Tuesday, October 26, 2010

इस्‍लाम को इल्‍म का विरोधी मानने वाले कुरान की ग़लत व्‍याख्‍या कर रहे हैं - मो. सलीम

"मुस्‍लिम समाज और शिक्षा" पर एक दिवसीय राष्‍ट्रीय संवाद

दुनिया का कोई भी धर्मग्रन्‍थ मनुष्‍य को मनुष्‍य के खिलाफ खड़ा नहीं करता- वेद व्‍यास



महावीर समता संदेश, समान बचपन अभियान, अदबी संगम और बोहरा यूथ के संयुक्‍त तत्‍वावधान में विगत 24 अक्‍टूबर को उदयपुर के बोहरा यूथ वेलफेयर सेन्‍टर के सभागार में राष्‍ट्रीय संवाद आयोजित किया गया। ‘मुस्‍लिम समाज और शिक्षा' विषयक इस संवाद की अध्‍यक्षता करते हुए प्रख्‍यात शिक्षाविद्‌ और जवाहरलाल नेहरू विश्‍वविद्यालय के पूर्व कुलपति अगवानी जी ने कहा कि मुस्‍लिम समाज के पिछड़ेपन की उम्र भी हालांकि उतनी ही है जितनी कि इस देश की आजादी की, परन्‍तु 1982 में दुबारा सत्ता में लौटने के बाद जब इन्‍दिरा गांधी ने मुसलमानों के पिछड़ेपन की पड़ताल शुरू की तब पहली बार पता चल सका कि वास्‍तव में इस समुदाय की हालत कितनी दयनीय है। 2005 में सच्‍चर समिति की रिपोर्ट आने के बाद तो अब इस बात पर शक की कोई गुंजाइश ही नहीं बची है कि देश में सबसे पिछड़ी हुई अगर कोई कौम है तो वह मुस्‍लिम कौम ही है। शिक्षा से लेकर अन्‍य सभी संसाधनों तक उनकी पहुंच आज तक नहीं बन पाई है। ऐसे में नागरिक समाज का यह प्राथमिक दायित्‍व है कि वह इस दिशा में ध्‍यान दे और मुस्‍लिम समाज को आगे लाने की मुहिम छेड़े।

श्री अगवानी ने आगे कहा कि मुसलमानों के बच्‍चे आज भी स्‍कूल नहीं जाते। जो लोग आर्थिक तौर पर सम्‍पन्‍न भी हैं, उनमें भी शिक्षा के प्रति एक उदासीनता व्‍याप्‍त है। इसलिए शिक्षा में उनकी नगण्‍य भागीदारी का दोष हम केवल उनके आर्थिक पिछड़ेपन को ही नहीं दे सकते। इसके पीछे कोई और ही बात काम कर रही है।
इससे पहले संवाद की शुरूआत में विषय पर चर्चा प्रारम्‍भ करने के क्रम में महावीर समता संदेश के प्रधान सम्‍पादक हिम्‍मत सेठ ने कहा कि समाज में गैरबराबरी और शोषण को समाप्‍त करने में शिक्षा की सबसे अहम भूमिका हुआ करती है और यह बात अब लगभग स्‍थापित हो चुकी है। उन्‍होंने कहा कि यूं तो समाज के पिछड़े, दलित और आदिवासी तबकों को शिक्षा के जरिये, समाज की मुख्‍यधारा में शामिल करने के मकसद से सरकारें विगत कई दशकों से प्रयासरत हैं, किन्‍तु शिक्षा के निजीकरण, बाजारीकरण और प्रभुत्‍वशाली वर्गों के उस पर बढ़ते वर्चस्‍व के कारण सरकार के सभी प्रयास निष्‍फल साबित हुए हैं। सबसे अधिक भेदभाव का शिकार तो देश का वह मुस्‍लिम समाज है जो आबादी में लगभग 14 करोड़ की भागीदारी रखता है। इतनी बड़ी आबादी का अधिकांश आज भी शिक्षा की रोशनी से महरूम है और इसका सबसे दहशतनाक खमियाजा भी भुगत रहा है। न्‍यायमूर्ति सच्‍चर की अध्‍यक्षता वाली समिति ने जो रिपोर्ट प्रस्‍तुत की है उससे यह भयावह तथ्‍य देश के सामने उजागर हुआ है। देश की नौकरशाही और प्रशासन में व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार तथा सरकार की इच्‍छाशक्‍ति में कमी की वजह से आज तक मुसलमानों को उन नीतियों अथवा योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाया है जो अल्‍पसंख्‍यकों की बेहतरी के नाम पर घोषित की गई हैं और इस स्‍थिति में कोई भी बदलाव तभी आ सकता है जब नागरिकों की तरफ से एक जोरदार हस्‍तक्षेप की शुरूआत की जाये।

जमायते इस्‍लामी के प्रान्‍तीय अध्‍यक्ष एवं प्रख्‍यात इस्‍लामिक विद्वान मो. सलीम ने संवाद में मुख्‍य वक्‍ता की हैसियत से बोलते हुए कहा कि मैं उन भ्रांतियों के बारे में बात करना चाहता हूं जो मुस्‍लिम समाज के अंदर तो व्‍याप्‍त हैं ही, कुछ दूसरी कौम के लोगों के मन में भी घर कर गई हैं। खासकर इस्‍लाम और इसके मानने वालों के बारे में। जैसे एक भ्रांति यह कि मुसलमान इसलिए पिछड़ा है क्‍योंकि इस्‍लाम उसे पिछड़ा बनाए रखता है। मैं बताना चाहता हूँ कि कुरान शरीफ में इल्‍म या ज्ञान को अहम बताने से संबंधित पांच आयतें हैं। वहां साफ कहा गया है कि वह मुसलमान जो इल्‍म हासिल न करे, वह अल्‍लाह की नजर में गुनाहगार है। हज़रत मुहम्‍मद साहब के बारे में एक प्रसंग आता है कि एक बार उन्‍होंने देखा कि एक गु्रप इबादत कर रहा है और उसी दौरान एक दूसरा ग्रुप तालीम हासिल कर रहा है। उन्‍होंने तालीम हासिल करने वाले गु्रप को ही ज्‍यादा अहमियत दी और उसी के साथ शामिल हुए। क्‍या इससे बढ़कर और भी किसी सबूत की जरूरत हो सकती है? इस्‍लाम में इल्‍म और तालीम को काफी अहमियत दी गई है। जो लोग इस बात को नहीं मानते, वे इस्‍लाम की गलत व्‍याख्‍या पेश कर रहे हैं। कुरान में तो यहां तक कहा गया है कि आंख बंद कर तुम किसी भी बात को न मानो। तर्क करो और सच्‍चाई की तह तक पहुंचने की कोशिश करो। इस्‍लाम कभी भी वैज्ञानिक विकास, प्रौद्योगिकी का विरोधी नहीं रहा है, बल्‍कि आठ सौ वर्षों तक इस्‍लाम के मानने वालों ने ही विज्ञान को नई-नई खोजों से समृद्ध किया है। तो फिर आज आखिर मुसलमानों के साथ ऐसा क्‍या हो गया है? क्‍यों उनके जीवन स्‍तर में लगातार गिरावट आती जा रही है? दरअसल देश के मुसलमानों में इस हीन भावना ने घर कर लिया है कि इस देश की तकसीम के लिये वे ही जिम्‍मेदार हैं। आज भी वे इसी असमंजस का शिकार हैं और आजादी के बाद आज तक तीस हजार से अधिक दंगे जो इस देश में हुए हैं, उनके पीछे इस हीनता बोध का भी बहुत बड़ा हाथ है। पूरी कौम एक भय के साये में जी रही है। इस भय से उन्‍हें मुक्‍त होना होगा। यह इस वक्‍त की एक बड़ी जरूरत है कि उनके अन्‍दर कानून के प्रति एक विश्‍वास पैदा किया जाये। तभी ये हालात बदलेंगे। मुसलमानों के पिछड़ेपन की सबसे बड़ी वजह उनका आर्थिक तौर पर पिछड़ा होना है। जहाँ भी मुसलमानों ने श्‍ौक्षणिक या आर्थिक तौर पर विकास करने की कोशिश की है, वहीं वहीं आज तक सबसे ज्‍यादा दंगे हुए हैं। भागलपुर, अलीगढ़ या सूरत के दंगे इस बात की तस्‍दीक करते हैं। आज भी हमारा देश, हमारी सरकारें सच्‍चे मायनों में सेकुलर नहीं हैं, लोकतांत्रिक नहीं हुई हैं। धार्मिक आधार पर देश में आज भी भेदभाव किये जा रहे हैं। मैं पूछता हूं एक दिन पहले तक जो व्‍यक्‍ति एस.सी./एस.टी. होता है, वह इस्‍लाम कबूल करते ही दूसरे दिन से एस.सी./एस.टी. क्‍यों नहीं रहता? यह भेदभाव नहीं तो और क्‍या है? रंगनाथ आयोग ने भी इस बात को माना है।



मो. सलीम ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि असल में हमारी हुकूमत आज जवाबदेह नहीं रह गई है। वह बजट का इस्‍तेमाल नहीं करती। जो पैसा अल्‍पसंख्‍यकों के कल्‍याण का है, सरकारें उसे खर्च नहीं करतीं। नीतियों को जब तक पूरी जवाबदेही और पारदर्शिता के साथ लागू नहीं किया जाता, तब तक ये हालात नहीं बदलेंगे। यह काम केवल ब्‍यूरेाक्रेसी या सरकार के भरोसे नहीं होगा, नागरिक समाज को भी इसके लिए लड़ाई लड़नी होगी। जब तक इस देश में बसने वाले सभी लोगों का समान विकास नहीं होगा, देश के विकास में सबकी समान भागीदारी नहीं होगी, तब तक देश का विकास भी नहीं होगा। आज तक हम लकीर ही पीटते आए हैं, हमने इलाज की ईमानदार कोशिश ही नहीं की है। मैं मुसलमान भाइयों से भी अपील करता हूँ कि हमें सरकार के सामने भीख मांगने की मुद्रा में खड़ा नहीं होना है। हमें हिम्‍मत और हौसले के साथ आगे बढ़कर अपना हक लेना होगा। हमें जागरूक होकर सवाल उठाने होंगे। हालात मुश्‍किल हैं पर हम अपनी कोशिशों से इसमें तब्‍दीली ला सकते हैं। इस्‍लाम औरतों के तालीम हासिल करने की राह में कभी बाधा नहीं खड़ी करता। वह इसमें मददगार ही है। वह शालीन लिबास की वकालत जरूर करता है, पर ध्‍यान से देखें तो इसके पीछे भी औरतों की सुरक्षा की चिन्‍ता ही दिखाई देगी। मुस्‍लिम लड़कियां आज जिन्‍दगी के हर मोर्चे पर आगे बढ़ रही हैं, वे डॉक्‍टर, इंजीनियर और वकील बन रही हैं। इस कोशिश को और तेज करने की जरूरत है।
संवाद के दूसरे प्रमुख वक्‍ता, वरिष्‍ठ पत्रकार और प्रगतिशील लेखक संघ राजस्‍थान के अध्‍यक्ष श्री वेद व्‍यास ने विषय पर अपने विचार रखते हुए कहा कि मुसलमानों की आज देश में जो हालत है, उसके लिए केवल इतिहास, मजहब या सियासत ही जिम्‍मेदार नहीं है। इसके लिए सबसे अधिक जिम्‍मेदार हम स्‍वयं हैं। हमारी हताशा हमारी सबसे बड़ी दुश्‍मन है।
उन्‍होंने कहा कि कोई भी धर्मग्रन्‍थ मनुष्‍य को मनुष्‍य के खिलाफ खड़ा नहीं करता, फिर वे लोग कौन हैं जो धर्म के नाम पर देश को बांटने का खेल खेल रहे हैंं? धर्म के नाम पर स्‍वार्थी सियासत की रोटियां सेक रहे हैं? आज हमें उन्‍हें पहचानने की जरूरत है। वे ही हमारे सबसे बड़े दुश्‍मन हैं। देश की पन्‍द्रह करोड़ मुस्‍लिम आबादी आज नेतृत्‍वविहीन है। संसद में उनका एक ऐसा नुमाइंदा नहीं है, जो उनके वाजिब सवाल उठा सके। तो हम कैसे खुद के प्रति न्‍याय कर रहे हैं? कैसे हम साम्‍प्रदायिक दंगे रोक पाएंगे? अगर सियासत ईमानदार होती, सियासतदां ईमानदार होते तो देश में इतने कत्‍लेआम नहीं होते, इतनी गरीबी मुफलिसी नहीं होती, इतना पिछड़ापन नहीं होता। यह सब एक सोची समझी साजिश के तहत हुआ है कि देश के मुसलमानों को पिछड़ा रखा जा रहा है। एक पूरी कौम को अपराधी बताने की साजिश चल रही है। जो लोग हिन्‍दुत्‍व का परचम लहरा रहे हैं, वे हिन्‍दुओं के भी सबसे बड़े दुश्‍मन हैं। वे लोगों की धार्मिक भावनाओं का दोहन कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेक रहे हैं। धर्म के नाम पर आज पूरी दुनिया में लड़ाइयां चल रही हैं। यह सब कुछ इसलिए हो रहा है ताकि जो शोषित पीड़ित वर्ग है, सर्वहारा वर्ग है, उसके संघर्ष को कमजोर किया जाये या उसे विभाजित कर दिया जाये।
अंग्रेजों ने इस देश में पहले पहल फूट का बीज बोया। इसी के कारण इस देश का विभाजन हुआ और महात्‍मा गांधी की हत्‍या हुई। इन दोनों घटनाओं ने देश के भविष्‍य पर बहुत बड़ा प्रभाव डाला है। आजाद भारत के इतिहास में मुसलमानों को डराने-धमकाने, उन्‍हें पिछड़ा बनाए रखने की सुनियोजित कोशिशें हुई हैं। उन्‍हें विकास से जान बूझ कर दूर रखा गया है और हाशिये पर धकेल दिया गया है। आज किसी भी मुश्‍किल का सामना करने के लिए वे एकजुट नहीं है। सियासत इसका पूरा फायदा उठा रही है। मुसलमानों का विकास करने की आज कोई राजनीतिक बाध्‍यता नहीं रही है। सरकार पर इनका विकास करने के लिए कोई दबाव नहीं है। गैरसरकारी संगठन भी मुस्‍लिम-बहुल क्षेत्रों में काम नहीं करते। वे केवल आदिवासियों, पिछड़ोें के बीच काम कर रहे हैं। अगर आज हम चुप हैं तो यह हमारा सबसे बड़ा अपराध है। हमें सवाल उठाना होगा कि मुसलमान पिछड़े क्‍यों हैं? मदरसों में जो शिक्षा दी जा रही है, उसमें आधुनिक ज्ञान-विज्ञान का समावेश क्‍यों नहीं है?
श्री वेदव्‍यास ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि आदिवासी समुदाय आज इतनी भयावह परिस्‍थितियों का सामना करते हुए भी अपने हकों की लड़ाई लड़ रहा है। हम क्‍यों नहीं लड़ते? देश की आजादी के लिए लड़ने वालों में जब मुसलमान किसी से भी पीछे नहीं रहे तो आज वे अपने पिछड़ेपन के खिलाफ लड़ने में पीछे क्‍यों हैं? हमें इन सवालों की तह में जाना होगा और जवाब ढूंढने ही होंगे- अगर इस चक्रव्‍यूह से बाहर निकलना है तो। हमें समझना होगा कि आज अफगानिस्‍तान, ईरान, इराक और फिलिस्‍तीन में क्‍या हो रहा है या कि कौन-सी शक्‍तियां है जो पाकिस्‍तान को कठपुतली की तरह नचा रही हैं। वे कौन लोग हैं जो पूरी दुनिया में मुसलमानों को बदनाम कर रहे हैं? इसे समझे बिना हम कोई भी लड़ाई कैसे लड़ पाएंगे?
संवाद में शिरकत कर रहे एक और प्रखर वक्‍ता तथा पत्रकार डॉ. हेमेन्‍द्र चण्‍डालिया ने भी इस बात की तरफ ध्‍यान आकृष्‍ट किया कि मुस्‍लिम समुदाय वंचितों में भी वंचित की श्रेणी में आता है। उनके सामने रोजी रोटी के, शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य या रोजगार के अवसर नहीं के बराबर हैं और सरकार की विकास योजनाओं का भी कोई फायदा उन तक पहुंच नहीं पाया है। डॉ. चण्‍डालिया ने कहा कि सरकार की शिक्षा का जो स्‍वरूप है, पाठ्‌यक्रम से लेकर शिक्षण प्रणाली और संसाधनों की उपलब्‍धता तक, वंचित समुदायों के प्रति गम्‍भीर भेदभाव पर आधारित है। नीतियों के स्‍तर पर आज भी हाशिये के लोगों के प्रति एक नकारात्‍मक सोच काम कर रही है। मीडिया की भूमिका भी आज के समय में अत्‍यंत निन्‍दनीय हो गई है और वहां से जनता के सरोकार ही गायब हो चुके हैं। बदलते वक्‍त में मीडिया को शिक्षित करना भी हमारा एक प्राथमिक दायित्‍व बन गया है। लोहिया ने आज से बहुत पहले कह दिया था कि देश के पिछड़े तबकों में मुसलमानों की हालत सबसे नाजुक है और उन पर अलग से ध्‍यान दिये जाने की जरूरत है। हमें आज गम्‍भीरता से इन सवालों पर सोचना ओर आगे बढ़ना चाहिये।
इससे पहले संवाद की शुरूआत में दिल्‍ली के प्रसिद्ध रंगकर्मी, लेखक एवं पत्रकार राजेश चन्‍द्र ने शिव कुमार गुप्‍त का लिखा हुआ गीत - ‘‘गर हो सके तो अब कोई शम्‍मा जलाइये, इस अहले सियासत का अंधेरा मिटाइये'' तथा अंत में भुवनेश्‍वर का गीत ''आ गए यहां जवा कदम'' की प्रस्‍तुति की। जयपुर, उदयपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ, से आए हुए सामाजिक कार्यकर्ताओं, स्‍थानीय महिलाओं, विद्यार्थियों, पत्रकारों, लेखकों एवं बुद्धिजीवियों से खचाखच भरे हॉल में जिन अन्‍य शिक्षकों/प्रमुख वक्‍ताओं ने इस संवाद के दरम्‍यान अपने विचार रखे उनमें विशेष एस.आई.आर.टी. के पूर्व निदेशक डा. एस.सी. पुरोहित, अल्‍पसंख्‍यक मंत्रालय के द्वारा मनोनीत पर्यवेक्षक डॉ. बी.एल. पालीवाल, डॉ. एस.बी.लाल, जिला परिषद की सदस्‍या एवं लेखिका विमला भण्‍डारी, दाउदी बोहरा जमात के अध्‍यक्ष आबिद अदीब, खेरवाड़ा मुस्‍लिम समाज के सदर एवं अरावली वोलन्‍टीयर्स के संस्‍थापक सिकन्‍दर यूसूफ ज़ई, सराड़ा से पधारे पूर्व प्रधानाध्‍यापक अहमद शेख, पूर्व पार्षद अब्‍दुल अजीज खान, एडवोकेट जाकिर हुसैन, परतापुर बांसवाड़ा के पवन पीयूष, पूर्व प्रधानाध्‍यापक एवं शायर मुस्‍ताक चंचल, मीरा कन्‍या महाविद्यालय की व्‍याख्‍याता एवं अदबी संगम की अध्‍यक्ष डॉ. सरवत खान आदि के नाम विश्‍ोष रूप से उल्‍लेखनीय हैं। इस संवाद कार्यक्रम का संचालन प्रो. जैनब बानु ने किया तथा धन्‍यवाद ज्ञापन समान बचपन अभियान के कपिल जोशी ने किया।

प्रस्‍तुति- राजेश चन्‍द्र

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पाठक का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

islaam ak aasha majhab hai ke us jasha majhab koai nahi

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