Wednesday, April 28, 2010

आनंदम की जीवंत 21वी काव्य गोष्ठी



जीवन की आपाधापी से दूर जब कविगण एक स्थान पर एकत्र होते हैं तो वहीँ वो जीवन के हर रंग का एहसास दिलाकर एक पूरी दुनिया बसा देते हैं। आनंदम की 21वीं गोष्ठी जो 20 अप्रेल 2010 को मैक्स इन्श्योरेंस के सभागार में संपन्न हुई, में भी इस दुनिया के हर जज्बे का जीवंत अनुभव हुआ। गोष्ठी की सदारत जनाब खालिद अलवी साहिब ने की। आनंदम अध्यक्ष जगदीश रावतानी ने एक भेंट देकर खालिद साहिब का स्वागत किया। संचालन किया श्रीमती ममता किरण ने। इस गोष्ठी में शिरकत करने वालों के नाम हैं-

रविंद्र शर्मा "रवि", मासूम गाजियाबादी, मनमोहन तालिब, नंदा नूर, लाल बिहारी लाल, शारदा कपूर, डॉ बर्की आज़मी, ज़र्फ देहलवी, लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, जगदीश रावतानी, डॉ रजी अमरोहवी, नश्तर अमरोहवी, सिकंदर अमरोहवी, मजाज़ अमरोहवी, शैलेश सक्सेना, वीरेन्द्र भंडारी, वीरेन्द्र कमर, नागेश चंद्र, प्रेमचंद सहजवाला, दर्द देहलवी, सतीश सागर, अनुराधा शर्मा, पुरुषोत्तम वज्र, नाशाद देहलवी, सत्यवान और गगन दीप सिंह।

प्रस्तुत की गयी कुछ रचनाओ की झलक:

रविंदर शर्मा रविः
दरखतो की शामत सी आई हुई है
हवा किसलिए तिलमिलाई हुई है

अहमद अली बर्कीः
प्रीत न आई रास रे जोगी
ले लू क्या बनवास रे जोगी

वीरेंदर कमरः
माँ की बीमारी का मंज़र सामने जब भी आता है
सात समंदर पार का सपना सपना ही रह जाता है

दर्द दहलवीः
बस इक बार ज़मी पर लिखा था नाम उसका
वंहा से घास भी निकले तो खुशबू देती है

लक्ष्मी शंकर वाजपेयीः
तजुर्बे मेरे तो अक्सर यही बताते है
पुराने दोस्त ही मुश्किल में काम आते है

प्रेमचंद सहजवालाः
जब कभी माजी ने पूछे दिल से कुछ मुश्किल सवाल
तब ज़माने हाल ने भी दे दिए आसां जवाब

सिकंदर अमरोहवीः
सहन कंहा है जंहा धुप आती जाती थी
कि कपडे डलते थे तारो पर जब सुखाने को



मासूम गजियाबादीः
ज़माने में वो पसमंज़र भी इन आँखों ने देखे थे
कि जब इंसानियत रोई तो हैवानो को नीद आयी
खबर जब से सुनी है मैंने इक पगली के लूटने की
न ढंग से आँखे सो पायी न इन कानो को नींद आयी

लाल बिहारी लालः
( हाइकू)
१ कर्म का फल आज नहीं तो कल

२) हिंदी हो गयी देश के संग विदेशी भाषा

डॉ रजी अमरोहवी
देखने में तो है भरपूर चिलम पर जोबन
गुड़गुडाते है तो फर्शी में कंहा पानी

अनुराधा शर्मा
जिस्म से रूह को लेकर निकला
याद का जब भी कबूतर निकला
इन निगाहों में नशा कितना है
हर दफा पहले से बढ़ कर निकला

अंत में आनंदम अध्यक्ष जगदीश रावतानी ने सभी का धन्यवाद देते हुए प्यार और मुहब्बत यूँ ही बनाये रखने की गुजारिश की।