Friday, April 2, 2010

अंग्रेजी परस्त हैं सरकार की नीतियाँ: इलना



डीएवीपी और आरएनआई समाचारपत्र और पत्रिकाओं के अस्तित्व में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. जब डीएवीपी और आरएनआई जैसे संगठन सही तरह से अपना काम नहीं करते हैं, तो पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन का कार्य प्रभावित होता है. जिस से प्रकाशकों के सामने बहुत सारी परेशानियां खड़ी हो जाती हैं. इस की सब से बड़ी वजह प्रकाशकों का एकसाथ बैठ कर इन समस्याओं पर गंभीरता से विचार न करना होता है. इसी का परिणाम है कि केंद्रीय मंत्रालय, डीएवीपी, आरएनआई और दूसरे विभाग भी भाषाई समाचारपत्रों की घोर उपेक्षा करते हैं. केंद्र ही नहीं, राज्य सरकारों का भी यही हाल रहता है. समाचारपत्रों के प्रकाशकों को इधर से उधर भटकना पड़ता है.
भारतीय भाषाई समाचारपत्र संगठन (इलना) ने देशभर में प्रकाशकों को एकसाथ बैठा कर इन समस्याओं पर गंभीरता से विचार करना शुरू किया है. इस कड़ी में नागपुर और आगरा के बाद 01 अप्रैल, 2010 को एक मीटिंग का आयोजन उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के राज्य सूचना केंद्र, हजरतगंज में किया गया. इस में देश के अलगअलग हिस्सों से आकर 30 से अधिक प्रकाशकों ने भाग लिया.
इलना के राष्ट्रीय अध्यक्ष परेश नाथ की अगुआई में संपन्न हुई इस मीटिंग में डीएवीपी की एंपैनल प्रक्रिया में संशोधनों की आवश्यकता, डीएवीपी द्वारा गठित रेट स्ट्रक्चर कमेटी, विज्ञापन बिलों की प्रक्रिया और भुगतान, डीएवीपी और अन्य सरकारी विभागों के द्वारा विज्ञापनों का असामान्य वितरण, आरएनआई की भूमिका और पीआरबी एक्ट में बदलाव की कोशिशों पर विस्तार से चर्चा हुई.
इलना सदस्यों ने माना कि सरकार और डीएवीपी की विज्ञापन नीतियां अंगरेजी अखबारों को फायदा पहुंचाने वाली हैं. इलना सदस्यों ने किसी को विज्ञापन देने का विरोध नहीं किया, बल्कि उन का यह कहना था कि जनगणना, बालिका शिक्षा, पोलियो जैसे विज्ञापन उन भाषाई अखबारों को भी दिए जाएं, जो विज्ञापन के लिए पंजीकृत हैं. पेड न्यूज मसले पर सदस्यों की राय यह थी कि यह मसला एडीटर और रीडर के बीच छोड़ दिया जाना चाहिए.
भाषाई अखबारों के प्रकाशकों ने तय किया कि वह स्थानीय नेताओं और अफसरों पर दबाव बना कर विज्ञापन की सरकारी नीतियों में बदलाव करने के लिए मजूबर करें.
मीटिंग में इलना के महासचिव रवि कुमार विश्नोई सहित कार्यकारिणी के सदस्य दैनिक नारदवाणी से राजीव वशिष्ठ, मेरठ भूमि से गिरीश कुमार अग्रवाल, बच्चों के संग से विपिन मोहन शर्मा, दैनिक राजपथ से अशोक नवरत्न, संजय कुमार और सदभाव मिलन, देहरादून से जय प्रकाश पांडेय शामिल थे. इस के अलावा पूरे प्रदेश से आए प्रकाशकों, संपादकों में नामांतर से डाक्टर मनसा पांडेय, ऊर्जा टाइम्स से एसके शुक्ला, मधुर सौगात से शिवेंद्र प्रकाश द्विवेदी, इंडिया इनसाइड से अरुण सिंह, सिनैरियो से राजीव कुमार सिंह, इंडियन हेराल्ड से वीके पांडेय, रोजाआना से मो. हफीजउल्ला खान, सफीर टाइम्स से कफील खां, नवसंवाद से एके श्रीवास्तव, कीर्ति प्रकाश से देवेंद्र कुमार शर्मा, फिल्मको फोटो न्यूज से केसी विश्नोई, खरी कसौटी के सरोज चंद्रा, ऊर्जा टाइम्स से शंकर त्रिपाठी, अमर प्रकाश से रतन वाष्णेय, स्वतंत्र चेतना से उमेश मिश्रा, शहीदी दुनिया से डीके शर्मा, नामांतर से नमिता श्रीवास्तव, राम सिंह तोमर, मोहम्मद अतहर सलीम, शहूर अहमद, अब्दुल अतीक और शिव सिंह प्रमुख थे.

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2 पाठकों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

बहुत अच्छे प्रयास के लिए भाषाई अखबारों और प्रकाशकों को बधाई! जरुरी है कि नेताओ और प्रशासन पर इसके लिए सामूहिक दबाव बनाए जायें.

Randhir Singh Suman का कहना है कि -

nice

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