रिपोर्ट- उमाशंकर मिश्र
राष्ट्रीय स्तर के आयोजन महज शहरों तक ही सीमित क्यों हैं? ग्रामीणों, वंचितों एवं दूरदराज के युवाओं को मुख्यधारा से जोड़ने की बातें आखिर कब तक एयरकंडिशंड कमरों में होती रहेगी? क्या जमीनी स्तर पर सीधे जनसंवाद के माध्यम से विकास की राह तैयार नहीं की जानी चाहिए? दरभंगा के दूरदराज के गंवई परिवेश में आयोजित राष्ट्रीय युवा समागम इन्हीं सवालों का सशक्त जवाब है।
पिछले दस सालों से मैं दिल्ली में रह रहा हूं और जब कभी भी अपने गांव आता हूं तो धरौरा में बस से उतरते ही वही रिक्शे वाले, वही तांगे वाले दिखाई देते हैं। उनमें किसी तरह का बदलाव यदि देखने को मिलता है तो उन रिक्शे वालों के रिक्शे की जर्जरता, उसके बदन पर और अधिक चीथड़ में तब्दील कपड़े एवं उसकी आंखों में तैरता लाचारी का पानी। इस बीच भौतिक तरक्की के प्रतीक कुछेक रंग-बिरंगे मकान एवं अन्य प्रतिबिम्ब धुंधले से हो जाते हैं और मन इस सोच में डूब जाता है कि आखिर कैसे विकास एवं संवाद की खाई को पाटने की पहल की जाये। यह कहना था मीमांसा एक पहल के संयोजक विजय कुमार मिश्र का। उसी सोच और निरंतर मंथन के परिणामस्वरूप बिहार के दरभंगा जिले के दूरदराज के बहेड़ा गांव में दो दिवसीय राष्ट्रीय युवा समागम का आयोजन किया गया, जिससे ग्रामीण एवं वंचितों की आवाज को मुख्यधारा की राजनीति, कला और विचार से जोड़ा जा सके। इस कार्यक्रम में देश भर के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े युवा प्रतिनिधियों समेत, मीडियाकर्मियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, राजनीतिज्ञों, कलाकारों और बुद्धिजीवियों ने विकसित भारत का स्वप्न और युवा, शिक्षा रोजगार और युवा, राजनीति एवं युवा सरीखे महत्वपूर्ण विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए।
रात हुई तो गंवई परिवेश में पसरे अंधकार के महासागर के बीच बहेड़ा के हाईस्कूल में प्रांगण गड़गड़ाते जेनरेटर्स की आवाज एवं सजा-धजा विशाल पंडाल ग्रामीणों के लिए किसी कौतूहल से कम नहीं था। देश के प्रख्यात कवियों लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, राजगोपाल सिंह, ममता किरण, अलका सिन्हा, चिराग जैन और शंभू शेखर को सुनने के लिए बच्चे, बूढ़े जवान एवं महिलाओं का हुजूम देर रात तक पंडाल में जमा रहा। इससे पहले लवलीन थडानी द्वारा निर्देशित सामाजिक रूढ़ियों पर आधारित हिन्दी फीचर फिल्म ‘जीत’ का प्रदर्शन किया गया।
बिहार का नाम आते ही आमतौर पर पिछड़ापन, गरीबी, बेकारी, अशिक्षा और बदहाली की तस्वीर आंखों में तैर जाती है। एक धारणा यह भी है कि किसी तरह का राष्ट्रीय आयोजन महज बड़े शहरों में होते हैं। दरभंगा के दूरदराज के बेनीपुर, बहेड़ा के गंवई परिवेश में माटी और कीचड़ सने रास्ते और उन रास्तों के किनारे खड़े बच्चों, महिलाओं, बुजुर्गों एवं युवाओं की टकटकी लगाई निगाहें, सुबह सवेरे से लेकर तपती दुपहरी और फिर देर रात तक कार्यक्रम स्थल पर डटे स्थानीय जनसमूह को देखकर आभास हो गया कि बहेड़ा के हाईस्कूल प्रांगण में आयोजित राष्ट्रीय युवा समागम की स्थानीय लोगों के लिए क्या महत्व है। कार्यक्रम आरंभ हुआ तो लाउडस्पीकर्स की आवाज बहेड़ा में गूंजने लगी, जिसे सुनकर ठिठके एवं सकुचाते सैकड़ों ग्रामीण पंडाल के द्वार पर आकर खड़े होने लगे, उनसे पंडाल में बैठने का आग्रह किया गया तो उन्हें आभास हुआ कि यह आयोजन किसी राजनेता का नहीं बल्कि समाज का है। धीरे-धीरे बहेड़ा और आसपास के गांवों के हजारों ग्रामीण इकट्ठा होने लगे।
कार्यक्रम का उद्घाटन राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संयोजक के.एन. गोविंदाचार्य ने वृक्षारोपण से किया। स्वागत गान के बाद पारंपरिक मैथिल पाग, शॉल और मिथिला पेंटिंग भेंट करके अतिथियों का स्वागत किया गया। गोविंदाचार्य ने ग्रामीण युवाशक्ति को संबोधित करते हुए कहा कि.‘हम जिन देशों की नकल करते हैं वहां की स्थानीय परिस्थितियां हमारे देश से भिन्न है, इसलिए अंधपिष्मोन्मुखीकरण से बचने की सलाह देते हुए उन्होंने कहा कि मौजूदा संदर्भ में भारत-विकास-युवा के समेकित रूप पर मंथन कार्ययोजना तैयार करना समय की मांग है। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि जीडीपी कभी भी विकास का पैमाना नहीं हो सकता, इसलिए उन्होंने प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए मर्यादा और संस्कृति की रक्षा के मार्ग पर चलते हुए विकास का लक्ष्य हासिल करने का मार्ग सुझाया। रोटी, रिहायश और रिश्ते के मामले में जाति, संप्रदाय एवं क्षेत्रवाद से परे सामाजिक समरसता की बात कहते हुए हुए गोविंदाचार्य ने युवाओं से बौद्धिक रचनात्मक और आंदोलनात्मक तरीकों से आगे बढ़ने का आह्वान किया। ‘विकसित भारत का स्वप्न और युवा’ विषय पर एनडीटीवी के विशेष संवाददाता क्रांति संभव, युवा चित्रकार-कवि अमित कल्ला, चित्रकार विजेन्द्र एस. विज, कथाकार एवं कवयित्री अलका सिन्हा ने भी युवाओं को संबोधित किया। जबकि शिक्षा, रोजगार और युवा विषय पर नवोदय विद्यालय समिति के पूर्व उपनिदेशक एच.एन.एस. राव, आर.सी. सिंह, ओबीसी कर्मचारी एसोसिएशन, दिल्ली के सचिव धनंजय कुमार आदि ने अपने मूल्यवान वक्तव्य से युवाओं का उत्साहवर्द्धन किया।
दूसरे दिन समागम का उद्घाटन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं सांसद बाबूलाल मरांडी ने किया। ‘राजनीति में युवाओं की भूमिका’ पर विचार रखने के लिए भारतीय पक्ष पत्रिका के संपादक विमल कुमार सिंह, सूचना अधिकार कार्यकर्ता मनीष सिसोदिया, अंडमान निकोबार के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप राय शर्मा समेत देश के विभिन्न हिस्सों से अनेक गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे। अपने संबोधन में बाबू लाल मरांडी ने कहा कि ग्रामीण इलाके में इस तरह का आयोजन अदभुत है। गांधी जी को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि गांव को देखकर भारत की सही तस्वीर दिखती है और गांव में इस तरह का कार्यक्रम का आयोजन कर उनके सपनों को साकार करने की कोशिश की गई है। दिल्ली, रांची और पटना जैसे शहरों में तो ऐसे सैकड़ों सेमीनार होते हैं। लेकिन देश भर से लोगों को बुलाकर, विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को बुलाकर दूरदराज के गांव में ऐसा कार्यक्रम आयोजित करना महत्वपूर्ण कदम है और ऐसे आयोजन निरंतर होते रहने चाहिए। बाबू लाल मरांडी ने युवाओं को सचेत करते हुए कहा कि ‘राजनीति में नकल उपयुक्त नहीं है और हमें समकालीन परिस्थितियों के मुताबिक निर्णय लेने पड़ेंगे। इसके लिए उन्होंने युवा पीढ़ी से राजनीति के परंपरागत ढर्रे से ऊपर उठने की बात कही। इससे पहले भारतीय पक्ष के संपादक विमल कुमार सिंह ने राजनीति को एक एक चक्रव्यूह की संज्ञा देते हुए कहा कि ‘समाज के लिए प्रतिबद्ध युवाओं के लिए राजनीति में प्रवेश करना आसान नहीं है।’ छात्र राजनीति पर कटाक्ष करते हुए विमल जी ने कहा कि यह भी राजनीतिक दलों की कार्बन कॉपी भर बन कर रह गए हैं। उन्होंने सामाजिक परिवर्तन एवं राजीनीति में प्रभावकारी हस्तक्षेप में युवाओं की भूमिका को सुनिश्चित करने के लिए जिला स्तर पर कॉलेज विद्यार्थियों को संगठित करने की बात कही। इसके लिए विमल सिंह ने युवाओं के प्रशिक्षण को एक महती आवश्यकता बताया।
आरटीआई विशेषज्ञ मनीष सिसोदिया ने राजनीति एवं प्रशासनिक व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार में सुधार के लिए सूचना के अधिकार के उपयोग को रामबाण बताया। स्थानीय जनता को संबोधित करते हुए मनीष सिसोदिया ने कहा कि आज युवा तकनीक एवं प्रबंधन की पढ़ाई भले ही पढ़ रहें, लेकिन संबंधों को जीने की कला से वे महरूम रह जाते हैं। इस तरह से समाज में एक ओर जहां अनपढ़ शोषित युवा वर्ग तो दूसरी ओर पढ़े लिखे अहंकार से ग्रस्त युवाओं की जमात खड़ी हो रही है, जो समाज में विषमता का प्रतीक है। मनीष सिसोदिया ने कहा कि वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना के लिए जनता के हाथ में राजनीति की ताकत होनी चाहिए और इसके लिए युवाओं को राजनीति में लाने के लिए पहले जगह बनाने की जरूरत है। अंडमान निकोबार के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप राय शर्मा ने सामाजिक पुननिर्माण के लिए युवाओं को आगे आने के लिए प्रेरित करते हुए सामाजिक कार्य से जुड़ने के लिए कहा। ग्रामीण युवाओं में प्रतिभा की कमी नहीं है, जरूरत बस उन्हें सही दिशा देने की है, जिससे भविष्य के प्रति उनमें एक दृष्टिकोण का विकास हो सके। इसी बात को ध्यान में रखते हुए ‘मीमांसा एक पहल’ के तत्वाधान में आयोजित राष्ट्रीय युवा समागम दूसरे दिन द्वितीय सत्र में कैरियर कांउसलिंग का आयोजन किया गया, जिसमें स्थानीय छात्रों ने कैरियर से संबंधित अपने सवाल विशेषज्ञों के समक्ष रखे।
मीमांसा एक पहल के कृतित्व एवं यात्रा पर आधारित डाक्युमेन्ट्री फिल्म भी इस अवसर पर प्रदर्शित की गई। इसी दौरान पूर्व सांसद एवं शिक्षाविद् डॉ. अरुण कुमार के कर कमलों से सामाजिक कार्यकर्ता प्रदीप कौशिक, पश्चिम बंगाल के कुल्टी नगर निगम पार्षद अजय प्रताप सिंह, मिथलेश झा (एमबीबीएस) और चित्रकार विजेन्द्र एस. विज को युवा गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया। जबकि जवान होते हुए लड़के का कबूलनामा काव्य संग्रह के लिए जेएनयू के शोधार्थी निशांत को नागार्जुन कृति सम्मान दिया गया। सामाजिक कार्यकर्ता प्रदीप कौशिक ने झारखंड के पाकुड़ के संथाल आदिवासियों के जीवनसंघर्ष एवं गरीबी की दुर्दशा को बयां करते हुए उनके बीच कार्य करने के अपने अनुभवों को साझा किया। अन्य सम्मानित प्रतिनिधियों ने भी अपने विचार इस अवसर पर रखे।
कार्यक्रम के अंत में पारंपरिक गीत गजल संध्या का बहेड़ा के सैकड़ों ग्रामीणों समेत देश भर से आये युवा प्रतिनिधियों, शिक्षाविदों, कलाकारए सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं मीडियाकर्मियों ने भरपूर आनंद उठाया। कार्यक्रम का संचालन मिरांडा हाउस कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय की प्राध्यापिका डॉ. संगीता राय ने किया। इस दो दिवसीय अभूतपूर्व आयोजन से अभिभूत स्थानीय जनमानस ने करतल ध्वनि से आयोजकों के प्रति अपना स्नेह एवं आभार जताया। संयोजक विजय कुमार मिश्र ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि बहेड़ा की भूमि से आरंभ राष्ट्रीय युवा समागम का यह सिलसिला देश के विभिन्न जिलों में आयोजित किया जायेगा। बहरहाल ठेठ गंवई परिवेश में राष्ट्रीय स्तर के इस तरह के कार्यक्रम के आयोजन से यह सिद्ध हो चुका है कि ग्रामीण युवाओं में भी प्रतिभा एवं उत्साह की कमी नहीं है, बस जरूरत है एक उन्हें पर्याप्त दिशा देने की।
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