दिनांक 25 सितम्बर 2010 को प्रसिद्ध साहित्यकार पत्रकार कन्हैयालाल नंदन के निधन के बाद देश में कई जगह उन्हें श्रद्धांजलियाँ अर्पित की गई व शोक सभाओं के आयोजन हुए। ‘परिचय साहित्य परिषद’ ने भी 27 सितम्बर 2010 को ने दिल्ली के फीरोज़शाह रोड स्थित ‘रशियन कल्चरल सेण्टर’ में एक शोक सभा आयोजित की। इस शोकसभा में पूर्व सांसद व विख्यात साहित्यकार उदय प्रताप सिंह, प्रसिद्ध कविगण डॉ. शेरजंग गर्ग, लक्ष्मी शंकर बाजपेयी व परिचय साहित्य परिषद अध्यक्ष उर्मिल सत्यभूषण मंच पर थे। लेखक प्रेमचंद सहजवाला ने कन्हैयालाल नंदन के साथ अपने संक्षिप्त संस्मरण बतौर श्रद्धांजलि प्रस्तुत किये। कवयित्री अर्चना त्रिपाठी ने कन्हैयालाल नंदन की एक कविता प्रस्तुत की। श्री लक्ष्मीशंकर बाजपेयी ने कहा कि कन्हैयालाल नंदन ने असंख्य लेखकों कवियों को प्रोत्साहन दिया। उन्होंने नंदन जी द्वारा सन 2007 में न्यूयार्क में हुए ‘विश्व हिंदी सम्मलेन’ में प्रस्तुत एक गज़ल के कुछ शेर कहे:
नदी की कहानी कभी फिर सुनाना
मैं प्यासा हूँ दो घूँट पानी पिलाना
मुझे वो मिलेगा ये मुझ को यकीं है
बहुत जानलेवा है ये दरम्याना
मुहब्बत का अंजाम हरदम यही था
भंवर देखना कूदना डूब जाना
डॉ. शेरजंग गर्ग ने कहा कि नंदन जी पिछले लगभग आठ वर्ष से मौत से जूझ रहे थे पर फिर भी उन्होंने अपनी कर्मठता व जीवंतता बरकरार रखी। उर्मिल सत्यभूषण को इस बात का अतीव दुःख था कि उन्होंने आज 27 सितम्बर को ही नंदन जी को ‘परिचय साहित्य परिषद’ के ‘सत्यसृजन शिखर सम्मान’ से सम्मानित करने का कार्यक्रम निश्चित किया था और इस सिलसिले में उन्होंने 23 सितम्बर को ही नंदन जी से फोन पर बात भी की थी। पर नियति को कुछ और ही मंज़ूर था। श्री उदय प्रताप सिंह ने कहा कि नंदन जी बहुमुखी प्रतिभा थे। वे साहित्यकार, पत्रकार तो थे ही, उन्हें संगीत का भी बहुत ज्ञान था व बहुत अच्छी चित्रकारी भी करते थे। सभा में उपस्थित अन्य लेखकगण ने भी अपनी अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की व दो मिनट का मौन रख कर ईश्वर से दिवंगत आत्मा की शांति की प्रार्थना की।
रिपोर्ट – ‘परिचय’ रिपोर्ट अनुभाग
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