Tuesday, November 22, 2011

देवनागरी लिपि और सूचना प्रौद्योगिकी विषयक विचारगोष्‍ठी

विश्‍व नागरी विज्ञान संस्‍थान के तत्‍वावधान में 28 अप्रैल, 2011 को देवनागरी लिपि और सूचना प्रौद्योगिकी विषयक विचारगोष्‍ठी का आयोजन के.आई.आई.टी. कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, गुड़गाँव के परिसर में सुविख्‍यात साहित्‍यकार तथा भाषाविद् प्रो. गंगा प्रसाद विमल की अध्‍यक्षता में हुआ। नागरी विज्ञान संस्‍थान के अध्‍यक्ष श्री बलदेव राज कामराह ने विचारगोष्‍ठी का उद्घाटन करते हुए कहा कि आज देवनागरी लिपि की महत्ता बढ़ गई है और इसलिए इसके विकास में प्रौद्योगिकी कारगर भूमिका निभा सकती है। संस्‍थान के उपाध्‍यक्ष तथा वैज्ञानिक डॉ. श्‍याम सुंदर अग्रवाल ने स्‍वागत करते हुए बताया कि नागरी लिपि के वैज्ञानिक स्‍वरूप को देखते हुए यह आवश्‍यक हो गया है कि इसमें सूचना प्रौद्योगिकी का सहयोग प्राप्‍त किया जाए ताकि इसके मानकीकरण और विकास में अधिकाधिक सहायता मिल सके।
विचारगोष्‍ठी के संयोजक संस्‍थान के महासचिव और निदेशक तथा सुप्रसिद्ध भाषावैज्ञानिक प्रो. कृष्‍ण कुमार गोस्‍वामी संस्‍थान और विचार गोष्‍ठी का परिचय देते हुए बताया कि देवनागरी लिपि ब्राह्मी लिपि से उद्भूत भारत की प्राचीनतम लिपि है। इस समय इसका प्रयोग संविधान में उल्लिखित बाईस भाषाओं में से दस मुख्‍य भाषाओं में हो रहा है। यह लिपि अन्‍य सभी लिपियों से अधिक वैज्ञानिक है और इसीलिए इसके मानकीकरण, विकास और संवर्धन में सूचना प्रौद्योगिकी विशिष्‍ट भूमिका निभा सकती है और यह विश्‍व लिपि के रूप में स्‍थापित हो सकती है।

विचारगोष्‍ठी के प्रथम सत्र की मुख्‍य वक्‍ता सूचना और प्रौद्योगिकी विभाग, संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय,भारत सरकार की निदेशक और वैज्ञानिक डॉ. (श्रीमती) स्‍वर्णलता ने ‘लिपि व्‍याकरण’ के बारे में बताते हुए कहा कि लिपि व्‍याकरण किसी भाषा की लेखन पद्धति की व्‍यवहारपरक पैटर्न निर्देशित करता है। इसमें संसक्‍त पैटर्न का इस्‍तेमाल होता है जो किसी भाषा के भाषापरक व्‍याकरण के समान होता है। भारतीय भाषाओं के संदर्भ में लिपि व्‍याकरण की आवश्‍यकता पर चर्चा करते हुए डॉ. स्‍वर्णलता ने कहा कि इसमें फोंट का डिजाइन बनाते समय यह देखा जाता है कि यह विशेष लिपि के मानकों के अनुरूप हो और साथ ही कुंजी पटल तथा इनपुट कार्यप्रणाली का डिजाइन बनाते हुए यह भी अपेक्षा रहती है कि वह विशिष्‍ट भाषाभाषी समुदाय की आवश्‍यकताओं को पूरा करे। विशेष लिपि के वर्ण समूह को यूनीकोड के साथ भी संयोजित किया जा सके। इसी संदर्भ में देवनागरी लिपि के लिपि व्‍याकरण का निर्माण करने के प्रयास किए जा रहे है। देवनागरी लिपि के स्‍वर, व्‍यंजन, मात्रा आदि के साथ संयुक्‍ताक्षरों की विविधता पर भी ध्‍यान दिया जा रहा है ताकि इसका विकास यूनीकोड के अनुरूप हो। डॉ. स्‍वर्णलता के प्रपत्र के बाद केन्‍द्रीय हिन्‍दी संस्‍थान के पूर्व प्रोफेसर डॉ. मोहन लाल सर ने देवनागरी लिपि पर सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा किए गए कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि इस विषय पर और अधिक कार्य करने की आवश्‍यकता है। नागरी लिपि परिषद् के महासचिव डॉ. परमानंद पाँचाल ने इस बात पर बल दिया कि देवनागरी लिपि के विकास में सूचना प्रौद्योगिकी वैज्ञानिकों की अत्‍यंत आवश्‍यकता है। अंत में प्रो. विमल ने अपने अध्‍यक्षीय भाषण में सूचना प्रौद्योगिकी के सहयोग से देवनागरी के अधिक प्रयोग की संभावनाओं की ओर संकेत किया।
दूसरे सत्र में डॉ. परमानंद पाँचाल की अध्‍यक्षता में मुख्‍य वक्‍ता सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के वरिष्‍ठ निदेशक, वैज्ञानिक और संस्‍थान के उपाध्‍यक्ष डॉ. ओम विकास ने ‘सूचना प्रौद्योगिकी में नागरी लिपि के फिसलते कदम’ विषय पर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि देवनागरी लिपि का वैज्ञानिक आधार होने के कारण पाणिनि ने ध्‍वनियों के उच्‍चारण और उच्‍चारण विधि की लिपि संरचना सारणी का निर्माण किया, जिसे ‘लिपि व्‍याकरण’ कहा जाता है। आगे बोलते हुए डॉ. ओम विकास ने कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी का विकास सैद्धांतिक रूप से लिपि या भाषापरक नहीं है क्‍योंकि रोमन लिपि में अंग्रेजी में जो संभव है, वह नागरी लिपि में भी संभव है। लेकिन प्रौद्योगिकी का प्रयोग व्‍यापक रूप से नहीं हो रहा है। इसीलिए सकल भारती फोंट का प्रयोग किया जाए तो इससे न तो केवल हिन्‍दी को लाभ होगा, वरन् सभी भारतीय भाषाओं को भी लाभ होगा। इस समय यूनीकोड का प्रचार-प्रसार तो बढ़ा है, लेकिन फोनीकोड के निर्माण से और अधिक सुविधा होगी। इस संदर्भ में डॉ. ओम विकास ने यह खेद प्रकट किया कि विभिन्‍न कार्यक्षेत्रों में देवनागरी का प्रयोग नहीं हो रहा, जबकि सूचना प्रौद्योगिकी इसमें काफी योगदान कर सकती है। इसके बाद प्रगत संगणन विकास केंद्र (सी-डैक) नोएडा के निदेशक श्री वी.एन.शुक्‍ल ने डॉ. ओम विकास की वेदना को समझते हुए कहा कि देवनागरी लिपि की स्थिति इतनी शोचनीय नहीं कि हम दु:खी हो। इसका प्रयोग तो अधिकाधिक हो रहा है। केन्‍द्रीय हिन्‍दी संस्‍थान के भाषा प्रौद्योगिकी विभाग के पूर्व अध्‍यक्ष प्रो. ठाकुरदास ने कुछ कार्यक्षेत्रों में देवनागरी लिपि का प्रयोग न होने पर अपनी वेदना प्रकट की और बताया कि सरकारी स्‍तर पर उतना कार्य नहीं हो रहा है जितना गैर-सरकारी स्‍तर पर हो रहा है। इस संबंध में हमें गंभीरता से विचार करना होगा। अंत में डॉ. पाँचाल ने अपने अध्‍यक्षीय भाषण में कहा कि देवनागरी का प्रचार-प्रसार तभी व्‍यापक हो सकता है, यदि हम सब इसमें पूरी तरह से संलिप्‍त हो जाएँ।

इस विचारगोष्‍ठी के समापन पर श्री बलदेवराज कामराह ने आशा प्रकट की कि भविष्‍य में इस विषय पर शोधकार्य होंगे और इंजीनियरिंग तथा सूचना प्रौद्योगिकी के छात्रों से इस विषय पर कार्य कराया जाएगा। के.आई.आई.टी. कॉलेज ऑफ एजुकेशन के प्राचार्य प्रो. मनजीत सेनगुप्‍ता ने सभी विद्वानों, प्रतिभागियों और छात्रों का धन्‍यवाद ज्ञापन भावभीनी शव्‍दावली में किया। इस विचारगोष्‍ठी का संचालन प्रो. कृष्‍ण कुमार गोस्‍वामी और के.आई.आई.टी. कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग की प्राध्‍यापक सुश्री अनीता शर्मा ने किया।

इस विचारगोष्‍ठी में डॉ. एन.के. अग्रवाल, श्री विक्रम सिहँ, डॉ. नीरज भारद्वाज, श्रीमती मंगल मेहता, श्रीमती कनिका कौर, डॉ. सोमनाथ चंद्रा, प्रो.वी.के.स्‍याल, प्रो.आर.के.जैन, प्रो.डी.वी.कालरा, डॉ. हर्षवर्धन, आदि विद्वानों ने सक्रिय भाग लिया।
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`पुष्पक,' 'नन्हें फ़रिश्ते' का विमोचन और दीपावली स्नेह मिलन संपन्न


कादम्बिनी क्लब, हैदराबाद के तत्वावधान में वशीरबाग स्थित प्रेस क्लब में ६ नवम्बर २०११ शायं ६ बजे `पुष्पक'-१८,`नन्हें फ़रिश्ते 'व दीपावली स्नेह मिलन समारोह आयोजित किया गया।
इस समारोह में प्रो.ऋषभ देव (अध्यक्ष ) स्वतंत्र वार्ता के संपादक डा. राधेश्याम शुक्ल (लोकार्पण कर्ता ) बी.एस. वर्मा (मुख्य अतिथि ) रावुल्पाटी सीताराम राव (गौरवनीय अतिथि ) एवं प्रभु (सम्माननीय अतिथि ) एवं डा. अहिल्या मिश्र (क्लब की संयोजिका ) मंचासीन हुए | अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन व शुभ्रा महंतो की सरस्वती वन्दना के साथ कार्यक्रम का आरंभ हुआ |
डा. अहिल्या मिश्र ने क्लब का परिचय देते हुए कहा कि विगत १७ वर्षो से क्लब अपनी निरंतरता के लिए जाना जाता रहा है |तत्पश्चात अतिथियों का स्वागत क्लब के सदस्यों द्वारा किया गया | क्लब का परिचय मीना मुथा ने `पुष्पक'-१८ का परिचय डा. जी. नीरजा ने जी. परमेश्वर की अनुवादित कृति `नन्हें फ़रिश्ते' कहानी संग्रह का परिचय लक्ष्मी नारायण अग्रवाल ने दिया | डा. रमा द्विवेदी ने `पुष्पक' प्रकाशन की समस्याओं पर प्रकाश डाला | तत्पश्चात डा. शुक्ल व मंचासीन अतिथियों द्वारा `पुष्पक'-१८ व `नन्हें फ़रिश्ते ' का लोकार्पण किया गया| डा. शुक्ल ने अपने उदबोधन में कहा कि यह सुखद संयोग है कि इन पुस्तकों का लोकार्पण दीपावली पर्व पर हो रहा है | क्लब इसी प्रकार सजगता से आगे बढ़ता रहे | जी.परमेश्वर ने कहा कि अनुवाद दो भाषाओं के बीच पुल का कार्य करता है | अन्य अतिथियों ने भी अपने विचार व्यक्त किए |
प्रो. ऋशभ देव शर्मा ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा -दो पुस्तकें अपने आपमें दो दीपावलियाँ हैं | पुष्पक हर अंक में प्रौढ़ता प्राप्त कर रहा है | नन्हें फ़रिश्ते की अधिकाँश कहानियां दिल को छूती हैं | अनुवाद का कार्य तलवार की धार पर चलने के समान है | जी. परमेश्वर सफल अनुवादक हैं तथा बधाई के पात्र हैं | डा. मदन देवी पोकरना और भगवानदास

जोपट ने दीप पर्व की शुभकामनाएं प्रेषित कीं | ज्योतिनारायण ने धन्यवाद ज्ञापित किया | सरिता सुराना ने का संचालन किया |
इसा अवसर पर प्रो. टी .मोहन सिंह, प्रो. सत्यनारायण, तेजराज जैन ,विनीता शर्मा , भंवर लाल उपाध्याय ,दयानाथ झा,पवित्रा अग्रवाल ,शान्ति अग्रवाल ,उमा सोनी ,डा. देवेन्द्र शर्मा ,सुरेश गुगलिया ,वीर प्रकाश लाहोटी ,गौतम दीवाना,सावारीकर,सत्यनारायण काकडा ,दुर्गादत्त पांडे ,वी. वनजा ,वी. कृष्णा राव , गुरुदयाल अग्रवाल ,डा. एम्.रंगैया,कुञ्ज बिहारी गुप्ता एवं जी.जगदीश्वर आदि उपस्थित थे |
प्रस्तुति - डा. रमा द्विवेदी

महिला लेखन हेतु पंचम साहित्य गरिमा पुरस्कार के लिए प्रविष्ठियां आमंत्रित

'साहित्य गरिमा पुरस्कार' दक्षिण प्रान्तों के महिला लेखन को प्रोत्साहित एवं प्रतिष्ठित करने का एक व्यापक चिंतन है। इस पुरस्कार का शुभारंभ y2k में हुआ| साहित्य की विधाओं पर महिला लेखन को यह पुरस्कार देने का निर्णय लिया गया। इस पुरस्कार के लिए ग्यारह हजार रूपए की धनराशि, प्रशस्ति पत्र एवं स्मृति चिह्न दिया जाता है।
प्रथम साहित्य पुरस्कार-2000, वरिष्ठ कथाकार श्रीमती पवित्र अग्रवाल को उनके कहानी संग्रह `पहला कदम' पर दिया गया। द्वितीय साहित्य गरिमा पुरस्कार- 2003 , हैदराबाद की सशक्त हस्ताक्षर स्व.डा. प्रतिभा गर्ग को उनके काव्य संग्रह `सुधा कृति' पर प्रदान किया गया। तृतीय साहित्य गरिमा पुरस्कार-2007, वरिष्ठ लेखिका डा. गुणमाला सोमाणी को उनके ललित निबंध की पुस्तक `ललित निबंध माला' पर प्रदान किया गया। चतुर्थ साहित्य गरिमा पुरस्कार-2009 , वरिष्ठ कवयित्री डा. रमा द्विवेदी को उनके काव्य संग्रह `दे दो आकाश' पर प्रदान किया गया। पंचम साहित्य गरिमा पुरस्कार- 2010, दक्षिण प्रांतो की (आन्ध्र प्रदेश), कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडू एवम केरल) की लेखिकाओ द्वारा रचित कहानी/लघु कथा विधा पर दिया जाएगा। वर्ष 2006 से 2010 के बीच प्रकाशित कहानी संग्रह /लघु कथा संग्रह पर दिया जाएगा। आमंत्रित विधा की पुस्तक की चार प्रतियाँ, जीवन वृत्त, एवं नवीनतम चार छायाचित्र भेजना अनिवार्य होगा। प्रविष्ठियाँ भेजने की अंतिम तिथि 31 दिसम्बर 2011 होगी।
अतिरिक्त जानकारी हेतु संस्था की संस्थापक एवम अध्यक्ष डा. अहिल्या मिश्र एवम संस्था की महासचिव डा. रमा द्विवेदी से संपर्क कर सकते हैँ ।

सम्पर्क सूत्र :
93 /सी ,राज सदन, वेंगलराव नगर, हैदराबद-500038 (आ. प्र.)
दूरभाष : 040-23703708 .फैक्स : 040- 23713249
डा. अहिल्या मिश्र : मो. 09849742803
डा. रमा द्विवेदी : मो. 09849021742

प्रस्तुति : डा. रमा द्विवेदी

Friday, November 18, 2011

हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित प्रदेशस्तरीय युवा कहानी प्रतियोगिता में भाग लें

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