Thursday, September 24, 2009

आज की मुद्राएँ धर्मनिरपेक्ष हैं- प्रो.सीताराम दूबे

इलाहाबाद, 20 सितम्बर। मुद्रा एक ऐसी चीज है जो किसी भी देश की प्राचीन संस्कृति व परम्परा की द्योतक होती है लेकिन आज की मुद्रा धर्मनिरपेक्ष है। ये बातें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के प्रो सीताराम दूबे ने आज सायं इलाहाबाद संग्रहालय में आयोजित ‘मुद्राओं का सांस्कृतिक पक्ष’ विषयक संगोष्ठी में कही।

प्रो॰. दुबे ने कहा कि ऋग्वैदिक काल में मुद्रा के जगह वस्तु-विनिमय का प्रचलन था जिसके द्वारा एक देश दूसरे देश के बीच वस्तुओं का आदान-प्रदान कर काम चलाते थे। सिक्कों का प्रचलन उत्तरवैदिक काल से शुरु होता है। भारत में सर्वप्रथम सिक्कों का प्रचलन यवन शासकों ने किया। इनसे मिलकर हिन्दी यूनानी ने स्वर्ण सिक्कों को प्रचलन में लाया। उन्होंने कहा कि शक, हूण, मौर्य आदि शासकों के शासन काल में मुद्रा पर उस शासक के राज्य की संस्कृति, परम्परा, मूर्तियों की आकृति, चिह्न, परिधान, आदि सिक्के पर बने होते थे। उन्होंने कहा कि गुप्त काल के प्रचलित सिक्कों में समुन्द्रगुप्त को वीणा वादन करते हुए दिखाया गया जिससे पता चलता है कि वह संगीत प्रेमी था। लेकिन आज चलन में जो मुद्रा है उसे देश की संस्कृति व परम्परा से कोई लेना देना नहीं है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के सिक्कों का प्रचलन मुगल काल तक रहा।

इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. जयनारायण पाण्डेय, इविवि तथा संचालन डा. प्रभाकर पाण्डेय ने किया। इस मौके पर डा. एस. के. शर्मा सहित अन्य बुद्धिजीवि लोग उपस्थित थे।

रिपोर्ट- संदीप कुमार श्रीवास्तव

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

2 पाठकों का कहना है :

Manju Gupta का कहना है कि -

वाकई आज की मुद्रा हमारी धर्मनिरपेक्षता की देन है . उसका किसी भी धर्म से सरोकार नहीं है . नई जानकारी मिली

Shamikh Faraz का कहना है कि -

सीताराम दुबे जी की इस बात से पूरी तरह से सहमत हूँ.
"लेकिन आज चलन में जो मुद्रा है उसे देश की संस्कृति व परम्परा से कोई लेना देना नहीं है। "

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)