हरियाणा में हिसार जिले के गांव मिरचपुर के दलितों को उनकी मांग के मुताबिक जल्द से जल्द हिसार शहर में जमीन देकर बसाया जाए। ये लोग गांव में खुद को सुरक्षित नहीं महसूस कर रहे हैं। उन्हें शक है कि आने वाले दिनों में उन पर फिर हमले हो सकते हैं। वे अपने परिवार की महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा को लेकर खास तौर पर चिंतित हैं। मिरचपुर दलित हत्याकांड और उसके बाद हरियाणा पुलिस की भूमिका संदिग्ध रही है, इसलिए आवश्यक है कि जब तक इन दलित परिवारों को कहीं और न बसाया जाए, तब तक उनकी सुरक्षा के लिए गांव में केंद्रीय पुलिस बल को तैनात किया जाए।
बीते रविवार 9 मई 2010 को दिल्ली से मानवाधिकार समर्थकों की एक टीम ने रविवार को हिसार जिले के मिरचपुर गांव का दौरा किया। इस गांव में पिछले महीने की 21 तारीख (21 अप्रैल 2010) को दबंग जातियों के हमलावरों ने दलितों की बस्ती पर हमला किया था और 18 घरों को आग लगा दी थी। इस दौरान बारहवीं में पढ़ रही विकलांग दलित लड़की सुमन और उसके साठ वर्षीय पिता ताराचंद की जलाकर हत्या कर दी गई। दलितों की संपत्ति को काफी नुकसान पहुंचाया गया और कई लोगों को चोटें आईं।
मिरचपुर का दौरा करने और अलग अलग पक्षों से बात करने के बाद इस जांच टीम ने पाया कि :
1. दलितों पर हमले और आगजनी की घटना के लगभग तीन हफ्ते बाद भी मिरचपुर गांव में जबर्दस्त तनाव है। इस गांव के कुछ दलित परिवार प्रशासन के दबाव की वजह से लौट आए हैं, लेकिन उन्होंने अपने परिवार की युवतियों और लड़कियों को गांव से बाहर रिश्तेदारों के पास रखने का रास्ता चुना है। उन्हें नहीं लगता कि दलित युवतियां और बच्चियां गांव में सुरक्षित रह सकती हैं।
2. मिरचपुर में दलित उत्पीड़न का लंबा इतिहास रहा है। इससे पहले भी यहां दलितों के साथ मारपीट की घटनाएं होती रही हैं और खासकर दलित महिलाओं को यौन उत्पीड़न झेलना पड़ा है। महिलाओं के साथ बलात्कार और उन्हें नंगा करके घुमाने जैसी घटनाओं की पृष्ठभूमि और ऐसी तमाम घटनाओं में पुलिस और प्रशासन की भूमिका की वजह से मिरचपुर के दलित अब गांव छोड़ना चाहते हैं।
3. मिरचपुर में 21 अप्रैल को हुई आगजनी और हिंसा की घटनाओं के ज्यादातर आरोपी अब भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं। दलितों का आरोप है कि इस घटना के मास्टरमाइंड अब भी खुलेआम घूम रहे हैं और लोगों को धमका रहे हैँ।
4. प्रशासन और पुलिस इस घटना को दबाने में जुटी है। इस घटना के बाद से ही हिसार के जिलाधिकारी कार्यालय में धरने पर बैठे दलितों को 8 मई को जबर्दस्ती वहां से हटा दिया गया और डरा-धमकाकर गांव लौटने को मजबूर किया गया, ताकि दुनिया को ये बताया जा सके कि मिरचपुर में सब कुछ सामान्य है। दलितों को बाध्य किया जा रहा है कि वे हमलावरों के साथ समझौता कर लें।
5. सर्व जाति सर्व खाप पंचायत की 9 मई को मिरचपुर में हुई सभा में ये कहा गया कि दलितों ने अब समझौता कर लिया है और वे “भाईचारे के साथ” गांव में रहने को तैयार हो गए हैं। मिरचपुर से दलितों ने जांच टीम को बताया कि पीड़ित परिवारों से कोई भी इस पंचायत में नहीं गया है और वे समझौते के लिए तैयार नहीं है। इस पंचायत को सर्वजाति पंचायत नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इसमें दलितों की हिस्सेदारी नहीं थी। मिरचपुर के दलितों का कहना है कि इस कांड के दोषियों को सजा मिलनी चाहिए। इस बात पर किसी तरह का समझौता नहीं हो सकता।
6. राहत के नाम पर मिरचपुर के दलितों को प्रति परिवार दो बोरी गेहूं दिए गए हैं। राहत की बाकी घोषणाएं अब तक कागज पर ही हैं।
7. मिरचपुर के दलित इस घटना के सिलसिले में मौजूदा राजनीतिक दलों की भूमिका से नाराज हैं। उनका गुस्सा खास तौर पर सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी के खिलाफ है। पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों की मौजूदगी में हुए इस हत्याकांड से उनका विश्वास हिल गया है।
8. कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी ने घटना के बाद मिरचपुर का दौरा किया था, लेकिन गांव के दलितों का कहना है कि राहुल गांधी के दौरे के बाद भी प्रशासन और पुलिस का रवैया पहले जैसा है और वे अब भी सहमे हुए हैं।
9. पूछने पर दलित बस्ती के लोगों ने बताया कि वे अपनी मर्जी से वोट भी नहीं डाल सकते हैं। अपनी मर्जी से वोट डालने की मांग करने पर उनके साथ मारपीट होती है और उनका वोट जबरन डाल दिया जाता है।
10. मिरचपुर के सार्वजनिक शिव मंदिर में दलितों का प्रवेश वर्जित है। गांव के दलित अपना मंदिर बनाना चाहते हैं। लेकिन उन्हें अपना मंदिर नहीं बनाने दिया जा रहा है। इस वजह से गांव में दलितों का मंदिर अधूरा बना हुआ है। मिरचपुर गांव के स्कूल में एक भी दलित शिक्षक नहीं है। सरकारी नियुक्तियों में आरक्षण के बावजूद ऐसा होना राज्य में दलितों के साथ हो रहे भेदभाव का एक और प्रमाण है।
इस जांच टीम में नेशनल फेडरेडशन ऑफ़ दलित वुमेन (एनएफ़डीडब्लयू) की उत्तर भारत संयोजिका एवं मानवाधिकार वकील सुश्री चंद्रा निगम, शोधकर्ता विनीत कुमार, सामाजिक कार्यकर्ता राकेश कुमार सिंह, और पत्रकार अरविंद शेष तथा दिलीप मंडल शामिल थे। इस रिपोर्ट को अनुसूचित जाति आयोग और मानवाधिकार आयोग को भी भेज दिया गया है।
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