Wednesday, March 3, 2010

कोपनहेगन में ‘वेयर डू आई बिलान्ग का विमोचन’



ऐशियन म्यूजिक संस्था डेनमार्क ने 27 फरवरी को होली के अवसर पर आयोजित अपनी शास्त्रीय संगीत संध्या पर अर्चना पैन्यूली का नया उपन्यास ‘वेयर डू आई बिलान्ग’ का लोकापर्ण करवाया। उपन्यास का विमोचन डॉ कैनथ ज्यूस्क़ ऐशियन शिक्षा विभाग कोपनहेगन यूनीवर्सिटी के अध्यक्ष के हाथों द्वारा हुआ। प्रबुद्व
श्रोताओं में डेनमार्क में बसे भारतीय समुदाय के कई साहित्य व संगीत प्रेमियों के अलावा स्थानीय डेन्स भी
उपस्थित थे।
भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित यह उपन्यास योरोपीय वातावरण में रह रहें एक ऐसे भारतीय परिवार की कहानी है. जिसके माध्यम से लेखिका ने भारतीय अप्रवासियों की जीवन शैली, संघर्ष, दुविधायें, कठिनाइयां, उनके सोच-विचार, दो संस्कृतियों के बीच उनकी जूझ व इमीग्रेशन इशू आदि को दर्शाया है।
उपन्यास की प्रमुख पात्र नवयुवती रीना है। रीना की जिन्दगी के पॉच अहम्. 20 से 25 वर्ष उपन्यास में वर्णित है। इन पॉच वर्षो के अन्तराल में आज के युग की किसी महत्वाकांशी नवयुवती को अपना कैरियर बनाने के अतिरिक्त जीवन साथी की भी खोज होती है। एक इमीग्रेन्ट होने की वजह से कई द्विविधायें पैदा हो जाती हैं। उपन्यास अप्रवासन मुद्दों. एवं प्रवासित परिवार व समुदाय के विषय में बहुत कुछ बयां करता है।
लोकापर्ण समारोह में डा कैनथ ज्यूस्क के अतिरिक्त रितु क्रिश्नन, अखिला रमन, मैरी ओहारा, व गुरूचरण मिंगलानी ने उपन्यास पर अपने विचार प्रस्तुत किये। डा कैनथ ज्यूस्क बोले, “एक स्केन्डिनेवियन देश डेनमार्क में रह कर यहां के समाज पर हिन्दी में उपन्यास लिखना अपने आप में एक विशिष्टता है। डेनिश समाज को लेकर डेनमार्क में हिंदी में लिखा ‘वेयर डू आई बिलान्ग’ पहला उपन्यास है। अक्सर यह चर्चा होती रहती है कि इस देश के मूल नागरिकों का इमीग्रेन्टस के प्रति क्या
नजरिया है। वेयर डू आई बिलान्ग के जरिये इमीग्रेन्टस का दृष्टिकोण पता लगता र्है वे क्या सोचते हैं अपने ‘अडोप्टेड कन्ट्री’ के बारे में, उन्हें वहां क्या परेशानियां हैं।” इसके अतिरिक्त उन्होंने कोपनहेगन यूनीवर्सिटी में इंडोलोजी व आधुनिक भारत पर चल रहे शैक्षिक कार्यक्रमों पर भी प्रकाश डाला।

रितु क्रिश्नन ने कहा- “हिन्दी पुस्तकें मैं कोई खास नहीं पढ़ती थी। ‘वेयर डू आई बिलान्ग’ पढ़ते हुये मै इसमें इतनी रम गई कि इसके पात्रों व घटनाओं में खो गई। हिन्दी किताबों के प्रति मेरा रूझान बढ़ गया।”
मूलतः तमिल प्रदेश की रहने वाली अखिला रमन ने कहा- ‘यह उपन्यास युवा पीढ़ी के लिये है। और इसकी सफलता तभी है जब यह अधिक से अधिक युवकों के पास पहुंचे।”
अन्त में लेखिका ने ऐशियन म्यूजिक फोरनिंग ह्यसंस्थाहृ, डॉ कैनथ ज्यूस्क़, अपने पाठकों व श्रोताओं का आभार व्यक्त करते हुये कहा- “किसी रचना विशेष पर पाठकों की टिप्पणी व किसी संस्था द्वारा उसकी पुस्तक का लोकापर्ण करवाना लेखक को नवीन ऊर्जा से भर देता है जिससे उसका साहित्य सर्जन थमता नहीं।”
लीडस, यूके से आयी भारतीय सांस्कृतिक संगीत मंडली ने सुर व ताल से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। कुल मिला कर समारोह में संगीत व साहित्य का बेजोड़ समन्यव था। ऐशियन म्यूजिक संस्था के व्यवस्थापक़ डॉली शैनाय व मनबीर सिंह बोले- “यह पहली बार हमारी संस्था के समारोह में किसी पुस्तक का लोकापर्ण हुआ है। नया अनुभव है…।”

प्रस्तुति- चांद शुक्ला
डेनमाक