Saturday, November 22, 2008

'आनंदम' संगीत व साहित्य सभा : अक्टूबर गोष्ठी

'आनंदम' साहित्य व संगीत सभा की तृतीय गोष्ठी दिनांक 12 अक्टूबर 2008 (रविवार) को 'आनंदम' सचिव श्री जगदीश रावतानी के निवास पर सायं पाँच बजे हुई. 'आनंदम' संगीत व साहित्य सभा प्रति माह दूसरे रविवार को एक काव्य गोष्ठी का आयोजन करती है. इस बार भी सभागार खचाखच भर गया था. गोष्ठी में हिस्सा लेने वाले प्रमुख कवि थे - शशिकांत, मुनव्वर सरहदी, सीमाब साहिब , नरेश शांडल्ये, मनमोहन तालिब, भूपेंद्र कुमार, डॉ. विजय कुमार, प्रेमचंद सहजवाला, उर्मिल सत्यभूषण, रविन्द्र रवि, नमिता राकेश, बागी चाचा, सुषमा भंडारी, कैलाश दहिया, एस एस पम्मी, जगदीश रावतानी, अनिल मीत व राजेश राज.

गोष्ठी का संचालन श्री जगदीश रावतानी ने बहुत सुंदर तरीके से किया. नरेश शांडल्ये ने उर्दू और हिन्दी ग़ज़ल के बीच अक्सर होती तकरार पर एक ग़ज़ल पढ़ी:

ग़ज़ल को संभालो ग़ज़ल मर न जाए
कोई हल निकालो ग़ज़ल मर न जाए
यूँ हिन्दी और उर्दू में पाले न खींचो
न यूँ बैर पालो ग़ज़ल मर न जाए

कई कवि यथा रविन्द्र शर्मा 'रवि', नमिता राकेश, उर्मिल सत्यभूषण आदि पहली बार पधारे थे व उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से अन्य सभी कवियों का मन मोह लिया. रविन्द्र शर्मा 'रवि' कविता व ग़ज़ल के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं. उनकी गजलें शहरी परिवेश पर बहुत तीखे प्रहार करती हैं. यथा:

गुफ्तगू उन से शुरू हो भी तो किस बात के साथ,
लोग इस शह्र के वाकिफ नहीं जज़्बात के साथ.


शह्र में व्याप्त संवेदनहीनता पर एक सशक्त शेर:

साथ के पेड़ के खामोश खड़े थे पत्ते,
जब किसी पेड़ के पतझड़ में गिरे थे पत्ते.

राजनैतिक नेता अक्सर जीवन के अंत में कोई न कोई किताब लिख कर प्रसिद्धि कमाते हैं, इस पर व्यंग्य करता सहजवाला का यह शेर बहुत पसंद किया गया:

मुल्क की हालत पे लिख डाली उन्होंने इक किताब,
उस के पन्नों पर कहीं सच हो तो पढ़वाना मुझे.

प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को संसद में परमाणु करार पर हुए वाद विवाद में स्पष्ट बहुमत पाने के लिए वामपंथी दलों को छोड़ कर समाजवादी पार्टी का सहारा लेना पड़ा था. इस पर करारा व्यंग्य करता सहजवाला का यह शेर:

एक खलनायक से अपनी जाँ छुडाने के लिए,
दूसरे के पास यारो कल पड़ा जाना मुझे..

गोष्ठी के वातावरण को मुनव्वर सरहदी की कविता 'बीबी हो तो ऐसी' ने कहकहों से भर दिया. शायर मुनव्वर सरहदी की खूबी यह है कि वे हास्य-व्यंग्य तथा गंभीर शायरी, दोनों ही आसानी से व बराबर की खूबसूरती से करते हैं. . श्री जगदीश रावतानी ने अंत में सब को धन्यवाद देते हुए आशा व्यक्त की कि आगामी गोष्ठियां इस से भी अधिक जीवंत होंगी.

'आनंदम'
'आनंदम' संगीत व साहित्य सभा
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