Sunday, May 23, 2010

डी जे अकील का नया एलबम ''फोरएवर'' लॉन्च



हाल ही में डीजे अकील के नये एलबम "फोरएवर" को संगीत कंपनी सारेगामा ने गीतांजलि लाइफस्टाइल के साथ मिलकर अतरिया मॉल, वर्ली मुंबई स्थित अकील के डिस्कोथिक ''हाइप'' में लॉन्च किया.

डीजे अकील एक जाने माने डीजे हैं उनको सुनने वालों की लंबी की सूची है उन्होंने किसी भी अन्य भारतीय डीजे से कहीं अधिक विदेशों में अपने संगीत का प्रदर्शन किया है. उन्होंने ''विश्व आर्थिक फोरम'' दावोस, में दो बार अपने श्रेष्ठ संगीत का प्रदर्शन किया. उन्होंने बिल क्लिंटन और कोफी अन्नान जैसे विश्व स्तरीय नेताओं को भी अपना संगीत सुनाया है. उनकी अभी तक ६ एलबम आ चुके हैं जिनकी 5 लाख से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं.

हमने इस अवसर पर उनसे बात की, उन्होंने कहा कि, ''मेरे पिछले एलबम ''वादा करो'' के दो साल बाद मेरी यह एलबम रिलीज़ हुई है, मैंने बहुत ही मेहनत की है अपने इस एलबम के गीत व संगीत के लिए. इसके अलावा यह एलबम मेरे लिए विशेष रूप से इसलिए भी मायने रखती है क्योंकि इसमें मेरी पसंद के ही रीमिक्स गीत हैं. "लिया, लिया'', 'दम मारो दम" और "तुम्हे आना पड़ेगा " आदि गीत स्वर्गीय फिरोज खान ( जो कि मेरी पत्नी के चाचा हैं ) को समर्पित कियें हैं मैंने. ''

डीजे अकील के इस एलबम को सारेगामा के अतुल चूर्णामणि और अकील की खूबसूरत पत्नी फराह खान अली ने लॉन्च किया . इस अवसर पर फराह ने कहा कि, "हम १५ साल पहले मिले थे, जब डीजे का काम भारत में लोकप्रिय पेशा नहीं था और जब हमने शादी की, तब हर कोई मुझसे पूछता था कि मैंने एक डीजे से शादी क्यों की. मैं संजय खान की बेटी हूँ. मेरे माता पिता हमेशा मुझे सिखाया है कि पैसा आता है और पैसा जाता है जिन्दगी में केवल रहता है पति व पत्नी का एक दूसरे के प्रति प्यार व स्नेह है. मैं बहुत खुश हूँ कि मैं अपने माता पिता की बात सुनी और जिससे मैं प्यार करती थी उससे ही शादी कर ली. अकील एक प्रतिभाशाली डीजे, एक अच्छे पिता और एक प्यारे पति है. मैं उनकी उपलब्धि पर बहुत ही गर्व करती हूँ."
अनुषा दांडेकर ने इस शाम को बहुत ही ख़ूबसूरती के साथ होस्ट किया. इस कार्यक्रम में मुंबई का पूरा
मनोरंजन मीडिया मौजूद था.

इस अवसर पर गीतांजलि लाइफस्टाइल के अध्यक्ष मेहुल ने कहा कि, ''हमें बहुत ही ख़ुशी है कि हम इस एलबम के सह प्रायोजक हैं, संगीत उद्योग के दो बड़े नाम सारेगामा व डीजे अकील के साथ जुड़ने पर हमें बहुत ही गर्व है. डीजे अकील के संगीत में आधुनिक व और पारंपरिक संगीत का समावेश है, ठीक उसी तरह, जैसे हमारे आभूषण, जिनमे आधुनिक व परंपरागत दोनों ही तरह की डिजाइन होती है.

Saturday, May 22, 2010

अमीर खुसरो कालजयी रचनाकार हैं



विगत दिनों वरिष्ठ साहित्यकार शमशेर अहमद खान द्वारा लिखित भारत भारती के सच्चे सपूत-अमीर खुसरो शीर्षक पुस्तक का लोकार्पण राज्य सभा के माननीय उप सभापति श्री के. रहमान खान के कर- कमलों द्वारा उनके आवास पर संपन्न हुआ.इस अवसर पर देश के प्रतिष्ठित बुद्धजीवी, विधायक, प्रशासक,साहित्यकार,कवि आदि उपस्थित थे.माननीय उपसभापति जी ने लोकार्पण के उपरांत अमीर खुसरो के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते हुए बताया कि इस बात में कोई संदेह नहीं कि खुसरो साहब हिंदी और उर्दू जबानों के न सिर्फ आदि कवि रहे हैं बल्कि साहित्य और संगीत के कई एक विधाओं के जन्मदाता भी रहे हैं. कई एक वाद्ययंत्रों और छंदों का उन्होंने अविष्कार भी किया. भारतीयता उनमें कूट-कूट कर भरी हुई थी. आज एक अजीब सी स्थिति यह हो गई है कि आज की युवा पीढ़ी खुसरो साहब को नहीं जानती,हमारा फर्ज बनता है कि हम उनके योगदान को न भूलें और युवाओं को उनके बारे में बताएं.मैं शमशेर साहब को मुबारकबाद दूंगा कि उन्होंने मेहनत से उनके सारे टेक्स्ट को एक जगह एकत्रित कर पुस्तक का आकार दिया है .वे इसी तरह और लिखें और ऐसी ही पुस्तकें प्रकाश में आएं.
उन्होंने आगे कहाकि खुसरो उस युग में पैदा हुए थे जब सुल्तानों का शासन हुआ करता था. उस जमाने में उन्होंने हिंदवी की बुनियाद डाली और यहीं से हिंदी और उर्दू दो जबानों का उद्गम हुआ. आज हमें न सिर्फ इन जबानों पर नाज है बल्कि भूमंडलीकरण के इस दौर में दुनिया की ताकतवर देश भी अपनी मार्केटिंग मे लिए इन जबानों का सहारा ले रहे हैं. अमीर खुसरो साहब की जितनी भी तारीफ की जाए वह कम ही होगी. उनका सारा अदब बच्चों से लेकर बड़ों तक न सिर्फ नई सोच देता है बल्कि आपसी मेल-मिलाप,भाईचारा, हुब्बुलवतनी,प्रकृति प्रेम और विश्व बंधुत्व की ओर इशारा करता है. उनकी सारी रचनाएं कालजयी हैं जो हर युग में लागू होती हैं.
इस संगोष्ठी का कुशल संचालन वरिष्ठ पत्रकार श्री एस.एस. शर्मा ने किया. उन्होंने संगोष्ठी में पधारे सीलमपुर क्षेत्र के विधायक श्री मतीन अहमद चौधरी, डॉ. अजय कुमार गुप्ता, जनाब किदवई साहब,प्रकाशक अनिल कुमार शर्मा,पुस्तक के कवर डिजाइनर श्री नरेंद्र त्यागी का विशेष आभार व्यक्त किया.

मुनीश परवेज राणा
बी-1/44, डी.एल.एफ.,
दिलशाद एक्टेंशन, साहिबाबाद, गाजियाबद-(उ.प्र.)

Friday, May 21, 2010

देश के सिस्टम पर प्रहार करता नाटक ‘फुटबाल के बराबर अंडा’ ......

वीडिओ संपादन एवं प्रस्तुति श्रीकन्त मिश्र 'कान्त'



चंडीगढ़। ‘बेशक देश में लोकतांत्रिक प्रणाली है, लेकिन आम जनता क्या आजादी से अपने बारे में सोच सोचती है। क्या लोग आजादी से काम कर सकते हैं। इंसाफ पाने के इंतजार में आम आदमी मौत के द्वार तक पहुंच जाता है,लेकिन इंसाफ नहीं मिल पाता। इस सबके बावजूद आम जनता इसी सिस्टम का पालन करने को मजबूर है और मिलकर इस सिस्टम के खिलाफ आवाज नहीं उठाती।’ देश के सिस्टम पर प्रहार करता नाटक ‘फुटबाल के बराबर अंडा’ सेक्टर-17 स्थित आईटीएफटी की बेसमेंट के मंच पर पेश किया आईटीएफटी के कलाकारों ने। नाटक की कहानी में पुलिस तंत्र में फैले भ्रष्टाचार पर कटाक्ष किया गया

एसएचओ बेनीवाल अपने नए स्टेशन में आकर उस समय परेशान हो जाता है जब उसे पता चलता है कि उस थाना क्षेत्र में कोई चोरी या अन्य अपराध नहीं होता। वह अपने हवलदारों के माध्यम से डकैतों तक यह संदेश पहुंचाता है कि वे बेफिक्र होकर उसके क्षेत्र में अपनी गतिविधियां चला सकते हैं। इतना ही नहीं, वह हवलदार से किसी भी व्यक्ति को पकड़ लाने का आदेश देता है तो हवलदार एक तमाशा दिखाने वाले को पकड़ लाता है। एसएचओ तमाशे वाले की बुरी तरह पिटाई करवाता है जिस पर तमाशे वाले उसके खिलाफ कोर्ट में केस कर देता है। लेकिन 30 साल तक इंतजार के बाद भी उसे इंसाफ नहीं मिल पाता और अंत में इंसाफ मिलने की उम्मीद लिए ही उसकी मौत हो जाती है। तमाशे वाले का किरदार निभाने वाले अंश ने दर्शकों के दिल पर अमिट छाप छोड़ तो अन्य पात्रों एसएचओ बने जगमीत, पत्रकार बनी अपराजिता, हवलदार बने नम्रता और अमन ने भी अपने-अपने पात्रों के साथ बखूबी न्याय किया। नाटक का लेखन और निर्देश चक्रेश कुमार का था ।

‘फुटबाल के बराबर अंडा’

Saturday, May 15, 2010

राष्ट्रीय अनुवाद मिशन और राष्ट्र को चुनौतियाँ विषयक संगोष्ठी



राष्ट्रीय अनुवाद मिशन के गठन से अनुवाद के क्षेत्र का विस्तार किसा प्रकार किया जाए जिससे अंतरराष्ट्रीय साहित्य भारतीय जन-जन तक पहुँच सके, इस बात को ध्यान में रखते हुए नई दिल्ली सांध्यकालीन हिन्दी संस्थान द्वारा भारतीय विद्या भवन, कस्तूरबा गांधी मार्ग, नई दिल्ली में डॉ. नगेन्द्र स्मृति साहित्यिक संगोष्ठी तथा संस्थान द्वार संचालित अनुवाद पाठ्यक्रम में उत्तीर्ण विद्यार्थियों के लिए प्रमाणपत्र वितरण समारोह का आयोजन किया गया।

प्रारंभ में सुविख्यात भाषाविज्ञानी, संस्थान के निदेशक और हिन्दी भाषा के प्रकांड विद्वान प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी ने बीज भाषण दिया। प्रो. गोस्वामी ने अपने वक्तव्य में बताया कि राष्ट्रीय अनुवाद मिशन की स्थापना प्रधानमंत्री की प्ररेणा से और राष्ट्रीय ज्ञान आयोग के प्रयास से सन् 2006 में हुई थी। इस मिशन का प्रमुख उद्देश्य भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित भारतीय भाषाओं में उपलब्ध ज्ञान आधारित साहित्य को अनुवाद द्वारा जन-जन तक पहुँचाना है। उच्च स्तरीय कोश, थिसारिस आदि अनुवाद उपकरणों और कंप्यूटर साफ़्टवेयरों का उत्पादन करना है। अनुवाद की गुणवत्ता की वृद्धि के लिए लघु अवधीय नवीकरण पाठ्यक्रम तथा शोध परियोजनाओं से अनुवाद संबंधी शिक्षा प्रदान करनी है। इसी संदर्भ में प्रो. गोस्वामी ने ये प्रश्न उठाए कि क्या उच्च शिक्षा के सत्तर मुख्य कार्यक्षेत्रों के साहित्य का उच्च स्तरीय अनुवाद समय पर हो पाएगा। यदि है तो क्या-क्या मानदंड अपनाए गए हैं? भारतीय और विश्व की क्लासिकल कृत्तियों के अनुवाद का चयन किन आधारों पर किया जाएगा? इसमें पुनरावृत्ति की आशंका तो नहीं होगी। अनुवाद मिशन द्वारा निर्धारित 73 करोड़ 90 लाख रुपए का बजट समय पर खर्च हो पाएगा और हुआ भी तो, कितना कार्य होगा और वह कितना लाभकारी, उपयोगी तथा शीघ्र हो पाएगा? क्या इसके लिए कोई रोडमैप बनाया गया है? अनुसृजन की दृष्टि से क्या यह अनुवाद मूल पाठ लग पाएगा। मशीनी अनुवाद कब तक विकसित हो पाएँगे और उनके कार्य में कितनी गुणवत्ता होगी। प्रो. गोस्वामी ने इस प्रकार के प्रश्न उठा कर अनुवाद मिशन की कार्य प्रणाली पर अपने विचार व्यक्त किए।

प्रगत संगणन विकास केन्द्र (सी-डैक) नोएडा के निदेशक और कंप्यूटर वैज्ञानिक श्री वी.एन. शुक्ल ने बताया कि अंग्रेज़ी-हिन्दी मशीनी अनुवाद का विकास पूरा हो चुका है और अंग्रेज़ी-पंजाबी, अंग्रेज़ी-बंगाली, अंग्रेज़ी-उर्दू, अंग्रेज़ी-मलयालम मशीनी अनुवाद का विकास अब चल रहा है। इसके साथ भारतीय भाषाओं के परस्पर अनुवाद और मुख्यतः हिन्दी से भारतीय भाषाओं के मशीनी अनुवाद विकसित किए जा रहे हैं। इनमें अधिकतर पर्यटन, स्वास्थ्य, प्रशासन संबंधी अनुवाद हो रहे है। सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय राष्ट्रीय अनुवाद मिशन के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए मशीन आधारित अनुवाद के विकास के लिए प्रयासरत है। इस अनुवाद के मानव अनुवाद की अपेक्षा अत्यंत शीघ्र होने की संभावना है।

साहित्य अकादमी के उपसचिव और ‘समकालीन साहित्य’ पत्रिका के संपादक श्री ब्रजेन्द्र त्रिपाठी ने कहा कि संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित भाषाओं के अतिरिक्त कई ऐसी गैर-अनुसूचित भाषाएँ और बोलियाँ हैं, जिनका साहित्य काफ़ी स्तरीय है। इस पर प्रश्न उठाया जा सकता है कि इन भाषाओं में रचित साहित्य और लोक साहित्य की उपेक्षा क्यों की जा रही है।

संगोष्ठी की अध्यक्ष सुश्री सुरेंद्र सैनी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में अनुवाद की उपयोगिता और सार्थकता पर अपने विचार प्रकट करते हुए यह आशा व्यक्त प्रकट की कि अनुवाद मिशन से अनुवाद के क्षेत्र में काफ़ी वृद्धि होगी। इसके बाद संस्थान द्वारा संचालित स्नातकोत्तर अनुवाद पाठ्यक्रम के छात्रों को अध्यक्ष महोदया द्वारा प्रमाणपत्र और पुरस्कार वितरित किए गए। संस्थान के सचिव डॉ. जय नारायण कौशिक ने संस्थान का परिचय देते हुए सभी अतिथियों का स्वागत किया। अनुवाद पाठ्यक्रम के संयोजक डॉ. पूरनचंद टंड़न ने संगोष्ठी और वितरण समारोह का संचालन करते हुए सभी अतिथियों का धन्यवाद किया। डॉ. धर्मपाल आर्य (पूर्व कुलपति, गुरूकुल कांगड़ी, हरिद्वार) श्री ओम प्रकाश अरोड़ा (वरिष्ठ पत्रकार), प्रो. ठाकुर दास (वरिष्ठ भाषाविद्), डॉ. हरीश कुमार सेठी (इग्नु), डॉ. शिव कुमार शर्मा (दिल्ली वि.वि.) आदि विद्वानों की उपस्थिति उल्लेखनीय थी।


डॉ. रमा द्विवेदी

Thursday, May 13, 2010

रविन्द्र नाथ टैगोर की 150वीं जयंति पर उदयपुर में मुशायरा आयोजित



उदयपुर । ”दरिया है अपने जोश में, कच्‍चा घड़ा हूॅ मैं, अपने वजूद के वास्‍ते फिर भी लड़ा हूॅ मैं“ से प्रसिद्ध गजल गायक प्रेम भण्‍डारी ने कविवर रविन्‍द्रनाथ टैगोर की एक सौ पचासवीं जयन्‍ति पर डॉ. मोहनसिंह मेहता मेमोरियल ट्रस्‍ट, अदबी संगम एवं वेदान्‍ता हिंद जिंक के संयुक्‍त तत्‍वाधान में आयोजित मुशायरे का आगाज किया। डॉ. प्रेम ने तरन्‍नूम में ”रूप इतना ही बहुत है, जितना मालिक दिया, इसको अब और सजाने की जरूरत क्‍या है“ पेश कर भरपूर तालियां बटोरी। शायर ईकबाल सागर ने ”झील हो, दरिया हो, तालाब हो या झरना, जिसको देखो वो सागर से खफा लगता है“ सूनाकर भरपूर दाद बटोरी।
शायर मुश्‍ताक चंचल ने ”लो आओ अब मिल जाये सभी“ को भी एकता के तले सूनाकर माहौल को खुशनुमा बना दिया। शायर असमां बेगम ने ”नस्‍ले आदम की क्‍या पुछिये, आदमी क्‍या से क्‍या हो गया“ पेश कर दाद बटोरी। खुर्शिद नवाब ने क्रान्‍तिकारी गजल ”हिन्‍दू की बात कर ना मुसलमा की बात कर, इंसा है अगर तु तो इंसान की बात कर“ सूना कर मुशायरे को परवान चढ़ाया। कवियत्रि डॉ. बीना ने ”माँ तु दुर्गा बन जा वरना ये आतंकवाद थमेगा नहीं“ सूनाकर आने वाले मदर्स-डे की सूचना दी।
नामचीन शायरा एवं मुशायरे की संयोजक डॉ. सरवत खान ने ”मुंह फेर के युॅ पास से गुजरा ना कीजिये, बातों में जहर इतना मिलाया ना कीजिये“ सूना कर खूब तालियां बटोरी।
दूरदर्शन केन्‍द्र, जयपुर के निदेशक एवं मुख्‍य अतिथि डॉ. के.के. रत्तू ने कहा कि रवीन्‍द्र नाथ टैगोर दुनिया के ऐसे शख्‍स है, जिन्‍होंने भारत और बंगला देश के राष्‍ट्रगान लिखे है। डॉ. रत्तू ने ”मैंने फांसी पर चढ़ने से पहले दरख्‍तों से दुआ की, हरे रहना, भरे रहना“ सुनाकर मुशायरे को परवान चढ़ाया। मुशायरे की सदारत करते हुए जे.एन.यू. के पूर्व कुलपति प्रो. एम.एस. अगवानी ने कहा कि रवीन्‍द्रनाथ टैगोर गांधीजी के शब्‍दों में देश के ”सेन्‍टीनल“ पहरेदार थे, उन्‍होंने जलियावाला हत्‍या काण्‍ड से दुःखी हो ”नाईट हूड“ की उपाधि ब्रिटिश सरकार को लौटा दी थी।
मुशायरे के प्रारम्‍भ में ट्रस्‍ट सचिव नन्‍दकिशोर शर्मा ने गुरुवर रविन्‍द्रनाथ टैगोर को श्रद्धान्‍जलि देते हुए गुरुवर के कवित्‍व पर प्रकाश डाला। विद्या भवन के प्राचार्य एम.पी. शर्मा ने धन्‍यवाद कहा।



प्रस्तुति- नीतेश सिंह

Wednesday, May 12, 2010

ब्रैम्पटन लाइब्रेरी कनाडा में, "साउथ एशियन हेरिटेज मास" का कवयित्री मीना चोपड़ा के कविता पाठ से आरम्भ



मई 2, 2010 को ब्रैम्पटन लाइब्रेरी का साउथ एशियन हेरिटेज मास का आरम्भ साउथ फ्लैचर शाखा में बहुत धूम-धाम से हुआ। इस आयोजन का उद्देश्य दक्षिण एशिया से आए अप्रवासियों की लाइब्रेरी सिस्टम में रुचि बढ़ाना और इसके बारे में जानकारी देना है। इस महीने के दौरान इस सिस्टम की सभी लाइब्रेरियों में बच्चों के लिए बारी बारी द्विभाषी पुस्तक पाठ, कहानियाँ और गीत होंगे।
इस अवसर पर मिसिसागा की कवयित्री, चित्रकार और शिक्षक मीना चोपड़ा जो हिन्दी और अंग्रेज़ी; दोनों भाषाओं में रचना करती हैं, की पुस्तक "सुबह का सूरज अब मेरा नहीं है" का लोकार्पण और कविता पाठ के लिए बुलाया गया।
यह पुस्तक हिन्दी, ऊर्दू और हिन्दी लिप्यांतरण (ट्रांसलिटरेशन) में प्रकाशित हुई है। मीना चोपड़ा की एक पूर्व प्रकाशित अंग्रेज़ी काव्य पुस्तक "इग्नाईटिड लाईन्ज़" का फिर से प्रकाशन भी हुआ है। मीना चोपड़ा की पुस्तकों के विमोचन के लिए ब्रैम्पटन की मेयर सूज़न फैनल आई थीं।
कार्यक्रम दो बजे के बाद आरम्भ हुआ। ब्रैम्पटन लाइब्रेरी की बहुसांस्कृतिक सेवाओं की संयोजिका सरला उत्तांगी ने सभी का स्वागत किया और ब्रैम्पटन लाइब्रेरी सिस्टम की चेयर पर्सन जैनिस ऑड को आमंत्रित किया। जैनिस ने लाइब्रेरी में अन्य भाषाओं की पुस्तकों की चर्चा करते हुए बताया कि पिछले कुछ वर्षों में ब्रैम्पटन की लाइब्रेरियाँ किस तरह से बदल गई हैं। उन्होंने ब्रैम्पटन की मेयर को पुस्तक के लोकार्पण के लिए आमंत्रित किया।
सूज़न फैनल लोकार्पण करने के बाद अपने संबोधन में कहा कि इस समय ब्रैम्पटन में 175 देशों से आए लोग बसे है।
पुस्तक विमोचन के बाद मीना चोपड़ा ने अपनी पुस्तक में से कुछ रचनाएँ सुनाईं।

उनके बाद जैनिस ऑड ने मलिस्सा भगत को आमंत्रित किया। मलिस्सा कैनेडा के सिटिज़िनशिप और मल्टीकल्चरल मंत्री जेसन कैनी वरिष्ठ सलाहकार हैं। उन्होंने मीना जी के लिए जेसन कैनी का संदेश पढ़ा। मलिस्सा भगत ने ब्रैम्पटन के इलाके के भविष्य के कंज़र्वेटिव दल के प्रत्याशी कायल को मंच पर बुलाया और उन्होंने भी मीना जी को बधाई दी।

अगले चरण में सरला उत्तांगी ने सुमन कुमार घई को पुस्तक के बारे में बोलने के लिए आमंत्रित किया। सुमन कुमार घई ने पुस्तक के लिप्यांतरण में भी सहयोग दिया है। सुमन घई ने लिप्यांतरण के महत्व को बताते हुए समझाया कि उत्तरी भारत, पाकिस्तान, कैरेबियन और कुछ अफ्रीकन देशों के लोग भाषा को समझते तो हैं परन्तु देवनागरी लिपि में हिन्दी नहीं पढ़ पाते इसलिए लिप्यांतरण से उन्हें कविता का आनन्द लेने में सुविधा रहेगी। सुमन घई ने पुस्तक की समीक्षा भी की।

कार्यक्रम की अगली वक्ता थीं उर्दू की शायरा नसीम सैय्यद। उन्होंने बहुत ही ख़ूबसूरत ढंग से मीना की काव्य शैली की चर्चा करते हुए मीना की चित्रकला से मिलाया और कहा कि मीना आम कवियों से हटकर शब्दों का कम इस्तेमाल करते हुए बहुत कुछ कह जाती है।
इग्नाईटिड लाईन्ज़ की चर्चा करने के लिए इंग्लिश की कवयित्री सास्किया मैडॉक को आमंत्रित किया गया। सास्किया ने मीना की कविता और अपनी कविताओं की एक ही शैली की रचनाएँ कहा और उदाहरण के लिए अपनी एक कविता सुनाई।

इस क्रम के बाद मीना जी ने अपनी पुस्तक की कुछ कविताओं का पाठ किया और श्रोताओं को प्रश्नोत्तर सत्र के लिए आमन्त्रित किया। श्रोताओं बहुत सटीक प्रश्न पूछे और उन्हें उतने ही सटीक उत्तर भी मिले।
अंत में धन्यवाद ज्ञापन ताबीर विरदी, मीना जी की बेटी ने दिया।
सभा का विसर्जन करते हुए साउथ फ्लैचर शाखा की मैनेजर लिज़ा लिप्सन ने सभी का धन्यवाद किया और बताया कि मीना चोपड़ा की पुस्तकें अब लाइब्रेरी में उपलब्ध हैं।

मीना इस वर्ष मिसिसागा के प्रथिष्टित MARTY AWARD की नॉमिनी भी हैं।

सुमन घई

Tuesday, May 11, 2010

मिरचपुर के दलित सुरक्षित नहीं हैं- मानवाधिकार समर्थक एक विशेष जाँच टीम की रिपोर्ट





हरियाणा में हिसार जिले के गांव मिरचपुर के दलितों को उनकी मांग के मुताबिक जल्द से जल्द हिसार शहर में जमीन देकर बसाया जाए। ये लोग गांव में खुद को सुरक्षित नहीं महसूस कर रहे हैं। उन्हें शक है कि आने वाले दिनों में उन पर फिर हमले हो सकते हैं। वे अपने परिवार की महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा को लेकर खास तौर पर चिंतित हैं। मिरचपुर दलित हत्याकांड और उसके बाद हरियाणा पुलिस की भूमिका संदिग्ध रही है, इसलिए आवश्यक है कि जब तक इन दलित परिवारों को कहीं और न बसाया जाए, तब तक उनकी सुरक्षा के लिए गांव में केंद्रीय पुलिस बल को तैनात किया जाए।

बीते रविवार 9 मई 2010 को दिल्ली से मानवाधिकार समर्थकों की एक टीम ने रविवार को हिसार जिले के मिरचपुर गांव का दौरा किया। इस गांव में पिछले महीने की 21 तारीख (21 अप्रैल 2010) को दबंग जातियों के हमलावरों ने दलितों की बस्ती पर हमला किया था और 18 घरों को आग लगा दी थी। इस दौरान बारहवीं में पढ़ रही विकलांग दलित लड़की सुमन और उसके साठ वर्षीय पिता ताराचंद की जलाकर हत्या कर दी गई। दलितों की संपत्ति को काफी नुकसान पहुंचाया गया और कई लोगों को चोटें आईं।
मिरचपुर का दौरा करने और अलग अलग पक्षों से बात करने के बाद इस जांच टीम ने पाया कि :

1. दलितों पर हमले और आगजनी की घटना के लगभग तीन हफ्ते बाद भी मिरचपुर गांव में जबर्दस्त तनाव है। इस गांव के कुछ दलित परिवार प्रशासन के दबाव की वजह से लौट आए हैं, लेकिन उन्होंने अपने परिवार की युवतियों और लड़कियों को गांव से बाहर रिश्तेदारों के पास रखने का रास्ता चुना है। उन्हें नहीं लगता कि दलित युवतियां और बच्चियां गांव में सुरक्षित रह सकती हैं।
2. मिरचपुर में दलित उत्पीड़न का लंबा इतिहास रहा है। इससे पहले भी यहां दलितों के साथ मारपीट की घटनाएं होती रही हैं और खासकर दलित महिलाओं को यौन उत्पीड़न झेलना पड़ा है। महिलाओं के साथ बलात्कार और उन्हें नंगा करके घुमाने जैसी घटनाओं की पृष्ठभूमि और ऐसी तमाम घटनाओं में पुलिस और प्रशासन की भूमिका की वजह से मिरचपुर के दलित अब गांव छोड़ना चाहते हैं।
3. मिरचपुर में 21 अप्रैल को हुई आगजनी और हिंसा की घटनाओं के ज्यादातर आरोपी अब भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं। दलितों का आरोप है कि इस घटना के मास्टरमाइंड अब भी खुलेआम घूम रहे हैं और लोगों को धमका रहे हैँ।
4. प्रशासन और पुलिस इस घटना को दबाने में जुटी है। इस घटना के बाद से ही हिसार के जिलाधिकारी कार्यालय में धरने पर बैठे दलितों को 8 मई को जबर्दस्ती वहां से हटा दिया गया और डरा-धमकाकर गांव लौटने को मजबूर किया गया, ताकि दुनिया को ये बताया जा सके कि मिरचपुर में सब कुछ सामान्य है। दलितों को बाध्य किया जा रहा है कि वे हमलावरों के साथ समझौता कर लें।
5. सर्व जाति सर्व खाप पंचायत की 9 मई को मिरचपुर में हुई सभा में ये कहा गया कि दलितों ने अब समझौता कर लिया है और वे “भाईचारे के साथ” गांव में रहने को तैयार हो गए हैं। मिरचपुर से दलितों ने जांच टीम को बताया कि पीड़ित परिवारों से कोई भी इस पंचायत में नहीं गया है और वे समझौते के लिए तैयार नहीं है। इस पंचायत को सर्वजाति पंचायत नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इसमें दलितों की हिस्सेदारी नहीं थी। मिरचपुर के दलितों का कहना है कि इस कांड के दोषियों को सजा मिलनी चाहिए। इस बात पर किसी तरह का समझौता नहीं हो सकता।
6. राहत के नाम पर मिरचपुर के दलितों को प्रति परिवार दो बोरी गेहूं दिए गए हैं। राहत की बाकी घोषणाएं अब तक कागज पर ही हैं।
7. मिरचपुर के दलित इस घटना के सिलसिले में मौजूदा राजनीतिक दलों की भूमिका से नाराज हैं। उनका गुस्सा खास तौर पर सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी के खिलाफ है। पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों की मौजूदगी में हुए इस हत्याकांड से उनका विश्वास हिल गया है।
8. कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी ने घटना के बाद मिरचपुर का दौरा किया था, लेकिन गांव के दलितों का कहना है कि राहुल गांधी के दौरे के बाद भी प्रशासन और पुलिस का रवैया पहले जैसा है और वे अब भी सहमे हुए हैं।
9. पूछने पर दलित बस्ती के लोगों ने बताया कि वे अपनी मर्जी से वोट भी नहीं डाल सकते हैं। अपनी मर्जी से वोट डालने की मांग करने पर उनके साथ मारपीट होती है और उनका वोट जबरन डाल दिया जाता है।
10. मिरचपुर के सार्वजनिक शिव मंदिर में दलितों का प्रवेश वर्जित है। गांव के दलित अपना मंदिर बनाना चाहते हैं। लेकिन उन्हें अपना मंदिर नहीं बनाने दिया जा रहा है। इस वजह से गांव में दलितों का मंदिर अधूरा बना हुआ है। मिरचपुर गांव के स्कूल में एक भी दलित शिक्षक नहीं है। सरकारी नियुक्तियों में आरक्षण के बावजूद ऐसा होना राज्य में दलितों के साथ हो रहे भेदभाव का एक और प्रमाण है।

इस जांच टीम में नेशनल फेडरेडशन ऑफ़ दलित वुमेन (एनएफ़डीडब्‍लयू) की उत्तर भारत संयोजिका एवं मानवाधिकार वकील सुश्री चंद्रा निगम, शोधकर्ता विनीत कुमार, सामाजिक कार्यकर्ता राकेश कुमार सिंह, और पत्रकार अरविंद शेष तथा दिलीप मंडल शामिल थे। इस रिपोर्ट को अनुसूचित जाति आयोग और मानवाधिकार आयोग को भी भेज दिया गया है।

अमेरिका और भारत में एक साथ हुआ धूप से रूठी चाँदनी का विमोचन


अमेरिका में विमोचन
प्रतिष्ठित पत्रकार, कवयित्री, कहानीकार, उपन्यासकार डॉ. सुधा ओम ढींगरा का काव्य संग्रह "धूप से रूठी चांदनी" (शिवना प्रकाशन) का विमोचन समारोह अमेरिका और भारत में एक साथ हुआ. अमेरिका में हिन्दू भवन (मौरिसविल, नॉर्थ कैरोलाईना) के सांस्कृतिक भवन के भव्य प्रांगण में हिंदी विकास मंडल और अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति की नॉर्थ कैरोलाईना शाखा के तत्वावधान में बहुत धूमधाम से संपन्न हुआ। हिंदी विकास मंडल के संरक्षक श्री गंगाधर शर्मा जी ने ज्योति प्रज्जवलित कर कार्यक्रम को आरंभ किया। 600 से अधिक श्रोतागणों के सम्मुख स्थानीय कवयित्री बिंदु सिंह ने डॉ. सुधा ओम ढींगरा के रचना संसार की झलक लोगों को दी और हिंदी के प्रति उनकी निष्ठा और कार्यों का चित्रात्मक वर्णन किया। उनके काव्य संग्रह "धूप से रूठी चांदनी" की कविताओं से श्रोताओं का परिचय करवाया और स्टेज पर श्रीमती सरोज शर्मा (अध्यक्ष हिंदी विकास मंडल ), अफ़रोज़ ताज(प्रोफेसर यू.एन.सी चैपल हिल), कवि आश कर्ण अटल, कवि महेन्द्र अजनबी और कवि अरुण जैमिनी जी को पुस्तक के विमोचन के लिया बुलाया और आप सब ने ''धूप से रूठी चांदनी'' का विधिवत विमोचन किया। नई नवेली दुल्हन का घूँघट हटाया गया। तीनों कवियों को स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया और उसके बाद फिर शुरू हुआ कवि सम्मलेन। आश कर्ण अटल, महेन्द्र अजनबी और अरुण जैमिनी जी ने हास्य और व्यंग्य के तीरों से श्रोताओं का तीन घंटे खूब मंनोरंजन किया। श्रोतागण उठने को तैयार नहीं थे, पर धन्यवाद और बधाइयों के साथ समरोह का समापन हुआ।

बिन्दु सिंह
भारत में डॉ. सुधा ओम ढींगरा की पुस्तक "धूप से रूठी चाँदनी" (शिवना प्रकाशन) का विमोचन सीहोर की अग्रणी साहित्य प्रकाशन संस्था शिवना प्रकाशन तथा मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। सुकवि मोहन राय की स्मृति में अखिल भारतीय मुशायरे का आयोजन भी किया गया। सीहोर के कुइया गार्डन में आयोजित कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि विधायक श्री रमेश सक्सेना, सुकवि स्व. मोहन राय की धर्मपत्नी श्रीमती शशिकला राय सहित पद्मश्री बशीर बद्र, पद्मश्री बेकल उत्साही, डॉ. राहत इन्दौरी तथा मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी की सचिव नुसरत मेहदी सहित सभी शायरों ने माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण तथा सुकवि स्व. मोहन राय के चित्र पर पुष्पाँजलि तथा दीप प्रज्जवलित करके किया। सभी अतिथियों का स्वागत संयोजक श्री राजकुमार गुप्ता द्वारा तथा आयोजन प्रमुख श्री पुरुषोत्तम कुइया ने किया। शिवना प्रकाशन की नई पुस्तकों का विमोचन सभी अतिथियों द्वारा किया गया. कार्यक्रम में शिवना प्रकाशन की नई पुस्तकों मोनिका हठीला की ''एक खुशबू टहलती रही'', सीमा गुप्ता की ''विरह के रंग'', मेजर संजय चतुर्वेदी की ''चाँद पर चाँदनी नहीं होती'' का भी विमोचन किया गया, साथ ही डॉ. आजम को सुकवि मोहन राय स्मृति पुरस्कार प्रदान किया गया। विमोचन के पश्चात तीनों उपस्थित लेखकों मोनिका हठीला, सीमा गुप्ता तथा संजय चतुर्वेदी का शिवना प्रकाशन तथा भोजक परिवार भुज द्वारा शाल, श्रीफल तथा स्मृति चिन्ह भेंट कर किया गया। सुधा ओम ढींगरा की अनुपस्थिति में उनका शाल, श्रीफल तथा स्मृति चिन्ह उर्दू अकादमी की महा सचिव नुसरत मेहदी जी ने स्वीकार किया। सुकवि स्व. मोहन राय स्मृति पुरस्कार की घोषणा तथा पुरस्कृत होने वाले कवि डॉ. आजम का संक्षिप्त परिचय चयन समिति की अध्यक्ष तथा स्थानीय महाविद्यालय में हिंदी की प्रोफेसर डॉ. श्रीमती पुष्पा दुबे द्वारा दिया गया। पंडित शैलेष तिवारी के स्वस्ति वाचन के बीच अतिथियों द्वारा डॉ. आजम को मंगल तिलक कर, शाल श्रीफल, सम्मान पत्र तथा स्मृति चिन्ह भेंटकर सुकवि स्व. मोहन राय स्मृति पुरस्कार प्रदान किया गया। मुख्य अतिथि विधायक श्री रमेश सक्सेना जी ने इस अवसर पर बोलते हुए कहा कि धन्य हैं शिवना के साथी गण जो कि अपने साथी की स्मृति में इतना भव्य आयोजन कर रहे हैं। श्री सक्सेना ने शिवना प्रकाशन के आयोजन की भूरि-भूरि प्रशंसा की। पद्मश्री डॉ. बशीर बद्र ने कहा कि सीहोर आना हमेशा से ही मेरे लिये आकर्षण का विषय रहता है क्योंकि यहां पर मुझे बहुत प्यार मिलता है। नुसरत मेहदी ने अपने संबोधन में कहा कि शिवना प्रकाशन के साथियों ने सीहोर में जो भव्य आयोजन रचा है वैसा कम ही देखने को मिलता है। शिवना प्रकाशन ने सीहोर में आज इतिहास रच दिया है।


भारत में विमोचन

कार्यक्रम के सूत्रधार द्वय रमेश हठीला तथा पंकज सुबीर ने सभी अतिथियों को शिवना प्रकाशन की ओर से स्मृति चिन्ह प्रदान किये, साथ ही कार्यक्रम संचालक श्री प्रदीप एस चौहान को सभी विशिष्ट अतिथियों द्वारा प्रतीक चिन्ह भेंट किया गया। कार्यक्रम के द्वितीय चरण में अखिल भारतीय मुशायरे का आयोजन किया गया। शायरों का स्वागत बैज, पुष्पमाला तथा स्मृति चिन्ह प्रदान कर श्री सोनू ठाकुर, विक्की कौशल, सनी गौस्वामी, सुधीर मालवीय, नवेद खान, प्रवीण विश्वकर्मा, प्रकाश अर्श, वीनस केसरी, अंकित सफर, रविकांत पांडे आदि ने किया। पद्मश्री बेकल उत्साही, डॉ. राहत इन्दौरी, नुसरत मेहदी, शकील जमाली, खुरशीद हैदर, अख्तर ग्वालियरी, शाकिर रजा, सिकन्दर हयात गड़बड़, अतहर सिरोंजी, सुलेमान मज़ाज, जिया राना, सुश्री राना जेबा, फारुक अंजुम, काजी मलिक नवेद, ताजुद्दीन ताज, मोनिका हठीला, मेजर संजय चतुर्वेदी, सीमा गुप्ता, डॉ. आजम जैसे शायरों की रचनाओं का कुइया गार्डन में उपस्थित श्रोता रात तीन बजे तक आनंद लेते रहे। डॉ. राहत इन्दौरी, बेकल उत्साही, खुर्शीद हैदर जैसे शायरों की गज़लों का श्रोताओं ने खूब आनंद लिया। श्रोताओं से खचाखच भरे मैदान पर देर रात तक काव्य रस की वर्षा होती रही। श्रोताओं ने अपने मनपसंद शायरों से खूब फरमाइश कर करके ग़ज़लें सुनीं। कार्यक्रम संचालन प्रदीप एस चौहान ने किया। अंत में आभार शिवना प्रकाशन के पंकज सुबीर ने किया।

प्रस्तुति- कुबेरनी हनुमंथप्पा ( यू .एस. ए)

Thursday, May 6, 2010

''ग्लोबलाइज्ड अर्थव्यवस्था में हिंदी की भूमिका'' पर व्याख्यान संपन्न



हैदराबाद । 6 मई, 2010
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के राजभाषा प्रभाग के तत्वावधान में आयकर निदेशालय के अंतर्गत देश भर में कार्यरत हिंदी अनुवादकों के लिए 'आयकर शिखर' में आयोजित त्रिदिवसीय अखिल भारतीय सेमिनार के दूसरे दिन विशेष वक्ता के रूप में पधारे प्रो.ऋषभ देव शर्मा ने ''ग्लोबलाइज्ड अर्थव्यवस्था में हिंदी की भूमिका'' पर व्याख्यान दिया।

अतिथि व्याख्याता ऋषभ देव शर्मा ने विस्तार से यह स्पष्ट किया कि ग्लोबलाइज्ड अर्थव्यवस्था में भारत केवल दुनिया भर के माल की खपत के लिए मंडी ही न रहकर उत्पादक और विक्रेता के रूप में भी उभर रहा है। उन्होंने वैश्विक कारोबार,सूचना प्रौद्योगिकी और बाज़ार की दृष्टि से हिंदी की आवश्यकता और क्षमता के बारे में बताते हुए आगे यह भी कहा कि कंप्यूटर और मोबाइल का जितना प्रसार होगा तथा आर्थिक विकास जितनी जल्दी गाँवों को लक्षित करेगा , हिन्दी सहित सभी स्थानीय भाषाओं के लिए उतना ही अनुकूल माहौल बनेगा क्योंकि गाँवों तक व्यवसाय इन्हीं भाषाओं के माध्यम से प्रसारित हो सकता है।

आरम्भ में आयकर निदेशालय के राजभाषा अधिकारी आर के शुक्ल ने प्रो.शर्मा का परिचय देते हुए स्वागत किया। सुश्री साहू के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ चर्चा संपन्न हुई।

Tuesday, May 4, 2010

अ. भा. लघुकथा सम्मेलन व सम्मान समारोह

लघुकथाकारों को उचित मंच एवं मान देने के क्रम में हम सब साथ साथ द्वारा अनुमानतः अक्तूबर, 2010 में सहभागिता के आधार पर अ. भा. लघुकथा सम्मेलन व सम्मान समारोह का आयोजन प्रस्तावित है। इसमें ऐसे सभी लघुकथाकार शामिल हो सकेंगे जिनकी कम से कम 10 श्रेष्ठ/सराहनीय लघुकथाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हों। यदि किसी लघुकथाकार की पुस्तक भी प्रकाशित हुई होगी तो सम्मान हेतु उसे वरीयता दी जाएगी। लघुकथाकारों को अपनी प्रविष्टि के साथ कम से कम 10 प्रकाशित लघुकथाओं की फोटो प्रति (प्रकाशन तिथि व पत्र/पत्रिका के नाम सहित) एवं विगत 10 वर्षों में प्रकाशित लघुकथा की पुस्तक यदि कोई हो की एक प्रति, स्वयं का फोटो, संक्षिप्त परिचय, पता लिखा एवं टिकट लगा एक पोस्ट कार्ड व एक लिफाफा भी भेजना होगा। चयनित लघुकथाकारों को अपनी लगभग 200 शब्दों में लिखी प्रकाशित/अप्रकाशित एक/दो लघुकथा का मंच पर पाठ भी करना होगा। अतः उसे पाठ किए जाने योग्य लघुकथाओं की एक-एक प्रति भी प्रविष्टि के साथ भेजनी होगी। ये लघुकथाएं राष्ट्रीय, सामाजिक या किसी अन्य प्रेरक विषय पर हो सकती हैं। सम्मान हेतु चयनित लघुकथाकारों को स्मृति चिन्ह, प्रमाण पत्र आदि सामग्री मौके पर ही प्रदान की जाएंगी। किसी प्रतिभागी के किसी वास्तविक कारण के चलते कार्यक्रम में भाग न लेने की स्थिति में उसे केवल प्रशस्ति पत्र ही भेजा जा सकेगा।

इस समारोह व सम्मान कार्यक्रम में चयनित प्रतिभागियों को (हम सब साथ साथ के सदस्यों को 250/-रुपए एवं गैर सदस्यों को 350/-रुपए) सहभागिता शुल्क के रूप में देना होगा। इस शुल्क में प्रतिभागी का कार्यक्रम के दौरान भोजन/जलपान आदि का व्यय शामिल होगा। यह शुल्क प्रविष्टि के साथ न भेज कर सम्मेलन व सम्मान हेतु चयन होने की सूचना मिलने के पश्चात प्रेषित करना होगा। यदि कोई प्रतिभागी प्रविष्टि के साथ अपना शुल्क भेजता है परन्तु उसका चयन सम्मेलन व सम्मान हेतु नहीं हो पाता है तो उसका शुल्क वापस कर दिया जाएगा। ग़रीबी रेखा से नीचे का जीवन जीने वाले या 65 वर्ष पूर्ण कर चुके वरिष्ठ लघुकथाकार, जिनकी लघुकथा पर कम से कम दो स्तरीय पुस्तकें/संग्रह प्रकाशित हो चुकी हों, का चयन होने की स्थिति में उनके इसका प्रमाण प्रस्तुत करने पर उनसे कोई सहभागिता शुल्क नहीं लिया जाएगा।

प्राप्त प्रविष्टियों व लघुकथाओं का चयन एक निर्णायक मंडल द्वारा किया जाएगा और उनका निर्णय सभी को मान्य होगा।

प्रविष्टियॉं भेजने की अंतिम तिथिः 10 अगस्त, 2010

नोटः कृपया प्रविष्टियॉं हम सब साथ साथ के पते पर प्रेषित की जाएं और प्रविष्टि के लिफाफे पर ‘लघुकथा सम्मान हेतु प्रविष्टि’ लिखें।

पताः संपादक/संयोजक, हम सब साथ साथ पत्रिका,

916-बाबा फरीदपुरी, वेस्ट पटेल नगर, नई दिल्ली-110008 मो. 9968396832, 9868709348 ईमेल- hsss2004@indiatimes.com, kalapariwar@rediffmail.com

Monday, May 3, 2010

कथाकार तेजेन्द्र शर्मा कनाडा के हिन्दी लेखकों के बीच....

पिछले सप्ताह कथा यू.के. के महासचिव और विश्वप्रसिद्ध कहानीकार श्री तेजेन्द्र शर्मा हिन्दी राइटर्स गिल्ड के आमंत्रण पर कैनेडा आए। हालांकि वह यहाँ केवल तीन दिनों तक ही ठहरे परन्तु उनके आने पर जिन कार्यक्रमों का आयोजन हुआ, उनसे बृहत टोरोंटो क्षेत्र के साहित्य जगत में एक नवचेतना का संचार हुआ। हिन्दी राइटर्स गिल्ड के उद्देश्यों में एक विभिन्न देशों में बिखरे हिन्दी साहित्य जगत में विचार-सेतु का निर्माण करना भी है और यह उसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। इन दिनों में जो कार्यक्रम हुए उनके रिपोतार्ज प्रस्तुत हैं –

हिन्दी साहित्य सभा ने श्री तेजेन्द्र शर्मा का अभिनन्दन किया



अप्रैल 24, 2010 – श्री तेजेन्द्र शर्मा के कैनेडा आने पर हिन्दी साहित्य सभा, टोरोंटो ने हिन्दी राइटर्स गिल्ड के सहयोग से एक काव्य सम्मेलन का आयोजन किया। यह आयोजन ब्रैम्पटन लाइब्रेरी की फ़ोर कॉरनर्ज़ शाखा के सभागार में आयोजित किया गया। इस काव्य सम्मेलन में दोनों संस्थाओं के कवियों और कवयित्रियों को आमंत्रित किया गया था।

सम्मेलन की संचालिका मानोशी चटर्जी ने श्री तेजेन्द्र शर्मा, उपस्थित कवियों और श्रोताओं का स्वागत किया। और हिन्दी साहित्य सभा की परंपरा के अनुसार कार्यक्रम सरस्वती वंदना से आरम्भ हुआ।

मानोशी चटर्जी ने श्री तेजेन्द्र शर्मा का विस्तृत परिचय देते हुए उनसे अतिथि अध्यक्ष के रूप में मंच पर बैठने के लिए आमंत्रित किया। इस कवि सम्मेलन की अध्यक्षता हिन्दी साहित्य सभा के संस्थापक सदस्यों में से एक और कैनेडा के हिन्दी साहित्य जगत की वरिष्ठ लेखिका श्रीमती दीप्ति अचला कुमार ने की। हिन्दी साहित्य सभा के अध्यक्ष पाराशर गौड़ और श्रीमती दीप्ति अचला कुमार ने श्री तेजेन्द्र शर्मा का अभिनन्दन प्रशस्ति पत्र और फूलों की भेंट से किया। पाराशर गौड़ ने तेजेन्द्र के स्वागत में दो शब्द कहते हुए उन्हें "पूर्ण साहित्यकार" की संज्ञा से संबोधित किया। कवि सम्मेलन की अध्यक्षा दीप्ति अचला कुमार ने तेजेन्द्र जी का स्वागत करते हुए कहा कि वह एक अवधि से उनकी कहानियाँ अंतरजाल और पुस्तकों के माध्यम से पढ़ती रही हैं और आज सामने देख कर उन्हें हार्दिक प्रसन्नता हो रही है। दीप्ति जी ने हिन्दी राइटर्स गिल्ड के सहयोग को रेखांकित करते हुए कहा कि उन्हें प्रसन्नता है कि दो संस्थाएँ मिलकर यह कार्यक्रम कर रही हैं।

श्री तेजेन्द्र शर्मा ने कथा यू.के. की इंग्लैंड के साहित्य जगत में भूमिका की चर्चा करते हुए संस्था से पहले और बाद की अवस्था की तुलना की। भारतेतर लेखकों को "प्रवासी" लेखक के संबोधन पर भी उन्होंने आपत्ति जताई परन्तु साथ ही उन्होंने विदेशों में रहने वाले लेखकों को प्रोत्साहित किया कि वह "नॉस्टेलजिया" की दलदल से बाहर आकर स्थानीय सरोकारों से अपने को जोड़ें और स्थानीय परिप्रेक्ष्य में ही साहित्य सृजन करें। उन्होंने कहा कि अंग्रेज़ी भाषा के कैनेडियन लेखक को प्रवासी लेखक या ऑस्ट्रेलिया के लेखक को प्रवासी लेखक इसी कारण से नहीं कहा जाता क्योंकि उनके लेखन में स्थानीय सरोकारों की प्रधानता रहती है।

तेजेन्द्र जी ने अपने काव्य संकलन "ये घर तुम्हारा है" की चर्चा करते हुए अपने वक्तव्य पर बल दिया। उन्होंने अपने संबोधन में अपनी काव्य रचनाओं को इस तरह बुना कि पता ही नहीं चला कि किस तरह एक घंटा बीत गया। अभी श्रोताओं का मन नहीं भरा था परन्तु समय की सीमा को देखते हुए तेजेन्द्र जी ने अपनी व्यंग्य रचना "मकड़ी बुन रही है जाल" से समापन किया।

सम्मेलन में काव्य पाठ करने वाले थे – सुमन कुमार घई, भगवत शरण श्रीवास्तव, लता पांडे, भुवनेश्वरी पांडे, इंदिरा वर्मा, राज महेश्वरी, सरोजिनी जौहर, देवेन्द्र मिश्रा, सुधा मिश्रा, विजय विक्रान्त, प्रमिला भार्गव, राज शर्मा, प्राण किरतानी, कृष्णा वर्मा, प्रवीण कौर, अवतार गिल, राज कश्यप, राकेश तिवारी, मीना चोपड़ा, मानोशी चटर्जी, गोपाल बघेल, पाराशर गौड़ और दीप्ति अचला कुमार।

कार्यक्रम का समय दोपहर दो बजे से चार बजे तक तय हुआ था परन्तु कार्यक्रम लगभग पांच बजे समाप्त हुआ। समय की कमी के कारण अल्पाहार श्रोताओं को अपनी सीटों पर ही दे दिया गया। अंत में स्थानीय कवियों की कविता सुनने के बाद तेजेन्द्र शर्मा जी ने सुझाव दिया कि कवियों और कवयित्रियों को चाहिए कि अपनी रचनाएँ सुनाने के लिए की जा रही गोष्ठियों में वह भारत के प्रतिष्ठित कवियों की रचनाएँ भी सुनाएँ और बताएँ कि उन्होंने वही रचना क्यों चुनी। इस तरह से कविता पर मनन करने से स्थानीय कवियों की रचना स्तर में सुधार अवश्य आएगा। सभा का विसर्जन करते हुए दीप्ति अचला कुमार जी ने तेजेन्द्र जी का पुनः धन्यवाद किया।


मिसिसागा में कथा-वाचन और कथा-लेखन कार्याशाला



अप्रैल 25, 2010 - मिसिसागा सेंट्रल लाइब्रेरी ने हिन्दी राइटर्स गिल्ड के सहयोग से कथा यू.के. के महासचिव और प्रसिद्ध, सम्मानित कहानीकार तेजेन्द्र शर्मा को कथा-वाचन और कथा-लेखन की कार्यशाला के आमंत्रित किया। यह कार्यक्रम मिसिसागा सेंट्रल लाइब्रेरी के हॉल में हुआ।

हिन्दी राइटर्स गिल्ड की निदेशिका डॉ. शैलजा सक्सेना ने तेजेन्द्र शर्मा जी का स्वागत किया और उनका परिचय देते हुए श्रोताओं को उनकी लेखन शैली से भी परिचित करवाया। डॉ. शैलजा सक्सेना ने कथा यू.के. द्वारा विदेशों में बसे हिन्दी लेखकों से संपर्क बढ़ाने के कदम की सराहना की और तेजेन्द्र शर्मा को धन्यवाद दिया कि उन्होंने हिन्दी राइटर्स गिल्ड का आमंत्रण स्वीकार किया। हिन्दी राइटर्स गिल्ड समय समय स्थानीय लेखकों के लिए कार्याशालाएँ करती रहती है परन्तु तेजेन्द्र जी जैसे कहानीकार की उपस्थिति ने इस कार्यशाला का महत्व बढ़ा दिया था।

कहानी पाठ से पहले हिन्दी राइटर्स गिल्ड के संस्थापक निदेशकों डॉ. शैलजा सक्सेना, सुमन कुमार घई और विजय विक्रान्त ने तेजेन्द्र जी को मानद सदस्यता प्रदान करके सम्मानित किया। सुमन घई ने टिप्पणी की कि इस सम्मान से तेजेन्द्र जी को सम्मानित करके हमने अपने आपको ही सम्मानित किया है क्योंकि अब तेजेन्द्र जी "हमारे" हो गए हैं।

श्रोता/लेखक तेजेन्द्र जी को सुनने के लिए उत्सुक थे और कार्यक्रम में औपचारिकताओं के लिए कोई समय नहीं रखा गया था ताकि तेजेन्द्र जी के सीमित समय का सभी लाभ उठा सकें।

तेजेन्द्र जी ने अपनी कहानी "कब्र का मुनाफ़ा" वाचन के लिए चुनी। शायद पहली बार श्रोताओं ने भावपूर्ण कथा वाचन सुना। कहानी के पात्र तेजेन्द्र जी का स्वर पाकर सजीव हो गए। देखा गया कि कुछ श्रोता आँखें बंद करके कहानी को अपने मनःस्तल पर सिनेचित्र की तरह देख रहे थे। लेखक हतप्रभ से कहानी विधा के सजीव प्रस्तुतिकरण में खोए हुए थे।

कहानी पाठ के बाद तेजेन्द्र जी ने प्रश्नोत्तर का सत्र आरम्भ किया। मानोशी चटर्जी का पहला प्रश्न था कि लेखक को कितना "पोलिटिक्ली करेक्ट" यानि राजनैतिक तौर से तटस्थ होना चाहिए? शायद वह कहानी के पात्रों के चरित्र को लेखक के चरित्र से मिला रहीं थीं। तेजेन्द्र जी ने बताया कि कहानी में लेखक उसके पात्रों में न होकर उसमें सूत्रधार की तरह विवरणात्मक अभिव्यक्ति में होता है। किसी ने प्रश्न किया कि क्या यह कहानी एक संप्रदाय विशेष पर आक्रमण नहीं है? तेजेन्द्र जी ने ध्यान दिलाया कि जिस पात्र के संवादों से यह लगता है उस पात्र के चरित्र की ओर ध्यान दें। वह सिवाय अपने धर्म के बाकी सभी से नफ़रत करता है। कहानी में अन्य धर्मों पर आक्रमण वह पात्र कर रहा है और उस वार्तालाप को संतुलित रखने के लिए कहानी में अन्य पात्र हैं – जैसे उसकी पत्नी। कहानी की बुनावट पर भी प्रश्न पूछे गए। कुछ लेखकों ने अपनी अधूरी कहानियों की समस्या सुलझाने के लिए भी प्रश्न पूछे। अंत में तेजेन्द्र जी ने कहा कि लेखक को अपने मन की सच्चाई लिखनी चाहिये मगर एक बात का ध्यान रखना चाहिये कि वह उत्तेजक या भड़काऊ भाषा का इस्तेमाल न करे।

तेजेन्द्र जी ने लेखकों को आज की कहानी से जुड़ने के लिए कहा। उन्होंने बल दिया कि आज के कहानीकारों को पढ़िए ताकि कैनेडा के लेखकों का साहित्य मुख्य धारा से जुड़ सके। स्थानीय लेखक तेजेन्द्र शर्मा जी एक एक बात को मन में उतार रहे थे। कुछ तो लिख कर नोट्स बनाते देखे गए जब तेजेन्द्र जी ने कहानी विधा की बारीक़ियों को समझाया।

कार्यक्रम पौने पाँच बजे "यहाँ पर" विक्रान्त जी द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के बाद समाप्त कर दिया गया क्योंकि लाइब्रेरी के पाँच बजे बंद होने की घोषणा बार बार इंटरकॉम पर हो रही थी। परन्तु अब कार्यक्रम विजय विक्रान्त जी के घर पर स्थानांतरित हो गया जहाँ अल्पाहार और बाद में रात के खाने का प्रबंध किया गया था।

विक्रान्त जी के निवास पर लेखक अनौपचारिक ढंग से तेजेन्द्र जी से मिले। विविध विषयों पर बातचीत हुई। अवसर पा कर डॉ. शैलजा सक्सेना ने तेजेन्द्र शर्मा जी का साक्षात्कार भी किया जो कि हिन्दी टाइम्स के आने वाले अंकों में प्रकाशित होगा। तेजेन्द्र जी के अनुरोध पर जसबीर कालरवि ने अपनी कुछ ग़ज़लें सुनाई। रात के खाने के बाद लगभग दस बजे लेखक नवचेतना लिए अपने घरों को लौटे।

तेजेन्द्र शर्मा (महासचिव, कथा यू.के.) ऑमनी २ (टी.वी.) और "अपना रेडियो बॉलीवुड बीट्स" पर



अप्रैल 26, 2010 – कैनेडा के मुख्य बहुभाषी टी.वी. नेटवर्क ऑमनी 2 ने तेजेन्द्र शर्मा जी को अपने स्टूडियो में साक्षात्कार के लिए आमंत्रित किया। वहां वे सुमन कुमार घई के साथ गए। "बधाई हो" के प्रोड्यूसर नलिन बाखले ने तेजेन्द्र जी का स्वागत किया और साक्षात्कार भी स्वयं ही किया। आमतौर पर ऐसे कार्यक्रमों की रिकॉर्डिंग केवल साढ़े आठ मिनट की होती है परंतु तेजेन्द्र जी जैसे लेखक को सामने पाकर नलिन बाखले स्वयं को नहीं रोक पाए। नलिन ने, जो स्वयं सृजनत्मक लेखन के प्रशिक्षित हैं, साहित्य लेखन के विषय में बहुत गंभीर प्रश्न पूछे। हिन्दी लेखन और अंग्रेज़ी लेखन की तुलना, स्थानीय सरोकारों पर हिन्दी लेखन की क्षमता आदि पर जमकर चर्चा हुई। साक्षात्कार लगभग पैंतालिस मिनट चला और उसके अंत में सुमन कुमार हिन्दी राइटर्स गिल्ड और कथा यू.के. सहयोग के बारे जब सुमन कुमार घई से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि अंतरजाल ने विश्व को वास्तव में विश्वग्राम बना दिया है और तेजेन्द्र शर्मा जी जैसा लेखक जिसने इस माध्यम को पूर्णतः अपना लिया है, दो महाद्वीपों (उत्तरी अमेरिका और यूरोप) में साहित्य सेतु के निर्माण के लिए जुटा है। सुमन घई ने कथा यू.के. के इस कदम के लिए धन्यवाद दिया।

ऑमनी 2 के बाद तेजेन्द्र शर्मा और सुमन घई सीधे रेडियो सीएमआर 101.3 एफ.एम. पहुँचे जहाँ पर तेजेन्द्र जी का स्वागत हिन्दी टाइम्स के प्रकाशक राकेश तिवारी, और उपाध्यक्ष गुरमीत सैनी ने किया। "अपना रेडियो बॉलीवुड बीट्स" भी राकेश तिवारी जी का ही कार्यक्रम है। रेडियो होस्टस देवसागर और स्वाति ने तेजेन्द्र जी के पसंद के साहित्यिक गीत श्रोताओं के लिए प्रसारित किए। तेजेन्द्र जी ने उन गीतों के साहित्यिक पक्ष की चर्चा की। राकेश तिवारी जी ने तेजेन्द्र जी से कुछ प्रश्न पूछे और श्रोताओं को फोन करने के लिए आमंत्रित किया और तेजेन्द्र जी ने फोन करने वालों से बातचीत की।

रिपोर्ट- सुमन कुमार घई