दिल्ली के हिंदी भवन में प्रवासी साहित्यकार रेणु राजवंशी गुप्ता के सम्मान में एक विशिष्ठ साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया..। कार्यक्रम में अमेरिका से पधारी साहित्यकार श्रीमती रेनू राजवंशी गुप्ता का अभिनंदन और उनके सम्मान में एक भव्य काव्य गोष्ठी आयोजित हुई..।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉक्टर नरेन्द्र कोहली और डॉक्टर कमल किशोर गोयनका के सानिध्य में शुरु हुए इस कार्यक्रम की अध्यक्षता जाने-माने कवि कृष्ण मित्र ने की। कार्यक्रम का शुभारंभ प्रवासी साहित्यकार श्रीमती रेणु राजवंशी गुप्ता के अभिनंदन से हुआ । साहित्यकार डॉक्टर नरेन्द्र कोहली ने वाग्देवी की प्रतिमा और शॉल उढाकर सम्मानित किया जबकि डॉक्टर गोविंद व्यास ने प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया..वहीं मशहूर नाटककार डीपी सिन्हा और महेश चन्द्र शर्मा ने पुष्प भेंटकर रेणुजी का अभिनंदन किया..। डॉक्टर नरेन्द्र कोहली ने रेणु राजवंशी की रचनाओं की विस्तार से चर्चा की और उनकी साहित्यिक रचनाओं की सराहना भी की..वहीं डॉ गोविंद व्यास ने रेणु राजवंशी के कृतत्व पर प्रकाश डाला।
श्रीमती रेणु राजवंशी गुप्ता के अभिनंदन के बाद ओज के लोकप्रिय कवि गजेन्द्र सोलंकी के संचालन में सरस काव्य गोष्ठी हुई.. जिसमें दूर-दूर से आये हुए कवियों ने शिरकत की । कवि गोष्टी की शुरुआत वरिष्ठ गीतकार राजगोपाल सिंह की वाणी वंदना से हुई। इसके बाद प्रवासी साहित्यकार रेनू राजवंशी को काब्य प्रेमियों ने जमकर सुना..। उन्होंने अपनी कई रचनाएं सुनाई और अमेरिका में हिंदी भाषा के उत्थान में किये जा रहे कार्यों की चर्चा भी की । इसके बाद युवा कवि नील की कविता- लगता है हम बड़े हो गये हैं.. स्रोताओं ने काफी सराही..।
इसके बाद बलजीत तन्हा ने अपनी कई हास्य की कविताएं सुनायी। इसके बाद कवियत्री प्रीति विश्वास की- हिंदुस्थान हमारा है कविता को लोगों ने खूब वाहवाही दी..। कविगोष्ठी को एक नयी ऊंचाई दी प्रख्यात हास्य कवि अरुण जैमिनी । उन्होंने एक के बाद एक कई रचनाएं सुनायीं..। इसके बाद गौतमबुद्ध नगर से पधारे ओज कवि अली हसन मकरैंडिया ने कई छंद सुनाए.। टीवी पत्रकार और हास्य कवि बृजेश द्विवेदी ने मां पर लिखी कविता को सुनाकर काब्यप्रेमियों की प्रशंसा बटोरी..
छोटी बात को लेकर यहां मचले हुए हो तुम।
बड़े अच्छे हुआ करते थे अब बदले हुए हो तुम।
बाहर लौटकर आया तो मोटा हो गया था मैं.।
अम्मा ने कहा बेटा बड़े दुबले हुए हो तुम ।।
इसके बाद लोकप्रिय कवियत्री सरिता शर्मा ने अपने छंदों, गीतों और मुक्तकों से उपस्थित जनसमुदाय का दिल जीत लिया..उनका ये मुक्तक काफी सराहा गया
चाहे दुनिया से दूर हो जाऊं।
तेरी आंखों का नूर हो जाऊं।
तेरी राधा बनूं या न बनूं,
तेरी मीरा जरूर हो जाऊं।।
चर्चित हास्य कवि यूसुफ भारद्वाज ने जब अपनी चिरपरिचित अंदाज में कविताएं सुनायी तो ठहाकों से हॉल गूंज पड़ा..।
गाजियाबाद से पधारी कवियत्री अंजू जैन ने अपनी कई गजलों को सुनाया। इसके बाद डॉक्टर टीएस दराल की इस कविता को खूब दाद मिली.
नये साल में खुशी के गुब्बारें हों।
चारो ओर हंसी के फव्वारे हो ।
न सीमा पर कोई विवाद हो,
और न मुंबई सा आतंकवाद हो।।
कविगोष्ठी को संचालन कर रहे हिंदी मंचों के लोकप्रिय कवि गजेन्द्र सोलंकी अपनी विशिष्ठ शैली के छंदों को सुनाकर कार्यक्रम में शमां बांध दिया..। काब्य प्रेमियों की मांग पर उन्होंने चर्चित अप्रवासी गीत- चंदन सी महक पसीने में- सुनायी.. तो स्रोताओं ने तालियों की धुन से पूरे गीत में साथ दिया..। बर्किंम से पधारे साहित्यकार डॉक्टर कृष्ण कुमार ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया..।
काब्य गोष्ठी में डॉक्टर गोविंद व्यास,रितु गोयल,रमा सिंह,बागी चाचा,शंभु शिखर,रसिक गुप्ता,अमर आकाश इत्यादि कवियों ने काव्य पाठ किया..अंत में अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि कृष्ण मित्र ने अपनी देश प्रेम की कई कविताएं सुनायी। कार्यक्रम का आयोजन साहित्यिक संस्था शब्दांचल, दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मेलन और दिशा फाउण्डेशन के सहयोग से किया गया..। इस मौके पर महेश चंद्र शर्मा ने आये हुए अतिथियों का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में वीरेद्र मेहता, आरपी बंसल, अतुल जैन, चौधरी बाल किशन और विजय शर्मा विशेष रूप से मौजूद रहे।




"साहित्य से दिन-ब-दिन लोग विमुख होते जा रहे हैं। अध्यापक व छात्र, दोनों में लेखनी से लगाव कम हो रहा है। नए-नए शोधकार्यों के लिए सहित्य जगत् में व्याप्त यह स्थिति अत्यन्त चिन्ताजनक है।" उक्त विचार उत्तर प्रदेश के उच्च शिक्षा मन्त्री डॉ. राकेश धर त्रिपाठी ने हिन्दुस्तानी एकेडेमी द्वारा आयोजित सम्मान व लोकार्पण समारोह के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। उत्तर प्रदेश भाषा विभाग द्वारा संचालित हिन्दी व उर्दू भाषा के संवर्धन हेतु सन् 1927 में स्थापित हिन्दुस्तानी एकेडेमी की श्रेष्ठ पुस्तकों के प्रकाशन की शृंखला में इस अवसर पर अन्य पुस्तकों के साथ एकेडेमी द्वारा प्रकाशित डॊ. कविता वाचक्नवी की शोधकृति "समाज-भाषा विज्ञान: रंग-शब्दावली: निराला-काव्य" को लोकार्पित करते हुए उन्होंने आगे कहा कि यह पुस्तक अत्यन्त चुनौतीपूर्ण विषय पर केन्द्रित तथा शोधकर्ताओं के लिए मार्गदर्शक है। इस अवसर पर एकेडेमी के सचिव डॉ. सुरेन्द्र कुमार पाण्डेय द्वारा सम्पादित 'सूर्य विमर्श' तथा एकेडेमी द्वारा वर्ष १९३३ ई. में प्रकाशित की गयी पुस्तक 'भारतीय चित्रकला' का द्वितीय संस्करण (पुनर्मुद्रण) भी लोकार्पित किया गया। किन्तु जिस पुस्तक ने एकेडेमी के प्रकाशन इतिहास में एक मील का पत्थर बनकर सबको अचम्भित कर दिया है वह है डॉ. कविता वाचक्नवी द्वारा एक शोध-प्रबन्ध के रूप में अत्यन्त परिश्रम से तैयार की गयी कृति "समाज-भाषाविज्ञान : रंग-शब्दावली : निराला-काव्य"। इस सामग्री को पुस्तक का आकार देने के सम्बन्ध में एक माह पूर्व तक किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। स्वयं लेखिका के मन में भी ऐसा विचार नहीं आया था। लेकिन एकेडेमी के सचिव ने संयोगवश इस प्रकार की दुर्लभ और अद्भुत सामग्री देखते ही इसके पुस्तक के रूप में प्रकाशन का प्रस्ताव रखा जिसे सकुचाते हुए ही सही इस विदुषी लेखिका द्वारा स्वीकार करना पड़ा। कदाचित् संकोच इसलिए था कि दोनो का एक-दूसरे से परिचय मुश्किल से दस-पन्द्रह मिनट पहले ही हुआ था। यह नितान्त औपचारिक मुलाकात अचानक एक मिशन में बदल गयी और देखते ही देखते मात्र पन्द्रह दिनों के भीतर न सिर्फ़ बेहद आकर्षक रूप-रंग में पुस्तक का मुद्रण करा लिया गया अपितु एक गरिमापूर्ण समारोह में इसका लोकार्पण भी कर दिया गया। रंग शब्दों को लेकर हिन्दी में अपनी तरह का यह पहला शोधकार्य है। इसके साथ ही साथ महाप्राण निराला के कालजयी काव्य का रंगशब्दों के आलोक में किया गया समाज-भाषावैज्ञानिक अध्ययन भावी शोधार्थियों के लिए एक नया क्षितिज खोलता है। निश्चय ही यह पुस्तक हिदी साहित्य के अध्येताओं के लिए नयी विचारभूमि उपलब्ध कराएगी।







