Friday, December 31, 2010

मनोज तिवारी को भोजपुरी रतन सम्मान



नई दिल्ली: भोजपुरी गायक व सिने सुपर स्टार मनोज तिवारी को पूर्वांचल एक्सप्रेस और भोजपुरी संसार पत्रिका समूह ने भोजपुरी रतन सम्मान से सम्मानित किया। यह सम्मान उन्हें भोजपुरी सिनेमा, संगीत और फिल्म के माध्यम से विश्व स्तर पर भोजपुरी भाषा के प्रचार-प्रसार करने हेतु दिया गया। कुछ माह पूर्व पूर्वांचल एक्सप्रेस ने भोजपुरी रतन के चुनाव के लिए एक सर्वे कराया था, जिसमें २५ भोजपुरी रतन व भोजपुरिया विभूति का चुनाव किया गया। उसमें मनोज तिवारी के लिए सबसे ज्यादा लोगो ने अपनी सहमति जताई थी। मनोज तिवारी को यह सम्मान पूर्वांचल एक्सप्रेस व भोजपुरी संसार के कुलदीप श्रीवास्तव, मीडिया क्लब ऑफ़ इंडिया के आनंद प्रकाश और जाने माने भोजपुरी साहित्यकार मनोज भावुक ने संयुक्त रूप से प्रदान किया।

मनोज तिवारी के बिग बॉस से निकलने के बाद भी पूर्वांचल ने भोजपुरिया प्रदेश में एक सर्वे कराया था जिसमें लोगों से यह पूछा गया था कि आप किसको सबसे ज्यादा पसंद करते हैं - सलमान खान या मनोज तिवारी। तो इस में भी मनोज तिवारी ने बाजी मार ली और वह सलमान खान पर बीस साबित हुए।

इसी सर्वे में यह भी पूछा गया था कि क्या मनोज तिवारी बिग बॉस के घर के अंदर भोजपुरी का प्रचार-प्रसार किये तो कुछ लोग मायूस भी थे कि उन्होंने वहाँ पर बहुत कम भोजपुरी बोली या भोजपुरी गाना कम गाया। पर अधिकतर लोगों का यही कहना था कि मनोज तिवारी ने बिग बॉस के अंदर जो छठ पूजा की वह एक तरह से भोजपुरी का हीं प्रचार-प्रसार है। और बिग बॉस के घर में छठ पूजा करना भोजपुरी भाषियों के लिए एक ऐतिहासिक घटना ही थी। सर्वे में अधिकतर लोगों का यह भी कहना था कि मनोज तिवारी को वोट कम नहीं मिले थे। उनको एक साजिश के तहत निकाला गया था। इस बात को लेकर भोजपुरिया समाज में बहुत रोष है।

महेश दर्पण ‘पुश्किन के देस में’



‘रूस के बारे में अभी तक जो संस्मरण या यात्रा वृत्तान्त हिंदी में प्रकाशित हुए थे, वे सभी उन लेखकों ने लिखे थे जो आज से बीस-पच्चीस साल पहले यानी सोवियत काल में रूस गए थे. सोवियत संघ के बिखराव के बाद रूस काफी बदल गया है. रूस का जीवन भी अब पहले जैसा नहीं रहा. महेश दर्पण ने हाल ही में रूस की यात्रा करने के बाद इसी बदले हुए ज़माने का बेहद आत्मीय, सच्चा और सहज चित्र प्रस्तुत किया है’ यह परिचय है ‘सामयिक प्रकाशन’ द्वारा प्रकाशित महेश दर्पण की सद्यप्रकाशित यात्रा वृत्तान्त पुस्तक ‘पुश्किन के देस में’ का जो रूसी साहित्यकार ल्युद्मीला ख्खलोवा द्वारा इसी पुस्तक के फ्लैप पर दिया हुआ है.
महेश दर्पण हिंदी साहित्य जगत व पत्रकारिता के एक जाने माने हस्ताक्षर हैं जिन्होंने ‘अपने हाथ’ ‘चेहरे’ ‘मिट्टी की औलाद’ ‘वर्त्तमान में भविष्य’ ‘जाल’ ‘इक्कीस कहानियां’ ‘एक चिड़िया की उड़ान’ आदि जैसे सशक्त कहानी संग्रह हिंदी साहित्य को दिये हैं तथा अनेक सम्मानों यथा ‘पुश्किन सम्मान’, ‘साहित्यकार सम्मान’, हिंदी अकादमी का ‘कृति सम्मान’ व ‘पीपुल्स विक्ट्री अवार्ड’ आदि से सम्मानित हुए हैं.
दि. 15 दिसंबर 2010 को उर्मिल सत्यभूषण द्वारा संचालित ‘परिचय साहित्य परिषद’ के तत्वावधान में नई दिल्ली के फेरोज़शाह रोड स्थित ‘राशियन कल्चरल सेंटर’ में महेश दर्पण की पुस्तक ‘पुश्किन के देस में’ पर एक बेहद सारगर्भित व विचारोत्तेजक गोष्ठी हुई जिस की अध्यक्षता राजेंद्र यादव ने की तथा प्रसिद्ध कवि विष्णु चन्द्र शर्मा, चित्रा मुद्गल व रमेश उपाध्याय इस संगोष्ठी के विशिष्ट वक्ता रहे.
प्रारंभ में ‘राशियन कल्चलर सेंटर’ की येलेना शटापकिना ने पुष्प भेंट किये तथा ‘परिचय साहित्य परिषद’ की ओर से प्रसिद्ध कवि लक्ष्मीशंकर बाजपेयी ने मंच पर उपस्थित विशिष्ट गण को पुस्तकों के रूप में शब्द-पुष्प भेंट किये.
गोष्ठी में विषय प्रवर्तन स्वयं ‘परिचय साहित्य परिषद’ की अध्यक्षा उर्मिल सत्यभूषण ने किया और कहा कि इस पुस्तक में रूसी समाज का ऐसा जीवंत चित्रण है कि एक एक दृश्य आँखों के सामने घूमता सा नज़र आता है. ‘परिचय साहित्य परिषद’ की हर संगोष्ठी में ‘राशियन सेंटर’ की ओर से किसी न किसी प्रसिद्ध रूसी साहित्यकार का जीवन वृत्त स्क्रीन पर प्रस्तुत किया जाता है. उर्मिल सत्यभूषण ने कहा कि आज ‘पुश्किन के देस में’ पुस्तक की चर्चा उसी शृंखला की एक कड़ी जैसी है.
येलेना ने अंग्रेज़ी में भाषण करते हुए एक भारतीय द्वारा रूसी समाज पर लिखी गई एक और पुस्तक पर प्रसन्नता प्रकट की तथा यह भी कहा कि पुस्तक पठनीय है व उसमें रूसी पाठकों के लिये भी कई नई जानकारियाँ हैं.
महेश दर्पण ने संक्षिप्त भाषण अपनी पुस्तक का परिचय देते हुए कहा कि पुश्किन का देस केवल रूस ही नहीं है, वरन पुश्किन का देस भारत भी हो सकता है. उन्होंने रूसी साहित्यकारों की उन कई प्रदर्शनियों का ज़िक्र किया जो रूस में उन्हें देखने को मिली.
वरिष्ठ कवि कथाकार विष्णु चंद्र शर्मा ने महेश दर्पण की कहानियों में पारिवारिक संवेदना के संरक्षण की बात की. उन्होंने कहा कि परिस्थितियों के साथ रूस की तस्वीर बदली और महेश ने अपनी पुस्तक में बदलाव से पहले और बाद के रूस की अच्छी तुलना की है. उन्होंने भी महेश द्वारा वर्णित प्रदर्शनियों व रूसी समाज की झलकियों में चल्चित्रात्मकता का गुण होने की बात कही.
चित्रा मुद्गल ने कहा कि महेश दर्पण की यह पुस्तक एक उपन्यास सी लगती है और उन्होंने टूटते हुए रूसी समाज के जीवन में बहुत गहरे पैठ कर यह पुस्तक लिखी है. रूस के शहरों व गांवों का उन्हें बेहद प्रामाणिक विवरण इस पुस्तक में मिला तथा उन्होंने पुस्तक की पठनीयता की भी प्रशंसा की.



सभागार में एक सशक्त पुस्तक पर इतनी गंभीर चर्चा सुनते हुए हिंदी के कई जाने माने हस्ताक्षर यथा केवल गोस्वामी, हरिपाल त्यागी, सुरेश उनियाल, लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, वीरेंद्र सक्सेना प्रेम जनमेजय आदि भी उपस्थित थे. रमेश उपाध्याय ने भी अपने भाषण में इस पुस्तक के औपन्यासिक प्रारूप होने की बात कही और कहा कि इस प्रकार मानो एक नई विधा का जन्म हुआ है. उन्होंने कहा कि ‘पुश्किन के देस में’ पुस्तक केवल उन्हें नहीं वरन उनके समस्त परिवार को बहुत अच्छी लगी.
अपने अध्यक्षीय भाषण में राजेंद्र यादव एक ‘नॉस्टाल्’ज्या सा महसूस करते हुए साठ वर्ष पहले के काल में पहुँच गए जब उन्होंने आगरा में चेखव को पढ़ना शुरू किया था. उन्होंने कलकत्ता की ‘नैशनल लाइब्रेरी’ में भी चेखव को खूब खंगाला. वैसे अपने समय में ही राजेंद्र यादव ने अपने किसी आत्याकथ्य में यह कहा था कि वे स्वयं को चेखव के अधिक निकट पाते हैं. उन्होंने काफी वर्ष पहले रूस पर लिखी हुई प्रभाकर द्विवेदी की पुस्तक ‘पार उतर कहं जइहोँ’ का सन्दर्भ दे कर कहा कि उस पुस्तक की तरह ‘पुश्किन के देस में’ भी एक लंबे अरसे तक उनकी स्मृति में रहेगी.
वैसे देखा जाए तो हिंदी साहित्य के कई कालजयी हस्ताक्षर रूसी साहित्य से प्रभावित रहे, यह बात स्वयं अपने आप में सर्वविदित है. जब भारत ब्रिटिश जैसी उपनिवेशवादी शक्ति के अधीन था तब भारत के स्वाधीनता संघर्ष से जुड़े कई नेताओं यथा नेहरु, सुभाषचंद्र बोस व भगत सिंह पर रूस के समाजवाद की बहुत गहरी छाप रही. भगत सिंह की जीवनी देखी जाए तो यह भी कहा जा सकता है कि यदि उन्हें मृत्युदंड न मिलता तो भारतीय समाज को एक और लेनिन मिल जाता. साहित्य में भी प्रेमचंद और मैक्सिम गोर्की के व्यक्र्तित्वो कृतित्वों की परस्पर समानता सर्वविदित है. प्रेमचंद ने स्वयं अपनी सोच व साहित्य पर गोर्की के प्रभाव की बात कही थी. नई कहानी के दौर में भी मोहन राकेश राजेन्द्र यादव जैसे सशक्त हस्ताक्षर चेखव से पूर्णतः प्रभावित थे. रूस अब भले ही पहले जैसा रूस नहीं रह गया है और न ही भारत ही पहले सा समाजवादी रहा है, बाज़ार के दबाव में भारत के रूप में भी आमूलचूल परिवर्वन लगातार आ रहे हैं. पर इस के बावजूद भारतीय और रूसी समाज में अब भी कुछ ऐसा बचा है जो उन्हें अपने प्रारंभिक समय से जोड़ता है. ‘पुश्किन के देस में’ जैसी पुस्तकें उसी समाज के एक एक्स-रे सी लगती हैं जो बदला तो तेज़ी से है पर अपनी कोख को शायद भूल नहीं पाया है व जिसमें अभी भी उस समय के कई अच्छी बुरे अवशेष बचे हैं. ‘पुश्किन के देस में’ जैसी अन्य कई रचनाओं की आवश्यकता है जो इस विषय को गंभीर शोध की तरह लें और भारत के अमरीका से नैकट्य व रूस से धीमी धीमी बढ़ती दूरी पर अपने चिंतन की प्रचुर रौशनी डालें.

रिपोर्ट – प्रेमचंद सहजवाला

जितेन्द्र ‘जौहर’ को मिला वर्ष-२०१० का ‘सृजन-सम्मान’



रॉबर्ट्‍सगंज । सोनभद्र
२३ दिसम्बर,२०१० को स्थानीय विवेकानन्द प्रेक्षागृह में हिन्दी दैनिक ‘बहुजन परिवार’ के स्थापना-दिवस एवं अंग्रेज़ी दैनिक ‘सोनभद्र कॉलिंग’ के विमोचन समारोह के संयुक्त अवसर पर ‘प्रेरणा’ (त्रैमा) के संपादकीय सलाहकार एवं सुपरिचित कवि श्री जितेन्द्र ‘जौहर’ को साहित्यिक योगदान के लिए वर्ष-२०१० के द्वितीय ‘सृजन-सम्मान’ से अलंकृत किया गया। श्री ‘जौहर’ को यह सम्मान मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित सोनभद्र के उप ज़िलाधिकारी श्री त्रिलोकी सिंह एवं विशिष्ट अतिथि बेसिक शिक्षाधिकारी श्री राजेश कुमार सिंह के साथ वरिष्ठ साहित्यकार पं. अजय शेखर तथा देश के ख्यातिलब्ध बुज़ुर्ग शाइर व ‘यथार्थ गीता’ के उर्दू मुतर्जिम मुनीर बख़्श आलम साहब के कर-कमलों द्वारा प्रदान किया गया।

ग़ौरतलब है कि कन्नौज (उप्र) में जन्मे श्री जितेन्द्र ‘जौहर’ ने देश-विदेश की अनेकानेक पत्रिकाओं, वीडियो-एलबम, वेब-मैगज़ीन्स, ब्लॉग्ज़, न्यूज़-पोर्टल्ज़ पर अपने उत्कृष्ट चिंतनप्रधान मौलिक लेखन तथा समीक्षाओं के साथ ही टेलीविज़न, आकाशवाणी एवं काव्य-मंचों पर ओजस्वी व मर्यादित हास्य-व्यंग्यपरक रचनाओं की प्रस्तुतियों व मंच-संचालन के माध्यम से जनपद सोनभद्र की महत्त्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करायी है।

अभी हाल ही में देश की लोकप्रिय साहित्यिक-सांस्कृतिक त्रैमासिक पत्रिका ‘सरस्वती सुमन’ (देहरादून) ने उन्हें अपने आगामी ‘मुक्तक/रुबाई विशेषांक’ का अतिथि संपादक मनोनीत किया है। वे देश की प्रतिष्ठित त्रैमासिक पत्रिका ‘अभिनव प्रयास’ (अलीगढ़) के सहयोगी भी हैं। पेशे से अंग्रेज़ी विषय के प्रतिभा-सम्पन्न अध्यापक श्री जितेन्द्र जौहर के हिन्दी-प्रेम की सर्वत्र सराहना होती रही है।

समारोह के इस अवसर पर ‘भ्रष्टाचार और पत्रकारिता’ विषय पर आयोजित एक विचार-गोष्ठी में जनपद के वरिष्ठ साहित्यकारों सर्व श्री मुनीर बख़्श आलम, पं. अजय शेखर, पत्रकार विजय विनीत, विमल जालान, डॉ. अर्जुन दास केसरी, कथाकार रामनाथ शिवेन्द्र एवं महाकाल समाचार के संपादक श्रीवास्तव जी, सहित अनेक वरिष्ठ पत्रकारों तथा साहित्यकारों ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कविवर श्री जितेन्द्र ‘जौहर’ को बधाई दी। संपादक श्री आशुतोष चौबे ने अपने जोशीले उद्‌बोधन में भ्रष्टाचार के कतिपय पहलुओं पर प्रमाण-सम्मत प्रकाश डाला। उन्होंने समस्त पाठकों व नागरिकों के अपनत्व के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करते हुए निष्पक्ष तथा निर्भीक पत्रकारिता के साथ ही उच्च गुणवत्तायुक्त वैचारिक सामग्री के प्रकाशन का वादा किया।

इस अवसर पर भोजपुरी के वरिष्ठ गीतकार श्री जगदीश पंथी को सम्मानित करने के अतिरिक्त समाचार-पत्र द्वारा आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं के विजेताओं को मुख्य अतिथि ने ट्रॉफी व प्रमाण-पत्र देकर पुरस्कृत किया ।

हिन्दी दैनिक ‘बहुजन परिवार’ तथा अंग्रेज़ी दैनिक ‘सोनभद्र कॉलिंग’ के संपादक श्री अभिषेक चौबे के निर्देशन में आयोजित इस कार्यक्रम का सफल संयोजन बूरो चीफ़ श्री ब्रजेश कुमार पाठक एवं टीम ने तथा संचालन आशुतोष पाण्डेय ‘मुन्ना’ ने किया।

उक्त मौक़े पर एबीआई कॉलेज की हिन्दी प्रवक्ता श्रीमती सुशीला चौबे और जेसीज बालभवन की हेड मिस्ट्रेस डॉ. विभा दुबे सहित भारी संख्या में जनपद के पत्रकार, वरिष्ठ साहित्यकार एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
प्रस्तुति: विजय ‘तन्हा'

Wednesday, December 29, 2010

रमा द्विवेदी को चतुर्थ साहित्य गरिमा पुरस्कार



साहित्य गरिमा पुरस्कार समिति एवं कादम्बिनी क्लब, हैदराबाद के संयुक्त तत्वावधान में दिनांक २५ दिसंबर २०१० को नरेंद्र भवन में चतुर्थ गरिमा पुरस्कार समारोह-२००९ एवं पुष्पक -१६ का लोकार्पण कार्यक्रम संपन्न हुआ।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में आई. पी. ई. उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद के निदेशक प्रो. राम कुमार मिश्र, स्वतंत्र वार्ता के संपादक डा. राधेश्याम शुक्ल ( अध्यक्ष ) समाज सेवी राम गोपाल गोयनका, आर्य प्रतिनिधि सभा आंध्र प्रदेश के प्रधान विथ्थल राव, भाग्य नगर कावड़ सेवा संघ के अध्यक्ष माँगी राम तायल, प्रो. शुभदा वांजपे ने बतौर विशेष अतिथि भाग लिया। इस पुरस्कार के प्रायोजक वीरेन्द्र मुथा एवं संस्थापक अध्यक्ष डा. अहिल्या मिश्र मंचासीन थे। सुधा गंगोली की सरस्वती वन्दना से कार्यक्रम आरंभ हुआ। अतिथियों द्वारा दीप प्रज्जवलन के बाद डा. अहिल्या मिश्र ने कहा कि महिला लेखिकाओं को साहित्य लेखन में दृढ़ता पूर्वक आगे बढ़ने में संबल प्रदान करना ही उनका उद्देश्य रहा है। डा. मदन देवी पोकरना ने अतिथियों का परिचय दिया। प्रथम साहित्य गरिमा पुरस्कार ग्रहीता पवित्रा अग्रवाल ने संस्था का परिचय व विवरण प्रस्तुत किया। कार्यकारी कार्यदर्शी डा. सीता मिश्र ने प्रशस्ति पत्र का वाचन किया तत्पश्चात नगर की विख्यात कवयित्री डा. रमा द्विवेदी का अथितियो द्वारा ग्यारह हजार रूपए की राशि, श्रीफल, प्रशस्ति पत्र, शाल एवं स्मृति चिह्न प्रदान कर चतुर्थ गरिमा पुरस्कार से सम्मानित किया। इस आयोजन में पुष्पक-१६ का लोकार्पण अतिथियों द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। महिला कालेज की विभागाध्यक्ष प्रो. शुभदा वांजपे ने पुष्पक का परिचय देते हुए कहा कि यह स्तरीय एवं संग्रहनीय पत्रिका है।



पुरस्कार ग्रहीता डा. रमा द्विवेदी ने अपने भावपूर्ण वक्तव्य में कहा कि उन्हें सम्मान मिला है तो उनकी जिम्मेदारी और भी बढ गई है। किसी महिला द्वारा महिलाओं के लिए पुरस्कार की स्थापना दुर्लभ कार्य है। महत्व नींव का होता है, बीज का होता है, बाद में तो लोग जुड़ जाते है। इस पुरस्कार में पांडुलिपि पर भी विचार होता है, यही इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। उन्होंने महिला रचनाकारो को संबोधित करते हुए कहा कि महिलाए अपने लेखन के प्रति उदासीन न हो, निरंतर लिखें, संवेदनपूर्ण लिखें लेकिन पुरस्कार की ही कामना से न लिखें। डा. राम कुमार मिश्र ने अपने उद्बोधन में कहा कि अर्थ का अपना महत्व है और साहित्य रचयिता को भी अर्थ का आधार मिलना चाहिए उन्होंने ने आगे कहा कि उन्नत समाज के निर्माणार्थ आर्थिक क्षेत्र और साहित्यिक क्षेत्र का समागम नितांत आवश्यक है। डा. राधेश्याम शुक्ल ने अपनी अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि स्त्री चाहे किसी भी क्षेत्र हो वह भारतीय परम्परा में पूजनीय रही है। महिलाएं लेखन के क्षेत्र में और अधिक सक्रियता से आगे आ रही है। उन्होंने कहा स्रुजनशीलता महिलाओं का प्राकृतिक गुण है। उन्होंने कहा कि लेखकों का मनोबल बढाने के लिए समाज के समर्थ वर्ग को तन-मन-धन से सहयोग देना चाहिए ताकि लेखन की दशा एवं दिशा अधिक बेहतर हो सके। सभी सम्मानीय अतिथियों ने अपने-अपने विचार रखे। इस पुरस्कार के प्रायोजक वीरेन्द्र मुथा ने आगे भी सहयोग देने का आश्वासन दिया। लक्ष्मी नारायण अग्रवाल व सरिता सुराना ने संचालन किया जबकि मीना मुथा ने धन्यवाद दिया। इस अवसर पर नरेंद्र राय, वेणुगोपाल भटटड, वीर प्रकाश लाहोटी सावन, बिंदु जी महाराज, तेजराज जैन, सुषमा बैद, शान्ति अग्रवाल, आ.सी.शर्मा, प्रो. एम रामलू, एन जगननाथम्, अलका चौधरी, विजय लक्ष्मी काबरा, अंजू बैद, डा. गोरखनाथ तिवारी, मुनीन्द्र मिश्र, भगवान दास जोपट, नीरज त्रिपाठी, भंवर लाल उपाध्याय, सुनीता मुथा, उमा सोनी, सावरी कर, डा. हेमराज मीना, डा. कारन उटवाल, वी. वरलक्ष्मी, सुरेश जैन, डॉ. एस.एल. द्विवेदी, एस.एन. राव, संपत मुरारका, राजकुमार गुप्ता आदि उपस्थित थे।



प्रस्तुति: डा. सीता मिश्र- कार्यकारी कार्यदर्शी

Tuesday, December 28, 2010

मुम्बई में पत्रकारिता पर आधारित पाँच किताबों का लोकार्पण


(बाएं से दाएं) मरुधरा के उपाध्यक्ष रामस्वरूप अग्रवाल, सकाल टाइम्स के विशेष संवाददाता मृत्युंजय बोस. जनसंपर्ककर्मी संजीव निगम , जी न्यूज के प्रोड्यूसर सुभाष दवे, वरिष्ठ पत्रकार-कवि और नवनीत के संपादक विश्वनाथ सचदेव, आकाशवाणी के सेंट्रल सेल्स डायरेक्टर तथा वरिष्ठ ब्रॉडकास्ट मीडियाकार मुकेश शर्मा, मरुधरा के अध्यक्ष सुरेन्द्र गाडिया, नवभारत टाइम्स, मुम्बई के वरिष्ठ पत्रकार भुवेन्द्र त्यागी, कवि-गीतकार देवमणि पांडेय

मुम्बई की साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था मरुधरा और सौम्य प्रकाशन द्वारा मुम्बई के प्रेसक्लब में आयोजित एक कार्यक्रम में पत्रकारिता पर आधारित पाँच किताबों का लोकार्पण आकाशवाणी के सेंट्रल सेल्स डायरेक्टर तथा वरिष्ठ ब्रॉडकास्ट मीडियाकार मुकेश शर्मा ने किया। इन किताबों के नाम हैं- बिजनेस जर्नलिज्म, जनसंपर्क, फील्ड रिपोर्टिंग गाइड, स्पेशल रिपोर्ट और फिल्मी स्कूप। इन किताबों पर अपनी राय का इज़हार करते हुए उन्होंने कहा, 'पत्रकारिता किताबें पढ़कर नहीं सीखी जा सकती। लेकिन मीडिया पर इस तरह की सारगर्भित और व्यावहारिक किताबें नये तथा युवा पत्रकारों का मार्गदर्शन कर सकती हैं। ये उन्हें ऐसे मानकों के अक्स दिखा सकती हैं, जिनसे पत्रकारिता जनता की नज़रों में पवित्र और विश्वसनीय बनती है।

प्रेसक्लब का सभागार युवा पत्रकारों से इस क़दर खचाखच भरा था कि कई वरिष्ठ पत्रकारों को बैठने के लिए सीटें कम पड़ गईं। मुकेश शर्मा ने युवा पीढ़ी की तारीफ़ करते हुए कहा, 'आज के युवा पत्रकार स्मार्ट हैं। उनके पास सूचनाओं के तमाम साधन मौजूद हैं। सूचनाएं प्राप्त करने में उन्हें कोई बाधा नहीं है। बस, जरूरत इस बात की है कि उन्हें इन सूचनाओं का अच्छी तरह से, जनोपयोगी रूप से इस्तेमाल करना आना चाहिए। मीडिया के सामने चाहे जो भी संकट आये, युवा पत्रकारों की अगर तैयारी अच्छी है, तो वे उससे पार पा सकते हैं।


श्रोता समुदाय में अगली पंक्ति में (बाएं से दाएं)-अमर उजाला के ब्यूरो प्रमुख हरि मृदुल, सौम्य प्रकाशन की निदेशक रीना त्यागी, अमर उजाला के एसोसिएट एडीटर सुमंत मिश्र और नवभारत टाइम्स मुम्बई की उपसम्पादक कंचन श्रीवास्तव

कार्यक्रम का संचालन कवि-गीतकार देवमणि पांडेय ने किया। उन्होंने शुरुआत में इन किताबों के लेखकों का परिचय कराया और एक शेर के ज़रिए इनके लेखन कौशल की तारीफ़ की-

कुछ भी लिखना सरल नहीं है पूछो हम फ़नकारों से
हम सब लोहा काट रहे हैं का़गज़ की तलवरों से!

कार्यक्रम के अध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार-कवि और नवनीत के संपादक विश्वनाथ सचदेव ने आज की पत्रकारिता पर विचार व्यक्त करते हुए कहा- ‘आज फिर मिशनरी पत्रकारिता की जरूरत है। कोई भी अखबारी तंत्र या बाजार पत्रकारों से कुछ खास खबरें लाने या न लाने को कह सकता है, पर जन सरोकारों से जुड़ी सीधी-सच्ची खबरें लाने से कोई मना नहीं करता’। उन्होंने इस मुद्दे को आगे बढ़ाते हुए कहा, 'आज 24 घंटे के ख़बरिया चैनलों पर खबरें कितने घंटे आती हैं? जब भी टीवी खोलो, इन चैनलों पर राजू के चुटकुले, शीला की जवानी और बिग बॉस की कहानी ही दिखती है। क्या ये खबरें हैं? न्यूज चैनल ये सब परोसकर इंटरटेनमेंट चैनलों में बदल गये हैं। ख़बरों के लिए दूरदर्शन लगाना पड़ता है। बेशक उसकी खबरों में सरकारी पुट होता है, पर वे ख़बरें तो होती हैं। मरहूम शायर क़ैसर-उल-जाफ़री के एक शेर के ज़रिए विश्वनाथ जी ने युवा पीढ़ी को पत्रकारिता के धर्म की याद दिलाई-

हम आईने हैं दिखाएंगे दाग़ चेहरों के
जिसे ख़राब लगे सामने से हट जाए!

जी न्यूज के प्रोड्यूसर सुभाष दवे ने अपनी किताब ‘बिजनेस जर्नलिज्म’ का परिचय देते हुए कहा, 'यह एक नीरस और शुष्क विषय माना जाता है। लेकिन मैंने इसे पंचतंत्र की कहानियों की तरह एक कहानी के रूप में पेश करके सरस बनाने की कोशिश की हैं’।
वरिष्ठ जनसंपर्ककर्मी संजीव निगम ने अपनी किताब ‘जनसंपर्क’ का परिचय देते हुए कहा, 'आज जीवन के हर क्षेत्र में जनसंपर्क की जरूरत है। वह जनसंपर्क कैसा हो, किस तरह किया जाये, उसके टूल्स क्या हों, इन सभी का विवरण मैंने दिया। और अनेक केस स्टडी के साथ व्यावहारिक तरीके से दिया है।


अपनी पुस्तकों का परिचय देते हुए नवभारत टाइम्स, मुम्बई के वरिष्ठ पत्रकार भुवेन्द्र त्यागी

सकाल टाइम्स के विशेष संवाददाता मृत्युंजय बोस ने अपनी किताब ‘फील्ड रिपोर्टिंग गाइड’ के बारे में बताया, 'यह युवा पत्रकारों के लिए एक मैन्युअल के रूप में है। रिपोर्टिंग करते समय ध्यान में रखी जाने वाली बातों को तो मैंने बताया ही है, तरह-तरह की खबरों के लिखने की शैली के उदाहरण भी दिये हैं।

नवभारत टाइम्स, मुम्बई के वरिष्ठ पत्रकार भुवेन्द्र त्यागी ने अपनी दो किताबें ‘स्पेशल रिपोर्ट’ और ‘फिल्मी स्कूप’ का परिचय दिया।
‘स्पेशल रिपोर्ट’ में जावेद इकबाल (फ्रीलांसर), जितेंद्र दीक्षित (स्टार न्यूज) मनोज जोशी (ए 2 जेड चैनल), नीता कोल्हाटकर (डीएनए), प्रबल प्रताप सिंह (आईबीएन 7), प्रभात शुंगलू (आईबीएन 7), प्रकाश दुबे (दैनिक भास्कर), स्वर्गीय प्रमोद भागवत (महाराष्ट्र टाइम्स), रामबहादुर राय (प्रथम प्रवक्ता के पूर्व संपादक), रवीश कुमार (एनडीटीवी), रवि शंकर रवि (नई दुनिया), शेखर देशमुख (फ्रीलांसर) और उमाशंकर सिंह (एनडीटीवी) के करियर की बेहतरीन रिपोर्ट हैं।

‘फिल्मी स्कूप’ में चंद्रकांत शिंदे (नई दुनिया), इम्तियाज अजीम (राष्ट्रीय सहारा), रूपेश कुमार गुप्ता (जी न्यूज), संदीप सिंह (महुआ), शिवानी त्रिवेदी (स्टार न्यूज), सुमंत मिश्र (अमर उजाला), विद्योत्तमा शर्मा, (बॉम्बे टाइम्स की पूर्व असिस्टेंट एडिटर) और विनोद तिवारी (फिल्मफेयर के पूर्व संपादक) के कैरियर की अनोखी एक्सक्लूसिव स्टोरीज हैं।
मरुधरा के अध्यक्ष सुरेन्द्र गाडिया ने मुख्य अतिथियों को पुष्पगुच्छ भेंट किया। संस्था के उपाध्यक्ष रामस्वरूप अग्रवाल व महामंत्री राकेश मोरारका ने लेखकों का स्वागत किया। सौम्य प्रकाशन की निदेशक रीना त्यागी ने पुष्पगुच्छ देकर इन पाँच पुस्तकों के कवर डिज़ाइनर संजय खडपे और शिव पाण्डेय का सम्मान किया तथा सबके प्रति आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में मुम्बई के कई गणमान्य पत्रकार व लेखक मौजूद थे।

मुम्बई में यह आयोजन शुक्रवार 24 दिसम्बर 2010 की शाम को सम्पन्न हुआ।

Wednesday, December 1, 2010

जब कूँची में बही गंगा



विगत दिनों भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के आजाद भवन स्थित कला दीर्घा में आस्ट्रीया की सुविख्यात कलाकर्मी उत्त ऐश्बेचर की कला्कृतियों की प्रदर्शनी का आयोजन भारत और अन्य देश के बौ्द्धिक आदान-प्रदान के अंतर्गत किया गया। उन्होंने अपने चित्रों का विषय दिया था पवित्र गंगा। उनके चित्रों की विशेषता शोख रंगों की उफनती गंगा का आभास दे रही थीं। परस्पर विरोधी रंग इस प्रकार अपनी उपस्थित का आभास करा रहे थे मानों रंग स्वयं मस्तिष्क में चित्रों का रूपायन कर अपनी अमूर्तता को पारिभाषित कर रहे हों।
उत्त ऐशबेचर आस्ट्रीया की ख्याति प्राप्त चित्रकार हैं। अबतक उन्होंने देश-विदेश में अपने चित्रों की नौ अकल चित्र प्रदर्शनी, नौ समूह चित्र प्रदर्शनियों और तीन निजी संग्रह प्रदर्शनी का आयोजन कर चुकी हैं।

आस्ट्रीया के अकादमी ऑफ फाइन आर्ट्स से 1987-88 में दीक्षित होने के उपरांत उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा और इस क्षेत्र में सफलता उनके कदम चूम रही है, 1958 में आस्ट्रीया के विल्लाच नामक स्थान पर जन्मी यह महान चित्रकार आजकल पेरिस में रह रही हैं। उनका ईमेल संपर्क है— uteaschbacher@yahoo.fr

प्रस्तुति- शमशेर अहमद खान, 2-सी,प्रैस ब्लॉक, पुराना सचिवालय, सिविल लाइंस, दिल्ली-110054
Ahmedkhan.shamsher@gmail.com