Thursday, March 12, 2009

शीला दीक्षित करेंगी 13 नई हिन्दी पुस्तकों का विमोचन

मित्रो,

दिनांक १४ मार्च २००८ को सुबह ११ बजे से हिन्दी भवन सभागार, आईटीओ, नई दिल्ली में भारत की अतिसम्मानित साहित्यक संस्था भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित १३ नई पुस्तकों का विमोचन दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के हाथों किया जायेगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता २००६ के भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कवि कुँवर नारायण करेंगे।

इस कार्यक्रम में हिन्द-युग्म के कहानी-कलश के संपादक विमल चंद्र पाण्डेय के पहले कहानी-संग्रह 'डर' का विमोचन होगा। पाठक विमल जी की कहानियों से पहले से ही परिचित हैं। हिन्द-युग्म ने 'डर' कथा संग्रह की १२ में से ७ कहानियों (यथा सोमनाथ का टाइम टेबल, डर, चश्मे, 'मन्नन राय ग़ज़ब आदमी हैं', स्वेटर, रंगमंच और सफ़र) का प्रकाशन कर भी चुका है। गौरतलब है कि विमल चंद्र पाण्डेय के इस कहानी-संग्रह को वर्ष २००८ का नया ज्ञानोदय नवलेखन पुरस्कार मिला है।

इस कथा-संग्रह का ऑनलाइन विमोचन १४ मार्च की सुबह ६ बजे 'आवाज़' पर आम पाठकों-श्रोताओं के हाथों किया जायेगा। इस ऑनलाइन कार्यक्रम में आप इसी कहानी-संग्रह से 'स्वेटर' कहानी का कथापाठ भी सुन सकेंगे।

हिन्द-युग्म से जुड़े एक और कहानीकार पंकज सुबीर के भी कहानी-संग्रह 'ईस्ट इंडिया कम्पनी' का विमोचन १४ मार्च के कार्यक्रम में किया जायेगा। पंकज सुबीर ग़जलशिक्षण का ऑनलाइन प्रयास भी करते रहे हैं।

इनकी इस पुस्तक का विमोचन भी १४ मार्च को ही भारतीय समयानुसार सुबह ११ बजे 'आवाज़' पर किया जायेगा। इस कार्यक्रम में इस कथा-संग्रह से कम से कम एक कहानी का कथापाठ भी पॉडकास्ट किया जायेगा। पंकज सुबीर की कथा लेखन प्रतिभा को सुनने के लिए यहाँ जायें

हमारी कोशिश रहेगी कि वहाँ विमोचित होने वाले अधिकाधिक रचनाकारों को हिन्द-युग्म से जोड़े और उनके साहित्य को आपतक पहुँचायें।

कार्यक्रम की संक्षिप्त रूपरेखा निम्नवत है-


भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित युवा रचनाकारों की पुस्तकें
कविता-
कहते हैं तब शहंशाह सो रहे थे- उमाशंकर चौधरी(पुरस्कृत)
यात्रा- रविकांत (पुरस्कृत)
खिलाड़ी दोस्त तथा अन्य कविताएं- - हरेप्रकाश उपाध्याय
अनाज पकने का समय- नीलोत्पल
जवान होते हुए लड़के का कबूलनामा- निशांत
जिस तरह घुलती है काया- वाज़दा ख़ान
पहली बार- संतोष कुमार चतुर्वेदी


कहानी

डर- विमल चंद्र(पुरस्कृत)
शहतूत- मनोज कुमार पांडेय
अकथ- रणविजय सिंह सत्यकेतु
कैरियर गर्लफ्रैंड और विद्रोह- अनुज
सौरी की कहानियां- नवीन कुमार नैथानी
ईस्ट इंडिया कम्पनी- पंकज सुबीर


आगामी 14 मार्च को हिन्दी भवन, नई दिल्ली में इन पुस्तकों का लोकार्पण श्रीमती शीला दीक्षित, मुख्यमंत्री, दिल्ली
के द्वारा होगा। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुँवर नारायण करेंगे।

आप सब सादर आमंत्रित हैं।

ब्लॉग/वेबसाइट/ऑरकुट स्क्रैपबुक/माईस्पैस/फेसबुक में इस कार्यक्रम की सूचना का पोस्टर लगाकर नये कलमकारों को प्रोत्साहित कीजिए

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4 पाठकों का कहना है :

Divya Narmada का कहना है कि -

कार्यक्रम के चित्रों और रपट की प्रतीक्षा है. शीला जी जिस कहानी संग्रह का विमोचन कर रही हैं उसकी प्रतियाँ दिल्ली के पुस्तकालयों के लिए क्रय कराएँ, ऐसा अनुरोध मैं करना चाहता हूँ.

संगीता पुरी का कहना है कि -

सबो को बधाई एवं शुभकामनाएं ...

धनराज वाधवानी का कहना है कि -

शॉल शॉप ‘ नंदलाल स्टोर्स ’
का 61 वें वर्ष में प्रवेश
इंदौर। वूलन शॉलों के लिए प्रसिद्ध प्रतिष्ठान ‘नंदलाल स्टोर्स’ श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर अपने सफल व सार्थक 60 वर्ष पूर्ण कर 61वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। संस्थान के प्रमुख श्री धनराज वाधवानी ने बताया कि ‘नंदलाल स्टोर्स’ की स्थापना वर्ष 1948 में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के शुभ दिन स्व. श्री नंदलाल जी वाधवानी ने की थी। वूलन शॉल के व्यापार में अग्रणी ‘नंदलाल स्टोर्स’ की देश में अपनी साख है। ‘नंदलाल स्टोर्स’ पर समस्त उत्तरी भारत की शॉलें प्रमुख रूप से उपलब्ध हैं। संस्थान कश्मीर, हिमाचल व पंजाब आदि की क़ढ़ाई-बुनावट वाली, प्लेन पोत, टाई ऍंड डाई, बॉर्डर-पल्लू, बूटी, जाल -बॉर्डर वाली आदि आकर्षक रंगों व कलात्मक डिजाइनों में सभी प्रकार की रोजमर्रा के पहनने योग्य, विशेष व शुभ अवसरों पर पहनने, घर में या सफर में पहनने -ओढ़ने लायक, सगाई, शादी-विवाह, बिदाई, स्वागत व सम्मान समारोह आदि अवसरों पर भेंट में देने योग्य, चिरस्थायी यादगार बन जाने वाली विभिन्न किस्म की लेडीज व जेंट्स शॉलों के व्यवसाय में संलग्न है।

धनराज वाधवानी का कहना है कि -

शॉल शॉप ‘ नंदलाल स्टोर्स ’
का 62 वें वर्ष में प्रवेश
इन्दौर। इन्दौर की ऐतिहासिक इमारत ’राजवाड़ा’ के निकट स्थित वूलन शालों के लिये प्रसिद्ध प्रतिष्ठान ’नन्दलाल स्टोर्स’ श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर अपने सफ़ल व सार्थक 61 वर्ष पूर्ण कर 62 वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। संस्थान के प्रमुख श्री धनराज वाधवानी ने बताया कि ’नन्दलाल स्टोर्स’ की स्थपना वर्ष 1948 में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के शुभ दिन स्व. श्री नन्दलाल वाधवानी जी ने की थी। वूलन शॉल के व्यापार में अग्रणी ’नन्दलाल स्टोर्स’ की देश में अपनी साख है। श्री वाधवानी अपनी सफ़लता का श्रेय ग्राहकों के विश्वास एवं ग्राहकों की सन्तुष्टि को देते हैं। ’नन्दलाल स्टोर्स’ पर समस्त उत्तरी भारत की शॉलें प्रमुख रूप से उपलब्ध हैं। संस्थान काश्मीरी, हिमाचल व पंजाब आदि की कढ़ाई-बुनावट वाली, प्लेन पोत, टाई एण्ड डाई, बार्डर–पल्लू, बूटी, जाल-बार्डर वाली आदि आकर्षक रंगों व कलात्मक डिज़ाईनों में सभी प्रकार की, रोजमर्रा के पहनने योग्य, विशेष व शुभ अवसरों पर पहनने, घर में या सफ़र में पहनने–ओढ़ने लायक, सगाई, शादी-विवाह, बिदाई, स्वागत व सम्मान समारोह आदि अवसरों पर भेंट में देने योग्य, चिरस्थाई यादगार बन जाने वाली विभिन्न किस्म की लेडिज़ व जेंट्स शालों के व्यवसाय में संलग्न है। ’नन्दलाल स्टोर्स’ का स्लोगन ही है- ’शालें ही शालें, दुकान ही शालों की’ । श्री वाधवानी बताते हैं कि परम्परागत, लाजवाब भारतीय शालों का विश्व के किसी अन्य देश मे कोई जवाब नहीं है। इसी प्रकार विभिन्न विदेशी ब्राण्डेड मिलों द्वारा शॉल बनाने के भरपूर प्रयासों के बावजूद, इस हस्त शिल्प के मुकाबले किसी को भी विशेष सफ़लता नहीं मिली है। श्री वाधवानी के अनुसाअर ’नन्दलाल स्टोर्स’ को शॉल की दुकान मात्र कहना नाकाफ़ी होगा, वस्तुतः यह शॉल रूपी कलाकृतियों का संग्रहालय या कहना चाहिये कि इनसाक्लोपीडिया है। यहां की शॉलें सिर्फ़ शॉलें नहीं होकर लुप्तप्रयः हो रहे कारीगरों द्वारा सॄजन की हुई, करीने से सजाई हुई, कल्पनाएं संजोई हुई, सम्मान-सत्कार, स्मॄतियों, सद्भावनाओं व स्नेह की निरंतर प्रतीक बन जाने वाली कलाकृतियां हैं। श्री धनराज वाधवानी के अनुसार शालों के चयन में उनके बुजुर्गों का, सदियों का, परखने का अनमोल अनुभव उन्हें विरासत में मिला है। कॄत्रिमता से दूर, वूलन शालों का निर्माण प्राकृतिक रा-मटेरियल से होने के कारण प्राकृतिक अहसास करवाता है। देश के अनेक ठण्डे क्षेत्रों में घर-घर में बनारसी साड़ियों की तरह कढ़ाई–बुनाई से ये कृतियां बनती हैं। जहां तक काश्मीर का सवाल है, हालात खराब होने के बावजूद वहां शॉल की कारीगरी में कोई कमी नहीं आई है बल्कि पर्यटन में अवरोध के कारण इस कला की ओर विशेष अतिरिक्त ध्यान दिया जा रहा है। शालों के कपड़े, कढ़ाई–बुनाई की किस्मों व नामों का कोई अंत नहीं है। नित नये नाम रखे जाते हैं, कला की नई सृष्टि होती रहती है। शालों का फ़ैशन अनंतकाल तक चलता रहेगा, सैकड़ों वर्ष पूर्व प्रचलित शॉलें भी हमेशा फ़ैशन में बनी रहेंगी। जो सुख परमपरागत शालों के औढ़ने व भेंट करने में मिलता है वह अमूल्य है और अन्य वस्तुओं से मिलना दुश्वार है, अतः शॉल का कोई अन्य विकल्प नहीं हो सकता है। वूलन शॉल व्यवसाय वैसे तो सीजनल है किन्तु ’नन्दलाल स्टोर्स’ बारहों महीनें इसमे संलग्न रहता है। आशय यह है कि ’नन्दलाल स्टोर्स’ शॉल का पर्यायवाची बन गया है। वर्षगांठ के अवसर पर श्री धनराज वाधवानी ने समस्त स्नेहियों एवं शुभचिंतकों का ह्रदय से आभार माना है।

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