Tuesday, June 29, 2010

नगीना के सम्मान में बहुरंगी कार्यक्रम आयोजित



नर्मदापुरम्। सांस्कृतिक, साहित्यिक, सृजनधर्मी संयोजन नर्मदापुरम् कला जगत व्यापक रुप से साहित्य, संगीत, नाट्यकला, चित्रकला, मूर्तिकला, अभिनय, नृत्य आदि विभिन्न ललित कला क्षेत्रों में साधनारत् तथा कला प्रेमियों, कला मर्मज्ञों का समन्वित मंच है। नर्मदापुरम् कला जगत निरंतर प्रयासरत् है कि नर्मदापुरम् क्षेत्र के कला साधकों को उनकी साधना का यथोचित प्रतिसाद प्राप्त हो और उन्हें प्रतिष्ठित मंच व अवसर मिले। इसी श्रृखला में नर्मदापुरम् कला जगत द्वारा वरिष्ठ गीतकार श्री मगन लाल ‘नगीना’ के सम्मान में आयोजित उनके ही लिखे बहुरंगी गीतों पर आधारित सुरमयी संगीत सभा ’गीत नगीना के’ की भव्य प्रस्तुति नर्मदापुरम् कला जगत के कलाकारों ने दी। नर्मदापुरम् (होशंगाबाद) के कला इतिहास में संभवतः पहली बार ऐसा अवसर उपस्थित हुआ, जब किसी कवि विशेष पर केन्द्रित उच्च स्तरीय संगीत के कार्यक्रम को स्थानीय संगीतकारों, गायक-गायिकाओं तथा वादकों ने बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत किया हो।
स्थानीय विधायक पं. गिरजा शंकर शर्मा के मुख्य आतिथ्य, पूर्व मंत्री श्री मधुकर राव हर्णे की अध्यक्षता तथा वरिष्ठ समाजसेवी श्री राकेश फौजदार के विशेष आतिथ्य में संपन्न इस गरिमामयी कार्यक्रम में अतिथियों द्वारा श्री मगन लाल ‘नगीना’ का शॉल व श्रीफल से सम्मान कर दीर्घायु होने की शुभकामनायें दी। कला के विविध आयामों के प्रचार-प्रसार व उन्नयन हेतु एवं कलाकारों के हितार्थ सक्रिय रुप से कार्यरत् नर्मदापुरम् कला जगत द्वारा स्थापित कलाकार कल्याण कोष के माध्यम से श्री ‘नगीना’ को साहित्य में उनके विशिष्ठ योगदान हेतु सम्मान स्वरूप ग्यारह हजार रुपये की राशि भेंट की गई। इस पुनीत कार्य में नगर के प्रबुद्ध कलाप्रेमी नागरिकों का सराहनीय सहयोग प्राप्त हुआ।



सरस्वती आराधना, दीप प्रज्जवलन एवं अतिथि सत्कार के पश्चात् श्री ‘नगीना’ द्वारा रचित गणेश वंदना ‘हे गजानन जगत तेरी पूजा करे‘ से आरंभ विविधता से परिपूर्ण कार्यक्रम में ‘प्रभु तुम कैसे खेल रचाये’, ‘गीत गाने का मौसम’, ‘प्यार मीठी चुभन जिंदगी के लिये’, ‘कदम उठे जहॉ जहॉ’, ‘तेज़ हवा है’, ‘मुझको भूली सी कोई याद’, ‘जिधर भी देखा नज़र उठा के’, ‘तुम गंध बनो मधुबन की’, ‘हर छंद सलौने हैं’, ‘भुला सको तो भुला दो’ आदि सुमधुर भजन, गीतों, ग़ज़लों, सूफीयाना कलाम के मनमोहक प्रवाह में अंतिम प्रस्तुति देशभक्ति से ओत-प्रोत गीत ‘सब मिल बोलो प्यार से वन्दे मातरम्‘ दी गई। संगीतकार श्रीमती जयश्री तरडे, श्री अयूब खॉन, सुश्री जया ‘नर्गिस’, श्री राम परसाई, श्री राकेश दुबे, श्री नमन तिवारी, श्री प्रियम पटैरिया सहित कार्यक्रम में सम्मिलित सभी सहयोगी कलाकारों को पं. महेश तिवारी, श्री राधेश्याम रावल, श्री तेजेश्वर प्रसाद मिश्र ने स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया। प्रतिवेदन श्री संतोष व्यास द्वारा प्रस्तुत किया गया। प्रो. रागिनी दुबे के सशक्त मंच संचालन एवं श्री रामकृष्ण दीक्षित व श्री रत्नेश साहू के सुव्यवस्थित कार्य प्रबंधन ने कार्यक्रम को अविस्मरणीय बना दिया। अंत में आभार श्री नित्य गोपाल कटारे ने व्यक्त किया। आयोजन को सफल बनाने में श्री ओम प्रकाश शर्मा, श्री जगदीश वाजपेई, श्री सजीवन ‘मयंक’, श्री मोहन वर्मा ’साहिल’, श्री सुभाष यादव का अथक सहयोग प्राप्त हुआ। बड़ी संख्या में प्रबुद्ध श्रोताओं की उपस्थिति में देर रात तक चले इस कार्यक्रम की सर्वत्र सराहना की जा रही है।

Friday, June 25, 2010

कवयित्री शैलजा दुबे के सम्मान में काव्य-गोष्ठी

मुम्बई।

दिनांक 22। मंगलावार, जून 2010 को दिल्ली की वरिष्ठ रचनाकार व कवियित्री श्रीमती शैलजा दुबे जी के सन्मान में एक काव्य गोष्ठी का आयोजन मुंबई में श्रीमती देवी नागरानी जी के निवास स्थान पर किया गया, जिसमें शामिल रहे अनेक गीत ग़ज़ल के सृजनहार जिन्होंने महफ़िल को महकाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। काव्य गोष्ठी में वरिष्ठ गज़लकार श्री आर. पी. शर्मा की अध्यक्षता और जाने माने शायर मा.ना. नरहरी जी के संचालन ने एक खुशनुमा समाँ बांध दिया।


बाएँ से दाएँ- आर ज्योति गजभिये, ताज आरसी, श्रीमती अरुणा गोस्वाम, शैलजा दूबे, श्री उदय दुबे, खन्ना जी, पीके सक्सेना, नरहरि साहब, देवी नागरानी, डॉ॰ राजम नटराजन पिल्लई

काव्य गोष्टी आरंभ करने के पूर्व श्रीमती देवी नागरानी ने पुष्प गुच्छ से अध्यक्ष श्री आर. पी. शर्मा महर्षि जी का सन्मान किया. साथ ही मुख़्य महमान शैलजा दुबे और उनके पति श्री उदय दुबे जी का पुष्प व शाल से सम्मान किया.

काव्य सुधा का आगाज़ किया शास्त्रीय संगीतकार श्री नीरज गोस्वामी ने। उन्होने अपनी मधुर आवाज़ से शायर रज़ा साहब की एक ग़ज़ल पेश की और ख़ूब वाह-वाह लूटी। सुधा की सरिता शाम ७ बजे से रात १० बजे तक निर्झर बहती रही जिसके प्रवाह में सभी का अनूठा योगदान रहा।


बाएँ से दाएँ- ज़फ़र रज़ा, ताज आरसी, मुरलीधर पांडेय, महिर साहब, शैलजा दुबे, आर पी शर्मा, उदय दुबे, खन्ना जी, एम एन नरहरि, नीरज गोस्वामी

सिलसिला आगे बढ़ता रहा और क़ाफिला बनता रहा, जब भागीदारी करते रहे मुंबई के जाने माने मौजूद रचनाकारः अंजुमन संस्था के अध्यक्ष एवं प्रमुख शायर खन्ना मुज़फ्फ़रपुरी, श्री रमांकांत शर्मा, डा॰ राजम नटराजन पिलै, त्रैमासिक पत्रिका "कुतुबनुमा" की संपादक जिन्होंने पहली बार अपनी एक रचना का पाठ किया. संयोग साहित्य के संपादक श्री मुरलीधर पांडेय ने शास्त्रीय गायन के साथ फ़िज़ा में शबनम घोल दी. नीरज गोस्वामी, शिवदत "अक्स", हस्तीमल हस्ती, कविता गुप्ता, प्रमिला शर्मा, ज़ाफर रज़ा, के. पी.सक्सेना "दूसरे", नईमा इम्तियाज़, सुमीता केशवा, रचना भंडारी, मरियम गज़ाला, डा. रीटा गौतम, श्री मा.ना. नरहरी, देवी नागरानी, ज्योती गजभिये, कपिल कुमार, मुहमुद्दिल माहिर. श्रीमती शैलजा दुबे ने अपनी सशक्त रचनाओं का पाठ कर के सभी रचनाकारों की दाद हासिल की. रत्ना झा, अस्मिता दुबे, ताज वारसी श्रोता बने गोष्टी का आनंद लेते रहे.


काव्यपाठ करते श्री अमर कक्कड़

अंत में अध्यक्ष श्री आर. पी. शर्मा ने कई गज़लों का पाठ भरपूर ताज़गी के साथ किया. अमर काकड़ "हुप्पा हुय्या" के प्रोड्यूसर भी इस संध्या का गौरव बढ़ाने के लिये मौजूद रहे.

काव्या गोष्टी सफलता पूर्ण संपूर्ण हुई. देवी नागरानी ने सभी कवि गण का तहे दिल से आभार व्यक्त किया. मधुर वातावरण में शाम कब रात हुई पता नहीं चला. भोजन के साथ समाप्ती हुई. जयहिंद

देवी नागरानी

Wednesday, June 23, 2010

चलता चला जाऊँगा का लोकार्पण



नई दिल्ली

श्री विष्णु प्रभाकर जी के 99वें जन्म दिन के अवसर पर दिल्ली स्थिति हिंदी भवन में श्री विष्णु प्रभाकर जी द्वारा रचित कविता संग्रह चलता चला जाऊँगा का लोकार्पण हिंदी मनीषियों के सान्निध्य में सर्वश्री अजित कुमार, डॉ. बलदेव बंशी, डॉ. कृष्ण दत्त पालीवाल,डॉ. हरदयाल,महेश दर्पण,हास्य कवि सुरेश शर्मा, शमशेर अहमद खान,लक्ष्मी शंकर वाजपेयी,डॉ. सुरेश शर्मा के कर कमलों द्वारा सम्पन्न किया गया. इन कविताओं के संकलन का दायित्व का निर्वहन श्री विष्णु जी के सुपुत्र अतुल कुमार जी ने किया है और इसका प्रकाशन प्रभात प्रकाशन ने किया है.इस संकलन की भूमिका में हिंदी कविताओं के महान समालोचक श्री अजित कुमार ने लिखा हैश्री विष्णु प्रभाकर से परिचित साहित्य प्रेमी सहसा विश्वास न कर सकेंगे कि कथा-उपन्यास, यात्रा-स्मरण, जीवनी, आत्मकथा, रूपक, फीचर, नाटक, एकांकी, समीक्षा, पत्राचार आदि गद्य विधाओं के लिए ख्यात विष्णु जी ने कभी कविताएं भी लिखी होंगी. लेकिन यह एक सच है.पुस्तक के रैपर पर अतुल जी लिखते हैं कि प्रस्तुत काव्य संकलन में सन 1968 से 1990 की अवधि में उनकी आंतरिक संवेदनाओं को कविता के रूप में संप्रेषित करती उन अभिव्यक्तियों को संकलित करने का प्रयास किया है,जो वे वर्ष में एक या दो बार समाज व मानव की स्थितियों-परिस्थितियों पर कविता के रूप में दीपावली व नववर्ष के संदेश के रूप में अपने चाहने वालों को भेजते रहते थे….मेरे विचार में उनकी कविताओं में प्रेम की अभिव्यक्ति तो है ही, लेकिन उनकी आंतरिक पीडा,आंतरिक इच्छा कि, मनुष्य के अंदर का मनुष्य सच्चे रूप में मानव बन सके और अपने इस जीवन को सार्थक कर सके, की अभिव्यक्ति सबसे ज्यादा मुखर है---पाल ले भले ही दंभ वह, जीतने का प्र्थ्वी को, आकाश को दिग/ दिगंत को,पर/ वह मनुष्य है, मनुष्य ही रहेगा. यही उसकी जीत है, यही उसकी हार है और इसी हार की जीत का नाम है मनुष्य.
कविताओं के बारे में टिप्पणी करते हुए वक्त्तओं ने उन्हें एंटी रोमांटिक मूड में लिखी गई मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन मूल्यों व सामाजिक सरोकारों को दर्शाती संवेदनशील रचनाएं बताईं. एक वक्ता ने 1979 में लिखी गई उनकी व्यास और मैं --युगों पहले
व्यास ने कहा था—
मनुष्य से बडा कोई नहीं है.
आज
मैं कहता हूं
मनुष्य से छोटा कोई नहीं है.
क्योंकि
मैं मनुष्य हूं
व्यास ऋषि थे.
इस कार्यक्रम का सफल संचालन युवा कवि हर्षवर्धन द्वारा किया गया.



मुनीश परवेज राणा

Monday, June 21, 2010

आमंत्रणः प्रेमचंद सहजवाला की अंग्रेज़ी पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम का

प्रेमचंद सहजवाला को ‘परिचय साहित्य परिषद’ सम्मान व Diamond Pocket Books से हाल ही में प्रकाशित उनकी अंग्रेज़ी पुस्तक ‘Mumbai Kiski & Other Articles’ का लोकार्पण समारोह दि. 22 जून 2010 को सायं 5.30 से 8.00 बजे तक नई दिल्ली के 24 फेरोजशाह रोड स्थित Russian Cultural Centre में आयोजित होने जा रहा है. लोकार्पण जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के School of Languages के प्रो. चमन लाल के कर-कमलों द्वारा होगा. इस अवसर पर पूर्व राज्यसभा सांसद श्री उदय प्रताप सिंह व प्रसिद्ध डाक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता डॉ. लवलीन थदानी विशिष्ट अतिथि होंगे.

आप सभी सादर आमंत्रित हैं।

Saturday, June 19, 2010

बनास का लोकार्पण समारोह



उदयपुर
साहित्य संस्कृति के संचयन 'बनास' के विशेषांक ''गल्पेतर गल्प का ठाठ'' का लोकार्पण फतहसागर झील के किनारे स्थित बोगेनवेलिया आर्ट गेलेरी परिसर में एक गरिमामय आयोजन में हुआ.
काशीनाथ सिंह के उपन्यास 'काशी का अस्सी' पर केन्द्रित इस अंक का लोकार्पण सुविख्यात चित्रकार पी एन चोयल, चर्चित चित्रकार अब्बास बाटलीवाला, वरिष्ठ कवि नन्द चतुर्वेदी और वरिष्ठ समालोचक नवल किशोर ने किया. पी एन चोयल ने इस अवसर पर कहा कि जब बाहर के दृश्य भीतर बदल जाते हों और सीधी भाषा हमारे अन्दर हलचल पैदा करने में असफल हो रही हो तब व्यंग्य और प्रतीकों से बनी कोई कृति आवश्यक हो जाती है. चोयल ने कहा कि बनास द्वारा पूरा अंक एक उपन्यास पर केन्द्रित करना बताता है कि काशी का अस्सी हमारे समय और समाज को देखने वाली बड़ी कृति है.
नन्द चतुर्वेदी ने हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता के समक्ष आ रही चुनौतियों की चर्चा करते हुए कहा की इसे साहित्य की भूमिका को पहचानने और ठीक से चिन्हित करने का काम करना होगा. उन्होंने कहा कि साहित्यिक पत्रकारिता को अब अंतरानुशासनिक भी होना पड़ेगा क्योंकि इसके बिना अपने समय और समाज को समझना मुश्किल है. नन्द बाबू ने इस अवसर अपने द्वारा संपादित पत्रिका 'बिंदु' के अनेक संस्मरण सुनाकर ६० और ७० के दशक की यादें ताज़ा कर दीं.

इससे पहले सुखाड़िया विश्वविद्यालय के मानविकी संकाय के अध्यक्ष प्रो. शरद श्रीवास्तव ने काशी का अस्सी से एक महत्वपूर्ण अंश 'नरभक्षी राजा की कथा' का पाठ किया, इस अंश के अंत में उपन्यासकार की टिप्पणी है 'मनुष्यभक्षी राजा चाहे जितना भयानक और बलशाली हो ,दुर्वध्य नहीं है. उसका वध संभव है.' आयोजन में हुई चर्चा में इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय,दिल्ली के प्रो. आशुतोष मोहन ने कहा कि हमारे जीवन से हंसी के हिज्जे बदल दिए गए हैं,काशी का अस्सी इसी हंसी के गायब होने की दास्तान की महागाथा है. सिरोही महाविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. माधव हाड़ा ने रेणु के बाद हिंदी में पहली बार बहुत निकट रहकर निस्संग भाव से भारतीय समाज को देखने के लिए काशी का अस्सी को असाधारण रचना बताया. वरिष्ठ समालोचक प्रो. नवलकिशोर ने लघु पत्रिका की अवधारणा का उल्लेख कर लघु पत्रिकाओं के लिए नएपन की जरूरत पर बल दिया. उन्होंने कहा कि मीडिया की नयी तकनीकों के सामने लघु पत्रिकाओं को नया पाठक वर्ग बनाने की चुनौती है.
आयोजन में प्रसिद्द स्वतंत्रता सेनानी रामचंद्र नंदवाना, चित्रकार शैल चोयल, हेमंत द्विवेदी ,शाहिद परवेज़, साहित्यकार मूलचंद्र पाठक, एस.एन.जोशी, लक्ष्मण व्यास, हिमांशु पंड्या, सुखाड़िया विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के अध्यक्ष डॉ. रईस अहमद, मीरा गर्ल्स कालेज की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ.मंजू चतुर्वेदी, आकाशवाणी के सहायक केंद्र निदेशक डॉ.इन्द्रप्रकाश श्रीमाली, महिला अध्ययन केंद्र की प्रभारी डॉ.प्रज्ञा जोशी, डॉ.चंद्रदेव ओला, डॉ.लालाराम जाट, डॉ.नीलेश भट्ट सहित युवा पाठक विद्यार्थी उपस्थित थे. स्वागत कर रही बोगेनवेलिया आर्ट गेलेरी की निदेशक तनुजा कावड़िया ने कहा की सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए साझा काम करने होंगे.अंत में बनास के संपादक पल्लव ने आभार माना.

(गजेन्द्र मीणा)
सहयोगी संपादक
बनास

Wednesday, June 9, 2010

पर्यावरण मित्र-2010 सम्मान से लाल बिहारी लाल सम्मानित

नई दिल्ली
लाल कला, सांस्कृतिक एवं सामाजिक चेतना मंच, नई दिल्ली के सचिव पर्यावरणप्रेमी श्री लाल बिहारी लाल को पर्यावरण को समर्पित संस्था पर्यावरण सचेतक समीति एवं उ.प्र. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, की क्षेत्रीय शाखा गाजियाबाद द्वारा संयुक्त रुप से बिश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर आयोजित समारोह में दिल्ली रत्न, पर्यावरणप्रेमी श्री लाल बिहारी लाल को पर्यावरण मित्र-2010 सम्मान से सम्मानित किया गया। यह सम्मान मेरठ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपत्ति डा. आर.बी.एल. गोस्वामी एवं पर्यावरण सचेतक समीति के अध्यक्ष डा. विजयपाल बघेल द्वारा संयुक्त रुप से सम्मानित किया गया। श्री लाल को सम्मान स्वरुप स्मृति चिन्ह, प्रशस्ति पत्र तथा पौधे प्रदान किया गया। यह कार्यक्रम साहिबाबाद फल एवं सब्जी मण्डी के सभागार में आयोजित किया गया। श्री लाल को यह सम्मान पर्यावरण लेखन के माध्यम से इसके संरक्षण में सहायता के लिए इनके द्वारा संपादित कृति धरती कहे पुकार के लिए दिया गया।
श्री लाल को देश की कई जानी मानी सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थायें सम्मानित कर चुकी है। हाल ही में इन्हें 1जून को पत्रकारिता दिवस पर भी राष्ट्रभाषा समिति द्वारा सम्मानित किया गया है। पिछले दिनों दिनों हास्यश्री-2010 सम्मान प्रदान किया गया था।

Tuesday, June 1, 2010

आबिद सुरती का सम्मान समारोह और उन्हीं पर केंद्रित शब्दयोग के विशेषांक का लोकार्पण


(बाएं से)- देवमणि पाण्डेय, आर.के.पालीवाल, आबिद सुरती, दिनकर जोशी, साजिद रशीद, प्रतिमा जोशी, सुधा अरोड़ा

साहित्यिक पत्रिका ‘शब्दयोग’ के आबिद सुरती केंद्रित अंक (जून 2010 ) के लोकार्पण एवं आबिद सुरती के 75 वें जन्म दिन पर एक संगोष्ठी का आयोजन हिन्दुस्तानी प्रचार सभा के सभागार में 28 मई 2010 को आयोजित हुआ। इस अवसर पर आबिद सुरती का सम्मान करते हुए समाज सेवी संस्था ‘योगदान’ के सचिव आर.के.अग्रवाल ने आबिद सुरती की पानी बचाओ मुहिम के लिये दस हजार रुपये का चेक भेंट किया। सम्मान स्वरूप उन्हें शाल और श्रीफल के बजाय उनके व्यक्तित्व के अनुरूप कैपरीन (बरमूडा) और रंगीन टी शर्ट भेंट किया गया।

कार्यक्रम की शुरुआत में आर.के.पालीवाल की आबिद सुरती पर लिखी लम्बी कविता ‘आबिद और मैं’ का पाठ फिल्म अभिनेत्री एडीना वाडीवाला ने किया। सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार शरद जोशी की एक चर्चित रचना ‘मैं, आबिद और ब्लैक आउट’ का पाठ उनकी सुपुत्री एवं सुपरिचित अभिनेत्री नेहा शरद ने स्वर्गीय शरद जोशी के अंदाज़ मे प्रस्तुत किया। संचालक देवमणि पांडेय ने निदा फाजली की एक शेर के हवाले से आबिद जी का परिचय दिया- हर आदमी मे होते हैं दस बीस आदमी / जिसको भी देखना हो कई बार देखना।

समाज सेवी संस्था ‘योगदान’ की त्रैमासिक पत्रिका शब्दयोग के इस विषेशांक का परिचय कराते हुए इस अंक के संयोजक प्रतिष्ठित कथाकार आर. के. पालीवाल ने कहा कि आबिद सुरती एक ऐसे विरल कथाकार एवम् कलाकार हैं जिन्होनें अपनी क़लम से हिन्दी और गुजराती साहित्य को पिछले पांच दशकों से निरन्तर समृद्ध किया है। लेकिन दुर्भाग्य एवम् दुर्भावनावश इन दोनों भाषाओं मे उन्हें वैसी चर्चा नहीं मिली जिसके वे हक़दार हैं। इसके मूल में यह कारण भी हो सकता है कि आबिद सुरती बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। कथाकार और व्यंग्यकार होने के साथ ही उन्होंने कार्टून विधा में महारत हासिल की है, पेंटिंग मे नाम कमाया है, फिल्म लेखन किया है और ग़ज़ल विधा में भी हाथ आजमाये हैं। ‘धर्मयुग’ जैसी कालजयी पत्रिका में 30 साल तक लगातार ‘कार्टून कोना ढब्बूजी’पेश करके रिकार्ड बनाया है। इसीलिये इस अंक का संयोजन करने में भी काफी मशक्कत करनी पड़ी है क्योंकि आबिद सुरती को समग्रता मे प्रस्तुत करने के लिये उनके सभी पक्षों का समायोजन करना ज़रूरी था।

हिंदी साहित्यकार श्रीमती सुधा अरोड़ा ने आबिद सुरती से जुडे कुछ रोचक संस्मरण सुनाये। उन्होंने हंस मे छपी आबिद जी की चर्चित एवम विवादास्पद कहानी ‘कोरा कैनवास’ की आलोचना करते हुए कहा कि आबिद जैसी नेक शख़्सियत से ऐसी घटिया कहानी की उम्मीद नही थी। उर्दू साहित्यकार साजिद रशीद और मराठी साहित्यकार श्रीमती प्रतिमा जोशी ने भी आबिद जी की शख़्सियत पर प्रकाश डाला। वरिष्ठ गुजराती साहित्यकार दिनकर जोशी ने आबिद सुरती के साथ बिताये लम्बे साहित्य सहवास को याद करते हुए कहा कि आबिद पिछले कई सालों से अपने निराले अंदाज में लेखन मे सक्रिय हैं। यही उनके स्वास्थ्य एवम बच्चों जैसी चंचलता और सक्रियता का भी राज है।

श्रोताओं के प्रश्नों का उत्तर देते हुए आबिद सुरती ने कहा कि मेरे सामने हमेशा एक सवाल रहता है कि मुझे पढ़ने के बाद पाठक क्या हासिल करेंगे। इसलिए मैं संदेश और उपदेश नहीं देता। आजकल मैं केवल प्रकाशक के लिए किताब नहीं लिखता और महज बेचने के लिए चित्र नहीं बनाता। मेरी पेंटिंग और मेरा लेखन मेरे आत्मसंतोष के लिए है। भविष्य में जो लिखूंगा अपनी प्रतिबद्धता (कमिटमेंट) के साथ लिखूंगा।

इस आयोजन में आबिद सुरती के बहुत से पाठकों एवम प्रशंसकों के साथ मुंबई के साहित्य जगत से कथाकार ऊषा भटनागर, कथाकार कमलेश बख्शी, कथाकार सूरज प्रकाश , कवि ह्रदयेश मयंक, कवि रमेश यादव, कवि बसंत आर्य, हिंदी सेवी जितेंद्र जैन (जर्मनी), डॉ.रत्ना झा, ए. एम. अत्तार और चित्रकार जैन कमल मौजूद थे। प्रदीप पंडित (संपादक, शुक्रवार), डॉ. सुशील गुप्ता (संपादक:हिंदुस्तानी ज़बान), मनहर चौहान (संपादक, दमख़म), डॉ. राजम नटराजन पिल्लै (संपादक, क़ुतुबनुमा), दिव्या जैन (संपादक, अंतरंग संगिनी), मीनू जैन (सह संपादक, डिग्निटी डार्इजेस्ट) ने भी अपनी उपस्थिति से कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई ।