Wednesday, June 17, 2009

धीरेन्द्र अस्थाना के उपन्यास 'देश निकाला' का लोकार्पण


उपन्यास 'देश निकाला' का लोकार्पण करते विश्वनाथ सचदेव, जगदम्बा प्रसाद दीक्षित, रामनारायण सराफ, डॉ.रामजी तिवारी , देवी प्रसाद त्रिपाठी , सागर सरहदी, अशोक सिंह और धीरेन्द्र अस्थाना

मुम्बई
धीरेन्द्र अस्थाना का उपन्यास 'देश निकाला' मुम्बई के फ़िल्मी जीवन का आईना है । इसमें वर्तमान यथार्थ से आगे जाकर एक नए यथार्थ को स्थापित करने की सराहनीय कोशिश की गई है । ये विचार जाने माने कथाकार जगदम्बा प्रसाद दीक्षित ने शनिवार 13 जून को लोकमंगल द्वारा मुम्बई के दुर्गादेवी सराफ सभागृह में आयोजित लोकार्पण समारोह में व्यक्त किए । उन्होंने आगे कहा कि फ़िल्म जगत में माँ बनने के बाद अभिनेत्री का कैरियर ख़त्म हो जाता है । मगर इस उपन्यास की नायिका मल्लिका को माँ बनने के बाद भी प्रमुख भूमिकाओं के प्रस्ताव मिलते हैं, यह स्वागत योग्य बात है । पहली बार शायद ऐसा हुआ कि दीक्षित जी वामपंथी चिंतन और साम्राज्यवादी चिंता से मुक्त होकर मुक्तभाव से बोले । अभिनेत्री मीनाकुमारी पर मर्मस्पर्शी संस्मरण सुनाकर उन्होंने फ़िल्म जगत के अंधेरे पक्ष को रेखांकित किया । दीक्षित जी ने बताया कि स्टार अभिनेत्री होने के बावजूद मीनाकुमारी सामान्य स्त्री की तरह व्यवहार करती थीं । इलाहाबाद के कवि यश मालवीय के आलेख को आकाशवाणी के उदघोषक आनंद सिंह ने और दिल्ली के कवि सुशील सिद्धार्थ के आलेख को लेखक अनिल सहगल ने प्रस्तुत किया । कवि राजेश श्रीवास्तव और कवि हृदयेश मयंक ने 'देश निकाला' पर अपने आलेख ख़ुद पढ़े । दिल्ली से पधारे 'थिंक इंडिया ' के सम्पादक देवी प्रसाद त्रिपाठी ने बहुत आत्मीयता से अपनी बात रखते हुए कहा कि यह उपन्यास मुम्बई के जीवन का जीवंत दस्तावेज़ है । उन्होंने डॉ. राही मासूम रज़ा के हवाले से कहा कि कलकत्ता कजरारी आँखों से गिरे आँसुओं की राख है । पता नहीं क्यों मुम्बई आने वाले परदेसियों के लिए ऐसे विरह गीत नहीं लिखे गए । कवि देवमणि पांडेय ने अपना विमर्श प्रस्तुत करते हुए कहा कि 'देश निकाला' के चरित्र, घटनाएं और संवाद इसे एक श्रेष्ठ कृति साबित करते हैं । इसे दो विपरीत ध्रुवों कि कथा बताते हुए उन्होंने नायक गौतम के चरित्र को निदा फ़ाज़ली के एक शेर से साकार किया-

यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिराके अगर तुम सँभल सको तो चलो


नायिका मल्लिका के संघर्ष को रेखांकित करने के लिए उन्होंने ज़फ़र गोरखपुरी का शेर उद्धरित किया-

ये ऐसी मौत है जिसका कहीं चर्चा नहीं होता
बहुत हस्सास होना भी बहुत अच्छा नहीं होता


उपन्यास की पहली लाइन है-'सीढ़ियों पर सन्नाटा बैठा था' और आख़िरी लाइन है- 'यह दो स्त्रियों का ऐसा अरण्य था जहाँ कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता था'- इन लाइनों के हवाले से देवमणि पांडेय ने कहा कि धीरेन्द्र की ख़ूबी यह है कि सुख-दुःख, उमंग-उल्लास, स्वप्न और आकांक्षा, हर मूड के अनुसार वे भाषा क्रिएट करते हैं । इस जीवंत भाषा ने उपन्यास को बेहद पठनीय बना दिया है । अंत में पांडेय जी ने मज़ाक किया- ''धीरेन्द्र जी अच्छे कुक हैं । शायद इसी लिए किताब के हर दूसरे-तीसरे पेज़ पर कोई न कोइ डिश मौजूद है । कहीं चिकन, मटन, बिरयानी है तो कहीं पनीर और पुलाव है। इस लिए इसे पढ़ते हुए बहुत भूख लगती है ।'' संचालक आलोक भट्टाचार्य ने जोड़ा- इसे पढ़ते हुए प्यास भी बहुत लगती है। फ़िल्मकार सागर सरहदी ने भी इस प्रसंग में इज़ाफ़ा किया । फ़िल्म 'बाज़ार' के समय उन्होंने अभिनेत्री स्मिता पाटिल से कह दिया था - 'मैं अच्छा कुक हूँ । अगर यह फ़िल्म नहीं चली तो मैं सड़क किनारे ढाबा खोल लूँगा।' डॉ.राजम पिल्लै ने इस कृति की नायिका मल्लिका और मोहन राकेश के नाटक 'आषाढ़ का एक दिन' की मल्लिका की रोचक तुलना करते हुए कहा कि औरत जब अपने लिए स्पेस चाहती है तो निर्मम हो जाती है। बाद में धीरेन्द्र अस्थाना की पत्नी ललिता अस्थाना ने इससे सरेआम असहमति जताई ।

नवनीत के सम्पादक विश्वनाथ सचदेव ने मुंबई के चारकोप इलाक़े को ग्लोबल बनाते हुए कहा कि यह उपन्यास मानवीय अनुभूतियों का कोलाज है । प्रतिष्ठित फ़िल्म लेखक-निर्देशक सागर सरहदी ने रचनाकार से असहमति जताते हुए कहा कि फ़िल्म में जाने के बावजूद नायक-नायिका को थिएटर नहीं छोड़ना चाहिए था । कथाकार उदय प्रकाश की कहानी 'मोहनदास' पर बनने वाली फिल्म के निर्माता तथा 'आशय' पत्रिका के सम्पादक वी.के.सोनकिया ने लेखकीय संकट जैसे कुछ संजीदा मुद्दों पर श्रोताओं का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की । आकर्षित होने के बजाय श्रोता आपस में बातचीत करने लगे तो वे वापस लौट गए । डॉ.रामजी तिवारी ने कहा कि उनके पास बोलने के लिए कुछ नहीं है मगर वे बीस मिनट तक बोलते रहे । आरजेडी के महासचिव अशोक सिंह ने भी पुस्तक पर विचार व्यक्त किए । भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित 'देश निकाला' का लोकार्पण डॉ.रामजी तिवारी ने किया और प्रथम प्रति साहित्य अनुरागी रामनारायण सराफ को भेंट की । सराफ जी को इससे पहले 60 पुस्तकों की प्रथम प्रतियां प्राप्त हो चुकीं हैं । मगर यह पहली पुस्तक है जिसे पढ़कर उन्होंने नया रिकार्ड बनाया । संचालक आलोक भट्टाचार्य ने हमेशा की तरह बोलने में कोई कोताही नहीं बरती । कभी कभी जब वे चुप हो जाते थे तो वक्ताओं को भी बोलने का अवसर मिल जाता था ।

कुल मिलाकर एक कथाकार के औपन्यासिक विमर्श में कवियों का बहुमत रहा । 6 कवियों ने परिचर्चा में भागीदारी की । 7वें कवि ने संचालन किया और 8वें कवि कन्हैयालाल सराफ ने बड़े रोचक अंदाज़ में आभार व्यक्त किया । इस कार्यक्रम में मुम्बई के रचनाकार जगत से श्री नंदकिशोर नौटियाल, डॉ. सुशीला गुप्ता, मो.अयूबी, यज्ञ शर्मा, विभा रानी,गोपाल शर्मा, हस्तीमल हस्ती, सिब्बन बैजी, संजय मासूम, हरि मृदुल आदि मौजूद थे । संगीत जगत से गायिका सीमा सहगल, डॉ. सोमा घोष, डॉ. परमानंद आदि मौजूद थे । कार्यक्रम की शुरुआत में रंगकर्मी हबीब तनवीर, कवि ओमप्रकाश आदित्य, नीरजपुरी, लाड़सिंह गुर्जर और ब्रजेश पाठक मौन के प्रति श्रद्धाँजलि व्यक्त की गई ।


धीरेन्द्र अस्थाना , विश्वनाथ सचदेव और ललिता अस्थाना

प्रस्तुति- श्रद्धा उपाध्याय, मुम्बई

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4 पाठकों का कहना है :

Shamikh Faraz का कहना है कि -

धीरन्द्र अस्थाना जी को बधाई. उपन्यास की पहली लाइन 'सीढ़ियों पर सन्नाटा बैठा था' बहुत अच्छी लगी. जब पहली लाइन ऐसी है तो उपन्यास कैसा होगा,

Unknown का कहना है कि -

M.S.Bedi Mumbai... Asthana ji ke DESH NIKALA Upnyas ka main swagat karta hoon. Main isse jaldi padh loonga.

Unknown का कहना है कि -

जब सीढ़ियो पर सन्नाटा है तो ऊपर पहुँचने पर कितना अन्धकार होगा!!!
खैर,मुझे उपन्यास पढ़ना होगा।

Unknown का कहना है कि -

जब सीढ़ियो पर सन्नाटा है तो ऊपर पहुँचने पर कितना अन्धकार होगा!!!
खैर,मुझे उपन्यास पढ़ना होगा।

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