माइक पर देवमणि पाण्डेयमुम्बई।आज जब बाजार हमारे घर में घुस गया है और हर एक चीज सिर्फ मुनाफे के नजरिये से देखी जाती है वैसे में पिछले दिनों मुम्बई में हास्योत्सव 2009 का आयोजन एक सुखद बयार का झोंका लेकर आया। हालाँकि विभिन्न चैनलों ने आज हास्य को लाफ्टर में तबदील कर दिया है और इसे एक रस के बजाय व्यवसाय बना कर रख दिया है। फिर भी रंग चकल्लस द्वारा पिछले 40 सालों से अनवरत आयोजित होते आ रहे हास्योत्सव जैसे शुद्ध और शिष्ट हास्य से लबरेज कार्यक्रमों का इंतजार न सिर्फ मुम्बई के रसिक श्रोताओं को होता है बल्कि देश भर के कवियों को भी रहता है। इस मंच से कभी काका हाथरसी, शरद जोशी, शैल चतुर्वेदी जैसे ख्याति लब्ध कवियों ने श्रोताओं को गुदगुदाया तो कभी अशोक चक्रधर ने ये कहकर आयोजक को भाव विह्वल कर दिया कि जिन्दगी में कभी उनकी तमन्ना हुआ करती थी कि वे रंगचकल्लस के इस आयोजन मे कविता पढें।
यही वजह है कि आज भी देश भर से आयोजक को कवियों के फोन आते है कि वे एक बार इस मंच पर उन्हें भी मौका दें। गौरतलब है कि शरद जोशी ने अपने जीवन का अंतिम रचना पाठ भी इसी मंच से किया था। बल्कि वे हर साल इस कार्यक्रम के लिए एक नयी रचना जरूर लिख कर लाते थे।
मुम्बई में प्रति वर्ष आयोजित होने वाले रंग चकल्लस के हास्य उत्सव की ख़ास बात यह है कि इसमें मंच पर कोई अध्यक्ष या अतिथि नहीं होता। इस बार भी पाटकर हाल में 6 जून को आयोजित इस हास्य उत्सव में संस्था अध्यक्ष असीम चेतन ने एक लाइन का स्वागत भाषण किया और कार्यक्रम शुरू हो गया । डॉ.रजनीकांत मिश्र ने अम्बानी बंधुओं की तनी हुई मुट्ठियों पर हास्य कविता सुनाकर अच्छी ओपनिंग की।
व्यग्यकारों ने बाबा रामदेव को भी नहीं बख्शा और
कपिल जैन (यवतमाल) ने उन्हे योग को उद्योग में परिवर्तित करने के लिए कुछ इस तरह लपेटा-
योग से ठीक ना हो ऐसा कोई रोग नहीं है
मगर योग नियम है, योग उद्योग नही है।कपिल जैन ने व्यवस्था पर व्यंग्य किया-
हमारी शिक्षा प्रणाली भी कितनी वज़नदार है
केजी वन के बच्चे पर 10 केजी का भार है।
गोविंद राठी (रतलाम)ने औरत की सनातन व्यथा और पीडा को धारदार शैली मे कुछ इस तरह बयान किया -
हर युग में सियासत के अपनी अपनी
व्यवस्थायें होती हैं
पहले द्रोपदियों की इज्जत सभाओं मे लुटती थी
आजकल इज्जत लुटने के बाद
सभायें होती है। डाँ मुकेश गौतम ने चुटकी भरे संचालन से पूरे कार्यक्रम के दौरान माहौल को जिन्दा बनाये रखा और श्रोताओं की काफी सराहना प्राप्त की। उन्होंने राजनीति में बढ़ रहे अपराधीकरण की विडम्बना को इस तरह उजागर किया-
चम्बल में डाकू कहीं नजर नहीं आये
तो हमने एक आदमी से पूछा
वो बोला
अब डाकुओं की पदोन्नत्ति हो गई है
उनकी जगह अब चम्बल में नहीं
संसद में हो गई हैबसंत आर्य ने बिग बी अमिताभ बच्चन पर छींटाकसी करते हुए कहा-
नई बहू जब घर में आई गए पिता को भूल
ऐश्वर्या के नाम से खोला बिग बी ने स्कूलआगे उन्होंने कहा–
हरिवंश राय की याद न आई नाही तेजीजी की
कजरारे के आगे अब मधुशाला हो गई फीकीदेवमणि पांडेय ने बसंत आर्य की बात को आगे बढाते हुए कहा-
सिक्कों की खनक जिन्दगी को ऐसे भा गई
बूढे भी नाच गाकर पसे कमा रहे हैं।
बिग बी का इस उम्र मे जलवा तो देखिए
बेटे बहू के साथ मे ठुमके लगा रहे है।देवमणि पाण्डेय के रोमांटिक शेर सुनकर श्रोता उछल पड़े-
बहक न जाए किसी की निगाह महफ़िल में
पहनके इतना भी दिलकश लिबास मत बैठो
तुम्हारा चाहने वाला हूं मैं ख़ुदा के लिए
मेरे ही सामने ग़ैरों के पास मत बैठोदेवमणि पाण्डेय ने कुछ फ़िल्मी चरित्रों पर प्रेम कविताएं सुनाईं जिसका श्रोताओं ने जमकर लुत्फ उठाया-
मंज़िल मोहब्बतों को कब तक नहीं मिली
गुज़रे न इम्तहान से तब तक नहीं मिली
क़ानून के भँवर में है प्रेमियों की नाव
संजय को पूरी मान्यता अब तक नहीं मिलीमाइक पर आशकरण अटल, बाय़ें से असीम चेतन, मुकेश गौतम, बसंत आर्य, देवमणि पांडेय, गोविन्द राठी, कपिल जैन और रजनीकांतविवाह फिल्म के सम्वाद लिखने से विशेष चर्चित हुए वरिष्ठ हास्य कवि
आसकरण अटल ने अपनी लोकप्रिय कविता 'हाइवे के हमदम' सुनाकर श्रोताओं को काफी हँसाया । आख़िरी पंक्तियाँ देखिए-
गाँव में संस्कार था / शहर में रोज़गार था / रोज़गार के लिए गाँव छूटा, तो आखों की
शर्म जाती रही / वहाँ पगड़ी उतारने में आती थी शर्म / यहाँ कपड़े उतारने में नहीं आती।देर रात तक चलने वाले इस हास्य उत्सव को विविधरंगी कविताओं ने यादगार बना दिया। अंत में संयोजक असीम चेतन ने हँसते खिलखिलाते चेहरों को अगले साल फिर मिलने का वादा करते हुए विदा किया।
प्रस्तुति- श्रद्धा उपाध्याय और उल्हास मून, मुम्बई
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
5 पाठकों का कहना है :
अब क्या कहें " हा हुसैन हम ना हुए..."कभी देव मणि जी से मुलाक़ात या बात हुई तो उनसे शिकायत करेंगे की हमें सुनने का मौका क्यूँ नहीं दिया गया...शानदार प्रस्तुतीकरण...रोचक जानकारी...
नीरज
चम्बल में डाकू कहीं नजर नहीं आये
तो हमने एक आदमी से पूछा
वो बोला
अब डाकुओं की पदोन्नत्ति हो गई है
उनकी जगह अब चम्बल में नहीं
संसद में हो गई है
बहुत ही मज़ेदार हास्य कवी सम्मलेन.जानकारी के लिए हिन्दयुग्म का आभारी.
हमारी शिक्षा प्रणाली भी कितनी वज़नदार है
केजी वन के बच्चे पर 10 केजी का भार है।
वाह..
ऐसे हास्य सम्मेलन होते रहने चाहियें..
वाह बहुत मज़ा आया ऐसे सम्मेलन होते रहने चाहिये
Hasya ke maha-parv par hasi ke faware kavita ko padh kar chut -te rahe.
Devmani hamein to bhul gaye.
prastutikaran ke liye badhayi.
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)