4 सितम्बर 2009 । अहमदाबाद
साहित्यिक एवं सामाजिक सस्था ‘संजीवनी’ द्वारा शरद पूर्णिमा के अवसर पर शुकन रेज़ीडेंसी, न्यू सी.जी.रोड, अहमदाबाद के परिसर में एक काव्य-संध्या का आयोजन किया गया, जिसमें अहमदाबाद की 7 सुपरिचित कवयित्रियों और 2 कवियों ने अपनी रचनाओं से सबको रस विभोर कर दिया। इनसे प्रोत्साहित होकर इस सोसाइटी के करीब 13 बालकों और 4 कवि हृदयों ने भी अपनी रचनाएं सुनाई। कार्यक्रम का शुभारम्भ पारम्परिक तरीके से दीप-प्रज्ज्वलन और माँ सरस्वती की स्तुति से हुआ। बेबी श्रुतकीर्ति के मधुर कंठ से निस्रत स्वर सबको आल्हादित कर गया। काव्य संध्या की अध्यक्षता का दायित्व वरिष्ठ कवयित्री डॉ. सुधा श्रीवास्तव को सौंपा गया तथा संचालन का कार्य श्री चन्द्रमोहन तिवारी जी ने बखूबी निभाया। डॉ.हरिवंश राय बच्चन के अंदाज में तिवारी जी ने कविगोष्टी का आगाज़ किया-‘श्रोतागण है पीनेवाले, कवि सम्मेलन है मधुशाला।‘
सोसाइटी के 2 वर्ष की नन्ही उम्र से 16 वर्ष तक के करीब 13 बालकों ने अपनी छोटी पर प्रभावी रचनाओं से सबको चकित कर दिया, जिनमें प्रियांशी, प्रांजल, साक्षी, श्रेयस के नाम उल्लेखनीय हैं। श्रीमती प्रतिमा पुरोहित ने पूनम के चाँद से कामना की ‘ चाँद हमें रोशनी दो’ श्रीमती मधु प्रसाद जी ने गीतों में मधु घोलते हुए गाया‘ तेरा-मेरा करते-करते संध्या आई जीवन की’ साथ ही सुनाया ‘ बेटियाँ होतीं हैं ऋतुएं – कभी सावन बन मन भिगो जाती हैं।‘ तो दिनेश कुमार वशिष्ठ ने गीत ‘बाँसुरी नहीं तो क्या डांडिया का सहारा है’ गाया फिर अपनी हास्य रचनाओं से सबको हँसाया भी। मंजु महिमा भटनागर ने आने वाली पीढ़ी को संदेश देते हुए कहा-‘मिट सकते हैं ज़रूर ये नफरतों के दायरे / प्यार में हमारे ताकत होनी चाहिए / बदल सकते हैं हवा के रूख हम भी, दीवार इरादों की मज़बूत होनी चाहिए‘ सन्ध्या बडी रोमांचक और सुरमई रंग में रंग गई जब मंजु महिमा जी ने आह्वान किया शुकन रेज़ीडेंसी के लोगों का इन शब्दों में—‘चाँद है शबाब पर, उजालों में उतर आइए,/ भूल कर सभी शिकवे गिले, ज़रा तो मुस्कुराइए।‘ सुश्री रंजना सक्सेना जी भी अपने को रोक नहीं पाईं और गुनगुना उठीं-‘शरद सलौनी, चाँद नशीला, झलमल-झलमल तारा है।/मौसम प्यारा-प्यारा है।‘ और एक दीप अंतस की देहरी पर रख दो तुम...’ डॉ. प्रणव भारती ने भी ऐसे माहोल में अपने भावुक और दिल में उतर जाने वाली आवाज़ और शायराना अंदाज़ में सुनाया ‘चाँद आसपास है, चाँदनी उजास है, तू क्यों गुम है, मुस्कुरा, ज़िन्दगी तो खास है।‘ तथा ‘जब यह दिल किसी का हौंसला पाने लगा, शाम की तन्हाइयों में मज़ा आने लगा।‘ प्रसिद्ध शायरा डॉ. अंजना संधीर ने अपनी बुलन्द पर प्रभावी आवाज़ में गाकर संदेशा अपने विदेश में बैठे पति तक पहुँचाया----
‘बारिश के नज़ारों का अंदाज़ ज़रा लिखना, वो प्यार भरी आँखें रहती हैं मेरे दिल में, उन आँखों के रिश्तों का पता ज़रा लिखना।‘ श्री चंद्रमोहन जी तिवारी ने जो इस कार्यक्रम के कुशल संचालक भी थे, जहाँ निराले अंदाज़ में बच्चन जी की तर्ज पर अपनी रचना सुनाई, ‘दीपक जलाना कब मना है?’ वहाँ इस कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं, वरिष्ठ एवं डॉ. सुधा श्रीवास्तव ने अपने गीतों को लोकधुनों के रंग में रंग कर आने का आश्वासन प्यारी सी शर्त पर दिया—‘मैं आऊँगी ज़रूर, तुम पुकारते चलो/ पुकारते चलो, मनुहारते चलो।‘ और अपने अन्य गीतों के टुहकों से सबको गुजरात से भोजपुरी पृष्टभूमि में पहुँचा दिया।
इन सुप्रसिद्ध कवियों की रचनाओं से प्रेरणा पाकर सोसाइटी के अन्य छुपे रुस्तम भी सामने आए जिनमें श्री वी.के. सिन्हा, श्री सलिल सिन्हा, श्री लोहखंडे और श्रीमती चैताली के नाम प्रमुख हैं।
कुल मिलाकर इस वर्ष की यह शरद पूर्णिमा एक रोमांचक यादगार काव्य-संध्या बन गई जिसे सफल बनाने का श्रेय संजीवनी संस्था को विशेष रूप से जाता है, जो समाज और साहित्य की बिखरी हुई कड़ियों को जोड़ने में प्रयासरत है। संस्था की अध्यक्षा सुश्री रंजना सक्सेना ने अपनी संजीवनी संस्था के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए बताया कि जैसे बहुत सी वनस्पतियाँ और प्रजातियाँ धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रहीं हैं, वैसे ही अच्छा साहित्य एवं अच्छे साहित्यकारों का भी विलोप हो रहा है, अत: उनको प्रकाश में लाना और संजीवनी संस्था के द्वारा उन्हें संजीवनी प्रदान करना ही उनका लक्ष्य है। अपनी इन पंक्तियों से उन्होंने इस आयोजन को विराम दिया- ’ दर्द अंतस का उमड़ता हुआ नीर है / अश्रु मन के भाव की तस्वीर है। / ज़िन्दगी की तह पर जाने पर लगा / प्रीत की बिखरी हुई ज़ंज़ीर है।‘
प्रस्तुति–
मंजु महिमा, अहमदाबाद
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5 पाठकों का कहना है :
बहुत ही अच्छी रिपोर्ट पेश की मंजू जी.
अंजना जी की यह पंक्तियाँ बहुत सुन्दर लगीं.
‘बारिश के नज़ारों का अंदाज़ ज़रा लिखना, वो प्यार भरी आँखें रहती हैं मेरे दिल में, उन आँखों के रिश्तों का पता ज़रा लिखना।‘
आदरणीया मंजु जी,
कार्यक्रम का विवरण पढ़ के बहुत अच्छा लगा. यहाँ बैठे बस सोच ही सकती हूँ .
आप सबको बहुत बधाई !
"दीवार इरादों की मज़बूत. . ."
और
"चाँद है शबाब पर, उजालों में उतर आइए,/ भूल कर सभी शिकवे गिले, ज़रा तो मुस्कुराइए।"
ये दोनों कवितायें भेजिए ना ई-कविता पे आप, जिससे कम से कम हम पढ़ के आनंद उठा लें इनका.
रू-ब-रू तो जाने कब होंगे !
सादर शार्दुला
kavya sandhya ki report padh kar bahut achcha laga. kripaya aage bhi aisi reports prakashit karte rahein jis se sahitya premiyon ko ras asvadan hota rahe.
report prakashit karne ke liye dhanyavad . kripya sahitya premi ranjnasaxena@gmail.com par sampark avashya karein.
Manju MAhima ji,
kavya sandhya ki report padh kar bahut achcha laga. Kafi ruchi purna program raha hoga. AAk kavitaye yadi prakashit kare to bahut aacha rahega.
Atul Bhatnagar
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