20 अप्रैल 2009 को भोपाल में उदयपुर की लेखिका डॉ॰ अजित गुप्ता के नवीनतम उपन्यास 'अरण्य का सूरज' का लोकार्पण हुआ। लोकार्पण समारोह में मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. देवेन्द्र दीपक, प्रसिद्ध व्यंग्यकार एवं कवि माणिक वर्मा, गीतकार दिनेश प्रभात सहित बड़ी संख्या में भोपाल के साहित्यकार उपस्थित थे।
यह उपन्यास राजस्थान में मेवाड़ क्षेत्र की जनजातियों पर आधारित है। ग्यारहवीं शताब्दी तक राजा रहे जनजाति समाज के अपने कानून थे और आज भी हैं। उसी के अन्तर्गत 'मौताणा' प्रथा का जन्म हुआ और आज विकृत रूप में उसी समाज का अहित कर रही है। इस समस्या पर आजतक किसी लेखक की कलम नहीं चली, डॉ॰ अजित गुप्ता ने मौताणे सहित बाल मजदूरी और बालविवाह की समस्याओं को भी प्रमुखता से उठाया है। यह पुस्तक दिल्ली के सामयिक प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है।
डॉ॰ अजित बहुत लम्बे अर्से से लेखन में सक्रिय हैं। शब्द जो मकरंद बने, सांझ्ा की झंकार (कविता संग्रह), अहम् से वयम् तक (निबन्ध संग्रह), सैलाबी तटबन्ध (उपन्यास), अरण्य में सूरज (उपन्यास), हम गुलेलची (व्यंग्य संग्रह), बौर तो आए (निबन्ध संग्रह), सोने का पिंजर (अमेरिका-यात्रा का संस्मरण) इत्यादि इनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं।
गौरतलब है कि हिन्द-युग्म डॉट कॉम के
बैठक मंच पर इनके यात्रा-संस्मरण
'सोने का पिंजर' को धारावाहिक रूप में प्रकाशित किया जा रहा है।
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4 पाठकों का कहना है :
शब्द बने मकरंद जो, उनमें निहित सुगंध.
हम गुलेलची खोजते सैलाबी तटबंध.
सोने का पिंजर जगत, अहं-वयं हैरान.
संझा की झंकार सुन, करे अजित का मान.
चलिए चलें अरण्य में सूरज को ले आज.
फूले-महके बौर तो आये झट ऋतुराज.
सब पर सदय सरस्वती दीपक-माणिक धन्य.
मौताणा सचमुच हुई, शापित रीति अनन्य.
करने नाश कुरीति का, कलम बनी हथियार'सलिल'अजित को कर रहा,
'सलिल'अजित को कर रहा,सादर नमन-जुहार.
धन्यवाद आचार्य जी, बहुत बढ़ायो मान
कैसी भी हो लेखनी, बिन गुरु होत न ज्ञान
बिन गुरु होत न ज्ञान, सरल है गद्य का लेखन
गुरु चरणों में मिले, सरस पद्य का दिग्दर्शन
विनती करे अजीत, बना रहे सत्सम्वाद
आप सिखाते रहे, मन कहे बस धन्यवाद।
डॉ॰ अजित जी,
बहुत-बहुत बधाई हो। हम इसे भी धारावाहिक रूप में हिन्द-युग्म पर पढ़ना चाहेंगे।
नवीनतम उपन्यास 'अरण्य का सूरज' के लोकार्पण के शुभ अवसर पर डॉ॰ अजित गुप्ता को हार्दिक बधाई!
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