11 अप्रैल 2009 को खटईमा (उधम सिंह नगर, उत्तराखंड) में बाल साहित्यकारों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया। यह आयोजन बालकल्याण संस्था, खटिमा और नेशबल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान में हुआ। इस संगोष्ठी में देश भरके बालसाहित्यकारों ने भाग लिया, जिनमें से अधिकांश को बालसाहित्य शिरोमणि से नवाजा गया। नेशनल बुक ट्रस्ट ने इस अवसर पर एक संगोष्ठी का भी आयोजन किया जिसकी अध्यक्षता डॉ॰ श्याम सिंह शशि ने की। इस अवसर पर नेशनल बुक ट्रस्ट और अनेकों बालसाहित्यकारों की पुस्तकों का विमोचन भी किया गया।
प्रस्तुत है चित्रों से भरी यह रिपोर्ट-
प्रस्तुति- शमशेर अहमद खाँ, केन्द्रीय हिन्दी प्रशिक्षण संस्थान
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8 पाठकों का कहना है :
खटीमा में बाल-साहित्यकारों का
सम्मेलन सफल रहा।
यह समाचार पढ़कर अच्छा लगा।
इस प्रकार के आयोजन होने ही चाहिए।
परन्तु इसमें खटीमा के
कितने साहित्यकार उपस्थित थे?
यह भी विचारणीय प्रश्न है।
जिस स्थान पर ऐसे आयोजन होते हैं,
आखिर वहाँ भी तो साहित्य के पुजारी होंगे ही।
चित्र बता रहे हैं कि सम्मेलन सफल रहा होगा।
अतः बधाई तो स्वीकार कर ही लें।
इस अवसर पर मेरे भी बाल-गीत को
शामिल कर लें।
मेरी भी हाजरी लग जायेगी।
भैया! मुझको भी,
लिखना-पढ़ना, सिखला दो।
क.ख.ग.घ, ए.बी.सी.डी,
गिनती भी बतला दो।।
पढ़ लिख कर मैं,
मम्मी-पापा जैसे काम करूँगी।
दुनिया भर में,
बापू जैसा अपना नाम करूँगी।।
रोज-सवेरे, साथ-तुम्हारे,
मैं भी उठा करूँगी।
पुस्तक लेकर पढ़ने में,
मैं संग में जुटा करूँगी।।
बस्ता लेकर विद्यालय में,
मुझको भी जाना है।
इण्टरवल में टिफन खोल कर,
खाना भी खाना है।।
छुट्टी में गुड़िया को,
ए.बी.सी.डी, सिखलाऊँगी।
उसके लिए पेंसिल और,
इक कापी भी लाऊँगी।।
ानकारी के लिए धन्यवाद ... समारोह की सफलता के लिए बधाई।
शमशेर जी,
आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। अभी कुछ दिनों पहले आप बालसाहित्यकारों को लेकर राष्ट्रपति के पास गये थे और तुरंत बाद खटिमा में एक सम्मेलन। वेरी गुड।
इस तरह के सम्मेलन होते रहने चाहिए
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' की फ़िक्र से सहमत हूँ. साहित्यिक आयोजनों में सहभागिता और-समरसता अपरिहार्य है.
खटीमा में बाल-साहित्यकारों के सफल सम्मेलन के आयोजन के लिए बधाई।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' की बात से मेरी भी पूरी सहमति है. स्थानी साहित्यकारों को पूरी तरह नज़रंदाज़ करके किये गए सम्मलेन सिर्फ एक औपचारिकता बनकर रह जाते हैं.
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