Tuesday, March 9, 2010

रेखा मैत्र के सम्मान में काव्य संध्या


श्रीमती बॉबी, सुमीता केशवा, रेखा मैत्र, माया गोविंद, कविता गुप्ता, उमा अरोड़ा

अमेरिका से पधारी कवयित्री रेखा मैत्र के सम्मान में जीवंती फाउंडेशन, मुम्बई की ओर से जुहू में एक काव्य संध्या का आयोजन किया गया। अध्यक्षता वरिष्ठ कवयित्री माया गोविंद ने की। रेखा जी का परिचय कराते हुए कवि-संचालक देवमणि पाण्डेय ने कहा कि बनारस (उ.प्र.) में जन्मीं रेखा मैत्र की उच्च शिक्षा सागर (म.प्र.) में हुई। मुम्बई में कुछ साल अध्यापन करने के बाद मेरीलैण्ड (अमेरिका) में बस गईं। यहाँ भाषा के प्रचार-प्रसार से जुड़ी संस्था ‘उन्मेष’ के साथ सक्रिय हैं। रेखा जी के अब तक दस कविता संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। रेखा मैत्र ने अपने जीवंत व्यहार और संवेदनशील कविताओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनकी एक कविता चिड़िया देखिए-

इस मटियाली इमारत में
चिड़िया भी सहमी सहमी घूम रही है।
गोया इसे भी डर है कि
कहीं इसे भी क़ैद न कर लिया जाए।
अपने पंखों का अहसास भूल ही गई है शायद।

कवयित्री माया गोविंद ने तरन्नुम में ग़ज़ल सुनाकर सबको भावविभोर कर दिया-

सूनी आँखों में जली देखीं बत्तियाँ हमने
जैसे घाटी में छुपी देखीं बस्तियाँ हमने
अब भटकते हैं य़ूँ सहरा में प्यास लब पे लिए
हाय क्यूँ बेच दी सावन की बदलियाँ हमने

समकालीन हिंदी कविता के जाने-माने हस्ताक्षर डॉ.बोधिसत्व ने ‘तमाशा’ कविता का पाठ किया। कुछ पंक्तियाँ देखिए-

तमाशा हो रहा है
और हम ताली बजा रहे हैं
मदारी साँप को दूध पिला रहा हैं
हम ताली बजा रहे हैं

अपने जमूरे का गला काट कर
मदारी कह रहा है-'ताली बजाओ जोर से'
और हम ताली बजा रहे हैं

प्रतिष्ठित फ़िल्म लेखक राम गोविंद का शायराना अंदाज़ देखिए-

वो समझते थे दिल की जाँ सा है
क्या पता था कि वो जहाँ सा है
आह की हमसे बड़ी भूल हुई
वो समझते थे बेज़ुबाँ सा है

अपने सूफ़ी अलबम ‘रूबरू’ से लोक प्रिय हुए युवा शायर हैदर नज़्मी ने एक बेहतर नज़्म पेश करने के साथ ही ग़ज़ल सुनाकर समाँ बाँधा-

तुम्हें इस दिल ने जब सोचा बहुत है
हँसा तो है मगर रोया बहुत है
मुझे अब ज़िंदगी भर जागना है
कि मुझपे ख़्वाब का क़र्ज़ा बहुत है

कवि-गीतकार देवमणि पाण्डेय ने भी ग़ज़ल सुनाकर इस ख़ूबसूरत सिलसिले को आगे बढ़ाया-

इस ग़म का क्या करें हम तनहाई किससे बाँटें
जो भी मिली है तुमसे रुसवाई किससे बाँटें
तेरी मेरी ज़मीं तो हिस्सों में बँट गई है
यह दर्द की विरासत मेरे भाई किससे बाँटें


राम गोविंद, अरविंद राही ,बोधिसत्व, अरुण अस्थाना, रेखा मैत्र, हैदर नज़्मी, देवमणि पाण्डेय

कथाकार अरुण अस्थाना ने सामयिक कविता का पाठ किया। श्रीमती सुमीता केशवा ने औरत के अस्तित्व पर और कविता गुप्ता ने तितलियों के तितलाने पर कविता सुनाई। अनंत श्रीमाली ने व्यंग्य कविता और अरविंद राही ने ब्रजभाषा के छंद सुनाए। जीवंती फाउंडेशन की ओर से श्रीमती बॉबी ने रेखा मैत्र का पुष्पगुच्छ से स्वागत किया। श्रीमती माया गोविंद ने रेखा जी को अपना काव्य संकलन भेंट किया। इस अवसर पर श्रीमती उमा अरोड़ा और श्रीमती कुमकुम मिश्रा अतिथि के रूप में मौजूद थीं।

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2 पाठकों का कहना है :

Unknown का कहना है कि -

रेखा मैत्र के साथ गुजारी वह खूबसूरत शाम हमेशा यादगार रहेगी...अपने खुशमिजाजपन से उन्होने सब का मन मोह लिया उस पर देवमणिजी के संचालन और माया गोविन्द जी के छ्न्द,गज़ल के तो क्या कहने..शाम और भी सुन्दर बना दी.

rekhamaitra का कहना है कि -

uma ka kahna hai ki mujhe kavi sammelan me sare kaviyon se milkar bahut acha laga dev maniji ka hasmukh chehra aur sabse atmiyta se bat karne ka dhang mere hriday ko chu gaya . Laga ki main un sab ko muddato se jantee hun aise jagah jakar samay ka patah hi nahi chalta .

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