मैने इस कार्यक्रम की रिपोर्टिंग हिन्दी विश्वविद्यालय , वर्धा की वेबसाइट और इसके ब्लॉग पर पढ़ी है ...यह पूरी तरह से एक तुगलकी आयोजन था . जिस संस्था में यह आयोजन किया गया उसका ना तो टैगोर से कुछ लेना देना था और ना ही हिन्दी से..यहाँ तक कि केंद्रीय काँच और सिरामिक अनुसंधान संस्थान के निदेशक हिंदी में स्वागत भाषण तक नहीं दे सके ..उन्होने बांग्ला और अँग्रेज़ी मिश्रित भाषा में स्वागत भाषण दिया ... हिन्दी विश्वविद्यालय , वर्धा के प्रबंध तंत्र के मानसिक दीवालियापन का इससे अच्छा उदाहरण नहीं हो सकता....
अबे पाजामापरसाद हिंदी बोलना दुनिया की सबसे महान योग्यता है क्या ? जिस आदमी के हिंदी भाषा ज्ञान को लेकर चिचिया रहे हो वह इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस,बंगलौर का प्रोडक्ट है . नाम सुने हो कभी? अब हिंदी तुम्हारे जैसे चिरकुटों के भरोसे दिग्विजय करेगी ?
मित्र आप तो बहुत पढ़े लिखे हो ..ज़रा हमारे जैसे कम पढ़े किखे को आप समझा दो .. केंद्रीय काँच और सिरामिक अनुसंधान संस्थान में अगर महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय , वर्धा संगोष्ठी कर रहा है तो केंद्रीय काँच और सिरामिक अनुसंधान संस्थान का हिन्दी से क्या लेना है ??...जो आँखें ना होने के कारण ना देख पाए वह अँधा होता है और जो आँखें होने के बावज़ूद ना देख पाए वो मूर्ख .... जिस तरह से वर्धा के लोग सरकारी पैसे की माँ बहन कर रहे हैं वह आँखों वाले अंधे ही कर सकते हैं ...ऐसा लगता की सब कुलपति के खानदान के साथ किसी बारात में केंद्रीय काँच और सिरामिक अनुसंधान संस्थान, कोलकाता गये थे... यह बेशर्मी केवल हिंदी वाले ही कर सकते हैं ...
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मैने इस कार्यक्रम की रिपोर्टिंग हिन्दी विश्वविद्यालय , वर्धा की वेबसाइट और इसके ब्लॉग पर पढ़ी है ...यह पूरी तरह से एक तुगलकी आयोजन था . जिस संस्था में यह आयोजन किया गया उसका ना तो टैगोर से कुछ लेना देना था और ना ही हिन्दी से..यहाँ तक कि केंद्रीय काँच और सिरामिक अनुसंधान संस्थान के निदेशक हिंदी में स्वागत भाषण तक नहीं दे सके ..उन्होने बांग्ला और अँग्रेज़ी मिश्रित भाषा में स्वागत भाषण दिया ... हिन्दी विश्वविद्यालय , वर्धा के प्रबंध तंत्र के मानसिक दीवालियापन का इससे अच्छा उदाहरण नहीं हो सकता....
अबे पाजामापरसाद हिंदी बोलना दुनिया की सबसे महान योग्यता है क्या ? जिस आदमी के हिंदी भाषा ज्ञान को लेकर चिचिया रहे हो वह इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस,बंगलौर का प्रोडक्ट है . नाम सुने हो कभी? अब हिंदी तुम्हारे जैसे चिरकुटों के भरोसे दिग्विजय करेगी ?
मित्र आप तो बहुत पढ़े लिखे हो ..ज़रा हमारे जैसे कम पढ़े किखे को आप समझा दो .. केंद्रीय काँच और सिरामिक अनुसंधान संस्थान में अगर महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय , वर्धा संगोष्ठी कर रहा है तो केंद्रीय काँच और सिरामिक अनुसंधान संस्थान का हिन्दी से क्या लेना है ??...जो आँखें ना होने के कारण ना देख पाए वह अँधा होता है और जो आँखें होने के बावज़ूद ना देख पाए वो मूर्ख .... जिस तरह से वर्धा के लोग सरकारी पैसे की माँ बहन कर रहे हैं वह आँखों वाले अंधे ही कर सकते हैं ...ऐसा लगता की सब कुलपति के खानदान के साथ किसी बारात में केंद्रीय काँच और सिरामिक अनुसंधान संस्थान, कोलकाता गये थे... यह बेशर्मी केवल हिंदी वाले ही कर सकते हैं ...
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