उदयपुर । स्त्री एवं पुरूष के मध्य यौनिक भेद (सेक्स) का आधार जैविकीय होता है किंतु लिंगाभाव (जेंडर) के अंतर्गत वे भेद आते है जो सांस्कृतिक परिवेश के आधार पर थोप दिये जाते है। बालक-बालिका का क्रमशः पुरूष और स्त्री में रूपान्तरण उनके समाजीकरण की एक जटिल प्रक्रिया है जिसे समझकर ही स्त्री सशक्तीकरण एवं समतायुक्त समाज के निर्माण की दिशा में ठोस पहल की जा सकती है। ‘जेंडर एवं विकासः अवधारणा एवं नीति अध्ययन’ विषय पर केंद्रित कार्यशाला में बोलते हुए महिला अध्ययन केन्द्र विभाग, जनशिक्षण एवं विस्तार कार्यक्रम निदेशालय, जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ (डीम्ड) विश्वविद्यालय के निदेशक श्री सुशील कुमार ने उपयुक्त विचार व्यक्त किए। इस कार्यशाला में महिला अध्ययन केन्द्र विभाग, की प्रभारी सुश्री प्रज्ञा जोशी ने हमारे दैनंदित जीवन में कार्यसहभागिता के अनेक उदाहरणों के जरिए समझाया कि ‘घर-बाहर’ ‘भावुक-तार्किक’ ‘कोमल-साहसी’ की अनेक व्युत्क्रमानुपाती छवियॉं दरअसल समाज द्वारा निर्मित छवियां है जो इस तरह से अंतर्निहित करा दी जाती हैं कि मानव को प्राकृतिक और सहज लगने लगती है।
दूसरे सत्र में सुश्री प्रज्ञा जोशी ने स्त्री सशक्तीकरण के भारतीय परिप्रेक्ष्य का ऐतिहासिक विवरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि यह अद्भूत संयोग है कि कल ही उस महान महिला सावित्री बाई फुले की जयंती है जिन्होने स्त्री शिक्षा को भारत में नींव डालकर स्त्री के सोए आत्मसम्मान की प्राप्ति हेतु उसे शिक्षा रूपी शस्त्र प्रदान करने की पहल की ।
भोजनोपरांत सत्र में वक्ता डॉ लालाराम जाट ने ‘‘जेंडर और विकास’’ के संदर्भ में बताया कि ‘सकल राष्ट्रीय उत्पाद’ के आधार पर राष्ट्र की प्रगति को मापने का मानदंड पुराना पड़ चुका और अब अस्वीकृत है। ‘समग्र विकास ‘सामाजिक विकास’ और सबसे नई ‘स्वपोषी विकास’ की अवधारणाओं को विस्तार से समझाते हुए उन्होने बताया कि अब विकास एक केंद्रिकृत अवधारणा नहीं रह गई है बल्कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर यह माना गया है कि हाशिए पर स्थित लोगों को विकास की धारा में जोड़ माना ही वास्तविक विकास है। उन्होने इस परिप्रेक्ष्य में ‘जेंडर डेवलपमेंट इंडेक्स’ व जेंडर एम्पावरमेंट इंडेक्स की भी चर्चा की ।
उपयुक्त कार्यशाला राजस्थान विद्यापीठ द्वारा मेंवाड़ आंचल के सामुदायिक केंद्रों मे कार्यरत कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षणार्थी हेतु आयोजित की गई । महिला अध्ययन केन्द्र विभाग के श्री उमर फारूक ने बताया कि प्रत्येक माह इस प्रकार की दो कार्यशालाएं आयोजित होगी जिसका लक्ष्य कार्यकर्ताओं में जेंडर संवदेनशीलता का विकास कर सामुदायिक विकास कार्यो में जेंडर समानता को बढ़ाना है।
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