मैं आवाज़ हूँ श्रीमती कुसुमवीर की कविताओं का संग्रह है. इसमें जीवन से जुड़े अनेक संघर्ष और अनुभवों की अभिव्यक्ति अक्षरों से युक्त होकर सतरंगी इंद्रधनुष का सा आभास कराते हैं. ये कविताएं केवल भावभूमि के स्तर पर ही उदात्त अवस्था में ही नहीं पहुचांती बल्कि यथार्थ के धरातल पर सामाजिक विद्रूपताओं और स्वंय की भोगी गई मानसिक यंत्रणा को भी बेहद सूक्ष्मता के साथ अभिव्यक्ति प्रदान कर देती हैं.वे अपनी मैं आवाज़ हूं कविता में कहती हैं-
मैं, एक आवाज़ हूँ, जीती जागती,झंझावतों को चीरती, जुल्मों को बींधती, म्यान से निकल, अत्याचारों को रौंदती,
तुम सोचते हो, दबा सकोगे तुम, मेरी आवाज़ को, मेरी ताक़्त को,
मेरी शख्सियत को, मेरे वजूद को,
आज तक कौन बांध सका है, मुझे अपने पाश में, न मानव, न दानव,
न सूरज, न तारे,
गवाह हैं, ये सभी मेरे सत्ता के, मेरे आस्तित्व के, मेरी आवाज़ के,
मेरी आवाज़ युगों से पुकार रही है, मुझे जीने दो, खुली हवा में,
सांस लेने दो.
संग्रह के आगाज़ में दिनेश मिश्र अपनी टिप्पणी में भी यही कहते हैं-कुसुमवीर की कविताओं में जहां एक ओर मानवीय संबंधों की उलझनें सामने आती हैं, वहीं दूसरी ओर रिश्तों की सच्चाई भी कुछ तल्खी बयां करती हुई नज़र आती है.
कुसुमवीर की कविताओं के संग्रह का लोकार्पण आज इंडिया इंटर्नेशनल सेंटर में श्रीमती कमला सिंघवी के कर कमलों द्वारा सम्मानीय विद्वतजनों के समक्ष लोकार्पित हो गया. इस अवसर पर कवयित्री कुसुमवीर ने अपने इस संग्रह से कुछ कविताओं का कविता पाठ भी किया
रिपोर्ट और फोटो- शमशेर अहमद खान
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3 पाठकों का कहना है :
बहुत-बहुत बधाई
कुसुमवीर जी को बहुत-बहुत बधाई! सुन्दर तस्वीरों के साथ खबर के लिये आभार!
माननीय कुसुमवीर जी को बहुत बहुत बधाई।
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