Thursday, June 30, 2011

इन्दु शर्मा कथा सम्मान समारोह एवं पद्मानंद साहित्य सम्मान समारोह सम्पन्न हुए

(लंदन) - ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त श्री नलिन सूरी ने ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ़ कॉमन्स में हिन्दी लेखक विकास कुमार झा को उनके कथा उपन्यास ‘मैकलुस्कीगंज’ के लिये ‘सतरहवां अंतर्राष्ट्रीय इन्दु शर्मा कथा सम्मान’ प्रदान किया। इस अवसर पर उन्होंने लेस्टर निवासी ब्रिटिश हिन्दी लेखिका श्रीमती नीना पॉल को बारहवां पद्मानंद साहित्य सम्मान भी प्रदान किया। ब्रिटेन में लेबर पार्टी के सांसद वीरेन्द्र शर्मा ने सम्मान समारोह की मेज़बानी की।
उच्चायुक्त श्री नलिन सूरी ने विकास कुमार झा एवं नीना पॉल को बधाई देते हुए कहा, “हिन्दी अब आहिस्ता- आहिस्ता विश्व भाषा का रूप ग्रहण कर रही है। बाज़ार को इस बात की ख़बर लग चुकी है कि यदि भारत में पांव जमाने हैं तो हिन्दी का ज्ञान ज़रूरी है। मुझे बताया गया है कि ब्रिटेन में निजी स्तर पर और संस्थागत स्तर पर हिन्दी के शिक्षण का काम चल रहा है और विदेशी भी बोलचाल की हिन्दी सीखने का प्रयास कर रहे हैं। यहां के विश्वविद्यालयों में हिन्दी की पढ़ाई हो रही है। भारतीय उच्चायोग का प्रयास रहेगा कि हिन्दी स्कूली स्तर पर ब्रिटेन में अपनी वापसी दर्ज कर सके।”

(बाएं से तेजेन्द्र शर्मा, आसिफ़ इब्राहिम, लॉर्ड किंग, ज़किया ज़ुबैरी, विकास कुमार झा, महामहिम नलिन सूरी, विरेन्द्र शर्मा, नीना पॉल, मधु अरोड़ा।)

उन्होंने कथा यू.के. को 17वें सम्मान समारोह के लिये बधाई देते हुए कहा, “कथा यू.के. को यह सम्मान शुरू किये 17 वर्ष हो गये हैं। किसी भी सम्मान की प्रतिष्ठा में उसकी निरंतरता और पारदर्शिता महत्वपूर्ण होती है। इस कसौटी पर भी कथा यूके सम्मान खरे उतरते हैं। मैं तेजेन्द्र शर्मा और उनकी पूरी टीम को इस अवसर पर बधाई देना चाहूंगा और उन्हें यह आश्वासन देना चाहूंगा कि हिन्दी भाषा और साहित्य से जुड़े कार्यक्रमों के लिये उन्हें उच्चायोग का सहयोग हमेशा ही मिलता रहेगा। ”
सम्मान ग्रहण करते हुए विकास कुमार झा ने कहा, “एक कवि या लेखक आत्मा के कॉफ़ी हाउस का परिचारक ही होता है। आत्मा के अदृश्य कॉफ़ी हाउस का मैं एक अनुशासित वेटर (परिचारक) हूं और अगला आदेश लेने के लिये प्रतीक्षा में हूं। ” अपने उपन्यास पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, “मैकलुस्कीगंज’’ मेरे लिये जागी आंखों का सपना है। मेरे लिये यह मेरे बचपन के दोस्त की तरह है जिसके संग नीम दोपहरियों में आम, अमरूद, जामुन के पेड़ों पर चढ़ने का सुखद रोमांच मैंने साझा किया है। ”
ब्रिटिश संसद के ऊपरी सदन के सदस्य लॉर्ड किंग का कहना था कि, “मैं इस कार्यक्रम को देख कर इतना अभिभूत हूं कि मुझे लगता है कि युवा पीढ़ी तक तो हमें हिन्दी ले जाना ही है, अब मेरी पीढ़ी के लोगों को भी हिन्दी पढ़ना और लिखना सीख लेना चाहिये।‘’ उन्होंने हिन्दी और पंजाबी भाषा को रोमन लिपि में लिखने पर चिंता जताई।
काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी ने विकास कुमार झा के उपन्यास पर टिप्पणी करते हुए कहा, “हिन्दी में शोध करके लिखने की परम्परा विकसित नहीं हो पाई है। विकास कुमार झा ने गहरा शोध करने के बाद मैकलुस्कीेगंज को लिखा है। शायद यह उपन्यास इस परम्परा को स्थापित करने में सफल हो पाए। सन् 1911 में ब्रिटिश सरकार ने एंग्लो-इंडियन रेस को मान्यता दी थी और आज 2011 में यानि कि ठीक सौ साल बाद हम यहां ब्रिटिश संसद में भारत के एकमात्र एंग्लो-इंडियन गांव मैकलुस्कीगंज के जीवन पर आधारित उपन्यास को सम्मानित कर रहे हैं। ”
साउथहॉल से लेबर पार्टी के सांसद वीरेन्द्र शर्मा ने कहा कि “ब्रिटेन में कथा यू.के. द्वारा चलाई गई मुहिम से हिन्दी को ब्रिटेन में पांव जमाने में सहायता मिलेगी। जिस प्रकार ब्रिटेन में रचे जा रहे हिन्दी साहित्य को यहां ब्रिटिश संसद में सम्मानित किया जाता है, उससे हमारे स्थानीय लेखकों का उत्साह बढ़ेगा और भारतीय पाठकों को ब्रिटेन में रचे जा रहे साहित्य को आंकने का अवसर मिलेगा।”
कथा यू.के. के महासचिव कथाकार तेजेन्द्र शर्मा ने मैकलुस्कीगंज एवं तलाश उपन्यासों की चयन प्रक्रिया पर बात करते हुए कहा कि ब्रिटेन की युवा पीढ़ी को हिन्दी भाषा की ओर आकर्षित करने के लिये वे शैलेन्द्र और साहिर लुधियानवी जैसे फ़िल्मी साहित्यकारों पर बनाए गये अपने पॉवर पॉइन्ट प्रेज़ेन्टेशन को लेकर ब्रिटेन के भिन्न भिन्न शहरों में लेकर जाएंगे। उन्होंने चिन्ता जताई कि भारत में भी युवा पीढ़ी हिन्दी साहित्य से दूर होती दिखाई दे रही है।
कथा यू.के. के नव-निर्वाचित अध्यक्ष श्री कैलाश बुधवार ने कहा कि उन्हें ब्रिटेन में हिन्दी के भविष्य की इतनी चिंता नहीं जितनी कि भारत की युवा पीढ़ी को लेकर है। उनका मानना था कि यह सम्मान भाषा का सम्मान है। भाषा एक दीये की तरह है और कथा यूके यह दीया ब्रिटेन में जलाए हुए है। इस दीये की रौशनी ब्रिटेन की संसद के माध्यम से पूरी दुनियां में फैलेगी।
भारतीय उच्चायोग की श्रीमती पद्मजा ने कहा, “मैकलुस्कीगंज अद्भुत भाषा में लिखा एक ऐसा आंचलिक उपन्यास है जो कि वैश्विक उपन्यास की अनुभूति देता है। उपन्यास का मुख्य मुद्दा एंग्लो-इंडियन समाज का दर्द है, मगर उपन्यास उससे कहीं ऊंचा उठकर पूरे विश्व के दर्द को प्रस्तुत करता है। मैकलुस्कीगंज जन्म से एक उपन्यास है और कर्म से एक शोध ग्रन्थ। इस उपन्यास में झारखण्ड की जनजातियों के बारे में भी विस्तार से लिखा गया है। ”


नीना पॉल के उपन्यास तलाश पर अपना लेख पढ़ते हुए नॉटिंघम की कवियत्री जय वर्मा ने कहा कि, “तलाश के पात्रों में प्रेम जीवन का अहम् हिस्सा है। जीवन के संघर्ष को एक चुनौती समझ कर वे एक कदम आगे चलते हैं और दो कदम पीछे हटते प्रतीत होते हैं। ऐसा महसूस होता है कि हर पात्र को किसी न किसी की निरंतर तलाश है। प्यार को एक बंदिश न मानकर त्याग और क़ुर्बानी की झलक इनमें दिखायी पड़ती है। ”
नीना पॉल ने कथा यू.के. के निर्णायक मण्डल को धन्यवाद देते हुए कहा, “कि उपन्यास मेरे नज़रों में कल्पना, जज़्बात और भावनाओं का संगम है। कभी कभी लेखनी का दिल भी इतना भावुक हो उठता है कि लिखने को मजबूर कर देता है। शायद यही कारण है कि मेरी कहानियों को भावनापूर्ण कहा जाता है। बिना भावनाओं के क़लम चलती भी तो नहीं है। ”
नीना पॉल का मानपत्र मुंबई से पधारीं मधु अरोड़ा ने पढ़ा तो विकास कुमार झा का मानपत्र पढ़ा दीप्ति शर्मा ने। संचालन तेजेन्द्र शर्मा ने किया। इस अवसर पर विशेष रूप से प्रकाशित किये गये प्रवासी संसार के कहानी विशेषांक (अतिथि संपादक – तेजेन्द्र शर्मा) की प्रतियां संपादक राकेश पाण्डे ने मंचासीन प्रमुख अतिथियों की दीं।
कार्यक्रम में अन्य लोगों के अतिरिक्त श्रीमती सूरी, श्री आसिफ़ इब्राहिम (मंत्री समन्वय), राकेश शर्मा (उप-सचिव हिन्दी), आनंद कुमार (हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी), गौरीशंकर (उप-निदेशक नेहरू सेन्टर), मॉस्को से लुडमिला खोखलोवा और बॉरिस ज़ाख़ारीन, भारत से परमानंद पांचाल, कृष्ण दत्त पालीवाल, केशरी नाथ त्रिपाठी, दाऊजी गुप्त, ओंकारेश्वर पाण्डेय, राकेश पाण्डेय (संपादक – प्रवासी संसार), गगन शर्मा, रूही सिंह, डा. फ़रीदा, डा. भारद्वाज, पूर्व पद्मानंद साहित्य सम्मान विजेता मोहन राणा, उषा राजे सक्सेना, दिव्या माथुर, काउंसलर के.सी. मोहन, श्याम नारायण पाण्डेय, शिखा वार्षणेय, अरुणा अजितसरिया, प्रो.अमीन मुग़ल, सरोज श्रीवास्तव, राकेश दुबे, पद्मेश गुप्त, इंदर स्याल एवं सोहन राही आदि ने भाग लिया।

लाल बिहारी लाल जनता की खोज द्वारा सम्मानित


नई दिल्लीः एन.सी.आर,नोयडा से प्रकाशित राष्ट्रीय हिन्दी मासिक पत्रिका जनता की खोज द्वारा अपने चौथे बर्षगांठ के अवसर पर एशियन फिल्म एण्ड टेलिविजन संस्थान(मारवाह स्टूडियो), नोयडा के सभागार(हॉल) में आयोजित समारोह के दौरान दिल्ली के युवा लेखक, पर्यावरणप्रेमी दिल्लीरत्न लाल बिहारी लाल को मुख्य अतिथि सलाम इण्डिया न्यूज के चेयरमैन मों यूनुस अंसारी एवं वरिष्ठ पत्रकार श्री राज कुमार अग्रवाल द्वारा मेमोंटो द्वारा सम्मानित किया गया । इस अवसर पर सागर फिल्मस् के श्री सुभाष सागर, पत्रकार सुश्री तरुणा गौड सहित मीडिया एवं साहित्य से जुड़ी दर्जनों हस्तियों को सम्मानित किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता नोयडा बिक्रीकर के उपायुक्त श्री पंकज कुमार सिंह तथा संचालन पत्रकार श्री जी.डी. शर्मा ने किया। इस कार्यक्रम में नोयडा एवं दिल्ली के सैकडो मिडियाकर्मी एवं साहित्यकर्मी मौजूद थे।
श्री लाल बिहारी लाल कोलकता से त्रिविध भाषाओं- हिन्दी, बंगला एवं अंग्रेजी में प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका साहित्य त्रिवेणी के अगामी अंक-जुलाई-सितम्बर-2011 के पर्यावरण एवं वन विशेषांक के अतिथि संपादक भी हैं। श्री लाल को पूर्व में भी वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, नई दिल्ली सहित देश की दर्जनो साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थायें विभिन्न सम्मानों से सम्मानित कर चुकी है।

आथर्स गिल्ड आफ़ इंडिया का ३६ वां अधिवेशन संपन्न हुआ


आथर्स गिल्ड आफ़ इंडिया का ३६ वां द्विदिवसीय अधिवेशन धनवटे सभागार(शंकर नगर,नागपुर) के महाराष्ट्र राष्ट्र भाषा सभा में गत २८ व २९ मई को संपन्न हुआ ।
पद्मश्री डा. श्याम सिंह ‘शशि’ ने दीप प्रज्ज्वलित करके कार्यक्रम का उद्घाटन किया। डा. श्याम सिंह ‘शशि’ ने अपने उद्घाटन भाषण में गांधी,अम्बेडकर और भारतीय साहित्य के समग्र अवयवों पर विशद विचार व्यक्त किए। आथर्स गिल्ड के केन्द्रीय सचिव डा. शिव शंकर अवस्थी ने पूर्व महासचिव श्री राजेन्द्र अवस्थी को श्रद्धांजलि देते हुए उनकी उपलब्धियों एवं संस्था के राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य का लेखा-जोखा एवं प्रतिवेदन प्रस्तुत किया तथा संस्था के दो नए अध्याय नागपुर और आगरा में बन जाने से इसकी शक्ति और क्षमता बढ़ जाने की जानकारी दी।
चैन्ने चैप्टर के अध्यक्ष बाला सुब्रमण्यम ने प्रथम सत्र की अध्यक्षता की प्रथम सत्र की गोष्ठी का विषय था ‘गांधी दर्शन और हिन्दी कविता’ इसमें बीज व्याख्यान डा. हीरा लाल बछौतिया ने दिया। डा.अहिल्या मिश्र ने इस सत्र की अध्यक्षता की । डा. सविता चड्ढा (नई दिल्ली) और मीना खोंड(हैदराबाद) ने अपने प्रपत्र प्रस्तुत किए । डा. अहिल्या मिश्र ने अपने अध्यक्षीय टिप्पणी देते हुए कहा कि गांधी दर्शन पर आधृत रचनाकारों की रचनाओं की विशेष व्याख्या प्रस्तुत की गई है ।यह युगानुरूप व्याख्या थी । तीसरे सत्र में‘डा. भीम राव अम्बेडकर साहेब और हिन्दी कविता” विषय पर प्रपत्र प्रस्तुत किए गए ।इसमें नागपुर विश्व विद्यालय की प्रो. वीणा दाढ़े ने बीज व्याख्यान दिया ।चैन्ने से पधारे श्री सेतुरमण जी ने इस सत्र की अध्यक्षता की।
चतुर्थ सत्र में ‘बाबा साहेब अम्बेडकर और हिन्दी कथा साहित्य पर आधारित दो वक्ताओं ने प्रपत्र प्रस्तुत किए गए । इसकी अध्यक्षता डा. रमा द्विवेदी ,हैदराबाद ने की। डा.श्याम सिंह शशि ने बीज व्याखयान दिया। संचालन नागपुर अध्याय की सदस्या मधु गुप्ता ने किया ।डा.रमा द्विवेदी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि- ``1935 में नासिक जिले के भेवले में आयोजित महार सम्मेलन में ही अम्बेडकर ने घोषणा कर दी थी कि- ‘‘आप लोगों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि मैं धर्म परिवर्तन करने जा रहा हूँ। मैं हिन्दू धर्म में पैदा हुआ, क्योंकि यह मेरे वश में नहीं था लेकिन मैं हिन्दू धर्म में मरना नहीं चाहता। इस धर्म से खराब दुनिया में कोई धर्म नहीं है इसलिए इसे त्याग दो। सभी धर्मों में लोग अच्छी तरह रहते हैं पर इस धर्म में अछूत समाज से बाहर हैं। स्वतंत्रता और समानता प्राप्त करने का एक रास्ता है धर्म परिवर्तन। यह सम्मेलन पूरे देश को बतायेगा कि महार जाति के लोग धर्म परिवर्तन के लिये तैयार हैं। महार को चाहिए कि हिन्दू त्यौहारों को मनाना बन्द करें, देवी देवताओं की पूजा बन्द करें, मंदिर में भी न जायें और जहाँ सम्मान न हो उस धर्म को सदा के लिए छोड़ दें।’’

अम्बेडकर की इस घोषणा पश्चात ईसाई मिशनरियों ने उन्हें अपनी ओर खींचने की भरपूर कोशिश की और इस्लाम अपनाने के लिये भी उनके पास प्रस्ताव आये। कहा जाता है कि हैदराबाद के निजाम ने तो इस्लाम धर्म अपनाने के लिये उन्हें ब्लैंक चेक तक भेजा था पर अम्बेडकर ने उसे वापस कर दिया।

डा. अम्बेडकर ने हजारों श्रद्धालुओं के साथ नागपुर में ही बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। वास्तव में वे हिन्दुत्व में रहकर ही मरना चाह्ते थे’।
२८ मई को सायं ६ बजे अखिल भारतीय कवि सम्मेलन हुआ । इसकी संयोजिका डा. सरोजिनी प्रीतम थीं। श्री सेतुरमण इसके अध्यक्ष ,डा अहिल्या मिश्रा विशेष अतिथि ,डा. शिव शंकर अवस्थी महसचिव एवं नागपुर अध्याय के संयोजक श्री नरेन्द्र परिहार ‘एकान्त’ मंचासीन हुए । इस काव्य संध्या में विभिन्न रसयुक्त एवं विविध विषयों की रचनाएं पढी गईं और उपस्थित सभी लोग काव्यधारा से अभिसिक्त हो आनन्द विभोर हो गए । मंचासीन अतिथियों के साथ पद्मश्री डा. श्याम सिंह शशि,डा. हीरा लाल बछौतिया,डा. सविता चड्ढ़ा ,विश्व आलोक (आई ए .एस.)डा. शिव शंकर अवस्थी,डा. अहिल्या मिश्रा,
डा.रमा द्विवेदी,डा. सीता मिश्रा, विनीता शर्मा, मीना खोंड, एलिजाबेथ कुरिअन, डा.रेखा कक्कड़, डा.अमी अधर निडर,डा.सुषमा सिंह ,श्री महेश सिलवी ,श्री बाला सुब्रमण्यम पी.आर.बासुदेवन शेष,विनीता शर्मा ,ज्योति नारायण,सम्पत मुरारका ,सेतुरमण,सी. मणिकंठन,डा. भारतेन्दु शुक्ल,गुरु प्रताप शर्मा,शशिवर्धन शर्मा ,शैलेश,अरुण मुनेश्वर,मधु गुप्ता, मधु पटौदिया,मधु शुक्ला,प्रभा मेहता,सुधा कौसिव ,एवं उमेश नेमा आदि ने काव्य पाठ किया।

Tuesday, June 28, 2011

डायलॉग गोष्ठी में हुआ सजीव सारथी की पुस्तक 'एक पल की उम्र लेकर' का लोकार्पण

आप इस पूरे कार्यक्रम को सुन भी सकते हैं, आपको ऐसा प्रतीत होगा कि आप भी कार्यक्रम में उपस्थित हैं। नीचे के प्लेयर से सुनें-

कुल प्रसारण समय- 2 घंटा 19 मिनट । अपनी सुविधानुसार सुनने के लिए यहाँ से डाउनलोड करें।

हर महीने के आखिरी शनिवार को अकादमी ऑफ फाईन आर्ट्स एंड लिटरेचर में होने वाली काव्यात्मक गोष्ठी “डायलॉग” इस बार 25 जून को संपन्न हुई। कार्यक्रम तीन चरणों में संपन्न हुआ। सबसे पहले भारत के पिकासो मकबूल फ़िदा हुसैन और कवि रंजीत वर्मा की माता को श्रद्धांजलि अर्पित की गयी। उसके बाद हिन्दयुग्म के आवाज़ मंच के संपादक एवं युवा कवि सजीव सारथी की पुस्तक “एक पल की उम्र लेकर” का विमोचन करते हुए ब्रजेन्द्र त्रिपाठी ने कहा कि सजीव की कविताओं पर उनके मलयाली होने की छाप नहीं है वो पूरी तरह से हिंदी की कविताएँ हैं। सहज भाषा के साथ साथ सजीव सारथी की कविताएँ प्रतीकों के माध्यम से आज के हालत का अच्छा जायजा लेती हैं। इसके बाद डायलाग के संचालक एवं कवि मिथिलेश श्रीवास्तव नें सजीव सारथी की कविताओं पर विशेष टिप्पणी की। इन विशेष टिप्पणियों के बाद सजीव सारथी ने अपनी कविताओं का पाठ किया जो जीवन और समाज के विभिन्न पहलुओं को छू रही थीं। एक तरफ उनकी कविताओं में मुंबई में उत्तर भारतीयों पर होने वाले अत्याचारों का दर्द था तो दूसरी तरफ ‘गरेबाँ’ जैसी कविता में आत्मविश्लेषण था। “नौ महीने” जैसी कविता में उन्होंनें एक माँ की भावनाओं को छूने की कोशिश की।

एक पल की उम्र का लोकार्पण ब्रजेन्द्र त्रिपाठी (दाहिने से क्रमशः दिनेश कुमार शुक्ल,ब्रजेन्द्र त्रिपाठी,मिथिलेश श्रीवास्तव,सजीव सारथी) द्वारा हुआ

खुशबुओं की एक पूरी दुनिया
कवियों की एक नयी जमात की खोज हुई है। उनकी महत्वाकांक्षाएं एक दम अलग हैं। वे दीवार पर कविता लिखते हैं, ब्लॉग पर कविता लिखते हैं। वे अलक्षित पाठक के लिए कविता लिखते हैं। उन्हें प्रचार नहीं चाहिए, अपने सामने बैठे श्रोता नहीं चाहिए, उन्हें समीक्षकों की राय नहीं चाहिए। उनकी कविता पर आलोचकीय निगाह रखने वाली आँखें नहीं चाहिए। वे इन आँखों से सहमे भी नहीं होते। ब्लॉग पर कविता लिख दिया, किसी ने पढ़ लिया, किसी ने कुछ लिख दिया। काफी दिन तक उनकी कविता अलक्षित भी रह गयी तो कोई बात नहीं। वे इस जल्दी में रहते भी नहीं हैं कि कोई अभी उनकी कविता पढ़ ले, कोई उनका संग्रह छपवा दे, कोई कुछ टिप्पणी कर दे।
शैलेश भारतवासी, हिन्दयुग्म जिनका अपना ब्लॉग हैं, ऐसे कवियों को यूनिकोडीय कवि कहते हैं। शायद इसलिए कि वे लोग इन्टरनेट पर हिंदी भाषा के यूनिकोडीय रूप में कविता लिखते हैं। शैलेश, ऐसे कवियों को जो देवदूतों की तरह छिपे रहते हैं, धरती पर उतारने की कोशिश करते हैं, इन्टरनेट के बाहर इन लोगों को दुनिया में पहचान देने की कोशिश करते हैं। ऐसे कवियों की एक पुस्तक “सम्भावना डॉट कॉम” शैलेश भारतवासी नें पिछले दिनों छापी थी। उन कविताओं को पढकर यह एहसास हुआ कि वे कविताएँ सहज, सीधी और साफ़ अभिव्यक्ति की बड़ी मिसाल हैं। इसी संग्रह के मार्फ़त कुछ यूनिकोडीय कवियों से परिचय हुआ था। अकादमी ऑफ फाइन आर्ट्स एंड लिटरेचर के डायलॉग कार्यक्रम में ऐसे कुछ कवियों का कविता पाठ भी हुआ था। सजीव सारथी उन्हीं में से एक यूनिकोडीय कवि है। इन्टरनेट पर कविता लिखने वाले, स्वाभाव से संकोची, व्यव्हार में सरल। सरलता और संकोच के मिलने से एक अलग इंसान का निर्माण होता है। वह इंसान अच्छा इंसान होता है। सजीव अच्छे इंसान हैं। उनकी यह अच्छाई उनकी कविता में भी झलकती है, उनके व्यव्हार में झलकती है और उनकी पारदर्शी आँखों में झलकती है। वे मलयाली हैं, इसलिए हिंदी भाषा के उनके उच्चारण में एक अलग मिठास है।
“एक पल की उम्र लेकर” उनके नये संग्रह का नाम है। इसे केरल के हेवेन्ली बेबी बुक्स प्रकाशन नें छापा है। यह उनकी पहली किताब है। उनकी एक कविता है “सूरज” जो एक स्मृति-कोष की तरह है। अनेक नॉस्टैल्जिक स्मृतियों से परिपूर्ण। लेकिन यह सिर्फ नॉस्टैल्जिक होना नहीं है बल्कि मानुष की संवेदनाओं को अनेक स्तरों पर महसूस करने की कोशिश है। सूरज कविता में दो पंक्तियों के मुहावरे जैसी एक टिपण्णी है जो पिछले सात वर्षों की राजनीति का ऐतिहासिक दस्तावेज़ सी लगती है। “आज बरसों बाद / खुद को पाता हूँ / हाथ में लाल गेंद फिर लिए बैठा -एक बड़ी चट्टान के सहारे।“ इन पंक्तियों को पढ़ते हुए मुझे सी पी एम् और कांग्रेस के गलबहियों के दिन याद आते रहे। “किसी नदी की तरह” कविता में एक बोतल में दोनों के रहने का दृश्य है- एक देवता, एक शैतान। “साहिल की रेत” की पंक्तियाँ हैं “उन नन्ही / पगडंडियों से चलकर हम / चौड़ी सड़कों पर आ गए।“ इन पंक्तियों में प्राकृतिक जीवन की सरलता है, तो विस्थापन का दंश भी है। नन्ही पगडंडियाँ मासूमियत और तकलीफों की प्रतीक हैं। पगडंडियों से चौड़े रास्ते पर चले जाना विस्थापन है जो असंगत प्रकृति विरोधी विकास के अवधारणाओं का विरोध भी है।

सजीव मलयाली हैं, जाहिर है कि एक प्रकृति संपन्न, पानी से भी तरल जीवन को छोड़कर आने वाले लोगों में से हैं। उत्तर भारत के विस्थापन के दर्द से भी अधिक गहरा दर्द मलयालम प्रदेश से विस्थापन का है। इस विस्थापन के संघर्ष में प्यार और अपनापे की भी उपस्थिति है। “तुम्हारी रसोई से उठती उस महक को / पहचानती है मेरी भूख अब भी।“ इन पंक्तियों में महक और भूख के रिश्ते को रेखांकित किया गया है। बचपन की स्मृतियों में कई खुशबुओं की भी स्मृति है। वे खुशबुएँ अब कहीं से नहीं आती हैं। खुशबुओं की एक पूरी दुनिया हुआ करती थी, वह दुनिया कहाँ गयी..! आधुनिक और विकासशील बनने की अंधी दौड़ में वे खुशबुएँ भी गायब हो गयी हैं। खैर, जब से सभ्यता है, विकास है हम बहुत कुछ खोते हुए आज यहाँ पहुँचे हैं। मान लें कि पाँच हज़ार ही पुराने सभ्य मनुष्य हैं, तो याद रखने की बहुत सारी चीज़ें हमने खो दी हैं। याद रखने की नयी चीजें हमनें बनायीं नहीं हैं। सिर्फ खोना है, पाना कुछ भी नहीं है, यह बात सजीव की किताब में फैली हुई है जो मेरे लिए महत्वपूर्ण है। कविता बहुत कुछ बताती है।
- मिथिलेश श्रीवास्तव

सजीव सारथी की पुस्तक "एक पल की उम्र लेकर" पर मिथिलेश श्रीवास्तव की टिप्पणी


सजीव सारथी की काव्यपाठ के बाद डायलॉग गोष्ठी में आमत्रित कवियों का काव्यपाठ ब्रजेन्द्र त्रिपाठी की अध्यक्षता और शिवमंगल सिद्धांतकर जैसे रचनाकारों की सानिध्य में शुरू हुआ। गजरौला से आये युवा कवि अखिलेश श्रीवास्तव नें सबसे पहले कविता पाठ किया और अपनी पहली कविता उन्होंनें सजीव सारथी के व्यक्तित्व को समर्पित कर दी। इसके बाद उन्होंनें अपनी क्षणिकाओं चीनी, गेहूँ, चावल, दाल से बढती हुई महंगे पर टिप्पणियां की तो दूसरी तरफ नारी, बेटी, माँ, पत्नी व बहन जैसी रचनाओं से रिश्तों के महत्व को रेखांकित किया। कर्ज में कोंपल नाम की कविता नें अखिलेश के काव्यात्मक विस्तार को स्पष्ट किया और किसानों द्वारा की जाने वाले आत्महत्या के कारणों की पड़ताल की। उसके बाद आये कवि स्वप्निल तिवारी नें कुछ ग़ज़लों का पाठ किया और माहौल का रुख मोड़ने की कोशिश की, एक “शामो-सहर” और “तुम आओ तो’ कविताओं में प्रेम के रोमान को छूने की कोशिश की और दूसरी तरफ “खिड़कियाँ” नामक कविता में खिड़की को नए ढंग से देखने और दिखाने की कोशिश की। उसके बाद आई कवियित्री सुनीता चोटिया नें “बुड्ढा है कि मरता नहीं” नाम की कविता का पाठ किया जिससे माहौल को हल्का हो गया तथा “धरती का गीत” नाम के गीत से लयात्मक माहौल के रचना हुई। सुनीता चोटिया के बाद एक और कवियित्री रजनी अनुरागी नें अपनी विभिन्न रंगों से सजी कविताओं का पाठ किया जिसमें एक तरफ “भूख” जैसी कविता थी तो दूसरी तरफ प्रेम के एहसासों से सराबोर “तुम्हारा कोट” जैसी कविता सुनाई। जनज्वार नाम की कविता ने तहरीर चौक का उदाहरण देकर क्रांति की संभावनाओं की तरफ ध्यान खींचा। इसके बाद आये उर्दू शायर अब्दुल क़ादिर नें अपनी ग़ज़लों से माहौल को ही बादल दिया और एक तरफ प्यार के रूहानी एहसास से भरे “हिचिकियां आ रही हैं रह रह कर/ यानि तुम आज भी सलामत हो” जैसे शेर सुनाये तो दूसरी तरफ “प्यार से बोलना भी मुश्किल है/ लोग तो घर बसाने लगते हैं जैसे हल्के फुल्के शेर भी सुनाये जिन्होनें माहौल को बादल दिया। आज कल के फैले भ्रष्टाचार की तरफ इशारा करते हुए उन्होंनें शेर कहा “एक दिन तीरगी में रह कर देख/ कितने घर जगमगाने लगते हैं”।

काव्यपाठ करते अजय नावरिया
इसके बाद अजय नावरिया नें “नए पौधों के लिए सप्रेम” नाम की कविता से अपनी कविता यात्रा शुरू की। “संघम शरणम गच्छामि” नाम की कविता में उन्होंनें समूह की शक्ति को स्पष्ट किया, सड़क नाम की कविता से गाँव के कई सरोकार उन्होंनें जोड़े और दिखाए। “सफाई के बाद महानगर” में उन्होंनें झुग्गियों के हटाये जाने के दर्द को महसूस किया। तेजेन्द्र लूथरा की कविताओं जिस भी दिशा में गयीं बहुत ही गहरे भाव लिए हैं, उनकी “मुहब्बत” और “अंतराल” नाम की कविताओं में भरे अर्थों में “गागर में सागर” वाली कहावत को चरितार्थ किया वहीं “अस्सी घाट का बाँसुरी वाला” में एक आरती के क्रांति गीत पे परिवर्तित हो जाने का दृश्य था जो अंत में क्रांति का छद्म आवरण भी उतरता है। इसके अलावा उन्होंनें सर्वत्र का भला नाम की कविता का भी पाठ किया।


अपने विचार व्यक्त करते शिवमंगल सिद्धांतकर, साथ में हैं मिथिलेश श्रीवास्तव
तेजेन्द्र लूथरा के कविता पाठ के बाद दिनेश कुमार शुक्ल नें ब्लॉगस पर उपस्थित कविताओं की शुद्धता पर बात की और कहा कि वो बहुत निर्मल हैं जिनमें एक उदासी के बावजूद उम्मीद है। उन्होंनें यह भी कहा कि बदलते हुए समय के साथ हमारी अभिव्यक्ति बदली है लेकिन हमारी भाषा में उसे व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं हैं और दूसरी भाषा का प्रयोग करना पड़ता है। इस लिए अपनी भाषा के नए शब्दों की इजाद बहोत आवश्यक है। शिवमंगल सिद्धांतकार नें कविता और क्रांति के संबंध को स्पष्ट किया और बताया कि ये एक दूसरे को परस्पर किस तरह प्रभावित करते हैं। अपने अध्यक्षीय भाषण में केन्द्रीय साहित्य अकादमी के उप सचिव ब्रजेन्द्र त्रिपाठी नें दिनेश कुमार शुक्ल द्वारा बताई गयी समस्या का निदान बतायाकि खुद को अभिव्यक्त करने के लिए जिन शब्दों की कमी पड़ रही हैं उन्हें हिंदी की विभिन्न बोलियों से आयातित करने चाहिए। उन्होंनें कविता के सम्प्रेषण के लिए विभिन्न फेसबुक और ट्विट्टर जैसे माध्यमों को समझने की आवश्यकता पर भी बल दिया।

Monday, June 27, 2011

'परिचय साहित्य परिषद’ की ‘विष्णु प्रभाकर स्मृति नमन’ गोष्ठी संपन्न



वर्ष 2011 जन्म शताब्दियों का वर्ष है. हिंदी के कुछ गणमान्य साहित्यकारों के जन्म को एक शताब्दी हो चली परन्तु इन महान् विभूतियों ने साहित्य के माध्यम से अपने व्यक्तित्व की जो अमिट छाप छोड़ी, यही हमारे समाज की अनमोल उपलब्धि व वरदान है. 21 जून 1912 को जन्मे, अमर कृति ‘आवारा मसीहा’ व अमर कहानियों ‘धरती अब भी घूम रही है’ के रचयिता विष्णु प्रभाकर के जन्म शताब्दी वर्ष के समारोह प्रारंभ हो चुके हैं. इस की शुरूआत 21 जून 2011 को साहित्य अकादमी सभागार में विष्णु प्रभाकर के सुपुत्र श्री अतुल प्रभाकर ने कर दी थी. दि. 23 जून 2011 को उर्मिल सत्यभूषण की साहित्यिक संस्था ‘परिचय साहित्य परिषद’ की ओर से भी नई दिल्ली के ‘रशियन कल्चरल सेंटर’ के सभागार में भी एक विचारोत्तेजक शाम विष्णु जी की स्मृति को समर्पित की गई. इस सभा की अध्यक्षता सुविख्यात साहित्यकार डॉ. महीप सिंह ने की तथा इस में डॉ. बलदेव वंशी व डॉ. धर्मवीर मुख्य अतिथि थे. इस सभा को श्री पंकज बिष्ट का सान्निध्य भी प्राप्त हुआ.
‘लेकिन दरवाज़ा’, ‘उस चिड़िया का नाम’ व ‘पंखों वाली नाव’ जैसे चर्चित उपन्यासों के रचनाकार पंकज बिष्ट ने सब से पहले अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि विष्णु प्रभाकर जिन सिद्धांतों को स्वयं मानते थे, उन्हीं पर वे जीवन भर चले तथा किसी भी प्रकार का दोगलापन उनके आचरण में नहीं था. पंकज बिष्ट ने जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात कही वह यह कि विष्णु जी ने किसी भी प्रकार की धार्मिकता से ऊपर उठ कर अपने पार्थिव शरीर के बारे में में पहले ही घोषित कर दिया था कि उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार न कर के उसे चिकित्सा विज्ञान के शोधार्थियों को दे दिया जाए ताकि वे चिकित्सा के अपने अध्ययन में उनके शरीर का उपयोग कर सकें. विष्णु जी बेहद अनुशासन में रहने वाले व्यक्ति थे. पंकज बिष्ट ने यह भी कहा कि जब विष्णु जी उनसे व्यक्तिगत रूप में अपने पार्थिव शरीर संबंधी अंतिम इच्छा व्यक्त करते थे तब पंकज जी को सहज ही विश्वास नहीं आता था परन्तु अंततः वह हो कर रहा. पंकज बिष्ट ने कहा कि इतने बड़े साहित्यकार होते हुए भी विष्णु जी नई दिल्ली के मोहन सिंह प्लेस के ‘इंडियन कॉफी हाऊस’ में आ कर लेखकों से मिलने में किसी प्रकार का संकोच महसूस नहीं करते थे जबकि अधिकांश गणमान्य साहित्यकार इस प्रकार कॉफी हाऊस जा कर साहित्यकारों से गुफ्तगू करने को अपनी शख्सियत से कमतर की बात मानते थे.




डॉ. बलदेव वंशी जिन्होंने पिछले कुछ वर्षों में ‘दिल्ली टी हाऊस – आधी सदी की साहित्यिक हलचल’, ‘भारतीय संत परंपरा’ तथा ‘भारतीय नारी संत परंपरा’ जैसी महत्वपूर्ण कृतियाँ दी हैं, ने अपने वक्तव्य में कहा कि विष्णु जी नए से नए रचनाकार से भी हाथ मिला कर आत्मीयता द्वारा उसके संकोच को सर्वथा दूर कर के मिलते थे और कि उन की शख्सियत में पहाड़ों जैसी उच्चता व समुद्र जैसी गहनता एक साथ थी. समुद्र और पहाड की विशिष्टता ऋत और सत्य पर आधारित होती है अतः वे (विष्णु प्रभाकर) यथार्थवादी न हो कर वास्तव में सत्यार्थवादी थे. विष्णु जी गांधीवादी नहीं थे वरन् उनके भीतर के संस्कार मुखर रूप से आर्यसमाजी थे. इन्हीं कारणों से धर्म, जाति, संप्रदाय, व प्रान्त ये सभी विभाजन उनके लिये अर्थहीन थे.
डॉ. धर्मवीर ने विष्णु प्रभाकर के व्यक्तित्व व कृतित्व पर एक बहु चर्चित पुस्तक लिखी है : ‘लोकायत वैष्णव विष्णु प्रभाकर’ तथा विष्णु जी के साहित्य अकादमी पुरस्कृत उपन्यास अर्द्ध नारीश्वर पर काफी कार्य किया है. उन्होंने कहा कि विष्णु जी दलित चेतना व नारी चेतना के सशक्त पक्षधर थे. डॉ. धर्मवीर ने कहा कि यह कितने खेद की बात है कि आज भी दलित को नीचे समझा जाता है और उस से कूड़ा व गंदगी उठाने का कार्य करवाने की प्रथा है.



डॉ. महीप सिंह ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि विष्णु प्रभाकर के सम्पूर्ण साहित्य का मूल्यांकन होना चाहिए. विष्णु जी ने अपने चिंतन के द्वारा जो आदर्श स्थापित किये, समाज संरचना की जो कल्पना उन्होंने की, उसे कैसे चरितार्थ किया, इस पर शोधार्थियों का ध्यान जाना चाहिए. डॉ. महीप सिंह ने दलितों के प्रति विष्णु प्रभाकर की पक्षधरता की ओर संकेत करते कहा कि आज भी हम कैसे कहें कि समय बदल चुका है क्योंकि आज भी कई जगह दलित महिला रसोइयों के हाथ का खाना उच्च जाति के बच्चे खाने से मना कर देते हैं तथा आज भी किसी उच्च जाति के कुत्ते को यदि कोई दलित व्यक्ति भोजन खिलाता है तो वह कुत्ता ही अपवित्र मान लिया जाता है. उन्होंने भी विष्णु प्रभाकर को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि इस महापुरुष ने अपने शरीर को शोधार्थी डॉक्टरों को समर्पित कर दिया ताकि वे उनके शरीर का उपयोग चिकित्सा संबंधी शोध के लिये कर सकें.
इस सभा का संचालन स्वयं उर्मिल सत्यभूषण ने किया तथा अंत में श्री अनिल वर्मा मीत ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया.

रिपोर्ट – प्रेमचंद सहजवाला
चित्र- निशा निशांत

फ़ज़ल इमाम मल्लिक को ‘चित्रगुप्त सम्मान’

साहित्यकार, स्तंभकार और पत्रकार फ़ज़ल इमाम मल्लिक को रोशनी दर्शन मीडिया प्राइवेट लिमिटेड ने साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए चित्रगुप्त सम्मान से सम्मानित किया। यह सम्मान रोशनी दर्शन मासिक पत्रिका के स्वर्णिम दस साल पूरे होने के उपलक्ष में दिया गया। फ़ज़ल इमाम मल्लिक हिंदी दैनिक ‘जनसत्ता’ से जुड़े हैं। उन्होंने साहित्यिक पत्रिका ‘सनद’ और ‘ऋंखला’ का संपादन भी किया। इसके अलावा काव्य संग्रह ‘नवपल्लव’ और लघुकथा संग्रह ‘मुखौटों से परे’ का संपादन भी कर चुके हैं। दूरदर्शन के उर्दू चैनल से उन पर एक ख़ास कार्यक्रम ‘सिपाही सहाफत के’ प्रसारित हुआ है। यह सम्मान उन्हें दिल्ली के राजेंद्र भवन में आयोजित एक समारोह में दिया गया। फ़ज़ल इमाम मल्लिक के अलावा अवार्ड ग्रहण करने वाले प्रमुख लोगों में ‘न्यूज 24’ के सीनियर प्रोड्यूसर अशोक कौशिक, ‘न्यूज 24’ की कैमरा पर्सन रेणु शर्मा, ‘आज तक’ के प्रोड्यूसर सुशील शर्मा और ‘हिंदुस्तान’ से सीनियर कॉपी एडिटर शरद पांडे।


चित्रगुप्त सम्मान ग्रहण करते हुए फज़ल इमाम मल्लिक

इस मौके पर रोशनी दर्शन पत्रिका के संपादक सुशील श्रीवास्तव ने अतिथियों का स्वागत किया और पत्रिका के दस वर्ष पूरे होने पर पाठकों व साथियों का शुक्रिया अदा किया। इस कार्यक्रम में एसआईएस के प्रबंध निदेशक आर.के.सिन्हा, कपाली बाबा, इंस्टीट्यूट ऑफ पोलिटकल लीडरशिप के डायरेक्टर शहनवाज चौधरी व कई मशहूर हस्तियां उपस्थित थी।

आम आदमी की पीड़ा का कवि - शैलेन्द्र


(बाएं से मोनिका मोहता, विरेन्द्र शर्मा – एम.पी., कैलाश बुधवार, ज़किया ज़ुबैरी, आनंद कुमार तेजेन्द्र शर्मा।)
(लंदन – 18 जून, 2011), शैलेन्द्र एक नई दुनिया का सपना देखते हैं। उन्हें अपने वर्तमान से शिकायतें ज़रूर हैं मगर अंग्रेज़ी के कवि शैली की तरह वे भी सोचते हैं कि इक नया ज़माना ज़रूर आएगा। फ़िल्म बूट पॉलिश में शैलेन्द्र लिखते हैं “आने वाली दुनियां में सबके सर पर ताज होगा / ना भूखों की भीड़ होगी ना दुःखों का राज होगा / बदलेगा ज़माना ये सितारों पे लिखा है।”और यह सब वे बच्चों के मुंह से कहलवाते हैं - बूट पॉलिश करके पेट पालने वाले बच्चे जिन्हें “भीख में जो मोती मिले, वो भी हम ना लेंगे / ज़िन्दगी के आंसुओं की माला पहनेंगे।” यह कहना था प्रसिद्ध कथाकार एवं कथा यू.के. के महासचिव तेजेन्द्र शर्मा का। वे नेहरू सेंटर, लंदन, एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स एवं कथा यू.के. द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम आम आदमी की पीड़ा का कवि - शैलेन्द्र में अपनी बात कह रहे थे।


अपनी बात कहते तेजेन्द्र शर्मा

तेजेन्द्र शर्मा का मानना है कि शैलेन्द्र क्योंकि एक प्रगतिशील कवि थे, उन्होंने फ़िल्मों में भी अपनी भावनाओं को फ़िल्मों के चरित्रों, परिस्थितियों, और अपने गीतों के माध्यम से प्रेषित किया। वे इस मामले में भाग्यशाली भी थे कि उन्हें राज कपूर, शंकर जयकिशन, हसरत जयपुरी, ख़्वाजा अहमद अब्बास और मुकेश जैसी टीम मिली। अब्बास की कहानी और थीम, राज कपूर का निर्देशन और अभिनय और शंकर जयकिशन के संगीत के माध्यम से शैलेन्द्र गंभीर से गंभीर मसले पर भी सरल शब्दों में गहरी बात कह जाते थे।
जिस देश में गंगा बहती है फ़िल्म के एक गीत में शैलेन्द्र गीतकार की परिभाषा देते हैं, “काम नये नित गीत बनाना / गीत बना के जहां को सुनाना / कोई ना मिले तो अकेले में गाना।” तो वहीं पतिता में यह भी बता देते हैं कि “हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं / जब हद से गुज़र जाती है ख़ुशी, आंसू भी निकलते आते हैं।”
तेजेन्द्र ने बात को आगे बढ़ाते हुए बताया कि कथाकार भीष्म साहनी का मानना था कि शैलेन्द्र के हिन्दी फ़िल्मों के जुड़ने से फ़िल्मी गीत समृद्ध होंगे और उनमें साहित्य का पुट जुड़ जाएगा। वहीं गुलज़ार का कहना है, “बिना शक़ शैलेन्द्र को हिन्दी सिनेमा का आज तक का सबसे बड़ा लिरिसिस्ट कहा जा सकता है। उनके गीतों को खुरच कर देखें तो आपको सतह के नीचे दबे नए अर्थ प्राप्त होंगे. उनके एक ही गीत में न जाने कितने गहरे अर्थ छिपे होते हैं।”
शैलेन्द्र को मिले सम्मानों के बारे में तेजेन्द्र शर्मा ने कहा, “हालांकि शैलेन्द्र ने अपना बेहतरीन काम आर.के. प्रोडक्शन्स के लिये किया, मगर उन्हें कभी उन गीतों के लिये सम्मान नहीं मिला। उन्हें तीन फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड मिले यह मेरा दीवानापन है (यहूदी), सब कुछ सीखा हमने, ना सीखी होशियारी (अनाड़ी), मैं गाऊं तुम सो जाओ (ब्रह्मचारी)। उनका कहना था कि इससे ज़ाहिर होता है कि उस ज़माने में गीत लेखकों की गुणवत्ता कितनी ऊंचे स्तर की रही होगी। शायद उसे भारतीय फ़िल्मी गीत लेखन का सुनहरा युग कहा जा सकता है जब शैलेन्द्र, साहिर, शकील, कैफ़ी आज़मी, मजरूह सुल्तानपुरी, राजेन्द्र कृष्ण, जांनिसार अख़्तर, राजा मेंहदी अली ख़ान, भरत व्यास, नरेन्द्र शर्मा, पण्डित प्रदीप, और हसरत जयपुरी जैसे लोग हिन्दी फ़िल्मों के लिये गीत लिख रहे थे। उस समय की प्रतिस्पर्धा सकारात्मक थी, जलन से भरपूर नहीं। हर गीतकार दूसरे से बेहतर लिखने का प्रयास करता था।
तेजेन्द्र शर्मा के अनुसार शैलेन्द्र, शंकर जयकिशन और राज कपूर की महानतम उपलब्धि श्री 420 है। इसके गीतों की विविधता और आम आदमी के दर्द की समझ शैलेन्द्र के बोलों के माध्यम से हमारी शिराओं में दौड़ने लगती है। “छोटे से घर में ग़रीब का बेटा / मैं भी हूं मां के नसीब का बेटा / रंजो ग़म बचपन के साथी / आंधियों में जले दीपक बाती / भूख ने है बड़े प्यार से पाला।” इस फ़िल्म में मुड़ मुड़ के ना देख, प्यार हुआ इक़रार हुआ, मेरा जूता है जापानी जैसे गीत एक अनूठी उपलब्धि हैं।
बचपन में ही अपनी मां को एक हादसे में खो चुके शैलेन्द्र पूरी तरह से नास्तिक थे। मगर फ़िल्मों के लिये वे “भय भंजना वन्दना सुन हमारी” (बसन्त बहार), “ना मैं धन चाहूं, ना रतन चाहूं” (काला बाज़ार), “कहां जा रहा है तू ऐ जाने वाले” (सीमा), जागो मोहन प्यारे (जागते रहो) जैसे भजन भी लिख सकते थे। उनका लिखा हुआ राखी का गीत आज भी हर रक्षाबंधन पर सुनाई देता है, “भैया मेरे, राखी के बंधन को निभाना।”
शैलेन्द्र ने अपना अधिकतर काम शंकर जयकिशन के लिये किया। मगर सचिन देव बर्मन, सलिल चौधरी, रौशन और सी. रामचन्द्र के लिये भी गीत लिखे। शैलेन्द्र के लेखन में वर्तमान जीवन के प्रति आक्रोश अवश्य है मगर मायूसी नहीं। विद्रोह है, क्रांति है, हालात को समझने की कूवत है मगर निराशा नहीं है – वे कहते हैं तूं ज़िन्दा है तू ज़िन्दगी की जीत पे यक़ीन कर, अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर ।
अपने एक घन्टे तीस मिनट लम्बे पॉवर पॉइण्ट प्रेज़ेन्टेशन में तेजेन्द्र शर्मा ने जिस देश में गंगा बहती है, अनाड़ी, पतिता, संगम, श्री 420, जंगली, बूट पॉलिश, गाईड, काला बाज़ार, छोटी बहन, जागते रहो, छोटी छोटी बातें, आदि फ़िल्मों के गीत स्क्रीन पर दिखाए।
कार्यक्रम की शुरूआत में कथा यूके के फ़ाउण्डर ट्रस्टी सिने स्टार नवीन निश्चल को श्रद्धांजलि दी गई। नवीन निश्चल का हाल ही में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। उनकी फ़िल्म बुड्ढा मिल गया का गीत “रात कली इक ख़्वाब में आई.. ” उन्हें श्रद्धांजलि स्वरूप दिखाया गया। मंच पर श्री कैलाश बुधवार का कथा यू.के. के नये अध्यक्ष के रूप में स्वागत किया गया। धन्यवाद ज्ञापन नेहरू सेंटर की निदेशिका मोनिका मोहता ने दिया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री विरेन्द्र शर्मा एवं काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी के अतिरिक्त श्री आनंद कुमार (हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी), श्री जितेन्द्र कुमार (भारतीय उच्चायोग), गौरी शंकर (उप-निदेशक, नेहरू सेंटर), कैलाश बुधवार, उषा राजे सक्सेना, के.बी.एल. सक्सेना, असमा सूत्तरवाला, रुकैया गोकल, अब्बास गोकल, वेद मोहला, अरुणा अजितसरिया, उर्मिला भारद्वाज, आलमआरा, निखिल गौर, दीप्ति शर्मा आदि शामिल थे।

Thursday, June 23, 2011

निमंत्रणः विष्णु प्रभाकर स्मृति नमन



निमंत्रण
(विष्णु प्रभाकर स्मृति नमन)
परिचय साहित्य परिषद
रशियन कल्चरल सेंटर के सम्मिलित तत्वावधान में
दि. 23 जून 2011 को विष्णु प्रभाकर के 100 वें जन्म-दिवस के उपलक्ष में ‘विष्णु प्रभाकर स्मृति नमन’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया है. आप सभी इस कार्यक्रम में सादर आमंत्रित हैं.
गोष्ठी अध्यक्ष : डॉ. महीप सिंह.
मुख्य अतिथि : डॉ. बलदेव वंशी
विशिष्ट सान्निध्य : श्री पंकज बिष्ट
विशिष्ट वक्ता : डॉ. धर्मवीर व डॉ. अर्चना त्रिपाठी
स्थान : 24 फिरोज़शाह रोड, नई दिल्ली
दि. 23 जून 2011  -  समय : सायं 5.30 बजे.
निवेदक : उर्मिल सत्यभूषण
अध्यक्ष : परिचय साहित्य परिषद
फोन: 9910402779 (उर्मिल सत्यभूषण)
011-23329100 (रशियन कल्चरल सेंटर).

Tuesday, June 21, 2011

रचना दिवस महोत्सव संपन्न


रचना दिवस महोत्सव के तहत हुई संगीत संध्या
अल्मोड़ा। मोहन उप्रेती लोक संस्कृति कला एवं विज्ञान शोध समिति के तत्वावधान में रचना दिवस महोत्सव के तहत रैमजे इंटर कालेज सभागार में देर सायं नृत्य सम्राट उदय शंकर और ध्रुपदाचार्य पं. चंद्रशेखर पंत संगीत संध्या शुरू हो गई। संगीत संध्या में कलाकारों ने सितार तथा तबले की धुन पर विभिन्न रागों में शास्त्रीय संगीत प्रस्तुत कर दर्शकों को भाव विभोर कर दिया।
उदयपुर राजस्थान विवि की प्रो. डा. पूनम जोशी ने सितार में राग मधुवंती, मिश्र शिवरंजनी धुन प्रस्तुत कर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनके साथ तबले पर नैनीताल के आनंद सिंह बिष्ट ने संगत दी। इस मौके पर गीत एवं नाटक प्रभाग सूचना प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के पूर्व निदेशक प्रेम मटियानी, इंदिरा कला संगीत विवि खैरागढ़ की पूर्व कुलपति डा. पूर्णिमा पांडे, समिति अध्यक्ष हेमंत जोशी, नीरज बवाड़ी, दीपा जोशी, भगवत उप्रेती, मीना पांडे आदि मौजूद थे।

नृत्य सम्राट उदयशंकर और पंत की भूमिका को याद किया
अल्मोड़ा। मोहन उप्रेती लोक संस्कृति कला एवं विज्ञान शोध समिति के तत्वावधान में रचना दिवस महोत्सव के तहत रैमजे इंटर कालेज सभागार में नृत्य सम्राट उदय शंकर और ध्रुपदाचार्य पं. चंद्रशेखर पंत शास्त्रीय संगीत संध्या आयोजित की गई। इस मौके पर मुख्य अतिथि इंदिरा कला संगीत विवि छत्तीसगढ़ की पूर्व कुलपति और कथक नृत्यांगना डा. पूर्णिमा पांडे ने कहा कि नृत्य सम्राट उदयशंकर और चंद्रशेखर पंत ने अल्मोड़ा में शास्त्रीय संगीत की भूमि तैयार की थी।
उन्होंने कहा कि इन महान कलाकारों द्वारा किए गए कार्यों की प्रेरणा से ही हम शास्त्रीय संगीत की सेवा करने लायक हो पाए हैं। विशिष्ट अतिथि गीत एवं नाटक प्रभाग सूचना प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के पूर्व निदेशक प्रेम मटियानी ने कहा कि लंबे समय से चले आ रहे शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों के ठहराव को इस तरह के कार्यक्रम गति प्रदान करेंगे। उत्तराखंड में इस तरह के कार्यक्रम ही कलाकारों को बड़े मंचों तक ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दिल्ली से पहुंचे युवा बांसुरी वादक हिमांशु दत्त ने सुंदर प्रस्तुति दी। रानीखेत के डा. महेश पांडे ने भी कार्यक्रम प्रस्तुत किया।
तबले पर आनंद सिंह बिष्ट, तानपुरे पर कुलदीप बवाड़ी, हारमोनियम पर हरीश जोशी ने संगत दी। दिल्ली की कथक नृत्यांगना दीव्या दीक्षा उप्रेती ने भी प्रस्तुति दी। इससे पूर्व उदयपुर की डा. पूनम जोशी ने सितार वादन प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में कैलाश पांडे, नीरज बवाड़ी, किरन पांडे, अदिति साह, विश्म्भरनाथ सखा, पप्पू पांडे, चंद्रशेखर पांडे, दीपा जोशी, जगत जोशी, राजेंद्र सिंह नयाल, हिरदेश जोशी, मोहन चंद्र जोशी, हयात सिंह रावत, रवि पांडे आदि मौजूद थे।

रंगारंग कार्यक्रमों के साथ रचना दिवस कार्यक्रम संपन्न
अल्मोड़ा। मोहन उप्रेती लोक संस्कृति कला एवं विज्ञान शोध समिति के तत्वावधान में रचना दिवस महोत्सव के तहत रैमजे इंटर कालेज सभागार में आयोजित संगीत संध्या में कलाकारों ने रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत कर लोक संस्कृति की छठा बिखेरी। इस मौके पर विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने वाले चार रंग कर्मियों को सम्मानित भी किया गया।
गीत एवं नाटक प्रभाग के पूर्व निदेशक रंगकर्मी प्रेम मटियानी तथा इंदिरा कला संगीत विवि खैरागढ़ छत्तीसगढ़ की पूर्व कुलपति डा. पूर्णिमा पांडे ने संयुक्त रूप से जौनसार के संस्कृति कर्मी नंदलाल भारती को जौनसार की लोक संस्कृति के प्रचार-प्रसार में उल्लेखनीय योगदान के लिए मोहन उप्रेती लोक संस्कृति सम्मान 2011 प्रदान किया। डा. पूनम जोशी को सितार के कुशल अध्यापन तथा प्रचार-प्रसार के लिए कौस्तुभ सम्मान, विश्वम्भरनाथ साह सखा को लोक चित्रकला ऐपण तथा नैनीताल के सांस्कृति जगत में दिए गए योगदान के लिए समिति सम्मान तथा डा. हरिसुमन बिष्ट को हिंदी साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए सम्मानित किया गया।
इससे पूर्व गायक चंदन सिंह रिठागाड़ी ने हुड़के की थाप पर अपने पिता प्रसिद्ध लोक गायक स्व. मोहन सिंह रिठागाड़ी के गीतों की प्रस्तुति दी। बहुउद्देश्यीय जन कल्याण विकास समिति तथा जौनसार बावर सांस्कृतिक लोक कला मंच के कलाकारों ने जौनसार की संस्कृति पर आधारित कार्यक्रम तथा नृत्य प्रस्तुत किया। गायिका लता तिवारी ने न्योली, कुमाऊं के विरह गीत तथा पर्वतीय रंगमंच सांस्कृतिक समिति पौड़ी केकलाकारों ने जागर, लोकगीत, नृत्य आदि की सुंदर प्रस्तुति दी। समिति के अध्यक्ष हेमंत जोशी ने सभी का आभार जताया। संचालन किरन पांडे ने किया।

Monday, June 20, 2011

‘‘उद्भ्रांत का कवि-कर्म प्रतिभा का विस्फोट’’-नामवर सिंह

नयी दिल्ली। ‘‘कवि उद्भ्रांत की एक साथ तीन नयी काव्य-कृतियों का लोकार्पण अद्भुत ही नहीं ऐतिहासिक भी है। इतनी कविताओं का लिखना उनकी प्रतिभा का विस्फोट तो है ही, साथ ही इनमें रचनाकार की सर्जनात्मक ऊर्जा की भी दाद देनी होगी।’’ ये बातें मूर्द्धन्य आलोचक डॉ. नामवर सिंह ने उद्भ्रांत की तीन काव्य-कृतियों ‘अस्ति’ (कविता संग्रह), ‘अभिनव पांडव’ (महाकाव्य) एवं ‘राधामाधव’ (प्रबंध काव्य) के लोकार्पण के अवसर पर शुक्रवार दिनांक 17 जून, 2011 को हिन्दी भवन, दिल्ली में आयोजित ‘समय, समाज, मिथक: उद्भ्रांत का कवि-कर्म’ विषयक संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कहीं।

नामवर जी ने उद्भ्रांत के पूरे रचनात्मक जीवन पर प्रकाश ड़ालते हुए कहा कि उनकी ‘सूअर’ शीर्षक कविता नागार्जुन की मादा सूअर पर लिखी कविता के बाद उसी विषय पर ऐसी कविता लिखने के उनके साहस को प्रदर्शित करती है जिसके लिये वे बधाई पात्र हैं। उनकी सर्जनात्मक ऊर्जा की दाद देनी होगी। हिन्दी भाषा में पांच सौ पृष्ठों के पहले वृहद्काय कविता संग्रह ‘अस्ति’ का लोकार्पण करते हुए उन्होंने कहा कि कवि अपने शब्दों के द्वारा इसी दुनिया में एक समानान्तर दुनिया रचता है, जो विधाता द्वारा रची दुनिया से अलग होकर भी संवेदना से भरपूर होती है। मिथकों को माध्यम बनाकर उन्होंने जो रचनाएं की हैं, वे भी उनकी समकालीन दृष्टि के साथ उनकी बहुमुखी उर्वर प्रतिभा को प्रदर्शित करती हैं।

मुख्य वक्ता वरिष्ठ आलोचक डॉ. शिवकुमार मिश्र ने ‘अभिनव पांडव’ (महाकाव्य) का लोर्कापण करते हुए कहा कि इसमें कवि ने महाभारत का एक तरह से पुनर्पाठ आधुनिक संदर्भ में बेहद गंभीरता के साथ किया है। युधिष्ठिर को केन्द्र में रखकर जिस तरह से उनको और उनके माध्यम से महाभारत के दूसरे महत्त्वपूर्ण चरित्रों को वे प्रश्नों के घेरे में लाये हैं, वह अद्भुत है और इससे युधिष्ठिर औरअन्य मिथकीय चरित्रों के दूसरे पहलुओं के बारे में जानने का भी हमें मौक़ा मिलता है। महाकवि प्रसाद की ‘कामायनी’ से तुलना करते हुए उन्होंने कहा कि वह महाकाव्य नहीं है, लेकिन महत् काव्य ज़रूर है। ‘अभिनव पांडव’ को कवि ने महाकाव्य कहा है और अपनी भूमिका ‘बीजाक्षर’ में इस सम्बंध में बहस की है और अपने तर्क दिये हैं, लेकिन मैं इसे विचार काव्य कहूँगा जो महत् काव्य भी है और मेरा विश्वास है कि आने वाले समय में हिन्दी के बौद्धिक समाज में यह व्यापक विचारोत्तेजना पैदा करेगा। उन्होंने कहा कि ‘राधामाधव’ काव्य बहुत ही मनोयोग से लिखा गया काव्य है, जिस पर बिना गहराई के साथ अध्ययन किए जल्दबाजी में टिप्पणी नहीं की जा सकती। इनकी रचनाएं समय की कसौटी पर खरी उतरी हैं। अपनी पचास वर्ष से अधिक समय की रचना-यात्रा में उनके द्वारा पचास-साठ से अधिक पुस्तकें लिखना सुखद आश्चर्य का विषय है।

वरिष्ठ आलोचक डॉ. नित्यानंद तिवारी ने ‘राधामाधव’ का लोकार्पण करते और कवि की अनेक रचनाओं के उदाहरण देते हुए कहा कि उनके पास कहने को बहुत कुछ है और लिखने की शैली भी अलग है। मिथकों को लेकर उन्होंने कई रचनाएं की हैं जो अपने आप में महत्त्वपूर्ण हैं। इसमें संदेह नहीं कि वे हिन्दी के सुप्रतिष्ठित कवि हैं। उनका रचनात्मक आवेग बहुत तीव्र है और उनके पास अक्षय भंडार है। पूतना के माध्यम से आदिवासी स्त्राी जीवन का चरित्रा-चित्राण अनोखा है। कवि ने अपने सम्पूर्ण काव्य-सृजन को समकालीन बनाने की हर संभव कोशिश की है जिसके लिए उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए। सत्यप्रकाश मिश्र, राममूर्ति त्रिपाठी और रमाकांत रथ जैसे अनेक भारतीय विद्वानों ने उनकी इस विशिष्टता को रेखांकित भी किया है। कवि लीलाधर मंडलोई ने कहा कि बिना राधा के आख्यान को रचे राधाभाव को रचना ‘राधामाधव’ का महत्त्वपूर्ण तत्व है। इसमें स्त्राी विमर्श भी है जिससे कवि की अलग पहचान बनती है। इनके समूचे साहित्य में मूल पंूजी आख्यान है और आख्यान को साधना बहुत बड़ी बात है।



आलोचक डॉ. संजीव कुमार ने कहा कि विवेच्य संग्रह ‘अस्ति’ में इतनी तरह की और इतने विषयों की कविताएं हैं जो पूरी दुनिया को समेटती हैं। उद्भ्रांत जी की कविताओं में पर्यावरण के साथ-साथ पशु-पक्षियों और संसार के समस्त प्राणियों की संवेदना को महसूस किया जा सकता है। संग्रह की अनेक कविताएं अद्भुत हैं। साहित्यकार धीरंजन मालवे ने कविता संग्रह ‘अस्ति’ पर केन्द्रित आलेख का पाठ करते हुए कहा कि कवि ने कविता की हर विधा को सम्पूर्ण बनाने में अपनी भूमिका निभाई है और उनकी कृतियों से यह साफतौर पर ज़ाहिर होता है कि उद्भ्रांत नारी-सशक्तीकरण के प्रबल पक्षधर हैं। इसके साथ ही उन्होंने दलित चेतना के साथ अनेक विषयों पर बेहतरीन कविताएं लिखीं हैं।

संगोष्ठी का बीज-वक्तव्य देते हुए जनवादी लेखक संघ की दिल्ली इकाई के सचिव प्रखर आलोचक डॉ. बली सिंह ने कहा कि आज के दौर में इतने तरह के काव्यरूपों में काव्य रचना बेहद मुश्किल है, लेकिन उद्भ्रांत जी इसे संभव कर रहे हैं। उनकी कविताएं विचारों से परिपूर्ण हैं। यहाँ सांस्कृतिक मसले बहुत आये हैं और पहले की अपेक्षा उनकी कविताओं में स्मृतियों की भूमिका बढ़ी है। ‘राधामाधव’ स्मृतियों का विलक्षण काव्य है। ‘अभिनव पांडव’ में स्त्रिायों के प्रति बराबरी के दर्जे के लिये कई सवाल उठाये गये हैं जो आज के दौर में अत्यंत प्रासंगिक हैं। उन्होंने इस उत्तर आधुनिक समय में आई उद्भ्रांत की मिथकाधारित और विचारपूर्ण समकालीन कविताओं को बहुत महत्त्वपूर्ण बताया।

प्रारम्भ में, कवि उद्‍भ्रांत ने तीनों लोकार्पित कृतियों की चुनिंदा कविताओं और काव्यांशों का प्रभावशाली पाठ करने के पूर्व ‘अस्ति (कविता-संग्रह)’ जिसे उन्होंने ‘कविता और जीवन के प्रति आस्थावान’ अपने सुधी और परम विश्वसनीय पाठक-मित्र के निमित्त ‘समर्पित किया है- की प्रथम प्रति बड़ी संख्या में उपस्थित सुधी श्रोताओं में से एक वरिष्ठ कवि श्री शिवमंगल सिद्धांतकर को तथा ‘राधा-माधव’- जिसे उन्होंने पत्नि और तीनों बेटियों के नाम समर्पित किया है- की प्रथम प्रति श्रीमती उषा उद्‍भ्रांत को भेंट की। कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए दूरदर्शन महानिदेशालय के सहायक केन्द्र निदेशक श्री पी.एन. सिंह द्वारा कवि के सम्बंध में दी गई इन दो महत्त्वपूर्ण सूचनाओं ने सभागार में मंच पर उपस्थित विद्वानों और सुधी श्रोताओं को हर्षित कर दिया कि वर्ष 2008 में ‘पूर्वग्रह’ (त्रौमासिक) में प्रकाशित उनकी जिस महत्त्वूपर्ण लम्बी कविता ‘अनाद्यसूक्त’ के पुस्तकाकार संस्करण को लोकार्पित करते हुए नामवर जी ने उसे उस समय तक की उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति घोषित किया था-को वर्ष 2008 के ‘अखिल भारतीय भवानी प्रसाद मिश्र पुरस्कार’ से सम्मानित करने की घोषणा हुई है। इसके अलावा उडीसा से पद्मश्री श्रीनिवास उद्गाता जी-जिन्होंने रमाकांत रथ के ‘सरस्वती सम्मान’ से अलंकृत काव्य ‘श्रीराधा’ का उड़िया से हिन्दी में तथा धर्मवीर भारती की ‘कनुप्रिया’ का हिन्दी से उड़िया में काव्यानुवाद किया था-ने कवि को सूचित किया है कि वे आज लोकार्पित ‘राधामाधव’ का भी हिन्दी से उड़िया में काव्यानुवाद कर रहे हैं जो बहुत जल्द उड़िया पाठक-समुदाय के समक्ष आयेगा। धन्यवाद-ज्ञापन हिन्दी भवन के प्रबंधक श्री सपन भट्टाचार्य ने किया।

प्रस्तुतकर्ता
तेजभान
ए-131, जहांगीरपुरी,
नई दिल्ली-110033
मोबाईल: 9968423949

Friday, June 17, 2011

उद्‍भ्रांत की 3 पुस्तकों के लोकार्पण-कार्यक्रम का निमंत्रण

नेशनल पब्लिशिंग हाउस और हिन्दी अकादमी के संयुक्त तत्वाधान में
वरिष्ठ कवि उद्‍भ्रांत की 3 पुस्तकों
(अस्ति- कविता संग्रह, अभिनव पांडव- महाकाव्य,
राधा-माधव- प्रबंध काव्य)
का लोकार्पण एवं
‘समय समाज, मिथकः उद्‍भ्रांत का कविकर्म’
विषय पर विचार-गोष्ठी।

अध्यक्ष तथा मुख्य अतिथिः डॉ. नामवर सिंह
मुख्य वक्ता: डॉ. शिवपूजन मिश्र
विशिष्ट वक्ता: डॉ. नित्यानंद तिवारी
वक्ता: डॉ. बलि सिंह
डॉ. संजीव कुमार
डॉ. लीलाधर मंडलोई
डॉ. धीरंजन मालवे

दिनांकः 17 जून 2011
समयः 5‍ः30 बजे से
स्थानः संगोष्ठी कक्ष, तृतीय तल, हिन्दी अकादमी, विष्णु दिगंबर मार्ग, नई दिल्ली-01


आप सादर आमंत्रित हैं।

Tuesday, June 14, 2011

नागार्जुन जन्मशती उत्सव का आमंत्रण



डायलॉग गोष्ठी का आमंत्रण


आमंत्रण पत्र को बड़ा करके देखने के लिए उस पर चटका लगाएं
मित्रों,
२५ जून को दिल्ली के सिरी फोर्ट ऑडिटोरियम के पास ललित कला और साहित्य की अकादेमी के डायलाग कार्यक्रम के समूह कविता पाठ में इस बार कई युवा कवि अपनी कविताओं का पाठ करेंगें। युवा कविओं की कविता की ताजगी और तेवर को सुनने जरुर आयें। यह दुर्लभ अवसर होगा। अपने जरुरी कम जल्दी निबटाकर पांच बजे तक अवश्य पहुंचें।
कविता ही ऐसी एक कला है जो हमारी भाषा में समाकर सालों हमारी संवेदना में रहती है और हमें मनुष्य बने रहने की सीख देती रहती है। आज इस भागदौड़ भरे जीवन में कविता के लिए समय और जगह दोनों ही निकाल पाना बहुत मुश्किल हो चुका है। हर महीने के आखिरी शनिवार को दक्षिणी दिल्ली में कविता के लिए इस जगह को विकसित किया जा रहा है। यह सोचें की दूसरों की कविता सुनना कितना जरुरी है। उनके लिए भी, अपने लिए भी। आइये, कविता को सिविल सोसाइटी का एक कारगर टूल बनाएं। जनवादी लेखक संघ, जन संस्कृति मंच , प्रगतिशील लेखक संघ और अन्य संगठनों से जुड़े सभी दोस्तों से खास गुजारिश् और आगे की पीढ़ी के सुनाम लेखकों से भी विनम्र अनुरोध है कि युवा कवियों को सुनने सहजता से आयें।

दस दिवसीय अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन

नई दिल्ली-विदेशों में रह रहे प्रवासी भारतीयों के बीच भारतीय संस्कृति एवं राजभाषा के प्रचार एवं प्रसार के रचनात्मक संकल्प के साथ भारतीय संस्कृति संस्थान अपना गौरवमयी सत्तरवां अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन दक्षिण अफ्रीका और दुबई में आयोजित करने जा रहा है। 14जून से 23 जून तक आयोजित होने जा रहे इस दस दिवसीय महोत्सव में दक्षिण अफ्रीका के सनसिटी, जोहांसबर्ग और कैपटाउन के अलावा दुबई में राजभाषा रचना शिविर और हिंदी कवि सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे। संस्थान की अध्यक्ष डॉ.मधु बरूआ के अनुसार इस महती अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का उदघाटन संसदीय राजभाषा समिति के उपाध्यक्ष सांसद सत्यव्रत चतुर्वेदी तथा अध्यक्षीय संचालन सुप्रसिद्ध हिदी कवि एवं पत्रकार पंडित सुरेश नीरव करेंगे। इस अवसर पर दक्षिण अफ्रीका और दुबई में कार्यरत भारत के राजदूत भी सम्मिल होंगे।

Sunday, June 12, 2011

स्व. केतन मुन्शी गुजराती कहानी स्पर्धा में गिरीश भट्ट की कहानी "माँ" प्रथम




गुजराती साहित्य में नर्मदा साहित्य सभा, सूरत के द्वारा वर्ष 2010 की श्रेष्ठ गुजराती कहानी "माँ" को प्रथम पुरस्कार के लिए चुना गया| 18 मई -2011 को संम्पन्न हुए इस समारोह में गुजराती साहित्य परिषद् के अध्यक्ष और समर्थ साहित्यकार श्री भगवतीकुमार शर्मा, साहित्य संगम संस्थान के अध्यक्ष और साहित्यकार श्री नानूभाई नायक, डॉ. शरीफा वीजलीवाला, डॉ. जगदीश गुर्जर, डॉ. विजय शास्त्री और साहित्यकार-भावक उपस्थित थे|
सूरत के कहानीकार स्व. केतन मुनशी (1930 -1956 ) के परिवार ने उनकी स्मृति में दस लाख का दान नर्मदा साहित्य सभा को दिया था | जिसमें से प्रति वर्ष किसी एक कहानीकार को नगद पचीस हज़ार रूपये और सम्मान से नवाज़ा जाता है| वर्ष 2010 की इस स्पर्धा में देश-विदेश से 152 कहानियाँ आई थीं, उन में से सुरेंद्रनगर के श्री गिरीश भट्ट की कहानी "माँ" को प्रथम पुरस्कार मिला |

Wednesday, June 8, 2011

हिंदी लेखक संघ, मॉरीशस : ५० वीं वर्षगांठ

मॉरीशस स्थित हिंदी लेखक संघ इस वर्ष अपनी ५० वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है। वर्ष २०११ हिंदी लेखक संघ का साहित्यिक वर्ष घोषित किया गया है। हिंदी लेखक संघ की स्थापना ९ दिसंबर १९६१ में हुई थी। इसके ५० वर्षों के कार्यकाल में बहुत से उल्लेखनीय सृजनात्मक लेखन एवं साहित्यिक गतिविधियां आयोजित हुईं और मॉरीशस के साहित्य प्रेमी इनसे पूर्ण रूप से अवगत हैं। साहित्यिक संगोष्ठियां, कवि-सम्मेलन, नाटक-मंचन, साहित्यिक लेखन प्रतियोगिताओं का आयोजन, पुस्तक प्रकाशन व लोकार्पण समारोह, पुस्तक प्रदर्शनी, ’बाल सखा’ पत्रिका का प्रकाशन, ’प्रकाश’ नामक पाक्षिक रेडियो कार्यक्रम तथा कर्मठ हिंदी सेवियों का सम्मान हिंदी लेखक संघ की गतिविधियों के अंतर्गत आते हैं।

हिंदी लेखक संघ के संस्थापक स्वर्गीय डॉ.मुनीश्वरलाल चिंतामणी जी ने मॉरीशस के लेखकों के एक संघ की स्थापना करने का विचार किया था। उन्होंने कई उभरते लेखकों को आमंत्रित किया था। ९ दिसंबर १९६१ को मॉरीशस के अनेक लेखकों ने पोर्ट-लुईस (मॉरीशस की राजधानी) के नेओ कॉलेज में अपनी उपस्थिति दी थी। उन्हें संबोधित करते हुए चिंतामणी जी ने कहा था- "मॉरीशस में हिंदी साहित्य का यह शैशवकाल है। संघ का मुख्य उद्देश्य व्यवस्थित रूप से साहित्य-सृजन करना है। निकट भविष्य में अनेक लेखक, कवि, कहानीकार, उपन्यासकार तथा अनेक साहित्यकार पैदा करना है। मॉरीशस का गौरव लेखकों पर निर्भर है। वे देश के दीप-स्तंभ हैं।"

उसी दिन अर्थात ९ दिसंबर १९६१ को मॉरीशस हिंदी लेखक संघ की स्थापना हुई। पहली कार्य सारिणी समिति का गठन इस तरह हुआ- मान्य प्रधान- पं.बालमुकुंद द्विवेदी, प्रधान-पं.धर्मवीर घूरा, महामंत्री-डॉ.मुनीश्वरलाल चिंतामणी तथा कोषाध्यक्ष-श्री हनुमान दुबे गिरधारी। हिंदी लेखक संघ एक छोटी हिंदी संस्था के रूप में स्थापित हुई थी पर उस समय किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि यह संस्था ५० वर्षों से अविरल साहित्य-सृजन करते हुए मॉरीशस की एक बडी साहित्यिक संस्था बन पाएगी और अपने अस्तित्व का इतिहास रच पाएगी।

संघ द्वारा साहित्य की अनेक विधाओं जैसे कविता, निबंध, कहानी, नाटक, लोक-कथा, लघु-कथा, इतिहास तथा बाल-कहानियों का प्रकाशन हुआ है। इस वर्ष भी साहित्य संगोष्ठी, नाटक-मंचन, पुस्तक प्रदर्शनी, रेडियो व टीवी कार्यक्रम आदि प्रस्तावित गतिविधियां हिंदी लेखक संघ आयोजित करेगा।