पुणेदिनांक 25-26 जुलाई 2009 को पुणे में स्थित एस.एम.जोशी हिंदी माध्यमिक विद्यालय में
महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे एवं
महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी, मुम्बई (सांस्कृतिक कार्य विभाग, महाराष्ट्र शासन) के संयुक्त तत्वावधान में सर्व भारतीय भाषा सम्मलेन सुचारू रूप से संपन्न हुआ। कार्यक्रम का आरम्भ सरस्वती वन्दना से हुआ। दो दिवसीय इस कार्यक्रम के उद्घाटनकर्ता थे पद्मविभूषण, डॉ.मोहन धारिया (अध्यक्ष, वनराई व महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे) एवं नंदकिशोर नौटियाल (कार्याध्यक्ष, महाराष्ट्र राज्य हिदी साहित्य अकादमी, मुम्बई)। मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित थे मा. ललितकुमार जैन (मैन आफ द इयर 2009, अध्यक्ष, पुणे बिल्डर्स असोसिएशन, पुणे), डॉ.सत्यपाल सिंह (कमीशनर आफ पुलिस, पुणे)। दिनांक 25-26 जुलाई 2009 को सर्व भारतीय भाषा सम्मलेन के प्रथम सत्र से लेकर चतुर्थ सत्र तक क्रमश: डॉ.सरोजा भाटे, डॉ.चंद्रकांत बांदिवडेकर, डॉ.मु.ब. शहा एवं डॉ. दामोदर खडसे की अध्यक्षता में सर्व संबंधित भाषा विषयतज्ञ मार्गदर्शक भिन्न-भिन्न भाषाओँ की विशेषता, विकास व योगदान के बारे में मार्गदर्शन करते रहे। सर्व भारतीय भाषाओं के इस अनूठे संगम में उत्तर-दक्षिण-पूरब और पश्चिम से आये भिन्न-भिन्न भाषाभाषी लेखकों-साहित्यकारों ने देश की सभी भाषाओं के बीच संवाद स्थापित करने की जरूरत पर बल दिया और कहा भारतीय संस्कृति के महीन तारों को जोड़ने का ठोस प्रयास अनुवाद के माध्यम से हो। लोग अंतरजाल (इंटरनेट) को अपनाए तथा हिन्दी को एक सूत्र में पिरोने हेतु संकल्पित रहें। राष्ट्रीय अस्मिता, संस्कृति एवं हिन्दी भाषा तथा साहित्य के सर्वोन्मुखी उन्नयन हेतु नित नए प्रयास किए जाए. लुप्त होती भाषाओं के कारण और निवारण पर भी चिंता व्यक्त की गयी। इस बात को स्वीकारा गया कि अंग्रेजी को अन्य भाषाओं के साथ सम्मिलित करने में हर्ज नहीं है पर उसे राष्ट्रभाषा के वैकल्पिक सेतु न माना जाए।
सत्र के दौरान भारतीय संत परम्परा का परिचय देते हुए
डॉ.अशोक कामत ने भारतीय अस्मिता, संस्कृति का सम्मान व रक्षा करने में संतों की भूमिका कैसी रही व किस प्रकार वे जन-मन तक पहुँचने के लिए लोक भाषा को अपनाते थे, बताया और कहा कि हमें भी अन्य प्रान्तों की भाषा सीखनी चाहिए। इसके उपरांत
कविता खर्वंदीकर ने अपने मधुर आवाज में संतवाणी प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन
गो.म.दाभोलकर और
लक्ष्मी गिडवानी ने किया।
समापन सत्र में पारित हुए प्रस्ताव में एक स्वर से यह मांग की गयी है कि
राजभाषा अधिनियम 1986 में जो संशोधन किये गये हैं, उन्हें तत्काल निरस्त किये जाएँ। अध्यक्षीय भाषण में नामदार
किशन शर्मा जी ने कहा कि सभी भारतीय भाषाएँ हिन्दी के नेतृत्व में चलकर ही अपनी स्वतंत्रता और अस्मिता की रक्षा कर पाने में समर्थ होंगी। भाषा भारती गीतमंच का आभार प्रकट किया तथा उन सारे विद्यार्थियों के गान को सराहा जो हर भाषा के गीतों को बड़े ही उत्साहपूर्वक सुरीली अंदाज़ में पेश किये जा रहे थे। इस अवसर पर
पंडित हरिनारायण व्यास को 'कवि शिरोमणी' एवं
डॉ. आनंद प्रकाश दीक्षित को 'साहित्य समीक्षक पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। डॉ. आनंद प्रकाश दीक्षित जी की अस्वस्थता के कारण अनुपस्थित रहे।
अकादमी की ओर से कार्याध्यक्ष
नंदकिशोर नौटियाल ने इस सर्वभाषा सम्मेलन के आयोजन के लिए वित्तीय सहयोग करने के लिए जहां राज्य सरकार का आभार व्यक्त किया, वहीं राज्य के उप मुख्य मंत्री
आर.आर पाटिल की इस घोषणा का स्वागत किया कि महाराष्ट्र में ऐसा सम्मेलन हर वर्ष होना चाहिये।
अंत में विशेष सहयोगी व्यक्तियों का सम्मान महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा,पुणे के सचिव
शेषराव जगताप ने किया व सभा के कार्याध्यक्ष
सु.मो.शाह ने सम्मेलन को सफल बनाने में योगदान करने के लिए देश-भर से पधारे सभी भाषाओं के विद्वानों और अकादमी के सभी सदस्यों तथा सहयोगियों के प्रति आभार माना।
उल्लेखनीय बात यह है कि
एस.एम.जोशी विद्यालय के महामहोपाध्याय दत्तोवामन पोतदार सभा गृह में, जहाँ यह समारोह संपन्न हुआ, एक पवित्र ज्ञान का मंदिर है जहाँ विद्यार्थियों में अनुशासन कूट-कूट कर भरी हुई है। धैर्य, कर्तव्य के प्रति निष्ठा व गुरुजनों के प्रति सम्मान को देख कर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि आज की यह युवा पीढी कल के सरताज होंगे.मात्र विद्यार्थी ही नहीं सभी शिक्षक- शिक्षिका गण भी उत्साही थे. दिल खुशी से भर गया। मैं आभार मानती हूँ कि इस सम्मलेन में मुझे एक व्याख्याता के रूप में भाग लेने के लिए अवसर प्रदान किया गया और ईश्वर से प्रार्थना है कि आगे भी ऐसे अवसर मिलते रहे।
---
पुणे से सुनीता यादव
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
5 पाठकों का कहना है :
यह सही है कि अगर हमें अन्य भाषाओं का भी ग्यान होता है तो हमारे काम ही आता है इसमें कोइ बुराइ नहीं है.
सम्मेलन उपलब्धी पूर्ण रहा .सुंदर फोटो इसका प्रमाण है .विशद 'नई जानकारियां मिली . सुनीताजी को,हिंद युग्म को बधाई .
सबसे पहले सुनीता जी को बधाई जिन्होंने हम लोगों तक यह खबर पहुंचाई. उसके बाद हिन्दयुग्म को बधाई जो कि इस खबर का श्रोत है. इसी के साथ सम्मलेन से जुड़े सभी लोगो को बधाई.
हिंद युग्म और इसी के साथ सम्मलेन से जुड़े सभी लोगो को बधाई
अपने शब्दों में इतना कहना चाहूँगा
हम हिंदी सर्व भाषा सम्मान करते है
हर संस्क्रति को प्रेम देते है
हो जाये चूक कोई,
उस पर जान देते है
शोक हुआ सुनकर,
किया उसे पूर्ण,
हिंदी विरोधी स्थान पर
वीरेन्द्र अग्रवाल
आगरा(उत्तर प्रदेश)
सुनीता जी, आपके बारे में जानकर-पढ़कर बहुत प्रेरणा मिलती है। आपमें बहुत ऊर्जा है।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)