Sunday, November 15, 2009

मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद की 121वीं जयंती पर रुधौली में सेमिनार और मुशायरा

बस्ती।



इमामुलहिन्द आज़ादी के अजीम लीडर और स्वतंत्र भारत के प्रथम केन्द्रीय शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की 121वीं यौमें पैदाइश के अवसर पर श्रद्धाँजलि अर्पित करने के लिए मजलिश-ए-इस्लाहुल मुस्लमीन-रूधौली के द्वारा संचालित मौलाना अबुल कलाम आजाद इस्लामिक जूनियर हाईस्कूल के तत्वाधान में सेमीनार एवं मुशायरे का आयोजन किया गया। सेमिनार में वक्ताओं ने मौलाना आज़ाद के जीवन के हर पहलू पर खुल कर बहस की। सेमीनार की अध्यक्षता कर रहे मौलाना अब्दुल हफ़ीज़ रहमानी सेखुल हिन्द-एकेडमी दारुल-उलूम देवबन्द ने कहा कि मौलाना आजाद देश की एकता के सबसे बड़े अलम बरदार ते, और शख्त विरोधी थे। उन्होंने कहा कि जिस समय आज़ादी का आन्दोलन पूरे शबाब पर था उस समय देश में दो तरह के लोग सर उठाने लगे। एक तबका देश को आज़ाद कराने में कमर कसे था तो दूसरा कुर्सी की दौड़ में। इसी कसमकश में देश विभाजन का शिकार हो गया और पाकिस्तान वज़ूद में आया। मौलाना रहमानी ने किसी का नाम न लेते हुए कहा कि जो लोग देश के विभाजन के लिए जिम्मेदार थे वे पाकिस्तान की हालत देखें।

मुम्बई हाईकोर्ट के अधिवक्ता और कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जनाब कुद्रतुल्लाह ने सुझाव दिया कि मौलाना आज़ाद पर हर महीने लेख द्वारा चर्चा होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मौलाना आज़ाद अपनी बहुचर्चित पत्रिका अल हलाल तथा हलबलाल के द्वारा देशवासियों के दिलों में आज़ादी की आग भड़का दी, जिससे देशवासी एकत्र होकर आज़ादी के लिए कमर बस्ता हुए थे। हक़ीम अब्दुर्रउफ ने कहा कि आज़ादी से पूर्व मौलाना आज़ाद कई बार जेल गये।

संस्थाध्यक्ष मोहम्मद असलम "शॉदा बस्तवी"ने कहा कि मौलाना आज़ाद को देश का पहला केन्द्रीय शिक्षा मंत्री बनाया गया। उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए बहुत से कार्य किये। कार्यक्रम का शुभारम्भ विद्ञालय के छात्र एजाज अहमद ने तिलावत-ए-कलाम पाक से किया। जबकि 8वीं कक्षा की छात्रा कौशर जहाँ ने मौलाना आज़ाद के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालकर लोगों के दिलों को मोह लिया। विद्यालय के छात्र अब्दुल माबूद ने तराना पेश किया। उसके बाद कार्यक्रम मुशायरे में बदल गया। सबसे पहले सन्त कबीर नगर जनपद के सेमरियावाँ बाज़ार के मशहूर और उस्ताद शायर मनव्वर बस्तवी ने यह शेर पेश करके खूब वाहवाही बटोरी-

कहो उससे तमन्ना करे न फूलों की, जो फसल उगाता रहा बबूलों की।
तमाम उम्र गुजरी है बेवसूलों में,वह बात कैसे करेगा वसूलों की।।


कविराज भट्ट की बारी आयी तो उन्होंने मौलाना आज़ाद को श्रद्धाँजलि अर्पित करते हुए कहा-

मौलाना आज़ाद तुम्हें सौ बार नमन है;जन्म दिवस पर सभी कर रहे अभिनन्दन है।

कार्यक्रम का संचालन कर रहे रशीद बस्तवी का यह शेर खूब सराहा गया।

धड़कता दिल मेरे सीने में है रशीद आखिर,
जुनू में जुल्म की जन्जीर तोड़ सकता हूँ।


शाँदा बस्तवी ने श्रोताओं का ध्यान मौलाना आज़ाद की तरफ आकृष्ट कराते हुए यह शेर पेश किया।

मुल्कोमिल्लत के निगहबान थे मौलाना कलाम।
गुनचये जिस्त का उनवान थे मौलाना कलाम।।


इसके बाद डॉ॰ परशुराम वर्मा ने अपनी रचना के माध्यम से मौलाना आज़ाद के जीवन पर प्रकाश डाला। उनकी पंक्तियाँ खूब सराही गईं।

वतन के लिएलहू देकर तूने, बढ़ाया जिसकी शान-ए-आज़ाद।
तेरे अहसानों को नहीं भूल सकता, ये अपना हुन्दुस्तान-ए-आज़ाद।।


ख्याति प्राप्त शायर दीदार बस्तवी ने मुशायरे को बुलन्दी पर पहुँचा दिया, उनका शेर-

दिलोजिगर में जरा हौसला तो पैदा कर, मिलेगी मंजिल तू रास्ता तो पैदा कर।
हर एक जुल्म की जन्जीर टूट जायेगी, तू अपने वीन कोई रहनुमा तो पैदा कर।






प्रेषक-
मोहम्मद असलम 'शाँदा बस्तवी'
रुधौली (बस्ती)