Wednesday, November 18, 2009

पारदर्शिता ही जनसूचना अधिकार का उद्देश्य- एस.आर. ढलेटा



विगत दिनों सिद्धार्थ नगर जनपद स्थित रतन सेन डिग्री कालेज, बांसी द्वारा दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन बौद्ध अध्ययन केंद्र के तत्वाधान में आयोजित किया गया. इस अवसर पर विधि मंत्रालय के संयुक्त सचिव श्री एस.आर. ढलेटा स्वच्छ लोकतंत्र हेतु सूचना के अधिकार का महत्व विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि लोकहित में सरकार के क्रिया कलापों में पारदर्शिता, भ्रष्टाचार मुक्ति, प्रशासनिक अधिकारियों का उत्तरदायित्व, पूर्ण व्यवहार जनसूचना के अधिकार का मूल उद्देश्य है. उन्होंने कहाकि इस अधिकार के अंतर्गत नागरिकों को केंद्रीय सरकार के सभी मंत्रालयों/विभागों, राज्य सरकारों, उच्च न्यायालयों, निकायों, सरकार द्वारा पोषित वित्तीय संस्थानों/स्वैछिक संस्थानों आदि से भी सूचना 30 से 60 दिनों के भीतर प्राप्त की जा सकती है. श्री ढलेटा ने कहाकि इसके लिए प्रत्येक विभाग में सूचना अधिकारी नियुक्त है जो किसी भी सूचना मांगने वाले भारतीय नागरिक से यह नहीं पूछ सकते कि सूचना किसलिए और क्यों मांगी जा रही है, मांगे जाने पर उन्हें सरकार की मंशा के अनुरूप हर हाल में अपेक्षित सूचनाएं देनी ही होंगी.

संगोष्ठी के विशिष्ठ अतिथि श्री शमशेर अहमद खान ने कहाकि कपिलवस्तु गणतंत्र की जन्मदाता है, यहीं से लोकतंत्र पूरी दुनिया में गया है.उन्होंने जनता के सरकार की भागीदारी पर चर्चा की एक आदर्श तथा जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए लोगों को प्रेरित किया.

पुलिस अधीक्षक श्री उपेन्द्र कुमार अग्रवाल ने कहाकि सूचना का अधिकार अधिनियम दिनोंदिन प्रासंगिक होता जा रहा है. शिक्षा के केंद्र इस दिशा में जागरूक हो रहे हैं जो देश के लिए शुभ संकेत है. उन्होंने भ्रष्टाचार को नासूर बताते हुए कहाकि इसे जागरूकता से ही मिटाया जा सकता है.मुख्य विकास अधिकारी श्री ताहिर इकबाल ने कहाकि परिवर्तन विकास की एक प्रक्रिया है. सूचना का अधिकार नागरिक अधिकार के क्षेत्र में मील का पत्थर है.

इस अवसर पर महाविद्यालय के प्रबंधक और पूर्व विधायक श्री जय प्रताप सिंह ने चर्चा करते हुए कहाकि जनसूचना का यह अधिकार लोकरुचि का विषय है और नागरिक अधिकारों में एक क्रांतिकारी क़दम है जिसे ऐतिहासिक उपलब्धि समझना चाहिए.



उक्त अवसर पर ए डी एम सिद्धार्थ नगर श्री एम के त्रिवेदी ने कहाकि सूचना का अधिकार आज भी प्रासंगिक है, हर नागरिक को सूचना अधिनियम 2005 से सूचना पाने के अधिकार के लिए यह एक हथियार है.

अंत में महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. हरेश प्रताप सिंह ने गोष्ठी में उपस्थित सभी अतिथियों, प्राध्यापकों,छात्र-छात्राओं,गणमान्य अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया.कार्यक्रम का संचालन डॉ. जय नारायण मिश्र ने किया.

अगले दिन की संगोष्ठी का संबोधन भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग के केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान, दिल्ली में कार्यरत सहायक निदेशक श्री शमशेर अहमद खान ने किया. उन्होंने कहा कि भारत बहुभाषी देश है. अनुच्छेद 343 से 351 तक राजभाषा का उल्लेख है. अंग्रेजी सहराजभाषा है. यही नहीं,राज्यों की अपनी राजभाषा है और उन्हें भी अपनी सह राजभाषाएं बनाने का पूरा संवैधानिक अधिकार है. भाषा देश को जोड़्ती है. दुनिया में लोकतंत्र की जननी भी भारत भूमि है. केंद्र की भाषा नीति और उसका क्रियान्वयन, देश की राष्ट्रीय एकता और अखंडता को मजबूत करने में अहम भूमिका का निर्वहन करता है.हिंदी देश की प्रतिनिधि भाषा है और राष्ट्र भाषा के रूप में राष्ट्रीय एकता की कड़ी है. उन्होंने कहाकि देश की भाषायी जटिलता राष्ट्रीय एकता में बाधा नहीं है. विविध भाषी देश होने के बावजूद भारत की सांस्कृतिक एकता का आधार परस्पर समन्वय ही है, जो भाषाओं के बीच विद्यमान सौम्यता का कारण है. संस्कृत अधिकांश भारतीय भाषाओं की जननी है. आज पूरी दुनिया को एकता के सुत्र में बांधने में बौद्ध धर्म का योगदान ऐतिहासिक है.



रिपोर्ट-
शमशेर अहमद खान
2-सी,प्रैस ब्लॉक,पुराना सचिवालय, सिविल लाइंस, दिल्ली-110054

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पाठक का कहना है :

gazalkbahane का कहना है कि -

बाकी बात तो ठीक है लेकिन भारत में पहले गणराज्य तो यौधेय थे जो सत्लुज के किनारे से व्यास के बीच फ़ैले थे-और जिनका पराभव चाणक्य द्वारा चंद्रगुप्त को शासक बनाकर किया गया

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