Tuesday, November 22, 2011

देवनागरी लिपि और सूचना प्रौद्योगिकी विषयक विचारगोष्‍ठी

विश्‍व नागरी विज्ञान संस्‍थान के तत्‍वावधान में 28 अप्रैल, 2011 को देवनागरी लिपि और सूचना प्रौद्योगिकी विषयक विचारगोष्‍ठी का आयोजन के.आई.आई.टी. कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, गुड़गाँव के परिसर में सुविख्‍यात साहित्‍यकार तथा भाषाविद् प्रो. गंगा प्रसाद विमल की अध्‍यक्षता में हुआ। नागरी विज्ञान संस्‍थान के अध्‍यक्ष श्री बलदेव राज कामराह ने विचारगोष्‍ठी का उद्घाटन करते हुए कहा कि आज देवनागरी लिपि की महत्ता बढ़ गई है और इसलिए इसके विकास में प्रौद्योगिकी कारगर भूमिका निभा सकती है। संस्‍थान के उपाध्‍यक्ष तथा वैज्ञानिक डॉ. श्‍याम सुंदर अग्रवाल ने स्‍वागत करते हुए बताया कि नागरी लिपि के वैज्ञानिक स्‍वरूप को देखते हुए यह आवश्‍यक हो गया है कि इसमें सूचना प्रौद्योगिकी का सहयोग प्राप्‍त किया जाए ताकि इसके मानकीकरण और विकास में अधिकाधिक सहायता मिल सके।
विचारगोष्‍ठी के संयोजक संस्‍थान के महासचिव और निदेशक तथा सुप्रसिद्ध भाषावैज्ञानिक प्रो. कृष्‍ण कुमार गोस्‍वामी संस्‍थान और विचार गोष्‍ठी का परिचय देते हुए बताया कि देवनागरी लिपि ब्राह्मी लिपि से उद्भूत भारत की प्राचीनतम लिपि है। इस समय इसका प्रयोग संविधान में उल्लिखित बाईस भाषाओं में से दस मुख्‍य भाषाओं में हो रहा है। यह लिपि अन्‍य सभी लिपियों से अधिक वैज्ञानिक है और इसीलिए इसके मानकीकरण, विकास और संवर्धन में सूचना प्रौद्योगिकी विशिष्‍ट भूमिका निभा सकती है और यह विश्‍व लिपि के रूप में स्‍थापित हो सकती है।

विचारगोष्‍ठी के प्रथम सत्र की मुख्‍य वक्‍ता सूचना और प्रौद्योगिकी विभाग, संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय,भारत सरकार की निदेशक और वैज्ञानिक डॉ. (श्रीमती) स्‍वर्णलता ने ‘लिपि व्‍याकरण’ के बारे में बताते हुए कहा कि लिपि व्‍याकरण किसी भाषा की लेखन पद्धति की व्‍यवहारपरक पैटर्न निर्देशित करता है। इसमें संसक्‍त पैटर्न का इस्‍तेमाल होता है जो किसी भाषा के भाषापरक व्‍याकरण के समान होता है। भारतीय भाषाओं के संदर्भ में लिपि व्‍याकरण की आवश्‍यकता पर चर्चा करते हुए डॉ. स्‍वर्णलता ने कहा कि इसमें फोंट का डिजाइन बनाते समय यह देखा जाता है कि यह विशेष लिपि के मानकों के अनुरूप हो और साथ ही कुंजी पटल तथा इनपुट कार्यप्रणाली का डिजाइन बनाते हुए यह भी अपेक्षा रहती है कि वह विशिष्‍ट भाषाभाषी समुदाय की आवश्‍यकताओं को पूरा करे। विशेष लिपि के वर्ण समूह को यूनीकोड के साथ भी संयोजित किया जा सके। इसी संदर्भ में देवनागरी लिपि के लिपि व्‍याकरण का निर्माण करने के प्रयास किए जा रहे है। देवनागरी लिपि के स्‍वर, व्‍यंजन, मात्रा आदि के साथ संयुक्‍ताक्षरों की विविधता पर भी ध्‍यान दिया जा रहा है ताकि इसका विकास यूनीकोड के अनुरूप हो। डॉ. स्‍वर्णलता के प्रपत्र के बाद केन्‍द्रीय हिन्‍दी संस्‍थान के पूर्व प्रोफेसर डॉ. मोहन लाल सर ने देवनागरी लिपि पर सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा किए गए कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि इस विषय पर और अधिक कार्य करने की आवश्‍यकता है। नागरी लिपि परिषद् के महासचिव डॉ. परमानंद पाँचाल ने इस बात पर बल दिया कि देवनागरी लिपि के विकास में सूचना प्रौद्योगिकी वैज्ञानिकों की अत्‍यंत आवश्‍यकता है। अंत में प्रो. विमल ने अपने अध्‍यक्षीय भाषण में सूचना प्रौद्योगिकी के सहयोग से देवनागरी के अधिक प्रयोग की संभावनाओं की ओर संकेत किया।
दूसरे सत्र में डॉ. परमानंद पाँचाल की अध्‍यक्षता में मुख्‍य वक्‍ता सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के वरिष्‍ठ निदेशक, वैज्ञानिक और संस्‍थान के उपाध्‍यक्ष डॉ. ओम विकास ने ‘सूचना प्रौद्योगिकी में नागरी लिपि के फिसलते कदम’ विषय पर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि देवनागरी लिपि का वैज्ञानिक आधार होने के कारण पाणिनि ने ध्‍वनियों के उच्‍चारण और उच्‍चारण विधि की लिपि संरचना सारणी का निर्माण किया, जिसे ‘लिपि व्‍याकरण’ कहा जाता है। आगे बोलते हुए डॉ. ओम विकास ने कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी का विकास सैद्धांतिक रूप से लिपि या भाषापरक नहीं है क्‍योंकि रोमन लिपि में अंग्रेजी में जो संभव है, वह नागरी लिपि में भी संभव है। लेकिन प्रौद्योगिकी का प्रयोग व्‍यापक रूप से नहीं हो रहा है। इसीलिए सकल भारती फोंट का प्रयोग किया जाए तो इससे न तो केवल हिन्‍दी को लाभ होगा, वरन् सभी भारतीय भाषाओं को भी लाभ होगा। इस समय यूनीकोड का प्रचार-प्रसार तो बढ़ा है, लेकिन फोनीकोड के निर्माण से और अधिक सुविधा होगी। इस संदर्भ में डॉ. ओम विकास ने यह खेद प्रकट किया कि विभिन्‍न कार्यक्षेत्रों में देवनागरी का प्रयोग नहीं हो रहा, जबकि सूचना प्रौद्योगिकी इसमें काफी योगदान कर सकती है। इसके बाद प्रगत संगणन विकास केंद्र (सी-डैक) नोएडा के निदेशक श्री वी.एन.शुक्‍ल ने डॉ. ओम विकास की वेदना को समझते हुए कहा कि देवनागरी लिपि की स्थिति इतनी शोचनीय नहीं कि हम दु:खी हो। इसका प्रयोग तो अधिकाधिक हो रहा है। केन्‍द्रीय हिन्‍दी संस्‍थान के भाषा प्रौद्योगिकी विभाग के पूर्व अध्‍यक्ष प्रो. ठाकुरदास ने कुछ कार्यक्षेत्रों में देवनागरी लिपि का प्रयोग न होने पर अपनी वेदना प्रकट की और बताया कि सरकारी स्‍तर पर उतना कार्य नहीं हो रहा है जितना गैर-सरकारी स्‍तर पर हो रहा है। इस संबंध में हमें गंभीरता से विचार करना होगा। अंत में डॉ. पाँचाल ने अपने अध्‍यक्षीय भाषण में कहा कि देवनागरी का प्रचार-प्रसार तभी व्‍यापक हो सकता है, यदि हम सब इसमें पूरी तरह से संलिप्‍त हो जाएँ।

इस विचारगोष्‍ठी के समापन पर श्री बलदेवराज कामराह ने आशा प्रकट की कि भविष्‍य में इस विषय पर शोधकार्य होंगे और इंजीनियरिंग तथा सूचना प्रौद्योगिकी के छात्रों से इस विषय पर कार्य कराया जाएगा। के.आई.आई.टी. कॉलेज ऑफ एजुकेशन के प्राचार्य प्रो. मनजीत सेनगुप्‍ता ने सभी विद्वानों, प्रतिभागियों और छात्रों का धन्‍यवाद ज्ञापन भावभीनी शव्‍दावली में किया। इस विचारगोष्‍ठी का संचालन प्रो. कृष्‍ण कुमार गोस्‍वामी और के.आई.आई.टी. कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग की प्राध्‍यापक सुश्री अनीता शर्मा ने किया।

इस विचारगोष्‍ठी में डॉ. एन.के. अग्रवाल, श्री विक्रम सिहँ, डॉ. नीरज भारद्वाज, श्रीमती मंगल मेहता, श्रीमती कनिका कौर, डॉ. सोमनाथ चंद्रा, प्रो.वी.के.स्‍याल, प्रो.आर.के.जैन, प्रो.डी.वी.कालरा, डॉ. हर्षवर्धन, आदि विद्वानों ने सक्रिय भाग लिया।
---

`पुष्पक,' 'नन्हें फ़रिश्ते' का विमोचन और दीपावली स्नेह मिलन संपन्न


कादम्बिनी क्लब, हैदराबाद के तत्वावधान में वशीरबाग स्थित प्रेस क्लब में ६ नवम्बर २०११ शायं ६ बजे `पुष्पक'-१८,`नन्हें फ़रिश्ते 'व दीपावली स्नेह मिलन समारोह आयोजित किया गया।
इस समारोह में प्रो.ऋषभ देव (अध्यक्ष ) स्वतंत्र वार्ता के संपादक डा. राधेश्याम शुक्ल (लोकार्पण कर्ता ) बी.एस. वर्मा (मुख्य अतिथि ) रावुल्पाटी सीताराम राव (गौरवनीय अतिथि ) एवं प्रभु (सम्माननीय अतिथि ) एवं डा. अहिल्या मिश्र (क्लब की संयोजिका ) मंचासीन हुए | अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन व शुभ्रा महंतो की सरस्वती वन्दना के साथ कार्यक्रम का आरंभ हुआ |
डा. अहिल्या मिश्र ने क्लब का परिचय देते हुए कहा कि विगत १७ वर्षो से क्लब अपनी निरंतरता के लिए जाना जाता रहा है |तत्पश्चात अतिथियों का स्वागत क्लब के सदस्यों द्वारा किया गया | क्लब का परिचय मीना मुथा ने `पुष्पक'-१८ का परिचय डा. जी. नीरजा ने जी. परमेश्वर की अनुवादित कृति `नन्हें फ़रिश्ते' कहानी संग्रह का परिचय लक्ष्मी नारायण अग्रवाल ने दिया | डा. रमा द्विवेदी ने `पुष्पक' प्रकाशन की समस्याओं पर प्रकाश डाला | तत्पश्चात डा. शुक्ल व मंचासीन अतिथियों द्वारा `पुष्पक'-१८ व `नन्हें फ़रिश्ते ' का लोकार्पण किया गया| डा. शुक्ल ने अपने उदबोधन में कहा कि यह सुखद संयोग है कि इन पुस्तकों का लोकार्पण दीपावली पर्व पर हो रहा है | क्लब इसी प्रकार सजगता से आगे बढ़ता रहे | जी.परमेश्वर ने कहा कि अनुवाद दो भाषाओं के बीच पुल का कार्य करता है | अन्य अतिथियों ने भी अपने विचार व्यक्त किए |
प्रो. ऋशभ देव शर्मा ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा -दो पुस्तकें अपने आपमें दो दीपावलियाँ हैं | पुष्पक हर अंक में प्रौढ़ता प्राप्त कर रहा है | नन्हें फ़रिश्ते की अधिकाँश कहानियां दिल को छूती हैं | अनुवाद का कार्य तलवार की धार पर चलने के समान है | जी. परमेश्वर सफल अनुवादक हैं तथा बधाई के पात्र हैं | डा. मदन देवी पोकरना और भगवानदास

जोपट ने दीप पर्व की शुभकामनाएं प्रेषित कीं | ज्योतिनारायण ने धन्यवाद ज्ञापित किया | सरिता सुराना ने का संचालन किया |
इसा अवसर पर प्रो. टी .मोहन सिंह, प्रो. सत्यनारायण, तेजराज जैन ,विनीता शर्मा , भंवर लाल उपाध्याय ,दयानाथ झा,पवित्रा अग्रवाल ,शान्ति अग्रवाल ,उमा सोनी ,डा. देवेन्द्र शर्मा ,सुरेश गुगलिया ,वीर प्रकाश लाहोटी ,गौतम दीवाना,सावारीकर,सत्यनारायण काकडा ,दुर्गादत्त पांडे ,वी. वनजा ,वी. कृष्णा राव , गुरुदयाल अग्रवाल ,डा. एम्.रंगैया,कुञ्ज बिहारी गुप्ता एवं जी.जगदीश्वर आदि उपस्थित थे |
प्रस्तुति - डा. रमा द्विवेदी

महिला लेखन हेतु पंचम साहित्य गरिमा पुरस्कार के लिए प्रविष्ठियां आमंत्रित

'साहित्य गरिमा पुरस्कार' दक्षिण प्रान्तों के महिला लेखन को प्रोत्साहित एवं प्रतिष्ठित करने का एक व्यापक चिंतन है। इस पुरस्कार का शुभारंभ y2k में हुआ| साहित्य की विधाओं पर महिला लेखन को यह पुरस्कार देने का निर्णय लिया गया। इस पुरस्कार के लिए ग्यारह हजार रूपए की धनराशि, प्रशस्ति पत्र एवं स्मृति चिह्न दिया जाता है।
प्रथम साहित्य पुरस्कार-2000, वरिष्ठ कथाकार श्रीमती पवित्र अग्रवाल को उनके कहानी संग्रह `पहला कदम' पर दिया गया। द्वितीय साहित्य गरिमा पुरस्कार- 2003 , हैदराबाद की सशक्त हस्ताक्षर स्व.डा. प्रतिभा गर्ग को उनके काव्य संग्रह `सुधा कृति' पर प्रदान किया गया। तृतीय साहित्य गरिमा पुरस्कार-2007, वरिष्ठ लेखिका डा. गुणमाला सोमाणी को उनके ललित निबंध की पुस्तक `ललित निबंध माला' पर प्रदान किया गया। चतुर्थ साहित्य गरिमा पुरस्कार-2009 , वरिष्ठ कवयित्री डा. रमा द्विवेदी को उनके काव्य संग्रह `दे दो आकाश' पर प्रदान किया गया। पंचम साहित्य गरिमा पुरस्कार- 2010, दक्षिण प्रांतो की (आन्ध्र प्रदेश), कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडू एवम केरल) की लेखिकाओ द्वारा रचित कहानी/लघु कथा विधा पर दिया जाएगा। वर्ष 2006 से 2010 के बीच प्रकाशित कहानी संग्रह /लघु कथा संग्रह पर दिया जाएगा। आमंत्रित विधा की पुस्तक की चार प्रतियाँ, जीवन वृत्त, एवं नवीनतम चार छायाचित्र भेजना अनिवार्य होगा। प्रविष्ठियाँ भेजने की अंतिम तिथि 31 दिसम्बर 2011 होगी।
अतिरिक्त जानकारी हेतु संस्था की संस्थापक एवम अध्यक्ष डा. अहिल्या मिश्र एवम संस्था की महासचिव डा. रमा द्विवेदी से संपर्क कर सकते हैँ ।

सम्पर्क सूत्र :
93 /सी ,राज सदन, वेंगलराव नगर, हैदराबद-500038 (आ. प्र.)
दूरभाष : 040-23703708 .फैक्स : 040- 23713249
डा. अहिल्या मिश्र : मो. 09849742803
डा. रमा द्विवेदी : मो. 09849021742

प्रस्तुति : डा. रमा द्विवेदी

Friday, November 18, 2011

हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित प्रदेशस्तरीय युवा कहानी प्रतियोगिता में भाग लें

पूरा विज्ञापन देखने के लिए नीचे के चित्र पर क्लिक करें-



प्रवेश-पत्र यहाँ से डाउनलोड करें।

डाउनलोड करने का तरीकाः
डाउनलोड लिंक पर right click करके Save Target As/Save Link As/ Copy Link As का विकल्प चुनें और अपने कंप्यूटर पर प्रवेश पत्र को सुरक्षित कर लें।

Saturday, September 24, 2011

'युवा रचनाधर्मिता - हिंदी कहानी' पर एक विचारोत्तेजक सभा का आमंत्रण


निमंत्रण 
'अंजना - एक विचार मंच'
द्वारा
'युवा रचनाधर्मिता - हिंदी कहानी'पर एक विचारोत्तेजक सभा
(आज के युवा कथाकार की हिंदी कहानी पर एक महत्वपूर्ण चर्चा )
मुख्य अतिथि - मैत्रेयी पुष्पा,
विशिष्ट अतिथि - कमल कुमार, 
प्रेम भारद्वाज, मनीषा कुलश्रेष्ठ, अनुज व दिनेश कुमार विशिष्ट वक्ता होंगे.


इस सभा में कुछ युवा साहित्यकारों को 'डॉ अंजना सहजवाला साहित्य सम्मान' भी दिया जाएगा. 


सभा के अंत में उपस्थित श्रोता विषय से जुड़ा कोई महत्वपूर्ण मुद्दा उठा सकेंगे.
कार्यक्रम दि. 24 सितम्बर 2011, समय - सायं 5 बजे से
स्थान - हिंदी भवन, विष्णु दिगंबर मार्ग, दिल्ली (निकट तिलक ब्रिज)


इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में आप अवश्य उपस्थित हों.

Monday, September 5, 2011

कवि उद्भ्रांत को भवानी प्रसाद मिश्र पुरस्कार

भोपाल: विगत 25 अगस्त, 2011 को भारत भवन सभागार में मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद की साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित
एक भव्य समारोह में वरिष्ठ हिंदी कवि श्री उद्भ्रांत को उनकी लम्बी कविता ‘अनाद्यसूक्त’ के लिए अकादमी का वर्ष 2008 का अखिल भारतीय भवानी प्रसाद मिश्र पुरस्कार प्रदान किया गया। ‘पूर्वग्रह’ के 123वें अंक में संपूर्ण प्रकाशित होकर पहले ही चर्चा में आई इस लम्बी कविता को कवि ने नौ स्पंदों में विभक्त किया है। अकादमी द्वारा प्रकाशित अलंकरण समारोह की पुस्तिका में कहा गया है कि कवि ने ‘‘नासदीय सूक्त की परंपरा में नए प्रयोग कर सृष्टि के उन्मेष और रहस्य को जानने के लिए वैदिक और तांत्रिक जानकारी का उपयोग किया है। ऐसी भावभूमि वैदिक और औपनिषद् काव्य के बाद कुछ निर्गुणीय कवियों में ही दिखाई देती है। अनाद्यसूक्त में एक शब्दीय पंक्ति का उपयोग कर उसके भीतर समाहित दार्शनिक अर्थों का संप्रेषण, कवि के सोच को अर्थवान बनाता है।’’

इसके अतिरिक्त निबंध संग्रह ‘विवेचना के सुर’ के लिए प्रो. शरद नारायण खरे (मंडला) को माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार, ‘एक अचानक शाम’ पर कहानी के लिए मनमोहन सरल (मुम्बई) को मुक्तिबोध पुरस्कार, उपन्यास ‘काहे री नलिनी’ के लिए उषा यादव (आगरा) को वीरसिंह देव पुरस्कार और आलोचना पुस्तक ‘गांधी: पत्रकारिता के प्रतिमान’ के लिए डॉ. कमलकिशोर गोयनका (दिल्ली) को आचार्य रामचंद्र शुक्ल पुरस्कार से भी अलंकृत किया गया।

सभी पुरस्कृत रचनाकारों को नारियल, शॉल, सम्मान-पत्र के साथ इक्यावन हज़ार रुपये की धनराशि उत्तर प्रदेश की संस्कृति मंत्री माननीय श्री लक्ष्मीकांत शर्मा द्वारा प्रदान की गयी।

Saturday, September 3, 2011

डॉ. श्याम सखा 'श्याम' बने हरियाणा साहित्य अकादमी के नये निदेशक



प्रख्यात साहित्यकार डॉ. श्याम सखा 'श्याम' को हरियाणा साहित्य अकादमी की कमान सौंपी गई है। डॉ. श्याम ने बृहस्पतिवार, 1 सितम्बर 2011 को अकादमी के निदेशक के रूप में अपना कार्यभार संभाल लिया है। अकादमी के पंडित लख्मीचंद सम्मान से सम्मानित डॉ. श्याम सखा 'श्याम' अब तक विभिन्न भाषाओं में 18 पुस्तकों की रचना कर चुके हैं।

डॉ. श्याम को हिंदी एवं हरियाणवी की तीन पुस्तकों पर अकादमी पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। हिंदी कहानी प्रतियोगिता के अंतर्गत अकादमी द्वारा उनकी चार कहानियां पुरस्कृत हो चुकी है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. 'श्याम' जाने-माने चिकित्सक भी हैं। ऑल इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की हरियाणा इकाई के दो वर्ष तक प्रधान रह चुके हैं और एसोसिएशन के आजीवन मानद संरक्षक भी हैं। चार भाषाओं में सृजनरत डॉ. श्याम सखा 'श्याम' ने साहित्यक पत्रिका 'मसिकागद' का 11 वर्ष तक संपादन किया है। डॉ श्याम की चर्चित कृतियों में अकथ, समझणिये की मर तथा कोई फायदा नहीं, महात्मा, एक टुकड़ा, दर्द, घनी गई थोड़ी रही, नाविक के तीर सम्मिलित हैं। पंजाबी भाषा में भी डॉ. श्याम की 'अश्लील' व 'अखीरला बयान' रचनाएं चर्चित रही है। हाल ही में श्याम ने एक अंग्रेजी उपन्यास को पूरा किया है जो प्रकाशाधीन है।

साहित्य तथा चिकित्सा दोनों क्षेत्रों में डॉ. श्याम सखा 'श्याम' अनेक ख्याति प्राप्त संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं। हरियाणवी भाषा की उनकी रचनाएं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में सम्मिलित हैं। इनकी अनेक कहानियों का तमिल, तेलगू, बंगला व उड़िया में अनुवाद हो चुका है। उन्हें हिंदी विद्या रत्न भारती सम्मान आइएमए हरियाणा का स्टेट एक्सीलेंस अवार्ड 2008, हिंदी विद्यारत्न भारती सम्मान (छत्तीसगढ़) 2003, हिंदी रत्न सम्मान (मानव भारती शिक्षा समिति सांपला) 2002, साहित्य सेवी सम्मान (अ.भा. साहित्य सम्मेलन गाजियाबाद) 2003 से सम्मान मिल चुका है।

डॉ. श्याम सखा विगत 3 वर्षों से इंटरनेट पर भी साहित्य-सेवा कर रहे हैं और अपने निजी ब्लॉगों के अतिरिक्त तमाम साहित्यिक ई-पत्रिकाओं को अपना सृजनात्मक सहयोग दे रहे हैं। हिन्द-युग्म पर लम्बे समय से सक्रिय हैं और इसे हर प्रकार से मदद करते रहे हैं।

Tuesday, August 9, 2011

दो वरिष्ठ कवियों तथा पाँच युवा कवियों को पहला कविताकोश सम्मान



प्रथम कविता कोश सम्मान समारोह 07 अगस्त 2011 को जयपुर में जवाहर कला केंद्र के कृष्णायन सभागार में संपन्न हुआ। इसमें दो वरिष्ठ कवियों (बल्ली सिंह चीमा और नरेश सक्सेना) एवं पाँच युवा कवियों (दुष्यन्त, अवनीश सिंह चौहान, श्रद्धा जैन, पूनम तुषामड़ और सिराज फ़ैसल ख़ान) को सम्मानित किया गया। इस आयोजन में वरिष्ठ कवि श्री विजेन्द्र, श्री ऋतुराज, श्री नंद भारद्वाज एवं वरिष्ठ आलोचक प्रो. मोहन श्रोत्रिय भी उपस्थित थे। समारोह में बल्ली सिंह चीमा एवं नरेश सक्सेना का कविता पाठ मुख्य आकर्षण रहे। कविता कोश के प्रमुख योगदानकर्ताओं को भी कविता कोश पदक एवं सम्मानपत्र देकर सम्मानित किया गया।

समारोह में कविता कोश की तरफ से कविता कोश के संस्थापक और प्रशासक ललित कुमार, कविता कोश की प्रशासक प्रतिष्ठा शर्मा, कविता कोश के संपादक अनिल जनविजय कविता कोश की कार्यकारिणी के सदस्य प्रेमचन्द गांधी, धर्मेन्द्र कुमार सिंह, कविता कोश टीम के भूतपूर्व सदस्य कुमार मुकुल एवं कविता कोश में शामिल कवियों में से आदिल रशीद, संकल्प शर्मा, रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु', माया मृग, मीठेश निर्मोही, राघवेन्द्र, हरिराम मीणा, बनज कुमार ‘बनज’ आदि उपस्थित थे। समारोह में यह घोषणा की गई कि 07 अगस्त 2011 से कविता कोश के संपादक एक वर्ष के लिए कवि प्रेमचन्द गांधी होंगे। भूतपूर्व सम्पादक अनिल जनविजय कविता कोश टीम के सक्रिय सदस्य के रूप में संपादकीय संयोजन का काम देखेंगे।

कविता कोश टीम ने कविता कोश के पाँचवे जन्मदिवस के अवसर पर कविता कोश जयंती समारोह का आयोजन किया। विगत 07 अगस्त 2011 को जयपुर के प्रसिद्ध जवाहर कला केंद्र के कृष्णायन सभागार में यह भव्य समारोह संपन्न हुआ। समारोह के संयोजक और कविता कोश के संपादक श्री प्रेमचंद गाँधी ने उपस्थित कवियों, श्रोताओं और समारोह के सहभागियों का स्वागत करते हुए कहा यह दिन हिंदी कविता के इतिहास की एक बड़ी परिघटना है। पहली बार कविता कोश को इंटरनेट की दुनिया से निकाल कर सार्वजनिक मंच पर प्रस्तुत किया जा रहा है और हमारे इस समारोह में उपस्थित दो-ढाई सौ लोगों में मात्र वे कवि ही उपस्थित नहीं है जो कविता कोश में शामिल हैं बल्कि बहुत से पत्रकार, हिंदी प्रेमी, छात्र, साहित्यकार एवं जनता के अन्य वर्गों के लोग भी उपस्थित हैं।

इसके बाद कविता कोश के संस्थापक और प्रशासक श्री ललित कुमार ने उपस्थित जन समुदाय को कविता कोश के इतिहास और कविता कोश वेबसाइट के उद्देश्यों से परिचित कराया। अपने वक्तव्य में ललित जी ने कविता कोश के विकास में सामुदायिक भावना के महत्व पर बल दिया और बताया कि इस तरह की वेबसाइट का अस्तित्व सिर्फ सामुदायिक प्रयासों से ही संभव है। एक अकेला व्यक्ति इस तरह की वेबसाइट नहीं चला सकता। इसीलिए शुरू में उन्होंने अकेले इस परियोजना को शुरू करने के बावजूद धीरे धीरे अन्य लोगों को कविता कोश से जोड़ा और कविता कोश टीम की स्थापना की। अब यह टीम ही कविता कोश का संचालन करती है।

कविता कोश ने अपनी इस पंच वर्षीय जयंती के अवसर पर दो वरिष्ठ कवियों और पाँच एकदम नए युवा कवियों को सम्मानित करने का निर्णय लिया था। इसलिए ललित जी के वक्तव्य के बाद इन सातों कवियों को सम्मानित किया गया। सम्मानित कवियों की सूची इस प्रकार है।

कविता कोश सम्मान 2011: सम्मानित रचनाकार

नरेश सक्सेना, लखनऊ (कवि)
बल्ली सिंह चीमा, ऊधमसिंह नगर (कवि)
दुष्यन्त, राजस्थान (कवि)
श्रद्धा जैन, सिंगापुर (शायर)
अवनीश सिंह चौहान, इटावा (नवगीतकार)
सिराज फ़ैसल ख़ान, शाहजहांपुर (शायर)
पूनम तुषामड़, नई दिल्ली (कवि)
कविता कोश सम्मान के अंतर्गत दोनों वरिष्ठ कवियों नरेश सक्सेना एवं बल्ली सिंह चीमा को 11000 रू. नकद, कविता कोश सम्मान पत्र और कविता कोश ट्रॉफ़ी प्रदान की गई। पाँचों युवा कवियों को पाँच हजार रु. नकद, सम्मान पत्र और कविता कोश ट्रॉफ़ी दी गई। शाल ओढ़ाकर इन कवियों का सम्मान करने के लिए मंच पर ये कवि उपस्थित थे।

कवि विजेन्द्र
कवि ऋतुराज
कवि नंद भारद्वाज
आलोचक मोहन श्रोत्रिय
सम्मान के बाद सभी सम्मानित कवियों ने अपनी कविता का पाठ किया और समारोह में उपस्थित लोगों को कविता कोश के विषय में अपनी भावना से अवगत कराया और यह सुझाव दिए कि कविता कोश का आगे विकास करने के लिए क्या क्या कदम उठाए जाने चाहिए। कवियों का यह सम्बोधन एक विचार गोष्ठी में बदल गया था। कवियों ने चिंता व्यक्त की कि हिंदी भाषा और हिंदी कविता के लिए एक बड़ा खतरा पैदा हो रहा है। अंग्रेजी के बढ़ते प्रभाव के कारण और भारत के हिंदी भाषी क्षेत्र के निवासियों द्वारा हिंदी पर अंग्रेजी को प्रमुखता देने के कारण हिंदी संस्कृति और साहित्य का ह्रास हो रहा है। हिंदी को बाजार की भाषा बना दिया गया है लेकिन उसे ज्ञान और विज्ञान की भाषा के रूप में विकसित करने की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। हिंदी कविता के नाम पर बेहूदा और मजाकिया कविताएँ लिखी, छपवाई और सुनाई जा रही हैं। हिंदी कविता के मंच पर तथाकथित हास्य कवियों का अधिकार हो गया है। कवि नरेश सक्सेना ने कहा कि स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय तक की संपूर्ण शिक्षा का माध्यम हिंदी को बनाया जाना चाहिए और सभी तरह के विज्ञान और प्रौद्योगिकी को भी हिंदी में ही पढ़ाया जाना चाहिए अन्यथा आने वाले दस बीस सालों में हिंदी का अस्तित्व खत्म हो सकता है। नरेश सक्सेना जी के अनुसार आज हिंदी की हैसियत घट गई है इसको अब वापस पाना होगा। सिर्फ आग लिख देने से कागज जलते नहीं बल्कि उन्हें जलाना पड़ता है। उन्होंने अपनी कविताओं से भी माहौल को जीवंत बनाया। उन्होंने मुक्त छंद में अपनी कविता पढ़ी।

(१)
जिसके पास चली गई मेरी जमीन
उसके पास मेरी बारिश भी चली गई
(२)
शिशु लोरी के शब्द नहीं
संगीत समझता है
बाद में सीखेगा भाषा
अभी वह अर्थ समझता है

कवि बल्ली सिंह चीमा ने अपने वक्तव्य में कविता कोश के प्रति आभार प्रकट किया कि उन्हें जयपुर आने और नए श्रोताओं से रूबरू होने का अवसर प्रदान किया है। यह सम्मान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सम्मान किसी सरकारी संस्था या किसी राजनीतिक संगठन द्वारा नहीं दिया जा रहा है बल्कि कविता के प्रेमियों द्वारा कवियों को सम्मानित किया जा रहा है और यह बड़ी बात है। उन्होंने कामना की कि कविता कोश वेबसाइट पर अधिक से अधिक कवियों की ज्यादा से ज्यादा कविताएँ जुड़ें और यह हिंदी की सबसे बड़ी वेबसाइट बन जाए। चीमा जी ने अपनी जो कविता पढ़ी वह इस प्रकार है।

(१)
कुछ लोगों से आँख मिलाकर पछताती है नींद
खौफ़ज़दा सपनों से अक्सर डर जाती है नींद
हमने अच्छे कर्म किए थे शायद इसीलिए
बिन नींद की गोली खाए आ जाती है नींद
(२)
मैं किसान हूँ मेरा हाल क्या मैं तो आसमाँ की दया पे हूँ
कभी मौसमों ने हँसा दिया कभी मौसमों ने रुला दिया
(३)
वो ब्रश नहीं करते
मगर उनके दाँतो पर निर्दोषों का खून नहीं चमकता
वो नाखून नहीं काटते
लेकिन उनके नाखून नहीं नोचते दूसरों का माँस

कवि विजेन्द्र ने इस अवसर पर बोलते हुए कहा कि कविताएँ दॄष्टिहीन (visionless) नहीं होनी चाहिए| देश को सही विकल्प की और बढ़ाने वाली कविता ही सर्वश्रेष्ठ हो सकती है। कविता कोश इस दिशा में महत्वपूर्ण काम कर रहा है। कविता कोश में रचनाओं का चयन बहुत अच्छा है और इसके लिए कविता कोश के संपादक अनिल जनविजय बधाई के पात्र हैं। इसके तुरंत बाद बोलते हुए अनिल जनविजय ने बताया कि अब से कविता कोश के संपादक कवि प्रेमचंद गाँधी होंगे। मैं अपना कार्यभार उन्हें सौंपता हूँ। अनिल जनविजय ने कविता कोश की पूरी टीम के योगदान को सराहा और टीम सदस्य प्रतिष्ठा शर्मा एवं ललित कुमार के समर्पण की प्रशंसा की। इस अवसर पर वरिष्ठ कवि ऋतुराज, नंद भारद्वाज और मोहन श्रोत्रिय ने भी अपने अपने विचार प्रस्तुत किए।

Thursday, July 28, 2011

डायलॉग गोष्ठी का आमंत्रण


निमंत्रण पत्र को बड़ा करके देखने के लिए फोटो पर चटका लगाएं

Tuesday, July 12, 2011

सूरीनाम साहित्य मित्र संस्था के कवि श्री देवानंद शिवराज के संग्रह अभिलाषा का लोकार्पण


बाएँ से दाएँ – भावना सक्सेना, डॉ॰विमलेश कांति वर्मा, पं॰हरिदेव सहतू, श्रीमति सहतू, श्री अरुण कुमार शर्मा, कवि श्री देवानन्द शिवराज, श्री मोती मारहे।

जीवन के अनुभव कब कविता बन जाते हैं इसका सटीक निर्धारण कठिन है। जरई रोपने की कड़ी धूप सहने के बाद जब धान फलती है तो किसान को कितना सुख देती है उसी का विवरण कविता बन जाता है। ऐसी ही कविताओं के एक संकलन "अभिलाषा" का लोकार्पण 29 जून 2011 को पारामारिबो की सांस्कृतिक संस्था माता गौरी के सभागार में प्रकाशन संस्था सूरीनाम साहित्य मित्र संस्था द्वारा किया गया। बहुमुखी प्रतिभा वाले कवि, भजनिक, अभिनेता, हिंदी अध्यापक श्री देवानंद शिवराज की कविताएं सरल भाषा में व्यक्त भावोद्गगार हैं। श्री देवानंद आज भी अपने पूर्वजों की संस्कृति तथा परंपरा के समर्पित प्रचारक हैं और हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार में लगे हुए हैं।

कार्यक्रम के मुख्य अथिति भारत के राजदूतावास के निमंत्रण पर सूरीनाम आए हिन्दी विद्वान डॉ॰ विमलेश कांति वर्मा थे, डॉ॰ वर्मा ने सूरीनाम में निरंतर हो रही साहित्यिक गतिविधियों की भूरी भूरी प्रशंसा की और सभी साहित्यकारों से लेखनरत रहने का आग्रह किया।
अभिलाषा का विमोचन साहित्य मित्र संस्था के अध्यक्ष पंडित हरिदेव सहतू, डॉ॰ विमलेश कांति वर्मा, प्रतिष्ठित सरनामी कार्यकर्ता श्री मोती मारहे, भारतीय राजदूतावास के चांसरी प्रमुख श्री अरुण कुमार शर्मा और हिन्दी व संस्कृति अधिकारी तथा अभिलाषा की संपादक श्रीमति भावना सक्सैना के हाथों हुआ। इस अवसर पर कवि गोष्ठी का आयोजन भी किया गया जिसमें सूरीनाम के कुछ प्रतिष्ठित कवियों ने कविता पाठ किया और कुछ प्रतिष्ठित कवियों की रचनाएँ छोटे बालकों ने पढ़ीं और सबका मन मोह लिया। श्री देवानन्द ने इस अवसर पर स्वरचित लयबद्ध गीत "कल्कतिया में लागे मेला अरकटियन करे गुहार" प्रस्तुत करके समां बांध दिया।
कार्यक्रम का कुशल संचालन डॉ॰ कार्मेन जगलाल, युवा कवयित्री ऩिशा झाकरी व डॉ॰ सरवन बख्तावर ने किया। श्रीमती सक्सेना ने पुस्तक में दिया पंडित सहतू का अध्यक्षीय संदेश पढ़ा जिसमें उन्होने कहा है " श्री देवानंद शिवराज एक सहृदय व समर्पित व्यक्ति हैं जो पिछले 48 वर्ष से हिंदी शिक्षण के प्रति समर्पित हैं और सूरीनाम साहित्य मित्र संस्था के सक्रिय सदस्य हैं। संस्था का उद्देश्य सूरीनाम के हिंदी प्रेमियों को साहित्य रचना की ओर प्रेरित करना व प्रकाशन सुविधा उपलब्ध करना रहा है।मेरी हार्दिक अभिलाषा रही है की संस्था के सभी सदस्यों के एकल काव्य संकलन प्रकाशित हों। इस श्रृंखला में श्री देवानंद का काव्य संकलन अभिलाषा इस आशा के साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ कि यह अन्य सभी सदस्यों को इस दिशा में प्रयास करने की प्रेरणा प्रदान करेगा और शीघ्र ही हमें और संकलन देखने को मिलेंगे। मुझे विश्वास है कि अभिलाषा का सर्वत्र स्वागत होगा और यह प्रत्येक व्यक्ति के मन में नव अभिलाषाएं उत्पन्न करेगी।" कविताऊन पर प्रकाश डालते हुए उन्होने कहा - कि इस संकलन की कविताओं की एक विशेषता जहां विषयों कि व्यापकता है वहीं अर्थ विस्तार भी है। किसी भी कविता को शीर्षक नहीं देते हुए अर्थ ग्रहण पाठक के ऊपर छोड़ दिया गया है।
सूरीनाम साहित्य मित्र संस्था का गठन वर्ष 2001 में किया गया था और तब से पंडित हरिदेव सहतू के दिशानिर्देश में संस्था के सभी सदस्य सुचारू रूप से साहित्य सृजन कर रहे हैं। संस्था का उद्देश्य हिंदी लेखकों को प्रेरित करना है।

रिपोर्ट व चित्र – भावना सक्सैना

सूरीनाम में सस्ता साहित्य मण्डल की हिन्दी शिक्षणोपयोगी पुस्तकों का लोकार्पण


बाएँ से दाएँ - भावना सक्सेना, पंडिता सुशीला मल्हू, महामहिम श्री सोढ़ी, श्रीमती मंजीत सोढ़ी

२३ जून २०११ को सूरीनाम में संस्था माता गौरी में भारत के राजदूतावास द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के अवसर पर भारत के राजदूत श्री कंवलजीत सिंह सोढ़ी द्वारा नई दिल्ली की प्रकाशन संस्था सस्ता साहित्य मंडल के १४ बाल कहानियों के सचित्र ओंर सुरुचि पूर्ण सेट का लोकार्पण किया गया। राजदूतावास की हिंदी अधिकारी श्रीमती भावना सक्सैना द्वारा पुस्तकों का परिचय पढे जाने के पश्चात लोकार्पण के लिए पुस्तकें सूरीनाम साहित्य मित्र संस्था की सचिव पंडिता सुशीला बलदेव मल्हू ने प्रस्तुत की।

बहुरंगी चित्रों से सुसज्जित पुस्तकों की लेखिका हैं श्रीमती धीरा वर्मा और इन पुस्तकों के चित्रकार हैं संजय अहलुवालिया। पेयर इट सीरीज़ के इस सेट की सभी कहानियां अंग्रेजी अनुवाद में भी उपलब्ध हैं। अंग्रेजी अनुवाद सुनंदा वी. अस्थाना द्वारा किया गया है। यह हिन्दी शिक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण सेट है जिसके द्वारा अङ्ग्रेज़ी के माध्यम से हिन्दी सीखी जा सकती है।
इस चौदह कहानियों के सेट में जो पुस्तकें है। उनके शीर्षक हैं-

१. चतुर पीटर २. सूरज और चाँद ३. बाघ आया बाघ आया ४ . सिद्धार्थ ५. ग्वाला भैया ६ . अर्जुन 7. मोनिका 8. बहू की खोज 9. चाणक्य १०. सेर को सवा सेर ११ . कंकड़ की सब्जी १२ बुद्धिमान बीरबल 13. सुखी कौन 14. पंडितजी.


भव्य समारोह में उपस्थित श्रोतागण

धीरा वर्मा लेखिका संघ की उपाध्यक्ष हैं और पिछले चार दशकों से बच्चों के साहित्य पर काम कर रहीं हैं। वह दिल्ली विश्वविद्यालय के स्लावोनिक और फ़ीनो-उग्रीयन विभाग में अतिथि प्राध्यापक हैं और भारत के वरिष्ठतम बल्गारियन अनुवादकों में हैं और उनके अनेक बल्गारियन साहित्यिक रचनाओं के अनुवाद प्रकाशित हुए हैं। धीराजी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान में एम ए किया है और डीसीसीडबल्यू के ‘पालना’ में सलाहकार मनोवैज्ञानिक के रूप में सेवा की है। आकाशवाणी पर उनकी सौ से ज़्यादा वार्ताएं प्रसारित हुई हैं।

रिपोर्ट – भावना सक्सैना, अताशे (हिंदी व संस्कृति), भारत का राजदूतावास, पारामारीबो, सूरीनाम

Monday, July 4, 2011

वाराणसी में पुस्तक लोकार्पण- समारोह तथा परिचर्चा गोष्ठी


पुस्तक लोकार्पण करते हुए बाये से क्रमशः रचनाकार श्री जवाहर लाल कौल ‘व्यग्र’, बी.आर. बिप्लवी, न्यायमूर्ति गणेश दत्त दुबे, मेयार सनेही, प्रो. चौथी राम यादव एवं प्रो. वशिष्ठ अनूप

26-6-2011
वाराणसी जनपद के गिलट बाजार मुहल्ले में स्थित नव रचना कानवेन्ट स्कूल के सभागार में रविवार दिनांक 26-6-2011 को प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ तथा सर्जना साहित्य मंच के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित समारोह में वरिष्ठ दलित कवि, कथाकार व शायर जवाहर लाल कौल ‘व्यग्र’ के सद्यः प्रकाशित ग़ज़ल-संग्रह ‘रुकती नही ज़बान’ का लोकार्पण एवं परिचर्चा का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। समारोह के विशिष्ट अतिथि न्यायमूर्ति (अवकाश प्राप्त) गणेश दत्त दुबे थे। अध्यक्षता प्रख्यात शायर मेयार सनेही तथा संचालन उदय प्रताप स्वायत्तशासी महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष व जलेस की वाराणसी इकाई के अध्यक्ष डॉ. राम सुधार सिंह द्वारा किया गया। इस अवसर पर शहर एवं शहर के बाहर के अनेकानेक साहित्यकार, कवि, शायर व सुधी श्रोतागण की अच्छी-खासी उपस्थिति रही।

पुस्तक पर परिचर्चा से पूर्व इसके रचनाकार ‘व्यग्र’ जी ने अपनी रचना-प्रक्रिया पर बोलते हुए बताया कि वह मूलरूप से कवि हैं लेकिन ग़ज़ल की लोकप्रियता ने उन्हें ग़ज़ल लिखने के लिए प्रेरित किया। इसके शीर्षक के चयन पर विशेष बल देते हुए उन्होंने खुलासा किया कि यह दलित वैचारिकी का प्रतिनिधित्व करता है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी के प्रोफेसर व ग़ज़ल के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. वशिष्ठ अनूप ने सबसे पहले बोलते हुए ग़ज़ल की उत्पत्ति एवं विकास के इतिहास को रेखांकित किया। फारसी, उर्दू, हिन्दुस्तानी से होती हुई वर्तमान स्वरूप तक पहुँचने में एक लम्बा सफ़र तय किया है ग़जल ने। ग़ज़ल के केन्द्र में दुख ही विभिन्न स्वरूपों में हमेशा से रहा है। यही दुख आम जन की पीड़ा के रूप में विस्तार पाता है वर्तमान गज़ल में। रचना की अन्तर्वस्तु बदलती है तो शिल्प भी बदल जाता है। यही नहीं, अन्तर्वस्तु के सामने शिल्प अकसर धराशायी हो जाता है। उन्होंने कहा कि कौल जी की ग़ज़लें पढ़ते हुए उन्हें महेश ‘अश्क’ का यह शेर याद आया- ‘जबाँ खुलेगी तो क्या हो कह नहीं सकता, मगर मैं और अधिक चुप रह नहीं सकता।’ दलित रचनाकार ज़बान खोलते हैं तो तमाम सवाल पैदा होते हैं। पूरी परम्परावादी सोच को प्रश्नांकित करते हैं। अपने प्रश्नों से पूरी व्यवस्था को तार-तार कर देते हैं। यही नकार, यही प्रश्नाकुलता, यही असहमति का स्वर, कौल जी की ग़ज़लों का केन्द्रीय तत्व है जो आद्यान्त अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। इस स्वर में न हकलाहट है, न दब्बूपन और न ही हीन भावना बल्कि एक अदम्य अपराजेय जिजीविषा है। यह दबाये-कुचले दलितों को अपना हक माँगने के लिये प्रेरित करती है। स्वस्थ समाज के नव-निर्माण में निश्चय ही इस ग़ज़ल संग्रह की अपनी दूरगामी भूमिका होगी।

‘सोच विचार’ मासिक पत्रिका के संरक्षक/संयोजक डॉ. जितेन्द्र नाथ मिश्र का मानना था कि ग़ज़ल की लोकप्रियता से प्रभावित होकर व्यग्र जी द्वारा इस विधा को अपनाना इंगित करता है कि वह संवादरत रहना चाहते हैं। इनकी रचनाओं की अन्तर्वस्तु के कारण वह व्यग्र जी का सम्मान करते हैं। वह जैसा सोचते हैं वैसा लिखते हैं। हमारे पहले के लोगों ने जहाँ छोड़ा था, व्यग्र जी उसके बाद शुरू करते हैं। सेवानिवृत्त जिला जज तथा कवि चन्द्रभाल सुकुमार का कहना था कि ग़ज़ल की लोकप्रियता इसीलिये है क्योंकि प्रत्येक दौर की विसंगतियों से लड़ने के लिए जिस स्वर की आवश्यकता होती है, वह उसमें है। व्यग्र जी को अनेक विधाओं का रचनाकार बताते हुए उन्होंने कहा कि ‘युगस्रष्टा’ नामक महाकाव्य के सृजन बाद भी उनकी भूख समाप्त नहीं हुई है। यह साहित्य और समाज दोनों के लिए सुखद है। सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के डॉ. विद्यानन्द मुद्गल का कहना था कि किसी भी रचना के दो आवश्यक तत्व होते हैं- शाश्वत सत्य और सामायिकता। मीर, ग़ालिब, जोश, इक़बाल को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि प्रत्येक दौर के रचनाकारों की रचनाओं में ये तत्व मौजूद हैं। व्यग्र जी भी शाश्वत सत्य एवं सामायिकता बोध के रचनाकार हैं।

दलित रचनाकार एवं समीक्षक मूलचन्द सोनकर ने प्रश्न खड़ा किया कि भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य में ऐसी रचनाओं की उपयोगिता क्या है? पाठ्यक्रमों के माध्यम से आज भी चमत्कारी नायकों का ही महिमामंडन किया जा रहा है। समाज की विसंगतियों की भयावह सच्चाई से आज भी भविष्य की पीढ़ियों को अनभिज्ञ रखा जा रहा है। परिणाम स्वरूप आज भी शोषक एवं शोषित मनोवृत्ति की विभाजक रेखा वाले समाज का निर्माण हो रहा है। जीवन के अप्रिय प्रश्नों को शालीनतापूर्वक सुनकर उनका हल सुझाने वाली पीढ़ी तैयार करने के लिए आवश्यक है कि पाठ्यक्रमों से चमत्कारी नायकों को हटा कर जीवन की विसंगतियों को उजागर करने वाले दलित/पिछड़े वर्ग से आये नायकों और दलित साहित्य को अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाये। गोरखपुर से पधारे प्रख्यात शायर बी.आर. बिप्लवी का कहना था कि स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए मूलचन्द सोनकर के सवालों से टकराना जरूरी हैं। उन्होंने कहा कि जहाँ कथ्य कविता से बड़ा होता है वहाँ कविता नहीं, कथ्य ही सर पर चढ़कर बोलता है। व्यग्र जी के संग्रह को गज़ल की कसौटी पर नहीं कथ्य की कसौटी पर कसकर देखना चाहिए।

न्यायमूर्ति गणेश दत्त दुबे ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि व्यग्र जी अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में फैले अंधविश्वास पर प्रहार करते हैं। प्रो. चौथी राम यादव को इस बात का मलाल था कि हिन्दी आलोचना ने ग़ज़ल का संज्ञान नहीं लिया। राजनैतिक आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी दलितों, वंचितों को सामाजिक व आर्थिक आज़ादी नहीं मिली। कौल जी इन्हीं के प्रतिनिधि रचनाकार हैं। इनकी रचनाओं में कबीर जैसी प्रश्नाकुलता है। इनके संग्रह की ग़ज़लें कान से नहीं पेट से सुनने के लिए हैं। भरे पेट का दर्शन अलग होता है। इसी दर्शन के चलते वामपंथियो के राज में दलितों की जमीन छीनकर पूंजीपतियों को दे दी जाती है। सामाजिक मुक्ति और प्रतिष्ठा का सवाल दलितों के लिये आज भी सबसे बड़ा सवाल है। इसी सवाल से कबीर ने भी टक्कर लिया था और फुले, अम्बेडकर ने भी। इसी सवाल से आज व्यग्र जैसे रचनाकार भी टक्कर ले रहे हैं। इसलिये इस बात की निश्चितता है कि उम्मीद की लौ बुझने नहीं पायेगी। अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में मेयार सनेही ने व्यग्र जी के व्यक्तित्व, कृतित्व एवं सामाजिक सरोकारों का चर्चा करते हुए उनके संग्रह के लिए अपनी बधाई दी।

समारोह में अध्यक्ष मेयार सनेही सहित रोशन लाल ‘रोशन’, तरब सिद्दीकी, शमीम ग़ाज़ीपुरी, सुरेन्द्र वाजपेयी, डॉ. सईद निज़ामी़ इत्यादि रचनाकारों ने अपनी रचनाएँ सुनाकर इस अवसर में चार चाँद लगाये। प्रगतिशील लेखक संघ के कोषाध्यक्ष अशोक आनन्द के आभार प्रदर्शन के साथ समारोह का समापन हुआ।
दिनांक: 27-6-2011


प्रस्तुति
मूल चन्द सोनकर
48 राज राजेश्वरी नगर
गिलट बाज़ार वाराणसी- 221002
मो. 09415303512
ई.मे. priyamoolchand@gmail.com

Sunday, July 3, 2011

राष्ट्रभाषा के प्रचार-प्रसार के लिए सम्मान हेतु प्रविष्टियाँ आमंत्रित

हमेशा की तरह इस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भी संस्था की ओर से राष्ट्र-भाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में उल्लेखनीय योगदान के लिए साहित्यकारों एवं पत्रकारों को सम्मानित किये जाने की योजना है। ये सम्मान अहिन्दी भाषी तथा हिन्दी भाषी क्षेत्रों के विद्वानों के लिए अलग-अलग श्रेणियों में होगे। कम से कम 5 वर्षों से कार्यरत सज्जन ही अपनी प्रविष्टि भेजें। सादे कागज पर आत्मवृत्त (पूर्ण परिचय), रंगीन चित्र, प्रकाशित पुस्तक/रचनाओं की छाया प्रति प्रमाण स्वरूप संलग्न करें। प्राप्त उपलब्धियांे का ब्यौरा हिन्दी के संवर्द्धन के लिए किये गये प्रयास/आंदोलन का विवरण भी भेजे। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय एकता के लिए किसी भी प्रकार के रचनात्मक कार्यों को भी सम्मानित किये जाने की योजना है। यह कार्य लेखन, चित्रकारिता, कार्टून, आंदोलन, जन जागरण के किसी भी रूप में हो सकता है। प्रमाण सहित प्रविष्टि भेजें। अंतिम तिथि 31 जुलाई।
संपर्क - पंचवटी लोकसेवा समिति द्वारा यथासंभव
ए-121, गली न.-10, हस्तसाल रोड़
उत्तम नगर, नई दिल्ली-110059

अंडमान में 'सरस्वती सुमन' के लघु कथा विशेषांक का विमोचन और ''बदलते दौर में साहित्य के सरोकार'' पर संगोष्ठी

अंडमान-निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्टब्लेयर में सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था ‘चेतना’ के तत्वाधान में स्वर्गीय सरस्वती सिंह की 11 वीं पुण्यतिथि पर 26 जून, 2011 को मेगापोड नेस्ट रिसार्ट में आयोजित एक कार्यक्रम में देहरादून से प्रकाशित 'सरस्वती सुमन' पत्रिका के लघुकथा विशेषांक का विमोचन किया गया. इस अवसर पर ''बदलते दौर में साहित्य के सरोकार'' विषय पर संगोष्ठी का आयोजन भी किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में श्री एस. एस. चौधरी, प्रधान वन सचिव, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, अध्यक्षता देहरादून से पधारे डा. आनंद सुमन 'सिंह', प्रधान संपादक-सरस्वती सुमन एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री कृष्ण कुमार यादव, निदेशक डाक सेवाएँ, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, डा. आर. एन. रथ, विभागाध्यक्ष, राजनीति शास्त्र, जवाहर लाल नेहरु राजकीय महाविद्यालय, पोर्टब्लेयर एवं डा. जयदेव सिंह, प्राचार्य टैगोर राजकीय शिक्षा महाविद्यालय, पोर्टब्लेयर उपस्थित रहे.

सरस्वती सुमन के लघुकथा विशेषांक का विमोचन
कार्यक्रम का आरंभ पुण्य तिथि पर स्वर्गीय सरस्वती सिंह के स्मरण और तत्पश्चात उनकी स्मृति में जारी पत्रिका 'सरस्वती सुमन' के लघुकथा विशेषांक के विमोचन से हुआ. इस विशेषांक का अतिथि संपादन चर्चित साहित्यकार और द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवा श्री कृष्ण कुमार यादव द्वारा किया गया है. अपने संबोधन में मुख्य अतिथि एवं द्वीप समूह के प्रधान वन सचिव श्री एस.एस. चौधरी ने कहा कि सामाजिक मूल्यों में लगातार गिरावट के कारण चिंताजनक स्थिति पैदा हो गई है । ऐसे में साहित्यकारों को अपनी लेखनी के माध्यम से जन जागरण अभियान शुरू करना चाहिए । उन्होंने कहा कि आज के समय में लघु कथाओं का विशेष महत्व है क्योंकि इस विधा में कम से कम शब्दों के माध्यम से एक बड़े घटनाक्रम को समझने में मदद मिलती है। उन्होंने कहा कि देश-विदेश के 126 लघुकथाकारों की लघुकथाओं और 10 सारगर्भित आलेखों को समेटे सरस्वती सुमन के इस अंक का सुदूर अंडमान से संपादन आपने आप में एक गौरवमयी उपलब्धि मानी जानी चाहिए.

युवा साहित्यकार एवं निदेशक डाक सेवा श्री कृष्ण कुमार यादव ने बदलते दौर में लघुकथाओं के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि भूमण्डलीकरण एवं उपभोक्तावाद के इस दौर में साहित्य को संवेदना के उच्च स्तर को जीवन्त रखते हुए समकालीन समाज के विभिन्न अंतर्विरोधों को अपने आप में समेटकर देखना चाहिए एवं साहित्यकार के सत्य और समाज के सत्य को मानवीय संवेदना की गहराई से भी जोड़ने का प्रयास करना चाहिये। श्री यादव ने समाज के साथ-साथ साहित्य पर भी संकट की चर्चा की और कहा कि संवेदनात्मक सहजता व अनुभवीय आत्मीयता की बजाय साहित्य जटिल उपमानों और रूपकों में उलझा जा रहा है, ऐसे में इस ओर सभी को विचार करने की जरुरत है.

संगोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए डा. जयदेव सिंह, प्राचार्य टैगोर राजकीय शिक्षा महाविद्यालय, पोर्टब्लेयर ने कहा कि साहित्य के क्षेत्र में समग्रता के स्थान पर सीमित सोच के कारण उन विषयों पर लेखन होने लगा है जिनका सामाजिक उत्थान और जन कल्याण से कोई सरोकार नहीं है । केंद्रीय कृषि अनुसन्धान संस्थान के निदेशक डा. आर. सी. श्रीवास्तव ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि आज बड़े पैमाने पर लेखन हो रहा है लेकिन रचनाकारों के सामने प्रकाशन और पुस्तकों के वितरण की समस्या आज भी मौजूद है । उन्होंने समाज में नैतिकता और मूल्यों के संर्वधन में साहित्य के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला । डा. आर. एन. रथ, विभागाध्यक्ष, राजनीति शास्त्र, जवाहर लाल नेहरु राजकीय महाविद्यालय ने अंडमान के सन्दर्भ में भाषाओँ और साहित्य की चर्चा करते हुए कहा कि यहाँ हिंदी का एक दूसरा ही रूप उभर कर सामने आया है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि साहित्य का एक विज्ञान है और यही उसे दृढ़ता भी देता है.

अंडमान से प्रकाशित एकमात्र साहित्यिक पत्रिका 'द्वीप लहरी' के संपादक डा. व्यास मणि त्रिपाठी ने ने साहित्य में उभरते दलित विमर्श, नारी विमर्श, विकलांग विमर्श को केन्द्रीय विमर्श से जोड़कर चर्चा की और बदलते दौर में इसकी प्रासंगिकता को रेखांकित किया. उन्होंने साहित्य पर हावी होते बाजारवाद की भी चर्चा की और कहा कि कला व साहित्य को बढ़ावा देने के लिए लोगों को आगे आना होगा। पूर्व प्राचार्य डा. संत प्रसाद राय ने कहा कि कहा कि समाज और साहित्य एक सिक्के के दो पहलू हैं और इनमें से यदि किसी एक पर भी संकट आता है, तो दूसरा उससे अछूता नहीं रह सकता।

कार्यक्रम के अंत में अपने अध्यक्षीय संबोधन में ‘‘सरस्वती सुमन’’ पत्रिका के प्रधान सम्पादक आनंद सुमन सिंह ने पत्रिका के लघु कथा विशेषांक के सुन्दर संपादन के लिए श्री कृष्ण कुमार यादव को बधाई देते हुए कहा कि कभी 'काला-पानी' कहे जानी वाली यह धरती क्रन्तिकारी साहित्य को अपने में समेटे हुए है, ऐसे में 'सरस्वती सुमन' पत्रिका भविष्य में अंडमान-निकोबार पर एक विशेषांक केन्द्रित कर उसमें एक आहुति देने का प्रयास करेगी. उन्होंने कहा कि सुदूर विगत समय में राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तमाम घटनाएं घटी हैं और साहित्य इनसे अछूता नहीं रह सकता है। अपने देश में जिस तरह से लोगों में पाश्चात्य संस्कृति के प्रति अनुराग बढ़ रहा है, वह चिन्ताजनक है एवं इस स्तर पर साहित्य को प्रभावी भूमिका का निर्वहन करना होगा। उन्होंने रचनाकरों से अपील की कि वे सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों को ध्यान में रखकर स्वास्थ्य समाज के निर्माण में अपनी रचनात्मक भूमिका निभाएं। इस अवसर पर डा. सिंह ने द्वीप समूह में साहित्यिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए और स्व. सरस्वती सिंह की स्मृति में पुस्तकालय खोलने हेतु अपनी ओर से हर संभव सहयोग देने का आश्वासन दिया।

कार्यक्रम के आरंभ में संस्था के संस्थापक महासचिव दुर्ग विजय सिंह दीप ने अतिथियों और उपस्थिति का स्वागत करते हुए आज के दौर में हो रहे सामाजिक अवमूल्यन पर चिंता व्यक्त की । कार्यक्रम का संचालन संस्था के उपाध्यक्ष अशोक कुमार सिंह ने किया और संस्था की निगरानी समिति के सदस्य आई.ए. खान ने धन्यवाद ज्ञापन किया। इस अवसर पर विभिन्न द्वीपों से आये तमाम साहित्यकार, पत्रकार व बुद्धिजीवी उपस्थित थे.

बाजारवाद और साहित्य पर संगोष्ठी संपन्न हुई

श्रीडूंगरगढ़. राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के स्वर्ण जयंती वर्ष के अंतर्गत आयोजन श्रृंखला में 'बाजारवाद और समकालीन साहित्य' विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया. राजस्थान साहित्य अकादमी के सहयोग से आयोजित इस संगोष्ठी के मुख्य वक्ता युवा आलोचक और बनास के सम्पादक पल्लव ने विषय पर दो व्याख्यान दिए. दिल्ली के हिन्दू कालेज में अध्यापन कर रहे पल्लव ने अपने पहले व्याख्यान में बाज़ार,बाजारवाद ,भूमंडलीकरण और पूंजीवाद की विस्तार से चर्चा करते हुए इनके अंतर्संबंधों पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि साहित्य अपने स्वभाव से ही व्यवस्था का विरोधी होता है और आधुनिक हिन्दी साहित्य का विकास उपनिवेशवाद और पूंजीवाद से लड़ते हुए हुआ है. प्रेमचंद के प्रसिद्द लेख 'महाजनी सभ्यता' का उल्लेख करते हुए उन्होंने समकालीन कथा साहित्य में बाजारवाद से प्रतिरोध के उदाहरण दिए. रघुनन्दन त्रिवेदी की कहानी'गुड्डू बाबू की सेल', महेश कटारे की 'इकाई,दहाई...',अरुण कुमार असफल की'पांच का सिक्का',उमाशंकर चौधरी की 'अयोध्या बाबू सनक गए हैं' तथा गीत चतुर्वेदी की 'सावंत आंटी की लड़कियाँ' की विशेष चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि साहित्य जरूरत और लालसा के अंतर की बारीकियां समझाकर पाठक को विवेकवान बनाता है. पल्लव ने कहा कि एकल ध्रुवीय विश्व व्यस्था और संचार क्रान्ति ने बाजारवाद को बहुत बढ़ावा दिया है,जिससे मनुष्यता के लिए नए संकट उपस्थित हो गए हैं.

अपने दूसरे व्याख्यान में पल्लव ने उपन्यासों के सन्दर्भ में बाजारवाद की चर्चा में कहा कि उपन्यास एक बड़ी रचनाशीलता है जो प्रतिसंसार की रचना करने में समर्थ है. हिदी के लिए यह विधा अपेक्षाकृत नयी होने पर भी बाजारवाद के प्रसंग में इसने कुछ बेहद शक्तिशाली रचनाएं दी हैं. उन्होंने काशीनाथ सिंह के चर्चित उपन्यास 'काशी का अस्सी' को इस सम्बन्ध में सबसे महत्त्वपूर्ण कृति बताया. उन्होंने कहा कि यह उपन्यास भारतीय संस्कृति पर बाजारवाद के हमले और इससे प्रतिरोध कर रहे सामान्य लोगों के जीवन का सुन्दर चित्रण करता है. उपन्यास के एक रोचक प्रसंग का पाठ कर उन्होंने बताया कि साम्प्रदायिकता किस तरह बाजारवादी व्यवस्था की सहयोगी हो जाती है और जातिवाद, राजनीति उसकी अनुचर,यह उपन्यास सब बताता है. वस्तु मोह के कारण संबंधों में हो रहे विचलन को दर्शाने के लिए कथाकार स्वयंप्रकाश के उपन्यास 'ईंधन' को यादगार बताते हुए कहा कि इस कृति में लेखक ने भारत में उदारीकरण की प्रक्रिया के साथ साथ अपने पात्रों का जीवन चित्रित किया है,जो ना केवल इसे विश्वसनीयता देता है अपितु उदारीकरण के कारण आ रहे नकारात्मक मूल्यों की पड़ताल भी करता है. ममता कालिया के 'दौड़' और प्रदीप सौरभ के 'मुन्नी मोबाइल' को भी पल्लव ने इस प्रसंग में उल्लेखनीय बताया.
इससे पहले कवि-आलोचक चेतन स्वामी ने विषय प्रवर्तन किया तथा मुख्य अथिति चुरू से आये साहित्यकार डॉ. भंवर सिंह सामोर ने लोक के सन्दर्भ में उक्त विषय की चर्चा की.
अध्यक्षता कर रहे सुविख्यात कथाकार मालचंद तिवाड़ी ने कहा कि बाजारवाद ने जीवन में भय की ऐसी नयी उद्भावना की है जिसके कारण कोई भी निश्चिन्त नहीं है. तिवाड़ी ने कहा कि समकालीन रचनाशीलता ने प्रतिगामी विचारों से सदैव संघर्ष किया है जिसका उदाहरण कहानियों व कविताओं में बहुधा मिलता है. राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के अध्यक्ष श्याम महर्षि ने समिति के स्वर्ण जयंती वर्ष के आयोजनों की जानकारी दी. संयोजन कर रहे कवि सत्यदीप ने आभार व्यक्त किया. आयोजन में नगर के साहित्य प्रेमियों व युवा विद्यार्थियों ने भागीदारी की.

Saturday, July 2, 2011

फ़ज़ल इमाम मल्लिक को राजीव गांधी एक्सिलेंस अवार्ड

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से प्रकाशित राष्ट्रीय हिंदी समाचार पत्रिका ‘सीमापुरी टाइम्स’ ने युवा साहित्यकार, स्तंभकार और पत्रकार फ़ज़ल इमाम मल्लिक को साहित्य व पत्रकारिता के क्षेत्र में उलेखनीय योगदान के लिए ‘राजीव गांधी एक्सीलेंस अवार्ड-२०११’ से नवाजा। सम्मान दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित समारोह में केंद्रीय कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने दिया। सम्मान के तौर पर उन्हें एक स्मृति चिन्ह और सनद दिया गया। इस मौके पर कांग्रेस सांसद अनु टंडन भी मौजूद थीं।

बिहार के शेख़पुरा जिले के चेवारा के निवासी फ़ज़ल इमाम मल्लिक दिल्ली से प्रकाशित हिंदी दैनिक ‘जनसत्ता’ से जुड़े हैं। उन्होंने साहित्यिक पत्रिका ‘सनद’ और ‘ऋंखला’ का संपादन भी किया। इसके अलावा काव्य संग्रह ‘नवपलव’ और लघुकथा संग्रह ‘मुखौटों से परे’ का संपादन भी कर चुके हैं। दूरदर्शन के उर्दू चैनल से उन पर एक ख़ास कार्यक्रम ‘सिपाही सहाफत के’ प्रसारित भी हुआ है। इससे पहले पिछले हफ्ते उन्हें दिल्ली में ही आयोजित एक समारोह में रोशनी दर्शन पत्रिका ने दस साल पूरे करने के मौके पर उन्हें ‘चित्रगुप्त सम्मान’ से नवाज चुकी है। साल पूरे करने के मौके पर उन्हें ‘चित्रगुप्त सम्मान’ से नवाज चुकी है।
बतौर खेल पत्रकार जनसत्ता से जुड़े फ़ज़ल इमाम मल्लिक ने क्रिकेट और हाकी के मैचों को तो कवर किया साथ ही दूसरे खेलों के अंतरराष्ट्रीय आयोजनों को भी कवर किया है। दूरदर्शन के राष्ट्रीय नेटवर्क के लिए फुटबाल, टेनिस, एथलेटिक्स, बास्केटबाल और फुटबाल के मैचों में बतौर कमेंटेटर भी मैचों का आंखो देखा हाल भी बयान किया है। राष्ट्रीय सहारा के उर्दू चैनल में बतौर खेल विशेषज्ञ भी जुड़े रहे हैं।

हेमंत फाउंडेशन द्वारा स्थापित हिन्दी उर्दू मंच का उद्धघाटन हुआ


हेमंत फाउंडेशन तथा उर्दू मरकज़ द्वारा स्थापित हिन्दी उर्दू मंच का उद्घाटन समारोह २५ जून संध्या ६ बजे उर्दू मरकज़ सभागार मे सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम का आरंभ अतिथियों का पुष्पगुच्छ सहित स्वागत सम्मान से हुआ। मंच की अध्यक्ष चर्चित लेखिका संतोष श्रीवास्तव ने इन खूबसूरत पंक्तियों से मंच के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला- 'हिन्दी की एक बहन कि जो उर्दू ज़बान है/ वो इफ्तखारे कौम है भारत की शान है/ हिन्दी ने एकता के गुंचे खिलाए है/ उर्दू बहारे गुलशने हिन्दुस्तान है। उन्होंने कहा कि यह मंच दोनों भाषाओं की साहित्यिक एकता के लिये स्थापित किया गया है। आज का दिन साहित्य जगत की तारीख में दर्ज होगा। हम समय समय पर मुशायरा कवि सम्मेलन, सेमिनार, वर्कशाप आयोजित करेंगे साथ ही दोनों भाषाओं के साहित्यकारों की पुस्तकों का हिन्दी उर्दू में अनुवाद भी करायेंगे ताकि हम एक दूसरे के करीब आ सकें। संतोष जी ने अपनी गज़ल 'जिस्म से जान तक तू ही समाया लगता है' सुनाकर श्रोताओं का मन मुग्ध कर लिया।

कार्यक्रम के अध्यक्ष डा. अब्दुल सत्तार दलवी ने कहा कि हेमंत फाउंडेशन तथा उर्दू मरकज़ ने हिन्दी उर्दू मंच की स्थापना कर प्रशंसनीय कार्य किया है। हिन्दुस्तान के माहौल के लिए यह ज़रूरी था। इससे दोनों ज़बानों के साहित्यकारों की हौसला अफ़जाई होगी, उनके ज़ज्बे की कद्र होगी।

उर्दू मरकज़ के अध्यक्ष जुबैर आज़मी ने कहा कि एक जमाना था कि जब छोटी-छोटी महफिलें यहां जुटा करतीं थीं जिसमें हिन्दी उर्दू की नामी हस्तियां कैफ़ी आज़मी, मज़रुह सुल्तानपुरी, कमलेश्वर, नारायण सुर्वे आदि शिरकत करते थे। आज उसी रिवायत को हम आगे बढ़ा रहे हैं और दूर तलक जाने का ज़ज्बा रखते हैं।

इस काव्य गज़ल संध्या में उर्दू के शायर रियाज़ मुन्सिफ़, वकार आज़मी, रेखा रोशनी, शादाब सिद्दीकी, फारुक आशना, सैयद रियाज़, जमील मुर्सापुरी, सोहेल अख्तर, जुबैर आज़मी,रफ़ीक जाफ़र, अब्दुल अहद साज़ ने अपनी गज़लें पढ़ीं वहीं मंच की कार्याध्यक्ष तथा शायरा सुमीता केशवा ने 'हद में रहने की बात करते हो' सुना कर वाह-वाही पाई। उर्दू के वरिष्ठ शायर दाऊद कश्मीरी ने रवीन्द्र नाथ टैगोर के शेर बांग्ला भाषा में सुनाये। हरि मृदुल, कैलाश सेंगर,आलोक भट्टाचार्य, शिल्पा सोनटक्के और अनीता रवि ने अपनी कविताओं से समा बांध दिया। इस मंच के लिए महाराष्ट्र साहित्य अकादमी तथा लाहौर से फैज़ अहमद फैज़ की बेटी मुनीज़ा हाशमी ने बधाई संदेश भेजा। कार्यक्रम का संचालन आलोक भट्टाचार्य तथा आभार जुबैर आज़मी ने किया।

Friday, July 1, 2011

रंग महोत्सव 2011 30 जून से 3 जुलाई के मध्य आयोजित होगा

30 जून 2011 से 3 जुलाई 2011 के बीच 'द फिल्म एंड थिएटर सोसाइटी' नई दिल्ली के लोधी रोड में 'रंग महोत्सव' का आयोजन कर रही है। यह रंगमंच का बहुत बड़ा आयोजन है जिसमें 7 अलग-अलग कार्यक्रम निर्धारित है। कार्यक्रम का पूरा विवरण सोसाइटी की आधिकारिक वेबसाइट पर देखें।

आप इस महोत्सव के कार्यक्रमों के टिकटों की ऑनलाइन खरीद-फरोस्त भी कर सकते हैं। इसके लिए लॉगिन करें- http://www.buzzintown.com/delhi/event--rang-festival-indian-arts/id--422119.html

कार्यक्रम के फेसबुक पेज़ से जुड़ें।

hindyugm.com इस महोत्सव का ऑनलाइन मीडिया पार्टनर है।

कुछ खास तथा प्रसिद्ध नाटकों की झलकी यहाँ प्रस्तुत है।

प्रस्तुति: अर्जुन का बेटा



तिथि: ०२ जुलाई, २०११
समय: सायं ०७ बजे
स्थान: अलायेंज फ्रंकाईस, लोधी रोड, दिल्ली
टिकट: रूपए ३००, २०० एवं १००
लेखन एवं निर्देशन: अतुल सत्य कौशिक
अर्जुन का बेटा... यह नाम अपने आप में रोमांच की अनुभूति कराने वाला है..अभिमन्यु, एक लव्य, घटोत्कच महाभारत इतिहास के कुछ ऐसे पात्र हैं जिन्होंने इतिहास के अधिक पन्ने तो नहीं खर्च करवाए, परन्तु युगों युगों तक के लिए युवाओं के लिए प्रेरणा एवं रोमांच का स्त्रोत छोड़ गए.. कहने वाले कहते हैं की इस संसार में दो ही कहानियाँ हैं. रामायण और महाभारत. हम सभी कहीं न कहीं इन्हीं दो कहानियों के पात्र हैं... और विभिन्न मंचों और माध्यमों के द्वारा सुनायी जाने वाली कहानियां भी कहीं न कहीं इन्हीं दो महकथाओं से निकलती या इनसे मिलाती जुलती हैं..फिर मन में विचार आता है अगर ऐसा हो तो फिर कहने के लिए नया क्या है.. सब तो कहा जा चुका होगा अब तक.. मगर ऐसा नहीं हैं.. इन दो महागाथाओं में कुछ पात्र कहीं दबे या छुपे रह गए और उन्हीं में से एक है अर्जुन का बेटा.. अभिमन्यु..



द्रोणाचार्य गुरु द्वारा रचाए गए चक्रव्यूह में वीर अभिमन्यु मारा गया है और महाराज युधिस्ठिर भागे भागे पितामह भीष्म के पास आये हैं यह पुचने की अब अर्जुन के आने पर उसको क्या उत्तर देंगे.. क्या कहेंगे जब वो अपने पुत्र के बारे में पूछेगा.. वो पितामह को बताते हैं किस वीरता से अभिमयु लड़ा... और किस वीरता से वो लड़ाई में मरा गया... दूसरी ओर सोलह साल के अभिमन्यु की चौदह साल की पत्नी उत्तरा धरमराज युधिस्तिर ये पूछना चाहती है की अभिमन्यु आज रण से लौट के आएगा या नहीं.. पितामह अर्जुन तक ये सन्देश भिजवाते हैं की अब समय है की उठ कर प्रतिशोध लिया जाए.. और अवकाश के समय में गीता पर वाद विवाद किया जाए.. अंत में माधव ये बताते हैं की चक्रव्यूह में सिर्फ अभिमन्यु ही नहीं फंसा रह गया, अपितु हर मानुष्य चक्रव्यूह में फंसा है और फंसा रहेगा क्यूंकि चक्रव्यूह से बाहर आते ही तो जीवन मुक्ति मिल जाएगी..

दिल्ली में होना वाला रंग मंच सुविधा-प्रधान बन कर रह गया है.. परन्तु इसके विपरीत अर्जुन का बेटा चुनौती की स्वीकारता है.. यह नाटक कविता शैली में खेला गया है और इस में युध्ध के दृश्यों का मंचन रौंगटे खड़े कर देने वाला है.. इस में मुख्य भूमिका निभा रहे सत्येंदर मलिक जो की पंजाब युनिवेर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ़ थियेटर से रंग विद्या की पढाई भी कर रहे हैं कहते हैं "इस तरह का कोई प्रयोग अंतिम बार धरमवीर भारती जी के अँधा युग में देखा गया था.. यह नाटक वापस वही लहर लेकर आएगा".. आशा है यह नाटक दिल्ली के दर्शकों को एक बार फिर याद दिलाएगा की भारतीय साहित्य कितना सशक्त है कैसे एक अच्छी लेखनी और सटीक निर्देशन किसी भी तरह के नाटक को लोकप्रिय बना कर प्रस्तुत कर सकती है..



प्रस्तुति : कूबड़ और काकी

तिथि : ०३ जुलाई, २०११
समय : सायं ०७ बजे
स्थान : अलायेंज फ्रंकाईस, लोदिही रोड, दिल्ली
टिकट : रूपए ३००, २०० एवं १००
लेखन एवं निर्देशन : अतुल सत्य कौशिक
भारतीय साहित्य की कल्पना एक ऐसे वृक्ष के रूप में की जा सकती है जिस ने उपन्यास, नाटक, कविता, महाकाव्य इत्यादि के रूप में अपनी शाखाएं चहुँ ओर फैला रखी हैं. लघु कथाएँ भी इसी वृक्ष एक शाखा हैं जिनकी पहुँच यदि बाकी शाखाओं से अधिक नहीं तो उन से कम भी नहीं है. इस वृक्ष को अपनी कृतियों से सींचने और लघु कथाओं की शाखा को और अधिक विस्तृत करने में मुंशी प्रेमचंद औ धरमवीर भारती का योगदान सदा ही उल्लेखनीय रहेगा. ये दोनों ही लेखक सदा ही ऐसे लघु कथाएँ लिखने में सफल रहे जिनमे पाठक को अपने जीवन से जुड़े प्रश्न भी दिखे और कहीं न कहीं उन के अर्थ भी मिले. फिल्म्स एंड थिएटर सोसायटी ने इन दो महान लेखको की दो लघु कथाओं को एक साथ एक ही मंच पर प्रस्तुत कर एक नए नाटक, कूबर और काकी का सृजन करने का उल्लेखनीय कार्य किया है.

भारत सदा से ही गाँवों का देश रहा है और फिल्म्स एंड थियेटर सोसायटी का यह नाटक "कूबड़ और काकी" भी गाँवों में बस रहे उस भारत के दर्शन करवाता है. यधपि नाटक की कथावस्तु दो पत्रों, बूढी काकी और गुलकी, के इर्द गिर्द घुमती है परन्तु यह नाटक भिन्न भिन्न प्रकार के, अनेको रंग लिए कई पत्र लाकर खड़ा कर देता है जिन में हमें समाज का वह रूप देखने को मिलता है जो सदा से ही ऐसा है. यह नाटक एक ओर तो उस बूढी काकी की कहानी सुनाता है जिस के जीवन में जिह्वा स्वाद के अतिरिक्त कोई और स्वाद नहीं बचा था तो दूसरी ओर उस कुबड़ी गुलकी की कहानी भी सुनाता है जिसके पति ने लात मर कर उसको घर से बहार निकाल दिया और वह अपने गाँव में दरिद्रता पूर्ण जीवन जी रही है. इन दो प्रमुख पत्रों के इर्द गिर्द यह नाटक चतुर रूपा, सदा चिल्लाने वाली घेघा बुआ, साबुन बेचने वाली और समाज से सदा लड़ने को आतुर सत्ती, कोढ़ी मिरवा, समाज सेविका बहन जी, नीच भूप्देव जैसे कई अन्य पात्रों से भी मिलवाता है. दिल्ली के रंगमंच में अपना सिक्का जमा चुके पारुल सचदेवा, नेहा पण्डे, अंकुर आहूजा और आशिमा प्रकाश सरीखे कलाकार अपने अदभुत अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देता है.

इस नाटक में गाया बजाया गया लोक संगीत किसी भी सभागार में पूर्ण रूप से ग्रामीण वातावरण पैदा कर देता है. नाटक के लेखक और निर्देशक अतुल सत्य कौशिक द्वारा लिखे गए और ब्रम्ह्नाद द्वारा गए और बजाये गए गीत अत्यंत कर्णप्रिय हैं. इसके साथ ही यह नाटक लोक नृत्य की कुछ मोहक झलकियाँ दिखाता भी है.

Thursday, June 30, 2011

इन्दु शर्मा कथा सम्मान समारोह एवं पद्मानंद साहित्य सम्मान समारोह सम्पन्न हुए

(लंदन) - ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त श्री नलिन सूरी ने ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ़ कॉमन्स में हिन्दी लेखक विकास कुमार झा को उनके कथा उपन्यास ‘मैकलुस्कीगंज’ के लिये ‘सतरहवां अंतर्राष्ट्रीय इन्दु शर्मा कथा सम्मान’ प्रदान किया। इस अवसर पर उन्होंने लेस्टर निवासी ब्रिटिश हिन्दी लेखिका श्रीमती नीना पॉल को बारहवां पद्मानंद साहित्य सम्मान भी प्रदान किया। ब्रिटेन में लेबर पार्टी के सांसद वीरेन्द्र शर्मा ने सम्मान समारोह की मेज़बानी की।
उच्चायुक्त श्री नलिन सूरी ने विकास कुमार झा एवं नीना पॉल को बधाई देते हुए कहा, “हिन्दी अब आहिस्ता- आहिस्ता विश्व भाषा का रूप ग्रहण कर रही है। बाज़ार को इस बात की ख़बर लग चुकी है कि यदि भारत में पांव जमाने हैं तो हिन्दी का ज्ञान ज़रूरी है। मुझे बताया गया है कि ब्रिटेन में निजी स्तर पर और संस्थागत स्तर पर हिन्दी के शिक्षण का काम चल रहा है और विदेशी भी बोलचाल की हिन्दी सीखने का प्रयास कर रहे हैं। यहां के विश्वविद्यालयों में हिन्दी की पढ़ाई हो रही है। भारतीय उच्चायोग का प्रयास रहेगा कि हिन्दी स्कूली स्तर पर ब्रिटेन में अपनी वापसी दर्ज कर सके।”

(बाएं से तेजेन्द्र शर्मा, आसिफ़ इब्राहिम, लॉर्ड किंग, ज़किया ज़ुबैरी, विकास कुमार झा, महामहिम नलिन सूरी, विरेन्द्र शर्मा, नीना पॉल, मधु अरोड़ा।)

उन्होंने कथा यू.के. को 17वें सम्मान समारोह के लिये बधाई देते हुए कहा, “कथा यू.के. को यह सम्मान शुरू किये 17 वर्ष हो गये हैं। किसी भी सम्मान की प्रतिष्ठा में उसकी निरंतरता और पारदर्शिता महत्वपूर्ण होती है। इस कसौटी पर भी कथा यूके सम्मान खरे उतरते हैं। मैं तेजेन्द्र शर्मा और उनकी पूरी टीम को इस अवसर पर बधाई देना चाहूंगा और उन्हें यह आश्वासन देना चाहूंगा कि हिन्दी भाषा और साहित्य से जुड़े कार्यक्रमों के लिये उन्हें उच्चायोग का सहयोग हमेशा ही मिलता रहेगा। ”
सम्मान ग्रहण करते हुए विकास कुमार झा ने कहा, “एक कवि या लेखक आत्मा के कॉफ़ी हाउस का परिचारक ही होता है। आत्मा के अदृश्य कॉफ़ी हाउस का मैं एक अनुशासित वेटर (परिचारक) हूं और अगला आदेश लेने के लिये प्रतीक्षा में हूं। ” अपने उपन्यास पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, “मैकलुस्कीगंज’’ मेरे लिये जागी आंखों का सपना है। मेरे लिये यह मेरे बचपन के दोस्त की तरह है जिसके संग नीम दोपहरियों में आम, अमरूद, जामुन के पेड़ों पर चढ़ने का सुखद रोमांच मैंने साझा किया है। ”
ब्रिटिश संसद के ऊपरी सदन के सदस्य लॉर्ड किंग का कहना था कि, “मैं इस कार्यक्रम को देख कर इतना अभिभूत हूं कि मुझे लगता है कि युवा पीढ़ी तक तो हमें हिन्दी ले जाना ही है, अब मेरी पीढ़ी के लोगों को भी हिन्दी पढ़ना और लिखना सीख लेना चाहिये।‘’ उन्होंने हिन्दी और पंजाबी भाषा को रोमन लिपि में लिखने पर चिंता जताई।
काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी ने विकास कुमार झा के उपन्यास पर टिप्पणी करते हुए कहा, “हिन्दी में शोध करके लिखने की परम्परा विकसित नहीं हो पाई है। विकास कुमार झा ने गहरा शोध करने के बाद मैकलुस्कीेगंज को लिखा है। शायद यह उपन्यास इस परम्परा को स्थापित करने में सफल हो पाए। सन् 1911 में ब्रिटिश सरकार ने एंग्लो-इंडियन रेस को मान्यता दी थी और आज 2011 में यानि कि ठीक सौ साल बाद हम यहां ब्रिटिश संसद में भारत के एकमात्र एंग्लो-इंडियन गांव मैकलुस्कीगंज के जीवन पर आधारित उपन्यास को सम्मानित कर रहे हैं। ”
साउथहॉल से लेबर पार्टी के सांसद वीरेन्द्र शर्मा ने कहा कि “ब्रिटेन में कथा यू.के. द्वारा चलाई गई मुहिम से हिन्दी को ब्रिटेन में पांव जमाने में सहायता मिलेगी। जिस प्रकार ब्रिटेन में रचे जा रहे हिन्दी साहित्य को यहां ब्रिटिश संसद में सम्मानित किया जाता है, उससे हमारे स्थानीय लेखकों का उत्साह बढ़ेगा और भारतीय पाठकों को ब्रिटेन में रचे जा रहे साहित्य को आंकने का अवसर मिलेगा।”
कथा यू.के. के महासचिव कथाकार तेजेन्द्र शर्मा ने मैकलुस्कीगंज एवं तलाश उपन्यासों की चयन प्रक्रिया पर बात करते हुए कहा कि ब्रिटेन की युवा पीढ़ी को हिन्दी भाषा की ओर आकर्षित करने के लिये वे शैलेन्द्र और साहिर लुधियानवी जैसे फ़िल्मी साहित्यकारों पर बनाए गये अपने पॉवर पॉइन्ट प्रेज़ेन्टेशन को लेकर ब्रिटेन के भिन्न भिन्न शहरों में लेकर जाएंगे। उन्होंने चिन्ता जताई कि भारत में भी युवा पीढ़ी हिन्दी साहित्य से दूर होती दिखाई दे रही है।
कथा यू.के. के नव-निर्वाचित अध्यक्ष श्री कैलाश बुधवार ने कहा कि उन्हें ब्रिटेन में हिन्दी के भविष्य की इतनी चिंता नहीं जितनी कि भारत की युवा पीढ़ी को लेकर है। उनका मानना था कि यह सम्मान भाषा का सम्मान है। भाषा एक दीये की तरह है और कथा यूके यह दीया ब्रिटेन में जलाए हुए है। इस दीये की रौशनी ब्रिटेन की संसद के माध्यम से पूरी दुनियां में फैलेगी।
भारतीय उच्चायोग की श्रीमती पद्मजा ने कहा, “मैकलुस्कीगंज अद्भुत भाषा में लिखा एक ऐसा आंचलिक उपन्यास है जो कि वैश्विक उपन्यास की अनुभूति देता है। उपन्यास का मुख्य मुद्दा एंग्लो-इंडियन समाज का दर्द है, मगर उपन्यास उससे कहीं ऊंचा उठकर पूरे विश्व के दर्द को प्रस्तुत करता है। मैकलुस्कीगंज जन्म से एक उपन्यास है और कर्म से एक शोध ग्रन्थ। इस उपन्यास में झारखण्ड की जनजातियों के बारे में भी विस्तार से लिखा गया है। ”


नीना पॉल के उपन्यास तलाश पर अपना लेख पढ़ते हुए नॉटिंघम की कवियत्री जय वर्मा ने कहा कि, “तलाश के पात्रों में प्रेम जीवन का अहम् हिस्सा है। जीवन के संघर्ष को एक चुनौती समझ कर वे एक कदम आगे चलते हैं और दो कदम पीछे हटते प्रतीत होते हैं। ऐसा महसूस होता है कि हर पात्र को किसी न किसी की निरंतर तलाश है। प्यार को एक बंदिश न मानकर त्याग और क़ुर्बानी की झलक इनमें दिखायी पड़ती है। ”
नीना पॉल ने कथा यू.के. के निर्णायक मण्डल को धन्यवाद देते हुए कहा, “कि उपन्यास मेरे नज़रों में कल्पना, जज़्बात और भावनाओं का संगम है। कभी कभी लेखनी का दिल भी इतना भावुक हो उठता है कि लिखने को मजबूर कर देता है। शायद यही कारण है कि मेरी कहानियों को भावनापूर्ण कहा जाता है। बिना भावनाओं के क़लम चलती भी तो नहीं है। ”
नीना पॉल का मानपत्र मुंबई से पधारीं मधु अरोड़ा ने पढ़ा तो विकास कुमार झा का मानपत्र पढ़ा दीप्ति शर्मा ने। संचालन तेजेन्द्र शर्मा ने किया। इस अवसर पर विशेष रूप से प्रकाशित किये गये प्रवासी संसार के कहानी विशेषांक (अतिथि संपादक – तेजेन्द्र शर्मा) की प्रतियां संपादक राकेश पाण्डे ने मंचासीन प्रमुख अतिथियों की दीं।
कार्यक्रम में अन्य लोगों के अतिरिक्त श्रीमती सूरी, श्री आसिफ़ इब्राहिम (मंत्री समन्वय), राकेश शर्मा (उप-सचिव हिन्दी), आनंद कुमार (हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी), गौरीशंकर (उप-निदेशक नेहरू सेन्टर), मॉस्को से लुडमिला खोखलोवा और बॉरिस ज़ाख़ारीन, भारत से परमानंद पांचाल, कृष्ण दत्त पालीवाल, केशरी नाथ त्रिपाठी, दाऊजी गुप्त, ओंकारेश्वर पाण्डेय, राकेश पाण्डेय (संपादक – प्रवासी संसार), गगन शर्मा, रूही सिंह, डा. फ़रीदा, डा. भारद्वाज, पूर्व पद्मानंद साहित्य सम्मान विजेता मोहन राणा, उषा राजे सक्सेना, दिव्या माथुर, काउंसलर के.सी. मोहन, श्याम नारायण पाण्डेय, शिखा वार्षणेय, अरुणा अजितसरिया, प्रो.अमीन मुग़ल, सरोज श्रीवास्तव, राकेश दुबे, पद्मेश गुप्त, इंदर स्याल एवं सोहन राही आदि ने भाग लिया।

लाल बिहारी लाल जनता की खोज द्वारा सम्मानित


नई दिल्लीः एन.सी.आर,नोयडा से प्रकाशित राष्ट्रीय हिन्दी मासिक पत्रिका जनता की खोज द्वारा अपने चौथे बर्षगांठ के अवसर पर एशियन फिल्म एण्ड टेलिविजन संस्थान(मारवाह स्टूडियो), नोयडा के सभागार(हॉल) में आयोजित समारोह के दौरान दिल्ली के युवा लेखक, पर्यावरणप्रेमी दिल्लीरत्न लाल बिहारी लाल को मुख्य अतिथि सलाम इण्डिया न्यूज के चेयरमैन मों यूनुस अंसारी एवं वरिष्ठ पत्रकार श्री राज कुमार अग्रवाल द्वारा मेमोंटो द्वारा सम्मानित किया गया । इस अवसर पर सागर फिल्मस् के श्री सुभाष सागर, पत्रकार सुश्री तरुणा गौड सहित मीडिया एवं साहित्य से जुड़ी दर्जनों हस्तियों को सम्मानित किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता नोयडा बिक्रीकर के उपायुक्त श्री पंकज कुमार सिंह तथा संचालन पत्रकार श्री जी.डी. शर्मा ने किया। इस कार्यक्रम में नोयडा एवं दिल्ली के सैकडो मिडियाकर्मी एवं साहित्यकर्मी मौजूद थे।
श्री लाल बिहारी लाल कोलकता से त्रिविध भाषाओं- हिन्दी, बंगला एवं अंग्रेजी में प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका साहित्य त्रिवेणी के अगामी अंक-जुलाई-सितम्बर-2011 के पर्यावरण एवं वन विशेषांक के अतिथि संपादक भी हैं। श्री लाल को पूर्व में भी वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, नई दिल्ली सहित देश की दर्जनो साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थायें विभिन्न सम्मानों से सम्मानित कर चुकी है।

आथर्स गिल्ड आफ़ इंडिया का ३६ वां अधिवेशन संपन्न हुआ


आथर्स गिल्ड आफ़ इंडिया का ३६ वां द्विदिवसीय अधिवेशन धनवटे सभागार(शंकर नगर,नागपुर) के महाराष्ट्र राष्ट्र भाषा सभा में गत २८ व २९ मई को संपन्न हुआ ।
पद्मश्री डा. श्याम सिंह ‘शशि’ ने दीप प्रज्ज्वलित करके कार्यक्रम का उद्घाटन किया। डा. श्याम सिंह ‘शशि’ ने अपने उद्घाटन भाषण में गांधी,अम्बेडकर और भारतीय साहित्य के समग्र अवयवों पर विशद विचार व्यक्त किए। आथर्स गिल्ड के केन्द्रीय सचिव डा. शिव शंकर अवस्थी ने पूर्व महासचिव श्री राजेन्द्र अवस्थी को श्रद्धांजलि देते हुए उनकी उपलब्धियों एवं संस्था के राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य का लेखा-जोखा एवं प्रतिवेदन प्रस्तुत किया तथा संस्था के दो नए अध्याय नागपुर और आगरा में बन जाने से इसकी शक्ति और क्षमता बढ़ जाने की जानकारी दी।
चैन्ने चैप्टर के अध्यक्ष बाला सुब्रमण्यम ने प्रथम सत्र की अध्यक्षता की प्रथम सत्र की गोष्ठी का विषय था ‘गांधी दर्शन और हिन्दी कविता’ इसमें बीज व्याख्यान डा. हीरा लाल बछौतिया ने दिया। डा.अहिल्या मिश्र ने इस सत्र की अध्यक्षता की । डा. सविता चड्ढा (नई दिल्ली) और मीना खोंड(हैदराबाद) ने अपने प्रपत्र प्रस्तुत किए । डा. अहिल्या मिश्र ने अपने अध्यक्षीय टिप्पणी देते हुए कहा कि गांधी दर्शन पर आधृत रचनाकारों की रचनाओं की विशेष व्याख्या प्रस्तुत की गई है ।यह युगानुरूप व्याख्या थी । तीसरे सत्र में‘डा. भीम राव अम्बेडकर साहेब और हिन्दी कविता” विषय पर प्रपत्र प्रस्तुत किए गए ।इसमें नागपुर विश्व विद्यालय की प्रो. वीणा दाढ़े ने बीज व्याख्यान दिया ।चैन्ने से पधारे श्री सेतुरमण जी ने इस सत्र की अध्यक्षता की।
चतुर्थ सत्र में ‘बाबा साहेब अम्बेडकर और हिन्दी कथा साहित्य पर आधारित दो वक्ताओं ने प्रपत्र प्रस्तुत किए गए । इसकी अध्यक्षता डा. रमा द्विवेदी ,हैदराबाद ने की। डा.श्याम सिंह शशि ने बीज व्याखयान दिया। संचालन नागपुर अध्याय की सदस्या मधु गुप्ता ने किया ।डा.रमा द्विवेदी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि- ``1935 में नासिक जिले के भेवले में आयोजित महार सम्मेलन में ही अम्बेडकर ने घोषणा कर दी थी कि- ‘‘आप लोगों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि मैं धर्म परिवर्तन करने जा रहा हूँ। मैं हिन्दू धर्म में पैदा हुआ, क्योंकि यह मेरे वश में नहीं था लेकिन मैं हिन्दू धर्म में मरना नहीं चाहता। इस धर्म से खराब दुनिया में कोई धर्म नहीं है इसलिए इसे त्याग दो। सभी धर्मों में लोग अच्छी तरह रहते हैं पर इस धर्म में अछूत समाज से बाहर हैं। स्वतंत्रता और समानता प्राप्त करने का एक रास्ता है धर्म परिवर्तन। यह सम्मेलन पूरे देश को बतायेगा कि महार जाति के लोग धर्म परिवर्तन के लिये तैयार हैं। महार को चाहिए कि हिन्दू त्यौहारों को मनाना बन्द करें, देवी देवताओं की पूजा बन्द करें, मंदिर में भी न जायें और जहाँ सम्मान न हो उस धर्म को सदा के लिए छोड़ दें।’’

अम्बेडकर की इस घोषणा पश्चात ईसाई मिशनरियों ने उन्हें अपनी ओर खींचने की भरपूर कोशिश की और इस्लाम अपनाने के लिये भी उनके पास प्रस्ताव आये। कहा जाता है कि हैदराबाद के निजाम ने तो इस्लाम धर्म अपनाने के लिये उन्हें ब्लैंक चेक तक भेजा था पर अम्बेडकर ने उसे वापस कर दिया।

डा. अम्बेडकर ने हजारों श्रद्धालुओं के साथ नागपुर में ही बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। वास्तव में वे हिन्दुत्व में रहकर ही मरना चाह्ते थे’।
२८ मई को सायं ६ बजे अखिल भारतीय कवि सम्मेलन हुआ । इसकी संयोजिका डा. सरोजिनी प्रीतम थीं। श्री सेतुरमण इसके अध्यक्ष ,डा अहिल्या मिश्रा विशेष अतिथि ,डा. शिव शंकर अवस्थी महसचिव एवं नागपुर अध्याय के संयोजक श्री नरेन्द्र परिहार ‘एकान्त’ मंचासीन हुए । इस काव्य संध्या में विभिन्न रसयुक्त एवं विविध विषयों की रचनाएं पढी गईं और उपस्थित सभी लोग काव्यधारा से अभिसिक्त हो आनन्द विभोर हो गए । मंचासीन अतिथियों के साथ पद्मश्री डा. श्याम सिंह शशि,डा. हीरा लाल बछौतिया,डा. सविता चड्ढ़ा ,विश्व आलोक (आई ए .एस.)डा. शिव शंकर अवस्थी,डा. अहिल्या मिश्रा,
डा.रमा द्विवेदी,डा. सीता मिश्रा, विनीता शर्मा, मीना खोंड, एलिजाबेथ कुरिअन, डा.रेखा कक्कड़, डा.अमी अधर निडर,डा.सुषमा सिंह ,श्री महेश सिलवी ,श्री बाला सुब्रमण्यम पी.आर.बासुदेवन शेष,विनीता शर्मा ,ज्योति नारायण,सम्पत मुरारका ,सेतुरमण,सी. मणिकंठन,डा. भारतेन्दु शुक्ल,गुरु प्रताप शर्मा,शशिवर्धन शर्मा ,शैलेश,अरुण मुनेश्वर,मधु गुप्ता, मधु पटौदिया,मधु शुक्ला,प्रभा मेहता,सुधा कौसिव ,एवं उमेश नेमा आदि ने काव्य पाठ किया।

Tuesday, June 28, 2011

डायलॉग गोष्ठी में हुआ सजीव सारथी की पुस्तक 'एक पल की उम्र लेकर' का लोकार्पण

आप इस पूरे कार्यक्रम को सुन भी सकते हैं, आपको ऐसा प्रतीत होगा कि आप भी कार्यक्रम में उपस्थित हैं। नीचे के प्लेयर से सुनें-

कुल प्रसारण समय- 2 घंटा 19 मिनट । अपनी सुविधानुसार सुनने के लिए यहाँ से डाउनलोड करें।

हर महीने के आखिरी शनिवार को अकादमी ऑफ फाईन आर्ट्स एंड लिटरेचर में होने वाली काव्यात्मक गोष्ठी “डायलॉग” इस बार 25 जून को संपन्न हुई। कार्यक्रम तीन चरणों में संपन्न हुआ। सबसे पहले भारत के पिकासो मकबूल फ़िदा हुसैन और कवि रंजीत वर्मा की माता को श्रद्धांजलि अर्पित की गयी। उसके बाद हिन्दयुग्म के आवाज़ मंच के संपादक एवं युवा कवि सजीव सारथी की पुस्तक “एक पल की उम्र लेकर” का विमोचन करते हुए ब्रजेन्द्र त्रिपाठी ने कहा कि सजीव की कविताओं पर उनके मलयाली होने की छाप नहीं है वो पूरी तरह से हिंदी की कविताएँ हैं। सहज भाषा के साथ साथ सजीव सारथी की कविताएँ प्रतीकों के माध्यम से आज के हालत का अच्छा जायजा लेती हैं। इसके बाद डायलाग के संचालक एवं कवि मिथिलेश श्रीवास्तव नें सजीव सारथी की कविताओं पर विशेष टिप्पणी की। इन विशेष टिप्पणियों के बाद सजीव सारथी ने अपनी कविताओं का पाठ किया जो जीवन और समाज के विभिन्न पहलुओं को छू रही थीं। एक तरफ उनकी कविताओं में मुंबई में उत्तर भारतीयों पर होने वाले अत्याचारों का दर्द था तो दूसरी तरफ ‘गरेबाँ’ जैसी कविता में आत्मविश्लेषण था। “नौ महीने” जैसी कविता में उन्होंनें एक माँ की भावनाओं को छूने की कोशिश की।

एक पल की उम्र का लोकार्पण ब्रजेन्द्र त्रिपाठी (दाहिने से क्रमशः दिनेश कुमार शुक्ल,ब्रजेन्द्र त्रिपाठी,मिथिलेश श्रीवास्तव,सजीव सारथी) द्वारा हुआ

खुशबुओं की एक पूरी दुनिया
कवियों की एक नयी जमात की खोज हुई है। उनकी महत्वाकांक्षाएं एक दम अलग हैं। वे दीवार पर कविता लिखते हैं, ब्लॉग पर कविता लिखते हैं। वे अलक्षित पाठक के लिए कविता लिखते हैं। उन्हें प्रचार नहीं चाहिए, अपने सामने बैठे श्रोता नहीं चाहिए, उन्हें समीक्षकों की राय नहीं चाहिए। उनकी कविता पर आलोचकीय निगाह रखने वाली आँखें नहीं चाहिए। वे इन आँखों से सहमे भी नहीं होते। ब्लॉग पर कविता लिख दिया, किसी ने पढ़ लिया, किसी ने कुछ लिख दिया। काफी दिन तक उनकी कविता अलक्षित भी रह गयी तो कोई बात नहीं। वे इस जल्दी में रहते भी नहीं हैं कि कोई अभी उनकी कविता पढ़ ले, कोई उनका संग्रह छपवा दे, कोई कुछ टिप्पणी कर दे।
शैलेश भारतवासी, हिन्दयुग्म जिनका अपना ब्लॉग हैं, ऐसे कवियों को यूनिकोडीय कवि कहते हैं। शायद इसलिए कि वे लोग इन्टरनेट पर हिंदी भाषा के यूनिकोडीय रूप में कविता लिखते हैं। शैलेश, ऐसे कवियों को जो देवदूतों की तरह छिपे रहते हैं, धरती पर उतारने की कोशिश करते हैं, इन्टरनेट के बाहर इन लोगों को दुनिया में पहचान देने की कोशिश करते हैं। ऐसे कवियों की एक पुस्तक “सम्भावना डॉट कॉम” शैलेश भारतवासी नें पिछले दिनों छापी थी। उन कविताओं को पढकर यह एहसास हुआ कि वे कविताएँ सहज, सीधी और साफ़ अभिव्यक्ति की बड़ी मिसाल हैं। इसी संग्रह के मार्फ़त कुछ यूनिकोडीय कवियों से परिचय हुआ था। अकादमी ऑफ फाइन आर्ट्स एंड लिटरेचर के डायलॉग कार्यक्रम में ऐसे कुछ कवियों का कविता पाठ भी हुआ था। सजीव सारथी उन्हीं में से एक यूनिकोडीय कवि है। इन्टरनेट पर कविता लिखने वाले, स्वाभाव से संकोची, व्यव्हार में सरल। सरलता और संकोच के मिलने से एक अलग इंसान का निर्माण होता है। वह इंसान अच्छा इंसान होता है। सजीव अच्छे इंसान हैं। उनकी यह अच्छाई उनकी कविता में भी झलकती है, उनके व्यव्हार में झलकती है और उनकी पारदर्शी आँखों में झलकती है। वे मलयाली हैं, इसलिए हिंदी भाषा के उनके उच्चारण में एक अलग मिठास है।
“एक पल की उम्र लेकर” उनके नये संग्रह का नाम है। इसे केरल के हेवेन्ली बेबी बुक्स प्रकाशन नें छापा है। यह उनकी पहली किताब है। उनकी एक कविता है “सूरज” जो एक स्मृति-कोष की तरह है। अनेक नॉस्टैल्जिक स्मृतियों से परिपूर्ण। लेकिन यह सिर्फ नॉस्टैल्जिक होना नहीं है बल्कि मानुष की संवेदनाओं को अनेक स्तरों पर महसूस करने की कोशिश है। सूरज कविता में दो पंक्तियों के मुहावरे जैसी एक टिपण्णी है जो पिछले सात वर्षों की राजनीति का ऐतिहासिक दस्तावेज़ सी लगती है। “आज बरसों बाद / खुद को पाता हूँ / हाथ में लाल गेंद फिर लिए बैठा -एक बड़ी चट्टान के सहारे।“ इन पंक्तियों को पढ़ते हुए मुझे सी पी एम् और कांग्रेस के गलबहियों के दिन याद आते रहे। “किसी नदी की तरह” कविता में एक बोतल में दोनों के रहने का दृश्य है- एक देवता, एक शैतान। “साहिल की रेत” की पंक्तियाँ हैं “उन नन्ही / पगडंडियों से चलकर हम / चौड़ी सड़कों पर आ गए।“ इन पंक्तियों में प्राकृतिक जीवन की सरलता है, तो विस्थापन का दंश भी है। नन्ही पगडंडियाँ मासूमियत और तकलीफों की प्रतीक हैं। पगडंडियों से चौड़े रास्ते पर चले जाना विस्थापन है जो असंगत प्रकृति विरोधी विकास के अवधारणाओं का विरोध भी है।

सजीव मलयाली हैं, जाहिर है कि एक प्रकृति संपन्न, पानी से भी तरल जीवन को छोड़कर आने वाले लोगों में से हैं। उत्तर भारत के विस्थापन के दर्द से भी अधिक गहरा दर्द मलयालम प्रदेश से विस्थापन का है। इस विस्थापन के संघर्ष में प्यार और अपनापे की भी उपस्थिति है। “तुम्हारी रसोई से उठती उस महक को / पहचानती है मेरी भूख अब भी।“ इन पंक्तियों में महक और भूख के रिश्ते को रेखांकित किया गया है। बचपन की स्मृतियों में कई खुशबुओं की भी स्मृति है। वे खुशबुएँ अब कहीं से नहीं आती हैं। खुशबुओं की एक पूरी दुनिया हुआ करती थी, वह दुनिया कहाँ गयी..! आधुनिक और विकासशील बनने की अंधी दौड़ में वे खुशबुएँ भी गायब हो गयी हैं। खैर, जब से सभ्यता है, विकास है हम बहुत कुछ खोते हुए आज यहाँ पहुँचे हैं। मान लें कि पाँच हज़ार ही पुराने सभ्य मनुष्य हैं, तो याद रखने की बहुत सारी चीज़ें हमने खो दी हैं। याद रखने की नयी चीजें हमनें बनायीं नहीं हैं। सिर्फ खोना है, पाना कुछ भी नहीं है, यह बात सजीव की किताब में फैली हुई है जो मेरे लिए महत्वपूर्ण है। कविता बहुत कुछ बताती है।
- मिथिलेश श्रीवास्तव

सजीव सारथी की पुस्तक "एक पल की उम्र लेकर" पर मिथिलेश श्रीवास्तव की टिप्पणी


सजीव सारथी की काव्यपाठ के बाद डायलॉग गोष्ठी में आमत्रित कवियों का काव्यपाठ ब्रजेन्द्र त्रिपाठी की अध्यक्षता और शिवमंगल सिद्धांतकर जैसे रचनाकारों की सानिध्य में शुरू हुआ। गजरौला से आये युवा कवि अखिलेश श्रीवास्तव नें सबसे पहले कविता पाठ किया और अपनी पहली कविता उन्होंनें सजीव सारथी के व्यक्तित्व को समर्पित कर दी। इसके बाद उन्होंनें अपनी क्षणिकाओं चीनी, गेहूँ, चावल, दाल से बढती हुई महंगे पर टिप्पणियां की तो दूसरी तरफ नारी, बेटी, माँ, पत्नी व बहन जैसी रचनाओं से रिश्तों के महत्व को रेखांकित किया। कर्ज में कोंपल नाम की कविता नें अखिलेश के काव्यात्मक विस्तार को स्पष्ट किया और किसानों द्वारा की जाने वाले आत्महत्या के कारणों की पड़ताल की। उसके बाद आये कवि स्वप्निल तिवारी नें कुछ ग़ज़लों का पाठ किया और माहौल का रुख मोड़ने की कोशिश की, एक “शामो-सहर” और “तुम आओ तो’ कविताओं में प्रेम के रोमान को छूने की कोशिश की और दूसरी तरफ “खिड़कियाँ” नामक कविता में खिड़की को नए ढंग से देखने और दिखाने की कोशिश की। उसके बाद आई कवियित्री सुनीता चोटिया नें “बुड्ढा है कि मरता नहीं” नाम की कविता का पाठ किया जिससे माहौल को हल्का हो गया तथा “धरती का गीत” नाम के गीत से लयात्मक माहौल के रचना हुई। सुनीता चोटिया के बाद एक और कवियित्री रजनी अनुरागी नें अपनी विभिन्न रंगों से सजी कविताओं का पाठ किया जिसमें एक तरफ “भूख” जैसी कविता थी तो दूसरी तरफ प्रेम के एहसासों से सराबोर “तुम्हारा कोट” जैसी कविता सुनाई। जनज्वार नाम की कविता ने तहरीर चौक का उदाहरण देकर क्रांति की संभावनाओं की तरफ ध्यान खींचा। इसके बाद आये उर्दू शायर अब्दुल क़ादिर नें अपनी ग़ज़लों से माहौल को ही बादल दिया और एक तरफ प्यार के रूहानी एहसास से भरे “हिचिकियां आ रही हैं रह रह कर/ यानि तुम आज भी सलामत हो” जैसे शेर सुनाये तो दूसरी तरफ “प्यार से बोलना भी मुश्किल है/ लोग तो घर बसाने लगते हैं जैसे हल्के फुल्के शेर भी सुनाये जिन्होनें माहौल को बादल दिया। आज कल के फैले भ्रष्टाचार की तरफ इशारा करते हुए उन्होंनें शेर कहा “एक दिन तीरगी में रह कर देख/ कितने घर जगमगाने लगते हैं”।

काव्यपाठ करते अजय नावरिया
इसके बाद अजय नावरिया नें “नए पौधों के लिए सप्रेम” नाम की कविता से अपनी कविता यात्रा शुरू की। “संघम शरणम गच्छामि” नाम की कविता में उन्होंनें समूह की शक्ति को स्पष्ट किया, सड़क नाम की कविता से गाँव के कई सरोकार उन्होंनें जोड़े और दिखाए। “सफाई के बाद महानगर” में उन्होंनें झुग्गियों के हटाये जाने के दर्द को महसूस किया। तेजेन्द्र लूथरा की कविताओं जिस भी दिशा में गयीं बहुत ही गहरे भाव लिए हैं, उनकी “मुहब्बत” और “अंतराल” नाम की कविताओं में भरे अर्थों में “गागर में सागर” वाली कहावत को चरितार्थ किया वहीं “अस्सी घाट का बाँसुरी वाला” में एक आरती के क्रांति गीत पे परिवर्तित हो जाने का दृश्य था जो अंत में क्रांति का छद्म आवरण भी उतरता है। इसके अलावा उन्होंनें सर्वत्र का भला नाम की कविता का भी पाठ किया।


अपने विचार व्यक्त करते शिवमंगल सिद्धांतकर, साथ में हैं मिथिलेश श्रीवास्तव
तेजेन्द्र लूथरा के कविता पाठ के बाद दिनेश कुमार शुक्ल नें ब्लॉगस पर उपस्थित कविताओं की शुद्धता पर बात की और कहा कि वो बहुत निर्मल हैं जिनमें एक उदासी के बावजूद उम्मीद है। उन्होंनें यह भी कहा कि बदलते हुए समय के साथ हमारी अभिव्यक्ति बदली है लेकिन हमारी भाषा में उसे व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं हैं और दूसरी भाषा का प्रयोग करना पड़ता है। इस लिए अपनी भाषा के नए शब्दों की इजाद बहोत आवश्यक है। शिवमंगल सिद्धांतकार नें कविता और क्रांति के संबंध को स्पष्ट किया और बताया कि ये एक दूसरे को परस्पर किस तरह प्रभावित करते हैं। अपने अध्यक्षीय भाषण में केन्द्रीय साहित्य अकादमी के उप सचिव ब्रजेन्द्र त्रिपाठी नें दिनेश कुमार शुक्ल द्वारा बताई गयी समस्या का निदान बतायाकि खुद को अभिव्यक्त करने के लिए जिन शब्दों की कमी पड़ रही हैं उन्हें हिंदी की विभिन्न बोलियों से आयातित करने चाहिए। उन्होंनें कविता के सम्प्रेषण के लिए विभिन्न फेसबुक और ट्विट्टर जैसे माध्यमों को समझने की आवश्यकता पर भी बल दिया।

Monday, June 27, 2011

'परिचय साहित्य परिषद’ की ‘विष्णु प्रभाकर स्मृति नमन’ गोष्ठी संपन्न



वर्ष 2011 जन्म शताब्दियों का वर्ष है. हिंदी के कुछ गणमान्य साहित्यकारों के जन्म को एक शताब्दी हो चली परन्तु इन महान् विभूतियों ने साहित्य के माध्यम से अपने व्यक्तित्व की जो अमिट छाप छोड़ी, यही हमारे समाज की अनमोल उपलब्धि व वरदान है. 21 जून 1912 को जन्मे, अमर कृति ‘आवारा मसीहा’ व अमर कहानियों ‘धरती अब भी घूम रही है’ के रचयिता विष्णु प्रभाकर के जन्म शताब्दी वर्ष के समारोह प्रारंभ हो चुके हैं. इस की शुरूआत 21 जून 2011 को साहित्य अकादमी सभागार में विष्णु प्रभाकर के सुपुत्र श्री अतुल प्रभाकर ने कर दी थी. दि. 23 जून 2011 को उर्मिल सत्यभूषण की साहित्यिक संस्था ‘परिचय साहित्य परिषद’ की ओर से भी नई दिल्ली के ‘रशियन कल्चरल सेंटर’ के सभागार में भी एक विचारोत्तेजक शाम विष्णु जी की स्मृति को समर्पित की गई. इस सभा की अध्यक्षता सुविख्यात साहित्यकार डॉ. महीप सिंह ने की तथा इस में डॉ. बलदेव वंशी व डॉ. धर्मवीर मुख्य अतिथि थे. इस सभा को श्री पंकज बिष्ट का सान्निध्य भी प्राप्त हुआ.
‘लेकिन दरवाज़ा’, ‘उस चिड़िया का नाम’ व ‘पंखों वाली नाव’ जैसे चर्चित उपन्यासों के रचनाकार पंकज बिष्ट ने सब से पहले अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि विष्णु प्रभाकर जिन सिद्धांतों को स्वयं मानते थे, उन्हीं पर वे जीवन भर चले तथा किसी भी प्रकार का दोगलापन उनके आचरण में नहीं था. पंकज बिष्ट ने जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात कही वह यह कि विष्णु जी ने किसी भी प्रकार की धार्मिकता से ऊपर उठ कर अपने पार्थिव शरीर के बारे में में पहले ही घोषित कर दिया था कि उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार न कर के उसे चिकित्सा विज्ञान के शोधार्थियों को दे दिया जाए ताकि वे चिकित्सा के अपने अध्ययन में उनके शरीर का उपयोग कर सकें. विष्णु जी बेहद अनुशासन में रहने वाले व्यक्ति थे. पंकज बिष्ट ने यह भी कहा कि जब विष्णु जी उनसे व्यक्तिगत रूप में अपने पार्थिव शरीर संबंधी अंतिम इच्छा व्यक्त करते थे तब पंकज जी को सहज ही विश्वास नहीं आता था परन्तु अंततः वह हो कर रहा. पंकज बिष्ट ने कहा कि इतने बड़े साहित्यकार होते हुए भी विष्णु जी नई दिल्ली के मोहन सिंह प्लेस के ‘इंडियन कॉफी हाऊस’ में आ कर लेखकों से मिलने में किसी प्रकार का संकोच महसूस नहीं करते थे जबकि अधिकांश गणमान्य साहित्यकार इस प्रकार कॉफी हाऊस जा कर साहित्यकारों से गुफ्तगू करने को अपनी शख्सियत से कमतर की बात मानते थे.




डॉ. बलदेव वंशी जिन्होंने पिछले कुछ वर्षों में ‘दिल्ली टी हाऊस – आधी सदी की साहित्यिक हलचल’, ‘भारतीय संत परंपरा’ तथा ‘भारतीय नारी संत परंपरा’ जैसी महत्वपूर्ण कृतियाँ दी हैं, ने अपने वक्तव्य में कहा कि विष्णु जी नए से नए रचनाकार से भी हाथ मिला कर आत्मीयता द्वारा उसके संकोच को सर्वथा दूर कर के मिलते थे और कि उन की शख्सियत में पहाड़ों जैसी उच्चता व समुद्र जैसी गहनता एक साथ थी. समुद्र और पहाड की विशिष्टता ऋत और सत्य पर आधारित होती है अतः वे (विष्णु प्रभाकर) यथार्थवादी न हो कर वास्तव में सत्यार्थवादी थे. विष्णु जी गांधीवादी नहीं थे वरन् उनके भीतर के संस्कार मुखर रूप से आर्यसमाजी थे. इन्हीं कारणों से धर्म, जाति, संप्रदाय, व प्रान्त ये सभी विभाजन उनके लिये अर्थहीन थे.
डॉ. धर्मवीर ने विष्णु प्रभाकर के व्यक्तित्व व कृतित्व पर एक बहु चर्चित पुस्तक लिखी है : ‘लोकायत वैष्णव विष्णु प्रभाकर’ तथा विष्णु जी के साहित्य अकादमी पुरस्कृत उपन्यास अर्द्ध नारीश्वर पर काफी कार्य किया है. उन्होंने कहा कि विष्णु जी दलित चेतना व नारी चेतना के सशक्त पक्षधर थे. डॉ. धर्मवीर ने कहा कि यह कितने खेद की बात है कि आज भी दलित को नीचे समझा जाता है और उस से कूड़ा व गंदगी उठाने का कार्य करवाने की प्रथा है.



डॉ. महीप सिंह ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि विष्णु प्रभाकर के सम्पूर्ण साहित्य का मूल्यांकन होना चाहिए. विष्णु जी ने अपने चिंतन के द्वारा जो आदर्श स्थापित किये, समाज संरचना की जो कल्पना उन्होंने की, उसे कैसे चरितार्थ किया, इस पर शोधार्थियों का ध्यान जाना चाहिए. डॉ. महीप सिंह ने दलितों के प्रति विष्णु प्रभाकर की पक्षधरता की ओर संकेत करते कहा कि आज भी हम कैसे कहें कि समय बदल चुका है क्योंकि आज भी कई जगह दलित महिला रसोइयों के हाथ का खाना उच्च जाति के बच्चे खाने से मना कर देते हैं तथा आज भी किसी उच्च जाति के कुत्ते को यदि कोई दलित व्यक्ति भोजन खिलाता है तो वह कुत्ता ही अपवित्र मान लिया जाता है. उन्होंने भी विष्णु प्रभाकर को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि इस महापुरुष ने अपने शरीर को शोधार्थी डॉक्टरों को समर्पित कर दिया ताकि वे उनके शरीर का उपयोग चिकित्सा संबंधी शोध के लिये कर सकें.
इस सभा का संचालन स्वयं उर्मिल सत्यभूषण ने किया तथा अंत में श्री अनिल वर्मा मीत ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया.

रिपोर्ट – प्रेमचंद सहजवाला
चित्र- निशा निशांत

फ़ज़ल इमाम मल्लिक को ‘चित्रगुप्त सम्मान’

साहित्यकार, स्तंभकार और पत्रकार फ़ज़ल इमाम मल्लिक को रोशनी दर्शन मीडिया प्राइवेट लिमिटेड ने साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए चित्रगुप्त सम्मान से सम्मानित किया। यह सम्मान रोशनी दर्शन मासिक पत्रिका के स्वर्णिम दस साल पूरे होने के उपलक्ष में दिया गया। फ़ज़ल इमाम मल्लिक हिंदी दैनिक ‘जनसत्ता’ से जुड़े हैं। उन्होंने साहित्यिक पत्रिका ‘सनद’ और ‘ऋंखला’ का संपादन भी किया। इसके अलावा काव्य संग्रह ‘नवपल्लव’ और लघुकथा संग्रह ‘मुखौटों से परे’ का संपादन भी कर चुके हैं। दूरदर्शन के उर्दू चैनल से उन पर एक ख़ास कार्यक्रम ‘सिपाही सहाफत के’ प्रसारित हुआ है। यह सम्मान उन्हें दिल्ली के राजेंद्र भवन में आयोजित एक समारोह में दिया गया। फ़ज़ल इमाम मल्लिक के अलावा अवार्ड ग्रहण करने वाले प्रमुख लोगों में ‘न्यूज 24’ के सीनियर प्रोड्यूसर अशोक कौशिक, ‘न्यूज 24’ की कैमरा पर्सन रेणु शर्मा, ‘आज तक’ के प्रोड्यूसर सुशील शर्मा और ‘हिंदुस्तान’ से सीनियर कॉपी एडिटर शरद पांडे।


चित्रगुप्त सम्मान ग्रहण करते हुए फज़ल इमाम मल्लिक

इस मौके पर रोशनी दर्शन पत्रिका के संपादक सुशील श्रीवास्तव ने अतिथियों का स्वागत किया और पत्रिका के दस वर्ष पूरे होने पर पाठकों व साथियों का शुक्रिया अदा किया। इस कार्यक्रम में एसआईएस के प्रबंध निदेशक आर.के.सिन्हा, कपाली बाबा, इंस्टीट्यूट ऑफ पोलिटकल लीडरशिप के डायरेक्टर शहनवाज चौधरी व कई मशहूर हस्तियां उपस्थित थी।

आम आदमी की पीड़ा का कवि - शैलेन्द्र


(बाएं से मोनिका मोहता, विरेन्द्र शर्मा – एम.पी., कैलाश बुधवार, ज़किया ज़ुबैरी, आनंद कुमार तेजेन्द्र शर्मा।)
(लंदन – 18 जून, 2011), शैलेन्द्र एक नई दुनिया का सपना देखते हैं। उन्हें अपने वर्तमान से शिकायतें ज़रूर हैं मगर अंग्रेज़ी के कवि शैली की तरह वे भी सोचते हैं कि इक नया ज़माना ज़रूर आएगा। फ़िल्म बूट पॉलिश में शैलेन्द्र लिखते हैं “आने वाली दुनियां में सबके सर पर ताज होगा / ना भूखों की भीड़ होगी ना दुःखों का राज होगा / बदलेगा ज़माना ये सितारों पे लिखा है।”और यह सब वे बच्चों के मुंह से कहलवाते हैं - बूट पॉलिश करके पेट पालने वाले बच्चे जिन्हें “भीख में जो मोती मिले, वो भी हम ना लेंगे / ज़िन्दगी के आंसुओं की माला पहनेंगे।” यह कहना था प्रसिद्ध कथाकार एवं कथा यू.के. के महासचिव तेजेन्द्र शर्मा का। वे नेहरू सेंटर, लंदन, एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स एवं कथा यू.के. द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम आम आदमी की पीड़ा का कवि - शैलेन्द्र में अपनी बात कह रहे थे।


अपनी बात कहते तेजेन्द्र शर्मा

तेजेन्द्र शर्मा का मानना है कि शैलेन्द्र क्योंकि एक प्रगतिशील कवि थे, उन्होंने फ़िल्मों में भी अपनी भावनाओं को फ़िल्मों के चरित्रों, परिस्थितियों, और अपने गीतों के माध्यम से प्रेषित किया। वे इस मामले में भाग्यशाली भी थे कि उन्हें राज कपूर, शंकर जयकिशन, हसरत जयपुरी, ख़्वाजा अहमद अब्बास और मुकेश जैसी टीम मिली। अब्बास की कहानी और थीम, राज कपूर का निर्देशन और अभिनय और शंकर जयकिशन के संगीत के माध्यम से शैलेन्द्र गंभीर से गंभीर मसले पर भी सरल शब्दों में गहरी बात कह जाते थे।
जिस देश में गंगा बहती है फ़िल्म के एक गीत में शैलेन्द्र गीतकार की परिभाषा देते हैं, “काम नये नित गीत बनाना / गीत बना के जहां को सुनाना / कोई ना मिले तो अकेले में गाना।” तो वहीं पतिता में यह भी बता देते हैं कि “हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं / जब हद से गुज़र जाती है ख़ुशी, आंसू भी निकलते आते हैं।”
तेजेन्द्र ने बात को आगे बढ़ाते हुए बताया कि कथाकार भीष्म साहनी का मानना था कि शैलेन्द्र के हिन्दी फ़िल्मों के जुड़ने से फ़िल्मी गीत समृद्ध होंगे और उनमें साहित्य का पुट जुड़ जाएगा। वहीं गुलज़ार का कहना है, “बिना शक़ शैलेन्द्र को हिन्दी सिनेमा का आज तक का सबसे बड़ा लिरिसिस्ट कहा जा सकता है। उनके गीतों को खुरच कर देखें तो आपको सतह के नीचे दबे नए अर्थ प्राप्त होंगे. उनके एक ही गीत में न जाने कितने गहरे अर्थ छिपे होते हैं।”
शैलेन्द्र को मिले सम्मानों के बारे में तेजेन्द्र शर्मा ने कहा, “हालांकि शैलेन्द्र ने अपना बेहतरीन काम आर.के. प्रोडक्शन्स के लिये किया, मगर उन्हें कभी उन गीतों के लिये सम्मान नहीं मिला। उन्हें तीन फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड मिले यह मेरा दीवानापन है (यहूदी), सब कुछ सीखा हमने, ना सीखी होशियारी (अनाड़ी), मैं गाऊं तुम सो जाओ (ब्रह्मचारी)। उनका कहना था कि इससे ज़ाहिर होता है कि उस ज़माने में गीत लेखकों की गुणवत्ता कितनी ऊंचे स्तर की रही होगी। शायद उसे भारतीय फ़िल्मी गीत लेखन का सुनहरा युग कहा जा सकता है जब शैलेन्द्र, साहिर, शकील, कैफ़ी आज़मी, मजरूह सुल्तानपुरी, राजेन्द्र कृष्ण, जांनिसार अख़्तर, राजा मेंहदी अली ख़ान, भरत व्यास, नरेन्द्र शर्मा, पण्डित प्रदीप, और हसरत जयपुरी जैसे लोग हिन्दी फ़िल्मों के लिये गीत लिख रहे थे। उस समय की प्रतिस्पर्धा सकारात्मक थी, जलन से भरपूर नहीं। हर गीतकार दूसरे से बेहतर लिखने का प्रयास करता था।
तेजेन्द्र शर्मा के अनुसार शैलेन्द्र, शंकर जयकिशन और राज कपूर की महानतम उपलब्धि श्री 420 है। इसके गीतों की विविधता और आम आदमी के दर्द की समझ शैलेन्द्र के बोलों के माध्यम से हमारी शिराओं में दौड़ने लगती है। “छोटे से घर में ग़रीब का बेटा / मैं भी हूं मां के नसीब का बेटा / रंजो ग़म बचपन के साथी / आंधियों में जले दीपक बाती / भूख ने है बड़े प्यार से पाला।” इस फ़िल्म में मुड़ मुड़ के ना देख, प्यार हुआ इक़रार हुआ, मेरा जूता है जापानी जैसे गीत एक अनूठी उपलब्धि हैं।
बचपन में ही अपनी मां को एक हादसे में खो चुके शैलेन्द्र पूरी तरह से नास्तिक थे। मगर फ़िल्मों के लिये वे “भय भंजना वन्दना सुन हमारी” (बसन्त बहार), “ना मैं धन चाहूं, ना रतन चाहूं” (काला बाज़ार), “कहां जा रहा है तू ऐ जाने वाले” (सीमा), जागो मोहन प्यारे (जागते रहो) जैसे भजन भी लिख सकते थे। उनका लिखा हुआ राखी का गीत आज भी हर रक्षाबंधन पर सुनाई देता है, “भैया मेरे, राखी के बंधन को निभाना।”
शैलेन्द्र ने अपना अधिकतर काम शंकर जयकिशन के लिये किया। मगर सचिन देव बर्मन, सलिल चौधरी, रौशन और सी. रामचन्द्र के लिये भी गीत लिखे। शैलेन्द्र के लेखन में वर्तमान जीवन के प्रति आक्रोश अवश्य है मगर मायूसी नहीं। विद्रोह है, क्रांति है, हालात को समझने की कूवत है मगर निराशा नहीं है – वे कहते हैं तूं ज़िन्दा है तू ज़िन्दगी की जीत पे यक़ीन कर, अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर ।
अपने एक घन्टे तीस मिनट लम्बे पॉवर पॉइण्ट प्रेज़ेन्टेशन में तेजेन्द्र शर्मा ने जिस देश में गंगा बहती है, अनाड़ी, पतिता, संगम, श्री 420, जंगली, बूट पॉलिश, गाईड, काला बाज़ार, छोटी बहन, जागते रहो, छोटी छोटी बातें, आदि फ़िल्मों के गीत स्क्रीन पर दिखाए।
कार्यक्रम की शुरूआत में कथा यूके के फ़ाउण्डर ट्रस्टी सिने स्टार नवीन निश्चल को श्रद्धांजलि दी गई। नवीन निश्चल का हाल ही में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। उनकी फ़िल्म बुड्ढा मिल गया का गीत “रात कली इक ख़्वाब में आई.. ” उन्हें श्रद्धांजलि स्वरूप दिखाया गया। मंच पर श्री कैलाश बुधवार का कथा यू.के. के नये अध्यक्ष के रूप में स्वागत किया गया। धन्यवाद ज्ञापन नेहरू सेंटर की निदेशिका मोनिका मोहता ने दिया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री विरेन्द्र शर्मा एवं काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी के अतिरिक्त श्री आनंद कुमार (हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी), श्री जितेन्द्र कुमार (भारतीय उच्चायोग), गौरी शंकर (उप-निदेशक, नेहरू सेंटर), कैलाश बुधवार, उषा राजे सक्सेना, के.बी.एल. सक्सेना, असमा सूत्तरवाला, रुकैया गोकल, अब्बास गोकल, वेद मोहला, अरुणा अजितसरिया, उर्मिला भारद्वाज, आलमआरा, निखिल गौर, दीप्ति शर्मा आदि शामिल थे।

Thursday, June 23, 2011

निमंत्रणः विष्णु प्रभाकर स्मृति नमन



निमंत्रण
(विष्णु प्रभाकर स्मृति नमन)
परिचय साहित्य परिषद
रशियन कल्चरल सेंटर के सम्मिलित तत्वावधान में
दि. 23 जून 2011 को विष्णु प्रभाकर के 100 वें जन्म-दिवस के उपलक्ष में ‘विष्णु प्रभाकर स्मृति नमन’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया है. आप सभी इस कार्यक्रम में सादर आमंत्रित हैं.
गोष्ठी अध्यक्ष : डॉ. महीप सिंह.
मुख्य अतिथि : डॉ. बलदेव वंशी
विशिष्ट सान्निध्य : श्री पंकज बिष्ट
विशिष्ट वक्ता : डॉ. धर्मवीर व डॉ. अर्चना त्रिपाठी
स्थान : 24 फिरोज़शाह रोड, नई दिल्ली
दि. 23 जून 2011  -  समय : सायं 5.30 बजे.
निवेदक : उर्मिल सत्यभूषण
अध्यक्ष : परिचय साहित्य परिषद
फोन: 9910402779 (उर्मिल सत्यभूषण)
011-23329100 (रशियन कल्चरल सेंटर).