दिनांक 27, मार्च 2010 मुंबई में प्रवासी कवयित्रियों अंजना संधीर और रेखा मैत्र के सम्मान में काव्य-गोष्ठी का आयोजन हिन्दी-उर्दू-सिंधी की लोकप्रिय ग़ज़लकारा देवी नागरानी के निवास स्थान पर आयोजन किया गया। काव्य गोष्ठी में वरिष्ठ गज़लकार श्री आर. पी. शर्मा की अध्यक्षता और संपादक-कवि-मंच संचालक अरविंद राही के संचालन ने एक खुशनुमा समाँ बांध दिया।
काव्य गोष्टी आरंभ करने के पूर्व देवी नागरानी ने पुष्प गुच्छ से महरिष जी का सम्मान किया। फिर देवमणि पांडेय ने दोनों कवयित्रियों का परिचय दिया। आगाज़ी शुरूआत देवमणी पांडेय जी ने अंजना संधीर और रेखा जी के परिचय के साथ की और उन्होंने अंजना जी के कार्य विस्तार पर रोशनी डाली। अंजना जी अब देश-विदेश के बीच की स्थाई पुल बना रही हैं। अंजना जी एक ऐसी विभूति हैं जिन्होंने साहित्य के प्रचार में, संस्कृति के प्रचार में अपना योगदान दिया है। रेखा जी भी निरंतर साहित्य सृजन का कार्य करती आ रही हैं।
हिंदुस्तानी प्रचार सभा की कार्यकर्ता डा. सुशीला गुप्ता जी ने अंजना के प्रति अपनी भावनाएँ व्यक्त करते हुए उनके हिंदी भाषा के प्रति साराहनीय क़दम के उल्लेख किया और उनके प्रयासों की साराहना की।
काव्य सुधा रस के पहले अंजना संधीर, महरिष, अरविंद राही, शिवानी जोशी, देवी नागरानी, एवं संतोष श्रीवास्तव के हाथों डा. राजाम पिल्लै नटराजन की संपादित त्रेमासिक पत्रिका "कुतुबनुमा" के 9वें अंक का विमोचन हुआ। इसके बाद महरिष जी ने रेखा जी का और अंजना जी का देवी नागरानी ने सुमन शाल से सम्मान किया ।
काव्य सुधा की सरिता शाम भर बहती रही जिसमें प्रवाह की पहली अंजुली प्रदान की सुप्रसिद्ध कथाकार-कवयित्री संतोष श्रीवास्तव ने। उन्होंने जब यह कविता पढ़ी तो सभी उपस्थित कवि वाह-वाह कह उठे। "जिन की गंध बटोर सकूँ मैं ऐसी कुछ कलियां दे देना" इस पंक्ति से जो ध्वनि तरंगित होती है, वह प्रवासी कवयित्रियों अंजना संधीर और रेखा मैत्र का प्रतिनिधित्व पूर्ण रूप से करती जान पड़ती हैं। सिलसिले को आगे बढ़ाया देवमणी पांडेय ने (एक समंदर पी चुकूँ और तिश्नगी बाकी रहे), रेखा मैत्र (उंगलियों की फितरत और चाबी वाली गुड़िया), ज़ाफर रज़ा( आज शाम के चेहरे पे उदासी क्यों है), डा. सुशीला गुप्ता( बूंद), अंजना संधीर(निकले गुलशन से तो गुलशन को बहुत याद किया),
खन्ना मुज़फ्फ़रपुरी( दोनों कवयित्रियों पर कुँडली और ग़ज़ल), कुमार शैलेन्द्र (दुनिया की बातें बहुत हुईं अब घर आंगन की बात करो ), देवी नागरानी ( छू गई मुझको ये हवा जैसे), अरविंद शर्मा "राही"(कुछ खट्टी मीट्ठी यादें है कुछ बीती बातों की), ज्योती गजभिये(सब कुछ बदल देने का हौसला लिये बैठी हूँ), सुषमा सेनगुप्ता ( माली), कुलवंत सिंह (शहीद भगतसिंह), गिरीश जोशी (प्यार मौजों की रवानी सा कभी लगता है), माणिक मुंडे (जाग जाने के लिये सपने दिखाता हूं मैं), कपिल कुमार (कुंडलियों के अनेक रंग), मुहमुद्दिल माहिर ( ऐसा नहीं है कि सारे के सारे चले गए), अंत में अध्यक्ष श्री आर. पी. शर्मा ने कई गज़लों का पाठ भरपूर ताज़गी के साथ किया। शिवानी जोशी, और चंद्रकांत जोशी भी इस संध्या का गौरव बढ़ाने के लिये मौजूद रहे।
काव्या गोष्टी सफलता पूर्वक संपूर्ण हुई। देवी नागरानी ने सभी कवि गण का तहे दिल से आभार व्यक्त किया। मधुर वातावरण में जलपान के साथ शाम ढली।
रिपोर्टः कपिल कुमार और देवी नागरानी
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पाठक का कहना है :
अंजना संधीर और रेखा मैत्र जी को हार्दिक बधाईयां. एक अच्छी गोष्ठी और सुन्दर प्रस्तुति के लिए देवी नागरानी जी एवं कपिलकुमार जी का आभार!
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