर की कथा लेखन प्रतिभा को सुनने के लिए यहाँ जायें

हमारी कोशिश रहेगी कि वहाँ विमोचित होने वाले अधिकाधिक रचनाकारों को हिन्द-युग्म से जोड़े और उनके साहित्य को आपतक पहुँचायें।

कार्यक्रम की संक्षिप्त रूपरेखा निम्नवत है-


भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित युवा रचनाकारों की पुस्तकें
कविता-
कहते हैं तब शहंशाह सो रहे थे- उमाशंकर चौधरी(पुरस्कृत)
यात्रा- रविकांत (पुरस्कृत)
खिलाड़ी दोस्त तथा अन्य कविताएं- - हरेप्रकाश उपाध्याय
अनाज पकने का समय- नीलोत्पल
जवान होते हुए लड़के का कबूलनामा- निशांत
जिस तरह घुलती है काया- वाज़दा ख़ान
पहली बार- संतोष कुमार चतुर्वेदी


कहानी

डर- विमल चंद्र(पुरस्कृत)
शहतूत- मनोज कुमार पांडेय
अकथ- रणविजय सिंह सत्यकेतु
कैरियर गर्लफ्रैंड और विद्रोह- अनुज
सौरी की कहानियां- नवीन कुमार नैथानी
ईस्ट इंडिया कम्पनी- पंकज सुबीर


आगामी 14 मार्च को हिन्दी भवन, नई दिल्ली में इन पुस्तकों का लोकार्पण श्रीमती शीला दीक्षित, मुख्यमंत्री, दिल्ली
के द्वारा होगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुँवर नारायण करेंगे।

आप सब सादर आमंत्रित हैं।

ब्लॉग/वेबसाइट/ऑरकुट स्क्रैपबुक/माईस्पैस/फेसबुक में इस कार्यक्रम की सूचना का पोस्टर लगाकर नये कलमकारों को प्रोत्साहित कीजिए

Monday, March 9, 2009

होली के रंगों में रंगी आनंदम की आठवीं गोष्ठी

संवाददाता

आनन्दम् की 8वीं मासिक गोष्ठी शिवा एन्क्लेव पश्चिम विहार में जगदीश रावतानी के निवास पर होली-मिलन के रूप में संपन्न हुई। गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ शायर मुनव्वर सरहदी ने की। इस बार गोष्ठी का आरंभ “हिन्दी-उर्दू ग़ज़ल और उरूज़” पर एक सार्थक बहस से हुआ। इस दौर में मुनव्वर सरहदी, दरवेश भारती और दर्द देहलवी ने अपने-अपने विचार रखे और श्रोताओं की जिज्ञासाओं के जवाब दिए। जहाँ दरवेश भारती ने उरूज की नियमावली को लाज़मी बताया वहीं मुनव्वर साहब इस बात से इत्तफाक़ न रखते हुए ज़ोर दे रहे थे कि अहंग(तरन्नुम) में जो बात सहज रूप में आ जाए उसी को आधार मान कर ग़ज़ल कहनी चाहिए। भूपेन्द्र कुमार के एक प्रश्न के उत्तर में भारती जी का कहना था कि फारसी की स्वीकृत बहरों के अलावा रुक्न को ध्यान में रखते हुए नई बहर भी ईजाद की जा सकती है। मगर देहलवी जी का मानना यह था कि अदब इस बात की इजाज़त नहीं देता कि हम किसी नई बहर में ग़ज़ल कहें। बहरहाल चर्चा विरोधाभासी व रोचक होने के साथ-साथ ज्ञानवर्धक भी रही।

गोष्ठी के काव्य चक्र की शुरूआत क़ैसर अज़ीज़ ने अपनी ग़ज़लों से की –

मिटा दे जो नफरत की तारीकियाँ वो
चिराग़े मुहब्बत जलाने दो हमको
ये ज़ातों के पहरे ये धर्मों का बन्धन
ये दीवार सारी गिराने दो हमको



भूपेन्द्र कुमार ने होली के अवसर पर एक बृज लोक गीत प्रस्तुत किया–

होरी खेलत नेता भैया
पाँच बरस में एक बेर ही आवे होली संसद की
तरस गए नेता मोरे भैया, करें कब ताता थैया



साहिबे ख़ाना जगदीश रावतानी ने अपनी ताज़ा रचनाओं से ख़ूब वाहवाही बटोरी। होली पर उनकी नज़म कुछ यूँ थी–

भीगे तन मन और चोली, हिन्दू मुस्लिम सब की होली
तू भी रंग जा ऐसे जैसे, मीरा थी कान्हा की हो ली।



डॉ अहमद अली बर्क़ी ने होली के रंग को ऐसे बयाँ किया-

भर दे होली ज़िन्दगी में आपकी खुशियों के रंग
आपके इस रंग में पड़ने न पाए कोई भंग



आजकल के हालात पर तंज़ करते हुए प्रेमचंद सहजवाला ने अपने सधे हुए अंदाज़ में कहा-

चल पड़ा है इस मुल्क में भी तालिबानी सिलसिला
कर रहे हैं क़ैद साँसों को हया के नाम पर



दर्द देहलवी ने अपने दर्द को कुछ यूँ व्यक्त किया-

लब खोलकर भी कुछ नहीं कह पाई ज़िन्दगी
ख़ामोश रह कर मौत ने सब कुछ कह दिया



“ग़ज़ल के बहाने” नामक पुस्तक शृंखला के लेखक दरवेश भारती ने नए तेवर की ग़ज़ल कुछ यूँ कही-

ये बनाते हैं कभी रंक कभी राजा तुम्हें
ख्वाब तो ख़्वाब हैं ख़्वाबों पे भरोसा न करो
प्यार कर लो किसी लाचार से बेबस से फकत
चाहे पूजा किसी पत्थर की करो या न करो



इस गोष्ठी के अध्यक्ष मुनव्वर सरहदी ने होली और हास्य व्यंगय के रस से महफिल को सराबोर कर दिया-

बाप बनना भी कोई मुश्किल है, गोद ले लो किसी का जाया हो
हमको रखना है दाद से मतलब, शेर अपना हो या पराया हो



गोष्ठी का संचालन नमिता राकेश ने बेहद हसीन और रोचक अंदाज़ में किया।

अंत में सभी ने एक दूसरे को गुलाल लगा तथा गले मिलकर होली की शुभकामनाएँ दीं। होली के रंग में सराबोर होकर हँसी के ठहाकों और मिष्ठान्न तथा चायपान के साथ गोष्ठी संपन्न हुई। आनन्दम के सचिव जगदीश रावतानी ने सभी आगन्तुकों का तहेदिल से धन्यवाद किया।

कुछ और उल्लेखनीय शेर/काव्यांश भी देखें-

मुनव्वर सरहदी-
होनी रंगों का तमाशा ही नहीं, इसके दिल में प्यार भी भरपूर है
है कोई दुश्मन तो लग जाए गले, ये मेरे त्यौहार का दस्तूर है

यार ने तेरे आना है तू होली खेल, सब कुछ खोकर पाना है तू होली खेल
मल दे गहरा रंग तू उसके चेहरे पर, रूठा यार मनाना है तो होली खेल


डॉ. दीपांकर गुप्त-
महकें मेरे गाँव में, कई रंग के फूल
पर पथरीले शहर में, उगें सिर्फ बबूल

सोती ही रही हो तो भले लाचार रही हो
जाग जाए तो शक्ति का अवतार है नारी

जगदीश रावतानी-
परिन्दे तो बनाते हैं बहुत से घर
हमें लगती है उम्र इक घर बनाने में
संभल कर चल कि इज़्ज़त पल में लुटती है
जिसे सालों लगेंगे फिर बनाने में

भूपेन्द्र कुमार-
दासी जिसकी होने को कविता को अभिलाषा वह कबीर है
चलती हो जिसके आगे घुटवन-घुटवन भाषा वह कबीर है

नमिता राकेश-
आज क्या सोच के पलकों पे आँसू
घर की चौखट पे कोई मुसाफिर ठहरा तो नहीं

देखो मुझ पे रंग मत डालो
इन गालों पर तो पहले ही लाली है शर्मो हया की

वीरेन्द्र कमर-
जिस तरफ नज़रे इनायत आपकी हो जाएगी
तीरगी दम तोड़ देगी रोशनी हो जाएगी
आप लाएँ तो सही उर्दू ज़बाँ गुफ्तार में
सामने दुश्मन भी सही तो दोस्ती हो जाएगी

साक्षात भसीन-
कोई कवि तो कोई शायर है और है कोई कवि गवैया
रसीली महफिल है आनन्दम् की जमा यहाँ छोटे-बड़े सब रसैया

डॉ. मनमोहन तालिब-
तू है मेरी निगाह में खिला हुआ गुलाब
तेरा वजूद ख़ुशबू तेरा हुस्न लाजवाब

तबस्सुम आँसुओं में ढल गया है
ख़ुशी ग़म से कितना फ़ासला है
दो आँसू ग़ैर के दुख पर बहुत हैं
मदद इंसान की नज़रे ख़ुदा है।

Tuesday, March 3, 2009

'कृष्णा' संस्था द्वारा योग्यता के आधार पर विद्यार्थियों की सहायता

छात्रवृत्ति देते जगदीश रावतानी व प्रेमचंद सहजवाला
हिन्दी कवि कथाकार प्रेमचंद सहजवाला ने सन 2006 में गरीब विद्यार्थियों की सहायता हेतु एक गैर-सरकारी संस्था बनाई थी - कृष्णा , The Rising Son's and Daughter's Organisation. यह संस्था प्रतिवर्ष कुछ योग्य विद्यार्थियों को उन की आर्थिक स्थिति के आधार पर सहायता देती है. फिलहाल इस के पास दो स्कीमें हैं: एक तो वर्ष भर के लिए 1000 रु. की एक-मुश्त सहायता और दूसरी Adoption Scheme जिस में कुछ विद्यार्थियों का प्रतिमाह शिक्षा व्यय वहन किया जाता है. दिनांक 24 फरवरी 2009 को 'कृष्णा' संस्था ने दिल्ली में न्यू राजेंद्र नगर स्थित डी आई खान भ्रातृ सभा सीनियर सेकंडरी स्कूल' के ग्यारह विद्यार्थियों को एक एक हज़ार रूपए की एक-मुश्त सहायता प्रदान की. यह कार्यक्रम इस बार प्रसिद्ध शिक्षाविद स्व. डॉ. अंजना सहजवाला की स्मृति में किया गया, जिन का निधन दि. 19 जनवरी 2009 को हुआ था. डॉ. अंजना सहजवाला शिक्षा के क्षेत्र में दिल्ली की एक जानी मानी शख्सियत थी, जो मानव स्थली स्कूल से कई वर्ष तक जुड़ी रही. पिछले दस वर्षों से वे स्कूल की वसंत कुंज शाखा 'भटनागर इंटरनेशनल स्कूल' की प्रिंसिपल रही. स्कूल के पास सन 58 में स्थापना के समय केवल सोलह विद्यार्थी थे पर समय के साथ इस के पास दस से भी अधिक शाखाएं हो गई तथा कई हज़ार विद्यार्थी. स्कूल की प्रगति में व्यवस्था की एक महत्वपूर्ण शख्सियत होने के नाते डॉ. अंजना का अथक परिश्रम भी शामिल था. डॉ. अंजना कई शिक्षा समितियों की अध्यक्ष भी रही तथा शिक्षा क्षेत्र में कई पुरस्कार प्राप्त किए, जिन में नेशनल प्रेस इंडिया द्वारा सन '92 में दिया गया राष्ट्रीय पुरस्कार, डॉ. राधाकृष्णन स्मृति राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान (2001) तथा World Environmental Education Development 2005 के अवार्ड प्रमुख थे. कार्यक्रम में इस वार्षिक छात्रवृत्ति के लिए 9 वीं से 12 वीं तक के विद्यार्थियों का चयन प्रिंसिपल मनमोहन कौर के सहयोग से किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्द साहित्यकार व दूरदर्शन के कई धारावाहिकों के निदेशक पटकथा -लेखक व 'आनंदम संगीत विद्यालय' के प्रिंसिपल जगदीश रावतानी ने की. कृष्णा के अध्यक्ष प्रेमचंद सहजवाला इस स्कूल में ही सन 57 से 61 तक पढ़े, इस लिए उन्होंने अपने स्कूली जीवन की कई खट्टी-मीठी यादें सुनाई, जिन में सब से रोचक उन के क्रिकेट सीखने के अनुभव थे. इस के बाद दिल्ली के 'हेमनानी पब्लिक स्कूल' की प्रिंसिपल श्रीमती माधुरी कनल ने डॉ. अंजना सहजवाला की शक्सियत पर रोशनी डालते हुए कहा कि वे कई देशों में अपने विद्यार्थियों के साथ गई तथा जिस से भी मिलती वह सहज ही उन्हें अपनी दीदी मान लेता. इस प्रकार वे इंटरनेशनल दीदी बन गई. प्रेमचंद सहजवाला पहले ही अपनी इस बड़ी दीदी के विषय में अपने भाषण में कह चुके थे कि जैसे शरत चन्द्र की प्रसिद्द कहानी बड़ी दीदी एक कल्प वृक्ष की तरह थी, जिस की छांव में जिसे जो चाहिए मिल जाता था, वैसे ही उन की बड़ी दीदी भी थी, जिस ने परिवार और समाज सेवा के उद्देश्य से स्वयं विवाह नहीं किया तथा एक तपस्विनी की तरह जीवन भर तपस्या में जुटी रही.

अंजना सहजवाला के बारे में अपना वक्तव्य देती माधुरी कनल
श्री रावतानी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि देश के कई महापुरुषों को जीवन में आर्थिक कठिनाइयां देखनी पड़ी थी. पर हर विद्यार्थी को चाहिए कि वह एक सपना देखे, प्रगति का सपना, कुछ बनने का सपना. उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री का उदहारण भी दिया कि जब वे स्कूल में थे तो एक नदी पार कर के स्कूल में पढने आना होता था. पर उनके पास नाव में जाने-आने के पैसे नहीं होते थे. इस लिए वे अपना बसता सर पर रख कर पैदल ही नदी के इस पार से उस पार तक जाते थे और अपनी मेहनत और लगन से एक दिन वे देश के प्रधान-मंत्री पद तक पहुँच गए. स्कूल की प्रिंसिपल मनमोहन कौर ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि स्कूल के एक पूर्व विद्यार्थी इतने वर्षों बाद आज अपने ही प्रिय स्कूल के विद्यार्थियों से मिलने आए हैं और उन की हिम्मत बढ़ाने के लिए स्कूल के अच्छे विद्यार्थियों को छात्रवृत्तियां देने आए हैं. उन्होंने कहा कि कृष्णा के अध्यक्ष प्रेमचंद सहजवाला ने यहाँ पढने वाले दिनों में आर्थिक कठिनाइयों का सामना किया था और एक गरीब विद्यार्थी के रूप में एक सपना देखा था कि वे कभी ऐसी एक संस्था बनाएंगे. स्कूल की एक अध्यापिका ने अंत में अध्यक्ष जगदीश रावतानी तथा सहजवाला का धन्यवाद् करते हुए अपने विद्यार्थियों को परिश्रम तथा लगन की प्रेरणा दी.

-तरुण