Thursday, September 24, 2009

कवि राजगोपाल सिंह, नमिता राकेश व ममता किरण 'परिचय' सम्मान से सम्मानित

रिपोर्ट- प्रेमचंद सहजवाला


सत्यभूषण सम्मान से सम्मानित कवि राजगोपाल सिंह । स्वागत करती अलका सिन्हा

नई दिल्ली । 8 सितम्बर 2009

दि. 8 सितम्बर 2009 की शाम। नई दिल्ली के फिरोज़शाह रोड स्थित 'Russian Center of Cultural Sciences' में उर्मिल सत्यभूषण द्वारा संचालित 'परिचय' संस्था ने प्रसिद्ध कवि राजगोपाल सिंह को 'परिचय सम्मान' तथा सुपरिचित कवयित्रियों नमिता राकेश व ममता किरण को 'सत्य सृजन' सम्मान से सम्मानित किया। 'परिचय' ने ये 'सत्य सृजन सम्मान' इस वर्ष प्रारंभ किये हैं तथा 'सत्यभूषण सम्मान' प्रतिवर्ष देती है। इस सम्मान-गोष्ठी में हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार राजकुमार सैनी ने अध्यक्षता की तथा गोष्ठी का संचालन किया अलका सिन्हा व अनिल मीत ने।

'ज़र्द पत्तों का सफ़र', ' खुशबुओं की यात्रा', 'बरगद ने सब देखा है' तथा 'चौमास' जैसी सशक्त काव्य पुस्तकों के रचेता राजगोपाल सिंह की मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ ग़ज़ल व गीत के चिरपरिचित रास्तों से अलग हट कर एक अनोखे संवेदनात्मक प्रभाव का सृजन करती हैं। जहाँ एक तरफ असंख्य कवि शायर, शायरी की बनी बनाई लीक पर चल कर केवल रचनाओं में इज़ाफा मात्र कर रहे हैं, वहीं राजगोपाल सिंह उन कवियों में से हैं जो अपनी सशक्त व सार्थक रचनाधर्मिता के माध्यम से जाने जाते हैं। उनके स्वागत में कवयित्री अलका सिन्हा ने कहा कि जिस गहराई व मौलिकता से राजगोपाल सिंह ने काव्य रचना की है, उस के कारण उन को कई सम्मानों से सम्मानित भी किया गया है। यदि यह कहा जाए कि इन के काव्य ने हमारे समाज व संस्कृति को जीवित रखा है, तो ग़लत न होगा। अपनी चंद सर्वाधिक चर्चित कविताएँ, ग़ज़लें व दोहे प्रस्तुत करने से पूर्व राजगोपाल सिंह ने इस बात पर खुशी व्यक्त की कि 'परिचय' संस्था प्रतिमाह यहाँ गोष्ठियां आयोजित करती है। उन्होंने इस बात पर भी बधाई दी कि अब 'परिचय' की पहचान केवल भारत भर में नहीं, बल्कि रूस तक भी पूर्णतः पहुँच चुकी है। इस के साथ उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह संस्था भविष्य में अन्य तमाम साहित्यकारों को भी सम्मानित पुरस्कृत करेगी, जो अच्छा लिख रहे हैं। अपनी काव्य प्रस्तुति उन्होंने एक गीत से शुरू की जो उन के अनुसार शायद उन का पहला या दूसरा गीत रहा होगा। इस गीत की रचना उन्होंने तिब्बत की सरहद पर 21,000 फुट की ऊँचाई पर स्थित एक गांव में की:

कौन जाने कब किस पगडण्डी से/ दीखे मोरा सिपहिया/ घुघती* टेर लगाती रहियो...

अब के बरस बड़ी बरफ पड़ी है/ जैसे सारी घाटी चांदी से मढ़ी है/ हिम से घिरी हैं ये शैल-शिखाएं/ जले हैं निगोड़ी और मुझे भी जलाएं/अंग अंग जैसे जंग छिड़ी है...

(*घुघती = बर्फीली पहाड़ियों पर पाया जाने वाला एक सुन्दर पंछी। इस गीत में 'घुघती' पंछी बिरही आत्मा का प्रतीक बन कर उभरी है।)


काव्यपाठ करते राजगोपाल सिंह। एक अन्य वीडियो यहाँ देखें

कवि राजगोपाल सिंह ने रिश्तों से जुड़ी संवेदना की अभिव्यक्ति के लिए पीपल, बरगद, नदी, बरफ आदि सभी प्राकृतिक चिह्नों का उपयोग बखूबी किया है। जैसे:

नाम था होंठों पे सागर, पर मरुस्थल की हुई
इस नदी की कुछ न कुछ, लाचारियाँ होंगी ज़रूर

एक मौसम आए है तो एक मौसम जाए है
आज है मातम तो कल, किलकारियां होंगी ज़रूर.


पर प्यार के इस रंग-बिरंगे 'पोज़िटिव' अंदाज़ के भी क्या कहने:

हम ने ऐसे रंग फूलों के कभी देखे न थे
तितलियों के पास भी पिचकारियाँ होंगी ज़रूर.


इसी ग़ज़ल के एक शेर में जहाँ 'बेटी' की सामाजिक स्थिति को कवि ने इस तरह व्यक्त किया है:

आज भी आदम की बेटी, हंटरों की ज़द में है,
हर गिलहिरी के बदन पर धारियां होंगी ज़रूर

(ज़द = निशाना),

वहीं नए रिश्तों की दहलीज पर, सर पटकते हुए, बाबुल से बिछुड़ने की वेदना कुछ दोहों में बेहद मार्मिक तरीके से आई:

जिस खूंटी से बाँध दो, उस से ही बंध जाए
बाबुल तेरी लाडली इक गूंगी सी गाय.

तेरे जैसी ही हुई, मैं शादी के बाद,
आती तो होगी तुझे 'मिट्ठू' मेरी याद.

बाबुल अब होगी नहीं, भैया के संग जंग,
डोर तोड़ अनजान पथ, उड़ कर चली पतंग.


आज दूरदर्शन पर बेटी को अभिशाप मानने वाले समाज या शक्तियों का पर्दाफाश करते असंख्य धारावाहिक आ रहे हैं, पर बेटी की अहमियत या अपरिहार्यता क्या है, यह कवि राजगोपाल सिंह से अधिक किसी को पता नहीं मानो:

खुशबू है ये बाग़ की, रंगों की पहचान,
जिस घर में बेटी नहीं, वह घर रेगिस्तान.


प्रकृति के बीच उपस्थित कवि प्रकृति से रोमांस न कर के, प्रकृति को ही काग़ज़ बना कर उस पर मानविय संवेदनाएं शब्दबद्ध करता है:

बाग़ के वातावरण से बेखबर सूरजमुखी
जिस तरफ सूरज चले देखे उधर सूरजमुखी
भोर की पहली किरण कुछ कह रही है कान में
लाज के मारे हुई है गुलमोहर सूरजमुखी
देह सारी आंसुओं से भीग कर तर हो गई
कितना रोई याद कर के रात भर सूरजमुखी


और

गांव में ज़िंदा है अब भी वो पुराना पीपल
कितने गुमनाम परिंदों का ठिकाना पीपल

आँधियों का कोई मुखबिर न छुपा हो इन में
हर मुसाफिर से न हर बात बताना पीपल


और

अपनी बूढ़ी आँखों से कल बरगद ने सब देखा है
कहाँ गिरा लाजो का आँचल बरगद ने सब देखा है.


गीतों गज़लों में निहित दर्द के साथ साथ प्रभावशाली तरन्नुम ने भी चार चंद लगा दिए।


सत्य सृजन सम्मान से सम्मानित ममता किरण । सत्य सृजन सम्मान से सम्मानित नमिता राकेश

''परिचय' ने नमिता राकेश व ममता किरण को 'सत्य-सृजन' सम्मान से सम्मानित किया। नमिता ने 'परिचय' का आभार प्रकट करते हुए अपनी कुछ नज़्में व ग़ज़लें सुनाई। कुछ पंक्तियाँ:

अगर यकीन नहीं है तुम्हें/ तो आज़माओ मुझे/...आईना हो अगर तुम/ तो आईना दिखाओ मुझे/...इक चिंगारी हूँ मैं/ रात दिन जलती हूँ/ हवाओं में दम है/ तो बुझाओ मुझे/...आँख का आंसू नहीं/ मैं मोती हूँ/ पलकों में बंद कर के/ दिखाओ मुझे...

और

वो भी उड़ना चाहती थी ऊपर/ बहुत ऊपर आकाश में लेकिन/ पतंग की तरह/ उस की डोर/ किसी दूसरे के हाथ में थी...

ममता किरण ने भी संस्था का आभार प्रकट करते हुए कुछ सशक्त रचनाएं प्रस्तुत की:

...स्त्री मांगती है नदी से/ सभ्यता के गुण/ वो सभ्यता/ जो उस के किनारे जन्मी/ पली, बढ़ी और जीवित रही/ स्त्री बसा लेना चाहती है/ समूचा का समूचा संसार/ नदी का/ अपने गहरे भीतर/... जलाती है दीप आस्था के/ नदी से गवाही कर/ करती है मंगल-कामना/ सब के लिए/ और अपने लिए मांगती है/ सिर्फ नदी होना...

एक वृद्ध व्यक्ति की तन्हाई, जो उन्होंने एक वृक्ष को प्रतीक बना कर व्यक्त की, (कुछ पंक्तियाँ):

...बहुएँ आशीष ले कर/ मगन हो जाती हैं/ अपनी अपनी गृहस्थी में/ मेरी सुध कोई भी नहीं लेता/ मैं बूढा हो गया हूँ/ कमज़ोर हो गया हूँ/ कब हरहरा कर टूट जाएं ये बूढी हड्डियाँ/ पता नहीं/ तुम सब से करता हूँ एक निवेदन/ एक बार उसी तरह/ इकट्ठा हो जाओ/ मेरे आंगन में/ जी भर तुम्हें देख तो लूं ...

इस अवसर पर सीमाब सुल्तानपुरी तथा स्टेला कुजूर ने भी अपनी रचनाएं पढ़ी।
अंत में अध्यक्ष राजकुमार सैनी ने तीनों सम्मानित कवियों को बधाई देते हुए इस प्रकार के सम्मान आयोजनों पर खुशी व्यक्त की तथा धन्यवाद प्रस्ताव के साथ गोष्ठी सम्पन्न हुई।

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3 पाठकों का कहना है :

Manju Gupta का कहना है कि -

हिंदी साहित्य के कलम के धनी युग दृष्टा
राजगोपाल जी ,नमिता राकेश ,ममता rजी iको मिले सम्मान के लिए कोटि -कोटि बधाई

Shamikh Faraz का कहना है कि -

बहुत ही सुन्दर गीत हैं अल्बम के. और साथ ही दिशा जी की शानदार प्रस्तुति.

Shamikh Faraz का कहना है कि -

सहजवाला जी बहुत ही अच्छी रिपोर्ट. काफी जानकारी मिली. यह शे'र बहुत ही पसंद आये.

एक मौसम आए है तो एक मौसम जाए है
आज है मातम तो कल, किलकारियां होंगी ज़रूर

गांव में ज़िंदा है अब भी वो पुराना पीपल
कितने गुमनाम परिंदों का ठिकाना पीपल

आँधियों का कोई मुखबिर न छुपा हो इन में
हर मुसाफिर से न हर बात बताना पीपल

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