प्रेमचंद जयंती समारोह-2010
जयपुर
राजस्थान प्रगतिशील लेखक संघ और जवाहर कला केंद्र की पहल पर इस बार जयपुर में प्रेमचंद की कहानी परंपरा को ‘कथा दर्शन’ और ‘कथा सरिता’ कार्यक्रमों के माध्यम से आम लोगों तक ले जाने की कामयाब कोशिश हुई, जिसे व्यापक लोगों ने सराहा। 31 जुलाई और 01 अगस्त, 2010 को आयोजित दो दिवसीय प्रेमचंद जयंती समारोह में फिल्म प्रदर्शन और कहानी पाठ के सत्र रखे गए थे। समारोह की शुरुआत शनिवार 31 जुलाई, 2010 की शाम प्रेमचंद की कहानियों पर गुलजार के निर्देशन में दूरदर्शन द्वारा निर्मित फिल्मों के प्रदर्शन से हुई।
फिल्म प्रदर्शन से पूर्व प्रलेस के महासचिव प्रेमचंद गांधी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि प्रेमचंद की रचनाओं में व्याप्त सामाजिक संदेशों को और उनकी कहानी परंपरा को आम जनता तक ले जाने की एक रचनात्मक कोशिश है यह दो दिवसीय समारोह। इसमें एक तरु जहां प्रेमचंद की कहानियों पर बनी फिल्मों के माध्यम से प्रेमचंद के सरोकारों को आमजन तक ले जाने का प्रयास है, वहीं प्रेमचंद की कथा परंपरा में राजस्थान के दस युवा कहानीकारों को एक साथ प्रस्तुत कर हम प्रदेश की युवतम रचनाशीलता को राजधानी के मंच पर ला रहे हैं। इसके बाद प्रेमचंद की ‘नमक का दारोगा’, ‘ज्योति’ और ‘हज्ज-ए-अकबर’ फिल्में दिखाई गईं। ‘नमक का दारोगा’ तो चर्चित कहानी है, लेकिन प्रेमचंद की आम छवि से हटकर है ‘ज्योति’ की कहानी। एक ग्रामीण विधवा किसान स्त्री के इकलौते बेटे और ग्रामीण युवती की मासूम प्रेमकथा में मानवीय और पारिवारिक रिश्तों का प्रेम कई स्तरों पर दर्शकों को विभोर कर देता है। इसी प्रकार ‘हज्ज-ए-अकबर’ में एक मुस्लिम बालक और उसकी आया के बीच अपार प्रेम को बहुत संवेदनशीलता के साथ रूपायित किया गया है। खचाखच भरे सभागार में दर्शकों ने तीनों फिल्मों का भरपूर आनंद लिया और तालियां बजाईं।
रविवार 01 अगस्त, 2010 की सुबह 10.30 बजे ‘कथा सरिता’ का आगाज हुआ। वरिष्ठ कथाकार जितेंद्र भाटिया, वरिष्ठ रंगकर्मी एस.एन. पुरोहित और वयोवृद्ध विज्ञान लेखक हरिश्चंद्र भारतीय द्वारा प्रेमचंद के चित्र पर माल्यार्पण से कार्यक्रम की शुरुआत हुई। इस अवसर पर प्रलेस के महासचिव प्रेमचंद गांधी ने स्वागत करते हुए कहा कि प्रेमचंद की 130वीं जयंती के मौके पर प्रदेश के दस युवा कथाकारों को एक मंच पर लाने की यह कोशिश रचनाकार और आम आदमी के बीच संवाद की पहल है, जहां लेखक सीधे पाठक से रूबरू होगा और कथा के आस्वाद की पुरानी परंपरा पुनर्जीवित होगी। यह प्रेमचंद की परंपरा में समकालीन रचनाशीलता को कई आयामों से देखने की रचनात्मक कोशिश है। उन्होंने कहा कि दोनों सत्रों में जितेंद्र भाटिया और नंद भारद्वाज अध्यक्षता के साथ संयोजन भी करेंगे। इसके पश्चात वरिष्ठ रंगकर्मी एस.एन. पुरोहित ने प्रेमचंद की कहानी ‘नमक का दारोगा’ का अत्यंत प्रभावशाली ढंग से पाठ किया तो उपस्थित श्रोताओं ने उनकी तालियां बजाकर प्रशंसा की।
इसके पश्चात पहले सत्र का आरंभ करते हुए जितेंद्र भाटिया ने कहा कि समूचे भारतीय साहित्य में प्रेमचंद की परंपरा में उनके समकालीन रचनाकारों में उनके जितना बड़ा कहानीकार कोई नहीं है, उपन्यासकार और कवि जरूर हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद के बाद कहानी में बहुत विकास हुआ है, लेकिन सरोकार आज भी प्रेमचंद के समय के ही हैं। यही कारण है कि कहानी आज भी हमारे समय और समाज की धड़कन है, जिसे आज के कथाकार सार्थक कर रहे हैं। इसके बाद कहानी पाठ में सबसे पहले राम कुमार सिंह ने ‘शराबी उर्फ तुझे हम वली समझते’ कहानी का पाठ किया। एक साधारण मनुष्य की जिजीविषा और सामाजिक ताने-बाने में उसकी व्यथा कथा में रामकुमार ने यह बताने की कोशिश की कि सच्चे और भले लोग जिंदगी के हर मोड़ पर ठगे जाते हैं और उनके अंतर्तम में ठुकी हुई कीलों का रहस्य बाकी लोग कभी नहीं जान पाते। कहानी पाठ की शृंखला में प्रदेश के युवतम कथाकार राजपाल सिंह शेखावत ने ‘नुगरे’ कहानी का पाठ किया तो आजादी के बाद विगत छह दशकों में कैसे सांप्रदायिक विचारों ने जगह बनाई है, इसका एक गांव की कहानी के माध्यम से पता चला। कहन में सामान्य और बड़ी बात को भी साधारण ढंग से कहने के कौशल से कहानी ने चमत्कारिक प्रभाव पैदा किया।
उर्दू अफसानानिगार आदिल रज़ा मंसूरी ने अपनी कहानी ‘गंदी औरत’ में फुटपाथ पर रहने वाली एक स्त्री के माध्यम से समाज के सफेदपोश लोगों की गंदगी को बेनकाब करने का प्रयास किया। सुप्रसिद्व युवा कहानीकार अरुण कुमार असफल ने अपनी कहानी ‘क ख ग’ का पाठ करते हुए बताया कि सामान्य अनपढ़ लोगों में शिक्षित लोगों के मुकाबले कहीं ज्यादा व्यावहारिक ज्ञान होता है जो उन्हें बिना किसी नारे के सशक्त बनाता है और दूसरों को राह दिखाता है। मनीषा कुलश्रोष्ठ की अनुपस्थिति में सुपरिचित कलाकार सीमा विजय ने उनकी कहानी ‘स्वांग’ का प्रभावी पाठ किया। स्वांग रखने की प्राचीन लोक कला पर आधारित बुजुर्ग लोक कलाकार गफूरिया की इस मार्मिक कथा ने सबको द्रवित कर दिया। अध्यक्षता करते हुए जितेंद्र भाटिया ने पढ़ी गई कहानियों की चर्चा करते हुए समकालीन रचनाशीलता को रेखांकित करते हुए कहा कि इधर लिखी जा रही कहानियों ने हिंदी कहानी के भविष्य को लेकर बहुत आशाएं जगाईं हैं। सत्र के समापन में उन्होंने अपनी नई कहानी ‘ख्वाब एक दीवाने का’ का पाठ किया। भविष्य केंद्रित इस विज्ञान कथा में समूची प़थ्वी को लेकर व्याप्त चिंताओं से पाठकों को रूबरू कराया गया।
‘कथा सरिता’ के दूसरे सत्र का आरंभ वरिष्ठ साहित्यकार नंद भारद्वाज की अध्यक्षता में युवा कहानीकार दिनेश चारण के कहानी पाठ से हुआ। उन्होंने अपनी कहानी ‘पागी’ के मार्फत यह बताने का प्रयास किया कि नई पीढ़ी के रचनाकार अपनी जड़ों की कितनी गहराई से पड़ताल करते हुए आगे बढ़ रहे हैं। ग्रामीण परिवेश में पांवों के निशान खोजने वाले व्यक्ति और उसकी खोई हुई प्रेमिका की अद्भुत प्रेमकथा ने सबको रोमांचित कर दिया। इसके बाद लक्ष्मी शर्मा ने ‘मोक्ष’ कहानी का पाठ किया। एक साधारण अनपढ़ ग्रामीण स्त्री की दारुण संघर्ष गाथा ने सबकी आंखें नम कर दीं। युवा कवि कथाकार दुष्यंत ने ‘उल्टी वाकी धार’ कहानी में दो शहरी प्रेमियों के बीच तनाव और अंतर्द्वंद्व को बहुत खूबसूरती से रचते हुए युवती के नैतिक साहस को रेखांकित किया। चर्चित कथाकार चरण सिंह पथिक ने डांग क्षेत्र में होने वाली पदयात्राओं की प्रतियोगिता के बहाने ग्रामीण समाज की कड़वी सच्चाइयों से ‘यात्रा’ कहानी के माध्यम से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। अध्यक्षता करते हुए नंद भारद्वाज ने कहा कि आज पढ़ी गई कहानियों से राजस्थान की समकालीन रचनाशीलता का पता चलता है कि वह कितनी तेजी से आगे बढ़ रही है। अपने परिवेश की गहरी समझ और प्रेमचंद के सरोकारों से लैस यह पीढ़ी निश्चित रूप से आगे जाएगी और प्रदेश की जनभावनाओं को अपनी रचनाओं में अभिव्यक्त करेगी। इसके बाद समापन में सीमा विजय ने प्रेमचंद की मार्मिक कहानी ‘बूढ़ी काकी’ का अत्यंत प्रभावशाली ढंग से पाठ किया तो श्रोताओं ने भरपूर तालियां बजाकर उनका स्वागत किया। अंत में प्रलेस के उपाध्यक्ष फारुक आफरीदी ने जवाहर कला केंद्र, दूरदर्शन, सहभागी रचनाकारों और समारोह में सहयोग करने वाले सभी साहित्य प्रेमी मित्रों और श्रोता-दर्शकों का आभार जताया।
प्रस्तुति : फारुक आफरीदी
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