(बाएं से)- देवमणि पाण्डेय, आर.के.पालीवाल, आबिद सुरती, दिनकर जोशी, साजिद रशीद, प्रतिमा जोशी, सुधा अरोड़ा
साहित्यिक पत्रिका ‘शब्दयोग’ के आबिद सुरती केंद्रित अंक (जून 2010 ) के लोकार्पण एवं आबिद सुरती के 75 वें जन्म दिन पर एक संगोष्ठी का आयोजन हिन्दुस्तानी प्रचार सभा के सभागार में 28 मई 2010 को आयोजित हुआ। इस अवसर पर आबिद सुरती का सम्मान करते हुए समाज सेवी संस्था ‘योगदान’ के सचिव आर.के.अग्रवाल ने आबिद सुरती की पानी बचाओ मुहिम के लिये दस हजार रुपये का चेक भेंट किया। सम्मान स्वरूप उन्हें शाल और श्रीफल के बजाय उनके व्यक्तित्व के अनुरूप कैपरीन (बरमूडा) और रंगीन टी शर्ट भेंट किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत में आर.के.पालीवाल की आबिद सुरती पर लिखी लम्बी कविता ‘आबिद और मैं’ का पाठ फिल्म अभिनेत्री एडीना वाडीवाला ने किया। सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार शरद जोशी की एक चर्चित रचना ‘मैं, आबिद और ब्लैक आउट’ का पाठ उनकी सुपुत्री एवं सुपरिचित अभिनेत्री नेहा शरद ने स्वर्गीय शरद जोशी के अंदाज़ मे प्रस्तुत किया। संचालक देवमणि पांडेय ने निदा फाजली की एक शेर के हवाले से आबिद जी का परिचय दिया- हर आदमी मे होते हैं दस बीस आदमी / जिसको भी देखना हो कई बार देखना।
समाज सेवी संस्था ‘योगदान’ की त्रैमासिक पत्रिका शब्दयोग के इस विषेशांक का परिचय कराते हुए इस अंक के संयोजक प्रतिष्ठित कथाकार आर. के. पालीवाल ने कहा कि आबिद सुरती एक ऐसे विरल कथाकार एवम् कलाकार हैं जिन्होनें अपनी क़लम से हिन्दी और गुजराती साहित्य को पिछले पांच दशकों से निरन्तर समृद्ध किया है। लेकिन दुर्भाग्य एवम् दुर्भावनावश इन दोनों भाषाओं मे उन्हें वैसी चर्चा नहीं मिली जिसके वे हक़दार हैं। इसके मूल में यह कारण भी हो सकता है कि आबिद सुरती बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। कथाकार और व्यंग्यकार होने के साथ ही उन्होंने कार्टून विधा में महारत हासिल की है, पेंटिंग मे नाम कमाया है, फिल्म लेखन किया है और ग़ज़ल विधा में भी हाथ आजमाये हैं। ‘धर्मयुग’ जैसी कालजयी पत्रिका में 30 साल तक लगातार ‘कार्टून कोना ढब्बूजी’पेश करके रिकार्ड बनाया है। इसीलिये इस अंक का संयोजन करने में भी काफी मशक्कत करनी पड़ी है क्योंकि आबिद सुरती को समग्रता मे प्रस्तुत करने के लिये उनके सभी पक्षों का समायोजन करना ज़रूरी था।
हिंदी साहित्यकार श्रीमती सुधा अरोड़ा ने आबिद सुरती से जुडे कुछ रोचक संस्मरण सुनाये। उन्होंने हंस मे छपी आबिद जी की चर्चित एवम विवादास्पद कहानी ‘कोरा कैनवास’ की आलोचना करते हुए कहा कि आबिद जैसी नेक शख़्सियत से ऐसी घटिया कहानी की उम्मीद नही थी। उर्दू साहित्यकार साजिद रशीद और मराठी साहित्यकार श्रीमती प्रतिमा जोशी ने भी आबिद जी की शख़्सियत पर प्रकाश डाला। वरिष्ठ गुजराती साहित्यकार दिनकर जोशी ने आबिद सुरती के साथ बिताये लम्बे साहित्य सहवास को याद करते हुए कहा कि आबिद पिछले कई सालों से अपने निराले अंदाज में लेखन मे सक्रिय हैं। यही उनके स्वास्थ्य एवम बच्चों जैसी चंचलता और सक्रियता का भी राज है।
श्रोताओं के प्रश्नों का उत्तर देते हुए आबिद सुरती ने कहा कि मेरे सामने हमेशा एक सवाल रहता है कि मुझे पढ़ने के बाद पाठक क्या हासिल करेंगे। इसलिए मैं संदेश और उपदेश नहीं देता। आजकल मैं केवल प्रकाशक के लिए किताब नहीं लिखता और महज बेचने के लिए चित्र नहीं बनाता। मेरी पेंटिंग और मेरा लेखन मेरे आत्मसंतोष के लिए है। भविष्य में जो लिखूंगा अपनी प्रतिबद्धता (कमिटमेंट) के साथ लिखूंगा।
इस आयोजन में आबिद सुरती के बहुत से पाठकों एवम प्रशंसकों के साथ मुंबई के साहित्य जगत से कथाकार ऊषा भटनागर, कथाकार कमलेश बख्शी, कथाकार सूरज प्रकाश , कवि ह्रदयेश मयंक, कवि रमेश यादव, कवि बसंत आर्य, हिंदी सेवी जितेंद्र जैन (जर्मनी), डॉ.रत्ना झा, ए. एम. अत्तार और चित्रकार जैन कमल मौजूद थे। प्रदीप पंडित (संपादक, शुक्रवार), डॉ. सुशील गुप्ता (संपादक:हिंदुस्तानी ज़बान), मनहर चौहान (संपादक, दमख़म), डॉ. राजम नटराजन पिल्लै (संपादक, क़ुतुबनुमा), दिव्या जैन (संपादक, अंतरंग संगिनी), मीनू जैन (सह संपादक, डिग्निटी डार्इजेस्ट) ने भी अपनी उपस्थिति से कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई ।
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पाठक का कहना है :
आबिद सुरती जी का सम्मान समारोह और उन पर केंद्रित विशेषांक का लोकार्पण - पढ़ कर बहुत अच्छा लगा.
आबिद जी ने अपने व्यंग्य चित्रों और गद्य से कितने लंबे समय तक पाठकों को आनंदित किया है.
उनके निर्भीक लेखन के विषय में केवल एक ही हवाला देना काफी होगा - काली किताब - जो मैंने ६०/७० के दशक में तब पढ़ी थी जब वह सारिका में धारावाहिक के रूप में प्रकाशित हो रही थी.कदाचित उस समय कमलेश्वर जी संपादक थे.
शायद आजकल के समय में जब समाज में Tolerance level बहुत कम हो गया है ऐसा लेखन (और प्रकाशन) संभव न हो सके.
आबिद सुरती जी के दीर्घ, निरोग जीवन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं.
अवध लाल
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