
हर-हर महादेव की ध्वनि के साथ आरम्भ और समाप्त होने वाले इस समारोह की अलौकिकता अनुपम रही। कार्यक्रम की शुरूआत सारस्वत मंडल नें राग मारवा में "झाँझर मोरा झनकायी" (विलम्बित एक ताल) तथा "माई री साँझ भये" (द्रुत एक ताल) बंदिश्ों सुनाकर की। इन बंदिशों नें वातावरण में अलख जगाने जैसा माहौल स्थापित कर दिया। इसके बाद सारस्वत मंडल जी नें एक टप्पा सुनाया। इस टप्पे में गायन की ऐसी कुशलता थी कि श्रोतागण झूमने पर मजबूर हो गये।
पंडित मुकुल शिवपुत्र जी ने राग बसंत मध्य तीन ताल में "सपनें में मिलते तोरे पिया" तथा द्रुत में तराना सुनाया। सारे श्रोता पंडित मुकुल शिवपुत्र जी को श्रद्धा तथा आश्चर्य के मिश्रित भाव से अभिभूत होकर स्तब्धता के साथ सुन रहे थ्ो। इसके उपरान्त पंडित मुकुल शिवपुत्र जी ने अपने पिता (पंडित कुमार गन्धर्व)जी द्वारा रचित ठुमरी "बाली उमर लरिकइयाँ" सुनाई। कुशलदास जी ने राग बागेश्री, मिश्र खमाज तथा भ्ौरवी में मनोहारी सितार वादन किया। क्ष्ोत्र के आमंत्रित तमाम बुद्धिजीवी तथा सुधी श्रोता गणों ने कार्यक्रम का आनन्दलाभ लिया।

इसी आयोजन के दौरान हिन्द युग्म द्वारा प्रकाशित राक़िम के ग़ज़ल संग्रह अनाम का लोकार्पण पंडित मुकुल शिवपुत्र जी के हाथों सम्पन्न हुआ।
प्रेषक-चन्द्र प्रकाश तिवारी