Saturday, October 23, 2010

उस्मानाबाद में 'हिन्दी साहित्य में महाराष्ट्र के साहित्यकारों का योगदान' विषयक दोदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न



कला, विज्ञान एवं वाणिज्‍य महाविद्यालय नलदुर्ग में द्विदिवसीय राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी सम्‍पन्‍न हुई। जिसमें 210 अध्‍यापक और 65 छात्र सहभागी हुए तथा चार ग्रंथों का विमोचन किया गया। संगोष्‍ठी का उद्‌घाटन डॉ. चंद्रदेवजी कवडे अध्‍यक्ष, हिंदी प्रचार सभा हैदराबाद ने किया जिसमें उन्‍होंने अनुवाद विधा पर बल देते हुए कहा कि भविष्‍य में अनुवाद विधा को बहुत महत्‍व प्राप्‍त होने वाला है। इसलिए आज मराठी से हिंदी तथा हिंदी से मराठी के साहित्‍यानुवादक की आवश्‍यकता है। बीज वक्‍तव्‍य प्रसिद्ध आलोचक डॉ. सूर्यनारायणजी रणसूभे ने दिया। जिसमें उन्‍होंने आदिकाल से आधुनिक काल तक के महाराष्‍ट्र के हिंदी साहित्‍यकारों के योगदान को स्‍पष्‍ट करते हुए मराठी पर हिंदी का और हिंदी पर मराठी के पडे प्रभाव को उदाहरणों द्वारा स्‍पष्‍ट किया। दक्‍खिनी हिंदी की जन्‍म भूमि महाराष्‍ट्र रही है तथा दक्‍खिनी का हिंदी के विकास में बहुत बडा योगदान रहा है।
संगोष्‍ठी में 106 आलेख आये थे इस कारण संगोष्‍ठी को चार भागों में विभाजित किया गया था। 1) भक्‍तिकालीन महाराष्‍ट्र का संत साहित्‍य जिसकी अध्‍यक्षता डॉ. इरेश स्‍वामी ( पूर्व प्रथम उपकुलपति सोलापूर विश्‍वविद्यालय सोलापूर ) तथा विषय प्रवर्तन डॉ. आलिया पठाणने किया। इस सत्र में लगभग 14 आलेख पढ़े गये।
द्वितीय गोष्‍ठी का विषय था 2) रीतिकालीन हिंदी साहित्‍य और महाराष्‍ट्र जिसकी अध्‍यक्षता डॉ इरेश स्‍वामी तथा विषय प्रवर्तन डॉ. श्‍याम आगळे ने किया इस सत्र में लगभग 12 आलेख पढ़े गये।
तीसरी गोष्‍ठी का विषय था 3) प्रयोजन मूलक हिंदी और महाराष्‍ट्र जिसकी अध्‍यक्षता डॉ. प्रो. डॉ. अंबादास देशमुख, बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाडा विश्‍वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर एवं अध्‍यक्ष ने किया तथा विषय प्रवर्तक डॉ. सुरेश माहेश्‍वरी (अमलनेर) थे। जिसमें 14 आलेख पढ़े गये।



चौथी गोष्‍ठी का विषय था 4) आधुनिक हिंदी साहित्‍य और महाराष्‍ट्र जिसकी अध्‍यक्षता डॉ. देविदास इंगळे ने की। इस गोष्‍ठी में 16 आलेख पढे गये। साथ ही विशेष टिप्‍पणी प्रसिद्ध व्‍यंग्‍य कवि डॉ. काझी जर्रा ने दी। राष्‍ट्रीय संगोष्‍ठी में सभी आलेख वाचकों को आकर्षक स्‍मृति चिन्‍ह एवं प्रशस्‍ती पत्र दिया गया ।
संगोष्‍ठी के समापन में विशेष अतिथि के रूप में प्रसिद्ध अनुवादक प्राचार्य डॉ. वेदकुमार वेदालंकार (तुकाराम अभंगगाथा) जी थे जिन्‍होंने अपने वक्‍तव्‍य में महाराष्‍ट्र के संतों की महत्‍ता को व्‍यक्‍त किया। साथ ही संत वाणी की प्रासंगिकता तथा उनके द्वारा लिखे गये अभंगों (पदों) को हिंदी में अनुवादित करने की आवश्‍यकता पर बल दिया। उद्‌घाटन समारोह के अध्‍यक्ष मा. शिवाजीराव पाटील बाभळगावकरजी थे जिन्‍होंने अपने अध्‍यक्षीय वक्‍तव्‍य में कहा मनुष्‍य को मनुष्‍य बनाने कार्य तत्‍कालीन समय में संतों ने किया और आज के युग मेंयह दायित्‍व अध्‍यापकों का है। आज यहाँ पर बड़ी संख्‍या में अध्‍यापक इकट्ठा हुए हैं उन्‍होंने इस बात को आवश्‍य समझ लेना चाहिए। समापन समारोह के अध्‍यक्ष मा. नरेद्रजी बोरगावकर थे जिन्‍होंने नागरी लिपि में विनोबा भावे, लोकमान्‍य तिलक, महात्‍मा गांधी, राज गोपाल चारी आदि के योगदान को भक्‍त करते हुए अपने स्‍वानुभव को (दक्षिण भारत) व्‍यक्‍त किया। समापन में विशेष वक्‍तव्‍य मा. आलूरे गुरूजी ने दिया। जो एक अध्‍यापक थे बाद में महाराष्‍ट्र के विधायक बने फिर उसी स्‍कूल में अध्‍यापक पद पर विराजमान हुए, आज एक शिक्षा संस्‍था के अध्‍यक्ष है। जिसमें उन्‍होंने अध्‍यापक के जीवन पर पड़ने वाले उत्‍तर दायित्‍व को व्‍यक्‍त किया।



स्‍वागताध्‍यक्ष डॉ. सूहासजी पेशवे थे जिन्‍होंने मान्‍यवरों का स्‍वागत करते हुए महाविद्यालय के 35 वर्ष के इतिहास को बताया साथ ही महाविद्यालय के हिंदी विभाग की गतिविधियाँ भी बतायी। पिछली बार हुई नागरी लिपि संगोष्‍ठी को वर्णन करना भी नहीं भूले।
संगोष्‍ठी संयोजक डॉ. हाशमबेग मिर्झा ने संगोष्‍ठी का प्रास्‍ताविक एवं आनेवाले प्रतिभागियों का आभार व्‍यक्‍त किया साथ ही श्रेष्‍ठ शोधालेखों को पुस्‍तक के रूप में प्रकाशीत करने का वचन भी दिया। इन्‍हें हिंदी विभागाध्‍यक्ष ने पूरा-पूरा सहयोग दिया मान्‍यवरों का स्‍वागत से लेकर मंच संचलन की जिम्‍मेदारी डॉ. सुभाष राठोड ने पूरी की। इस संगोष्‍ठी को सफल बनाने में उपप्रधानाचार्य नरसिंह माकने ,सहसंयोजक डॉ. पंडित गायकवाड, डॉ. अशोक मर्डे, डॉ. मल्‍लीनाथ बिराजदार, डॉ. विनय चौधरी प्रा.कु. सुमन सरडे आदि ने सहयोग दिया। महाविद्यालय के सभी वरिष्‍ठ कनिष्‍ठ अध्‍यापक एवं शिक्षकेत्तर कर्म चारियों ने अलग-अलग समितियों कें माध्‍यम से संगोष्‍ठी को सफल करने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई है।

प्रस्‍तुति- डॉ. हाशमबेग मिर्झा

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पाठक का कहना है :

निर्मला कपिला का कहना है कि -

अयोजन की भव्यता चित्रों मे झलक रही है। धन्यवाद इस जानकारी के लिये।बधाई।

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