कविता और विचार के मंच लिखावट तथा भारती परिषद्, हिंदी विभाग, मिरांडा हाउस, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली के संयुक्त आयोजन में मिरांडा हाउस में हुई काव्य गोष्ठी का 8-4-11 को सफल आयोजन हिंदी के वरिष्ठ कवि इब्बार रब्बी की अध्यक्षता में
कविता पाठ या कविता पर संगोष्ठी रखना एक गंभीर जबावदेही और जटिल संयोजन है। मेरे प्रिय कवि रघुवीर सहाय ने भी तो यही कहा था---‘कविता जीने का उद्देश्य बता नहीं देती, वह स्वंय उद्देश्य बन जाती है।’ इस दौर में सर्वत्र पसरी निर्मम चुप्पी को तोड़ेने की कोशिश कर रही है ‘लिखावट’। 8 अप्रैल 2011 की दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस कॉलेज के इस कविता पाठ में मौजूद रहने का मुझे भी सौभाग्य मिला। इनमें लगभग सभी प्रतिभागी कवियों को मैं अलग-अलग मंच पर सुन चुकी हूं। इब्बार रब्बी जी को मंचीय सभी सम्मोहक मंत्र आते हैं। तभी तो उनकी अति सहज शैली पूरे सभागार से संलाप करती है, जो कि अद्भुत है। मंगलेश डबराल को सुनना सचमुच सुखद एहसास था। उनकी कविताएं प्राय: प्रतिरोध की भाषा अपनाती है। स्वाभिमान से फूटती हैं और मानवीयता और मानवता को स्थापित करने के लिए अंतिम सांस तक लड़ती हैं। अर्चना वर्मा जी की कहानियां और कविताएं सदैव मुझे प्रेरणा देती रही हैं। खुद उनके मुख से उनकी कविता सुनकर उन कविताओं में नए मायने भी मिले। ठीक इसी तरह मिथिलेश श्रीवास्तव जी की कविताओं में मुझे एक प्रतिबद्धता और जिजीविषा दिखाई देती है। हर वह छोटी बड़ी चीज जो समय और समाज के सुर ताल लय में खटकती है मिथिलेश जी उसी पर बखूबी कलम चलाते हैं। मुकेश मानस जी की प्राय: सभी कविताएं शोषितों प्रवंचितों और बेजुवानों की आवाज़ बनती हैं। रजनी अनुरागी मेरी आत्मीया हैं। उनकी कविता समय और समाज के प्रति अपनी जिस जबावदेही तो तलाशती हैं उसे पाने में वे बहुत हद तक सफल भी हुई हैं। कुल मिलाकर इस सफल आयोजन के लिए ‘लिखावट’ के तत्वाधान में मिरांडा हाउस के हिंदी विभाग को मेरा कोटि-कोटि साधुवाद।
डॉ सुधा उपाध्याय
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हुआ। कार्यक्रम में आये इब्बार रब्बी, अर्चना वर्मा, मिथिलेश श्रीवास्तव, मुकेश मानस, रजनी अनुरागी, और मंगलेश डबराल जैसे कवियों नें अपनी कविताओं के साथ वहाँ अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। कार्यक्रम का संचालन चंदा सागर नें किया। कार्यक्रम की शुरुवात रजनी अनुरागी की कविता “कविता से हुई जिसने काफी तालियाँ बटोरी इसके बाद रजनी अनुरागी नें औरत, नेपथ्य, मजदूरों की बस्ती, जन ज्वार और दिल्ली मेट्रो आदि कवितायें सुनायीं। रजनी जी के बाद आये कवि मुकेश मानस नें गंभीरता को कम करते हुए कुछ व्यंगात्मक रचनाएँ सुनाई जिसमें “बजाओ ताली” प्रमुख रही, इसके अलावा उन्होंनें नें भेड़ीये, भेडियाधसान, हत्यारा और बेटी का आगमन जैसी कुछ कवितायें उल्लेखनीय कवितायें सुनाई। डॉ सुधा उपाध्याय
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वरिष्ठ कवियित्री अर्चना वर्मा नें सिर्फ अपनी उपस्थिति भर से माहौल को गर्म कर दिया था उसके बाद उनकी सुनाई कविताओं आसमान पर ताला और मल्लिका शेरावत के नाम जैसी कविताओं नें गोष्ठी को और ऊँचाई प्रदान की। मिथिलेश श्रीवास्तव की हर कविता नें श्रोताओं के मन पर गहरी छाप छोड़ी एक तरफ “एक जैसे घर” नें समाज में उपस्थित विसंगतियों की पड़ताल की तो दूसरी “कबूतर जैसे हम” नें आम आदमी के मजबूर होने की बात कही साथ ही उन्होंनें “शिविर एक दिन खाली हो गया” जैसी कविता सुनाई जिसनें हर श्रोता को निस्तब्ध कर दिया। मंगलेश डबराल नें छुपम–छुपाई और छुओ जैसी कविताओं के माध्यम से हृदय के सबसे नर्म कोनों को छू लिया और भूमंडलीकरण तथा टोर्च जैसी कविता के माध्यम से बदलते हुए समाज की तरफ इशारा किया। कार्यक्रम के अंत में इब्बार रब्बी नें घना में पक्षी विहार, अरहर की डाल और मधुमेह जैसी कविताओं से श्रोताओं का न सिर्फ मनोरंजन किया बल्कि उन्हें सन्देश भी दिए इसके अलावा उन्होंनें दुर्गा सप्तशती, जब चली रेल, कटोरी में वसंत, और अंतिम कविता जैसी कवितायें सुनाई। रजनी जी द्वारा धन्यवादयापन करने के साथ ही कार्यक्रम सफलता पूर्वक संपन्न हो गया।
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