Sunday, July 25, 2010

हिंदी और उर्दू और नज़दीक आयीं


(बाएं से मोनिका मोहता, हरि भटनागर, ज़कीया ज़ुबैरी, आसिफ़ इब्राहिम, तेजन्द्र शर्मा)

२१ जुलाई २०१० । लंदन
“ये बहुत सुकून देने वाली बात है कि कथा यूके और एशियन कम्‍यूनिटी आर्ट्स मिल कर यहां यूके में हिंदी और उर्दू के बीच भाषाई पुल बनाने की पुरज़ोर कोशिश कर रहे हैं लेकिन हमें इस बात को भी देखना होगा कि हमारा आज का पाठक इन कहानियों की विषय-वस्‍तु कथानक और लोकेल से जुड़ सके और कहानियों से जुड़ाव महसूस कर सके।” उक्‍त विचार कथा यूके और एशियन कम्‍यूनिटी आर्ट्स द्वारा प्रकाशित ब्रिटेन की उर्दू क़लम का नेहरू सेटर, लंदन में 21 जुलाई 2010 की शाम लोकार्पण करते हुए हुए भारतीय उच्‍चायोग में मंत्री (समन्‍वय) श्री आसिफ़ इब्राहिम ने व्‍यक्‍त किये।

हिंदी के प्रसिद्ध कहानीकार तेजेन्द्र शर्मा एवं ज़कीया ज़ुबैरी द्वारा संपादित ब्रिटेन की उर्दू क़लम में ब्रिटेन में बसे 8 उर्दू कहानीकारों की 16 कहानियों का हिंदी अनुवाद प्रकाशित किया गया है। इस पुस्तक की लम्बी भूमिका कथाकार-पत्रकार एवं कथा यूके की उपाध्यक्षा अचला शर्मा ने लिखी है। इस मौक़े पर प्रोफ़ेसर अमीन मुग़ल ने अपनी बात कहते हुए कहा कि बेशक नेचर के हिसाब से हिंदी और उर्दू बहुत नज़दीकी भाषाएं हैं और दोनों भाषाओं के बीच आदान प्रदान की लम्‍बी परम्‍परा है, कथा यूके और एशियन कम्‍यूनिटी आर्ट्स की इस बात के लिए तारीफ़ की जानी चाहिये कि वे अपने सीमित साधनों से इतने महत्‍वपूर्ण काम को अंजाम दे रहे हैं।
इस अवसर पर भारत से विशेष रूप से पधारे कहानीकार-संपादक-प्रकाशक हरि भटनागर ने अपने लम्बे लिखित लेख द्वारा श्रोताओं का परिचय कहानियों से करवाया। उनके अनुसार संकलन की कहानियां ग़म की कथा को रो पीट कर, चिल्ला चोट कर के नहीं बल्कि बहुत ही ख़ामोश ढंग से व्यक्त करती हैं। कि कथा का कलात्मक वैभव कहीं भी क्षतिग्रस्त नहीं होता और सबसे बड़ी बात यह कि उस निज़ाम का चेहरा बेनक़ाब होता है जो भेदभाव की राजनीति कर के लोगों में फूट डालता है और उन्हें कहीं का नहीं छोड़ता।
कथा यूके के महासचिव, कथाकार ओर किताब के संपादक द्वय में से एक तेजेन्‍द्र शर्मा का कहना था कि हमें पहले समस्या को स्वीकार करना होगा। अब समय आ गया है कि हम मान लें कि हिन्दी और उर्दू दो भाषाएं हैं और हमें उनके बीच की दूरी को पाटना है। उन्होंने इस किताब और इस तरह की दूसरी किताबें प्रकाशित किये जाने की ज़रूरत की बात कही और बताया कि उनकी कोशिश रहेगी कि कहानी के अलावा, कविता, ग़ज़ल और इतर साहित्‍य का भी दोनों भाषाओं में अनुवाद कराते रहें।
नेहरू सेंटर की निदेशक मोनिका मोहता ने इस अवसर पर नेहरू सेंटर और कथा यूके के लम्‍बे समय चले आ रहे सार्थक रिश्‍तों की बात कही और उम्‍मीद की कि ये सिलसिला आगे भी चलता रहेग।
भारत से पधारे पत्रकार अजित राय ने कहा कि इस पुस्तक का प्रकाशित होना एक ऐतिहासिक घटना है क्योंकि पहली बार ब्रिटेन के आठ उर्दू लेखकों की कहानियां हिन्दी में एक साथ छपी हैं। हिन्दी और उर्दू एक भाषा नहीं हैं। हम आज़ादी के बाद से ही इनके एक होने का भ्रम पाले रहे और दूरियां बढ़ती गईं।
एशियन कम्‍यूनिटी आर्ट्स की अध्‍यक्ष ज़कीया जुबैरी ने उपस्थित लोगों के प्रति आभार मानते हुए कहा मेरा सपना है कि हिन्दी और उर्दू की गंगा जमुनी तहज़ीब, शब्दों की मिठास, अपनापन, ख़ुलूस सब हमारे साहित्य और ज़िन्दगी का हिस्सा बन जाएं। हमारे रिश्ते राजनीति से संचालित न हों। हमारे रिश्ते साहित्य, कला और एक दूसरे पर विश्वास से पैदा हों। यह न तो पहला प्रयास है और न ही आख़री । हम इस मुहिम को जारी रखेंगे। हिन्दी उर्दू कहानियों की निशस्तें रखी जाएंगी, और अगला संकलन शायद उन कहानियों का हो जो कि उन नशिस्तों में पढ़ी जाएं।
इसी अवसर पर कथाकार सूरज प्रकाश (भारतीय प्रतिनिधि कथा यूके) की नवीनतम कृति दाढ़ी में तिनका का अनूठा विमोचन भी हुआ जब एक युवा पाठिका हेमा कंसारा ने मंच पर आकर उनकी कृति का लोकार्पण किया। सूरज प्रकाश ने अपने लम्बे लेखकीय सन्नाटे के बारे में बात करते हुए लेखक की न लिख पाने की छटपटाहट का विस्तार से ज़िक्र किया। सूरज प्रकाश पिछले बारह वर्षों से कथा यूके से जुड़े हैं।
कार्यक्रम में अन्य लोगों के अतिरिक्त उर्दू कहानीकार जितेन्द्र बिल्लु, सफ़िया सिद्दीक़ि, मोहसिना जीलानी, बानो अरशद एवं फ़हीम अख़्तर, फ़िल्मकार यावर अब्बास, भूतपूर्व बीबीसी हिन्दी अध्यक्ष कैलाश बुधवार, हिन्दी कथाकार दिव्या माथुर, उषा राजे सक्सेना, कादम्बरी मेहरा एवं महेन्द्र दवेसर, कवि निखिल कौशिक, शिक्षाविद वेद मोहला, नाटककार इस्माइल चुनारा, अयूब औलिया, हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी आनंद कुमार, भारत से आए फ़िल्म आलोचक विनोद भारद्वाज, लदंन और आसपास के शहरों के हिंदी और उर्दू के रचनाकार बड़ी संख्‍या में मौजूद थे।

- कथा यूके प्रतिनिधि

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2 पाठकों का कहना है :

Dr. Prem Janmejai का कहना है कि -

Hindi aur Urdu to bhashayen hain paas aa jati hain par Hindi ke lekh kyonki vishisht manushya hain is liye anek dharaon aur gadhoN men bate huye hain
Itne badiya karyakram ki badhaee. Tej ke karykram to sadabhaar badiya hain

Rajkumar Singh का कहना है कि -

हिन्दी और उर्दू दरअसल एक ही भाषा है और इस का जन्म अमीर खुसरो का समकालीन है .जिसे वे हिन्दवी कहते थे .गांधी जी ने जिसे हिन्दुस्तानी कहा .वह अरबी लिपि और नागरी में लिखी जाती थी अब भी . बाद में उर्दू और हिन्दी जिसे खडी बोली कहा जाने लगा नामकरण विभिन्नता मात्र हैं .हाँ ' उर्दू ' नामकरण संभवतः उसके अर्थ में छुपा है यानी फ़ौजी कैम्प की भाषा जहाँ फौज में अरबी फ़ारसी और भारत की हिन्दवी को उर्दू कहा जाने लगा . और हिन्दी उर्दू का झगडा मुख्यतः अंग्रेजों की बाँटो और राज करो के लिए किया जाने लगा तथा हिन्दी के नाम पर ज्यादा संस्कृत के तत्सम रूप घुसेड अलग भाषा और उर्दू के नाम पर अरबी फ़ारसी ज्यादा घुसेड उर्दू के रूप में . एक सम्भावना अंगरेजी ही की तरह तमाम भाषाओँ में उपयोगी प्रचलित शब्दों को शामिल कर उसे और विस्तार और जनुप्योगी बनाया जा सकता था पर लिपियाँ अलग अलग कर हिन्दी उर्दू कर दिया गया .और फिर इस भाषा को ही सांप्रदायिक मौकापरस्त राजनीतिज्ञों ने दो भाषाएँ बना भारत को विभाजन की दहलीज तक पटक दिया .यही बात गुलज़ार जी ने न्यू योर्क विश्व हिन्दी सम्मलेन में भी कही चुटकी ले कर की बाएं से दायें लिखो तो हिन्दी और दायें से बाएं लिखो तो उर्दू . बस इतना ही फर्क है

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