
(बाएं से दाएं)- सुरेशचंद्र शर्मा, शचीन्द्र त्रिपाठी, विश्वनाथ सचदेव, पं राम नारायण, प्रो.नंदलाल पाठक और रामस्वरूप गाड़िया

परिवार के आयोजन में श्रोता भी बहुत अच्छे-अच्छे आते हैं । इस बार भी मुम्बई के दो प्रमुख घरानों का नेतृत्व करने करने वाली दो प्रमुख हस्तियाँ श्रीमती राजश्री बिरला और श्रीमती किरण बजाज श्रोताओं में मौजूद थीं । कवि देवमणि पाण्डेय के संचालन में सम्पन्न काव्य उत्सव में महक भारती (पटियाला) और रमेश शर्मा (चित्तौड़गढ़) ने गीतों की छटा बिखेरी । शायर निदा फ़ाज़ली और हस्तीमल हस्ती ने ग़ज़लों, दोहों और नज़्मों से अदभुत समां बांधा । हास्य कवि आसकरण अटल की हास्य कविताओं ने श्रोताओं को लोटपोट कर दिया । दूसरे दौर में रमेश शर्मा ने शहर के विरोध और गाँव के पक्ष में एक ऐसा गीत सुनाया जिसे सुनकर हाल में सन्नाटा छा गया । सन्नाटे को तोड़ते हुए संचालक देवमणि पाण्डेय ने कहा – राजस्थान के गाँव इतने सुँदर हो सकते हैं मगर हमारे उ.प्र. के गाँव बहुत बदल गए हैं । इसी मंच पर कवि कैलाश गौतम ने कहा था- अब उ.प्र. के गाँवों में किराना स्टोर्स में पाउच (पन्नी) में शराब बिकती है । उन्होंने एक दोहा सुनाया था-
पन्नी में दारू बँटी पंच हुए सब टंच।
सबसे ज़्यादा टंच जो वही हुआ सरपंच।।
भगवान कृष्ण के वंशज भी कितने बदल गए हैं, इस पर भी कैलाश जी ने एक दोहा सुनाया था-
दूध दुहे , बल्टा भरे गए शहर की ओर।
शाम हुई, दारू पिए लौटे नंदकिशोर।।
जब संचालक पाण्डेय जी ने यह दोहा उद्धरित किया तब श्रोताओं ने ज़ोरदार ठहाका लगाया शायद इस लिए कि पहली पंक्ति में नंदकिशोर जी यानी वरिष्ठ पत्रकार नंदकिशोर नौटियाल मौजूद थे । कुल मिलाकर हर साल की तरह परिवार का काव्य उत्सव इस बार भी श्रोताओं के दिलो-दिमाग़ पर अपनी छाप छोड़ गया ।

(बाएं से दाएं)- हस्तीमल हस्ती, आसकरण अटल, निदा फ़ाज़ली, शचीन्द्र त्रिपाठी, विश्वनाथ सचदेव, नंदकिशोर नौटियाल, पं राम नारायण, प्रो.नंदलाल पाठ, रामस्वरूप गाड़िया और महक भारती
रमा पाण्डेय, मुम्बई
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पाठक का कहना है :
नंदलाल पाठक जी को बधाई। उनकी एक कविता यहां पोस्ट की थी कभी हमने।
आपत्ति फ़ूल को है माला में गुथने में
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