
बाएँ से- जगदीश रावतानी आनंदम, जगदीश जैन, ममता किरण और मनमोहन तालिब
15 दिसंबर की शाम को कस्तूरबा गांधी मार्ग, कनॉट प्लेस स्थित मैक्स न्यूयॉर्क लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के सभागार में आनंदम् की इस वर्ष की अंतिम काव्य गोष्ठी हिन्दी, उर्दू और पंजाबी की रचनाओं की रंगबिरंगी छटा के साथ अत्यंत उल्लास पूर्ण माहौल में संपन्न हुई। गोष्ठी में दिल्ली के अलावा अलीगढ़, ग़ाज़ीयाबाद व रेवाड़ी इत्यादि अन्य नगरों से पधारे नए, पुराने, युवा एवं अनुभवी सभी रचनाकारों ने छन्दबद्ध एवं छन्दमुक्त दोनों तरह की उत्कृष्ट रचनाएँ पेश कीं और श्रोताओं की ख़ूब वाहवाही लूटी।
निम्न लिखित रचनाकारों ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति से गोष्ठी की शोभा बढ़ाई-
सर्वश्री मुनव्वर सरहदी, नाशाद देहलवी, जगदीश जैन, नागेश चन्द्र, मासूम ग़ाज़ियाबादी, रमेश सिद्धार्थ, डॉ. रज़ी अमरोहवी, नश्तर अमरोहवी, दरवेश भारती, सोढी प्रीतपाल सिंह पाल, डॉ. मनमोहन तालिब, पंडित प्रेम बरेलवी, मजाज़ मरोहवी, भूपेन्द्र कुमार, जगदीश रावतानी, क़ैसर अज़ीज़, प्रेमचंद सहजवाला, शिव कुमर मिश्र मोहन, शैलेश सक्सैना, पुरुषोत्तम वज्र, सतीश सागर, जितेन्द्र प्रीतम, रमेश भम्भानी, श्रीमती दिनेश आहूजा एवं श्रीमती ममता किरण।
अपने ख़ूबसूरत अंदाज़ में गोष्ठी का संचालन श्रीमती ममता किरण ने किया जिसकी अध्यक्षता जनाब जगदीश जैन ने की। गोष्ठी में प्रस्तुत की गई कुछ रचनाओं की बानगी देखें –
दरवेश भारती-
एक ख़ुदा को छोड़ कर सजदा करे है दर-ब-दर
आज हर शख़्स ने कितने ख़ुदा बना लिए
मासूम ग़ाज़ियाबादी-
हमेशा तंगदिल दानिश्वरों से फ़ासला रखना
मणि मिल जाए तो क्या साँप डसना छोड़ देता है
लक्ष्मी शंकर वाजपेयी-
बाज़ार में मिले हैं चीज़ें ही नहीं नक़ली
नक़ली का ही रोना है रिश्तों की दुकानों में
रमेश सिद्धार्थ-
यूँ उजालों का इंतज़ार करोगे कब तक
ग़म के सायों से बार-बार डरोगे कब तक
ममता किरण-
चाहे जितना वो रूठ लें मुझ से,
मान ही जाएँगे मनाने से
घर में आएगा जब नया बच्चा,
घर हँसेगा इसी बहाने से
सतीश सागर-
कुआँ उन्होंने भी खोदा था, कुआँ इन्होंने भी खोदा है
असली बात ये है कि पानी न तब था न पानी अब है
नश्तर अमरोहवी-
अभी पे नहीं मिली,
तू आजकल क्रीम पाउडर को भूल जा
शलवार को कमीज़ को जम्पर को भूल जा
घर के हर एक ख़ाली कनस्तर को भूल जा
बिस्तर हो तुझको याद तो बिस्तर को भूल जा
बस रख यही ख़याल, अभी पे नहीं मिली
पंडित प्रेम बरेलवी-
जाने वालों से रोता है
दिल कितना नाज़ुक होता है
जितेन्द्र प्रीतम-
देश तो महान ये, धरती की शान ये
देखिए तो कैसे बदनाम हो गया है जी
जाति धर्म प्रांत और भाषाओं के झगड़े में
स्वाभिमान इसका नीलाम हो गया है जी
रज़ी अमरोहवी-
मेरी ग़ज़ल का तुम्हें इंतज़ार बाक़ी है
सुनार पढ़ चुके सारे, लुहार बाक़ी है
गोष्ठी के अंत में आनंदम् के संस्थापक जगदीश रावतानी जी ने सभी को सूचित किया कि जिस प्रकार आनंदम् के अंतर्गत संगीत के कार्यक्रम निरंतर आयोजित हो रहे हैं उसी प्रकार आनंदम् की योजना है कि नव वर्ष के आरंभ से ही हर माह में तीन चार अन्य गोष्ठियाँ आयोजित की जाएँ जिसके लिए उन्होंने उपस्थित विद्वजनों से इस संबन्ध में सुझाव मांगे। कुछ लोग इस पक्ष में थे कि लघुकथा गोष्ठी आयोजित की जाए तो कुछ का सुझाव था कि सामयिक विषयों पर चर्चा गोष्ठी आयोजित की जाए तथा कभी-कभी पुस्तक चर्चा के साथ-साथ किसी कवि का एकल काव्य पाठ भी आयोजित किया जाए। उन्होंने आश्वासन दिया कि इन सुझावों पर यथासंभव अमल किया जाएगा। अंत में सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापन के साथ गोष्ठी संपन्न हुई।

मंत्रमुग्ध श्रोता-1

मंत्रमुग्ध श्रोता-2
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4 पाठकों का कहना है :
सभी को बहुत बहुत बधाई
सभी रचनाएं बेहतरीन हैं...सभी को बहुत-बहुत बधाई और शुभकाम्नाएं!
sabhi ashaar achhe hain mubarakbad
sabhi ashaar behtar hain mubarakbaad
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