Sunday, January 17, 2010

आधुनिक व दार्शनिक दृष्टि से हिन्द स्वराज अधिक प्रासंगिक- आचार्य नंदकिशोर

हिन्द स्वराज की प्रासंगिकता पर व्याख्यान सम्पन्न



रायपुर, 16 जनवरी।

ख्यातिनाम गांधीवादी, चिंतक और लेखक जयपुर के नंदकिशोर आचार्य ने कहा है गांधी जी की किताब हिन्द स्वराज्य आधुनिक एवं दार्शनिक दृष्टि से आज अधिक प्रासंगिक है। उन्होंने हिन्द स्वराज्य का विश्लेषण करते हुए कहा कि स्वदेशी, स्थानीय जरूरतों के, लिए स्थानीय संस्थानों से स्थानीय लोगों के लिए विकसित टेक्नालाजी है। यह विचार आचार्य ने महात्मा गांधी द्वारा रचित विश्व प्रसिद्ध कृति हिन्द स्वराज की 100 वीं वर्षगांठ के अवसर पर रायपुर प्रेस क्लब के सभागार में हिन्द स्वराज्य की प्रासंगिकता विषय पर आयोजित व्याख्यान के दौरान व्यक्त किए। कार्यक्रम का आयोजन प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान द्वारा किया गया। उक्त अवसर पर प्रख्यात आलोचक श्री भगवान सिंह की नाट्यकृति बिन पानी बिन सुन का विमोचन भी श्री नंदकिशोर आचार्य के हाथों संपन्न हुआ।

नंदकिशोर आचार्य ने हिन्द स्वराज्य की प्रासंगिकता पर कहा कि इस पर देश में गंभीर, चिन्तन नहीं हुआ। यह अपने आप में एक सनातन प्रासंगिकता है। प्राणियों में मनुष्य में चेतना का विकास हुआ और बाद में उसमें हस्तक्षेप करने की क्षमता विकसित हुई। वर्तमान मनुष्य पर निर्भर करता है कि वह उसका उपयोग विकास के लिए करें या विनाश के लिए। उन्होंने तीन महान विचारकों की पुस्तकों का जिक्र करते हुए कहा कि एडम स्मिथ ने उत्पादन पर जोर दिया उससे बाजार की समस्या उत्पन्न हो गई परिणाम स्वरूप यह सिद्धांत समस्या सुलझाने में असमर्थ हो गया। इसी तरह कार्ल माक्र्स ने उत्पादन पर समाज के अधिकार का सिद्धांत दिया जिससे कार्पोरेट सेक्टर के पास स्वामित्व चला गया और नतीजा यह हुआ कि रूस में एकाएक आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया। जबकि गांधी जी के हिन्द स्वराज में ऐसी टेक्नालाजी पर बल दिया गया है जो समतामूलक एवं अहिंसात्मक हो। उन्होंने कहा कि प्रकृति और मनुष्य के बीच का संबंध ही आपसी रिश्तों को बढ़ाएगा। उन्होंने कहा कि हिन्द स्वराज्य सनातन सिद्धांतों पर आधारित है और आज के इस वैज्ञानिक युग में यह हम सब पर निर्भर करता है कि विकास अथवा विनाश में से कौन सी स्वतंत्रता चाहते हैं।

इसके पूर्व व्याख्यान कार्यक्रम के आरंभ में भागलपुर से आए चर्चित आलोचक श्रीभगवान ने कहा कि गांधी जी उपनिवेशवाद के विरोधी थे और सर्व समाज एवं सभी देशों के आगे बढऩे की बात करते थे। उन्होंने कहा कि विज्ञान का मतलब ज्ञान का सोच समझकर उपयोग करना है। गांधी जी भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल आचरण, नीतियों और श्रुतियों के अनुसार विकास की बात करते थे। गांधी जी स्वावलंबन और स्वायतता की बात करते थे क्योंकि उससे ही देश में सबको रोजगार मिलने के साथ ही आत्मनिर्भर बढ़ सकती थी। कालान्तर से देश में ही उनके हिन्द स्वराज की कल्पना की उपेक्षा कर दी गई मगर आज उसकी प्रासंगिकता और बढ़ गई है। श्री भगवान ने कहा कि गांधी जी के सिद्धांतों में ग्रामीण स्वावलंबन की भावना छुपी हुई है। पश्चिमी दौड़ के कारण अपव्यय तथा धन का दुरूपयोग बढ़ा है जिस पर किसी का ध्यान नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि गांधी जी के सिद्धांतों को याद नहीं किया गया तो हम सब पर भारी संकट आने वाला है।

व्याख्यान के अध्यक्षीय उद्बोधन में कवि विश्वरंजन ने कहा कि एडम स्मिथ कार्ल मार्क्स एवं समतावादी समाज की संरचना से ज्यादा वैज्ञानिक व्यवहारिक, सोच गांधी जी की थी। गांधी जी नए युग के मनुष्य के लिए सबसे बड़े प्रकाशपुंज की तरह हैं। आज हम उनकी बुनियाद को अपने अंदर कितना गहरे में उतार पाते हैं यह आज की सबसे बड़ी प्रासंगिकता है। उन्होंने कहा कि बस्तर में पहले सामंतवादी माहौल था उसके बाद वन संरक्षण अधिनियम, पर्यावरण अधिनियम के कारण आदिवासियों को काफी दिक्कतें आई। इन्हीं सबके चलते नक्सलवादी जैसी ताकतों को पैर पसारने के लिए अवसर मिल गया। उन्होंने कहा कि नक्सली सिद्धांत हिंसा पर केन्द्रित है और आखिर में वह टूटेगी पर बहुत नुकसान के बाद। उन्होंने कहा कि बस्तर की परिस्थिति अलग है कितने भी तथाकथित गांधीवादी हों वे नक्सली सुरंग के बीच जाकर बताएं। विश्वरंजन ने कहा कि सोच वाला व्यक्ति निडर होता है। गांधी जी बड़े सत्यान्वेषी थे। उनकी सोच समतावादी थी। जो लोक के लिए सुविधाजनक है वह प्रासंगिक है।
कार्यक्रम के अंत में प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान की ओर से संस्थान के अध्यक्ष विश्वरंजन ने नंदकिशोर आचार्य और श्रीभगवान को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। आरंभ में अतिथियों का पुष्पहार से स्वागत किया गया। इस अवसर पर श्रीमती इंदिरा मिश्र, विनोद कुमार शुक्ल, नंदकिशोर तिवारी, राजेन्द्र मिश्र, बसंत तिवारी, संस्कृति आयुक्त राजीव श्रीवास्तव, प्रभाकर चौबे, रवि भोई, अशोक सिंघई, केयूर भूषण, गुलाब सिंह, प्रभाकर चौबे, विनोद शंकर शुक्ल, सुभाष मिश्र, जयप्रकाश मानस, डी.एस.अहलुवालिया, डॉ. प्रेम दुबे, डॉ. वंदना केंगरानी, एच.एस.ठाकुर, एस. अहमद, संजीव ठाकुर, डॉ,सुधीर शर्मा, राम पटवा, हसन खान, अलीम रजा, नईम रजा, विनोद मिश्र, रवि श्रीवास्तव, विनोद साव, कमलेश्वर, बी. एल. पॉल, चित्रकार सुश्री सुधा वर्मा, एवं बड़ी संख्या में दुर्ग, भिलाई, बिलासपुर और रायपुर के लेखक, पत्रकार, एवं प्रबुद्ध नागरिक उपस्थित थे।

राम पटवा

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पाठक का कहना है :

RAJ SINH का कहना है कि -

दुर्भाग्य है की नेहरु ने गांधी के जीते ही ' हिंद स्वराज ' की परिकल्पना का मजाक उड़ा उसे ख़ारिज कर दिया था .
अन्त्योदय से सर्वोदय तक की गांधी परिकल्पना ही गांधी का ' रामराज्य ' थी .और इसी वायदे के साथ आजादी की लडाई लड़ी गयी थी.

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