नई दिल्ली के पश्चिम विहार इलाके में आनंदम ने रविवार 10 मई 2009 को अपनी 10वीं कवि गोष्ठी का आयोजन किया, जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ कवि मनमोहन तालिब ने की। कार्यक्रम में अमेरिका से पधारे मशहूर गीतकार राकेश खंडेलवाल की उपस्थिति ने इस गोष्ठी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का बना दिया।
कार्यक्रम की शुरूआत 'लेखक को अपने लेखन से पैसा कमाने के बारे में सोचना चाहिए या नहीं?' पर चर्चा से हुई जिसपर अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रेमचंद सहजवाला ने कहा कि लेखक को अपनी लेखनी से कमाने के बार में अवश्य सोचना चाहिए और अब स्थितियाँ बेहतर हैं, वो चाहे तो कमा भी सकता है। अगले वक्ता के रूप में आमंत्रित वरिष्ठ कवि मुन्नवर सरहदी ने कहा कि पब्लिक के बीच रचनाकार यदि खुद मक़ाम बनाये तो वह व्यवसायिक रूप से सफल हो सकता है। उन्होंने कहा कि इस दौर में शायरी के अलावा रोज़ी-रोटी का कोई और प्रबंध भी होना चाहिए।
अगले वक्ता में आमंत्रित हिन्द-युग्म के संपादक शैलेश भारतवासी ने कहा कि गैर-व्यवसायिक और व्यवसायिक लेखन का वर्गीकरण आवश्यक है। व्यवसायिक लेखन के लिए लेखक को खुद को ज़रूरतों के हिसाब से, धन मुहैया कराने वाले माध्यमों के हिसाब से ढालना होता है, फिर आप यह शिकायत नहीं कर सकते कि यह साहित्य के साथ मज़ाक है। अंतिम वक्ता के रूप में अमेरिका से पधारे कवि राकेश खंडेलवाल ने बताया कि बाहर के मुल्कों में लेखन की बहुत इज्जत है। मुझे कई बार कवि सम्मेलनों/मुशायरों में जब बुलाया जाता है तो ज़रूर पूछा जाता है कि आप कितना लेना चाहेंगे। हाँ, वो बात अलग है कि जब मैं फॉर्मासिटीकल से संबंधित कोई आर्टिकल लिखता हूँ तो 4000 डॉलर मिलते हैं, लेकिन कवि सम्मेलन के लिए 1100 डॉलर।
गोष्ठी में कुल 23 युवा-वरिष्ठ कवियों ने भाग लिया। कार्यक्रम का मोहक संचलान राकेश खंडेलवाल ने किया। प्रस्तुत चुनिंदा शे'र/काव्यांश और चित्र-
राकेश खंडेलवाल- तुमने कहा न तुम तक पहुँचे मेरे भेजे हुए संदेसे इसीलिये अबकी भेजा है मैंने पंजीकरण करा कर बरखा की बूँदों में अक्षर पिरो पिरो कर पत्र लिखा है कहा जलद से तुम्हें सुनाये द्वार तुम्हारे जाकर गा कर।
दर्द देहलवी- किसे फरयाद की हाजत, शिकायत कौन करता है अगर इन्साफ मिल जाए बग़ावत कौन करता है।
मजाज़ अमरोहवी- उसका अनदाज़े तकल्लुम बड़ा शीरीं है मजाज़ वह बुरी बात भी कह दे भली लगती है।
डॉ॰ दरवेश भारती- हालात देख आज के उभरा है ये सवाल तुलसी कबीर सूर की बानी किधर गयी। पल-पल थे जिसकी तोतली बातों पे झूमते 'दरवेश' होते ही वो सयानी किधर गयी।
सुनीता शानू- उसकी आँखों से हक़ीक़त बयान होती है, हर घड़ी एक नया इम्तिहान होती है। घूरने लगती हैं दुनिया की निगाहें उसको जब किसी ग़रीब की बेटी जवान होती है।
साक्षात भसीन- तू बता या न बताम तेरा पता ढूँढ़ लेगे लाख हमसे छिपले तू, छिपा कहाँ ढूँढ़ लेंगे फर्श से अर्श तक है अजब दास्ताँ तेरी क्या समां तू कहाँ वही लम्हा ढूँढ़ लेंगे।
अजन्ता शर्मा- बनकर नदी जब बहा करूँगी तब क्या मुझे रोक पाओगे? अपनी आँखों से कहाँ करूँगी तब क्या मुझे रोक पाओगे?
ज़र्फ़ देहलवी- जो डरते हैं ज़माने से उन्हीं को ये डराता है नहीं डरते जो इससे खुद ज़माना उनसे डरता है।
क़ैसर अज़ीज़- जिसकी मिसाल मिल न सके काइनात में पेशानिय हयात पे वह इन्क़लाब लिख आईना बन के जीना तो दुशवार है बहुत काँटों को फूल और चमन को सुराब लिख
मुन्नवर सरहदी- फ़नकार कभी फ़न का तमाशा नहीं करते हीरे हों तो फुटपाथ पर बेचा नहीं करते।
मनमोहन तालिब- क्या हो गया इस दौर में नायाब है इन्सां हम देर से बाज़ार में ख़ामोश खड़े हैं।
शैलेश सक्सेना- जाने कौन सा नया खेल दिखायेगी ज़िन्दगी अब कौन सा नया खिलौना दिलायेगी ज़िन्दगी।
जगदीश रावतानी- मेरे लबों पे भी ज़रूर आयेगी हँसी कभी न जाने कब से मेरे आईने को इंतज़ार है। कभी तो आयेगी मेरे हयात में उदासियाँ बहुत दिनों से दोस्तों का इसका इंतज़ार है।
अनुराधा शर्मा भी इस गोष्ठी में मौज़ूद थीं, उन्होंने जो नज़्म सुनाई उसे पूरी यहाँ पढ़ें। इनके अतिरिक्त नूर, डॉ॰ विजय कुमार, डॉ॰ महेश चंद्र गुप्त 'खलिश' , ओ पी विश्नोई, जीतेन्द्र प्रीतम, विक्रम भारतीय इत्यादि ने भाग लिया। अंत में आनंदम-प्रमुख जगदीश रावतानी ने सबका आभार व्यक्त किया।
इस कार्यक्रम को सुनना चाहें तो कृपया नीचे का प्लेयर चलायें।
अत्यन्त हर्ष हुआ इस गोष्ठी के बारे में जान कर। आनन्दम को बधाई! आज जबकि कविता संकट के दौर से गुजर रही है, कहानियों, उपन्यासों, चुटकुलों आदि ने पूरे परिदृष्य को परिवेष्ठित कर लिया है, यह आयोजन स्तुत्य है। सादर अमित
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अत्यन्त हर्ष हुआ इस गोष्ठी के बारे में जान कर। आनन्दम को बधाई! आज जबकि कविता संकट के दौर से गुजर रही है, कहानियों, उपन्यासों, चुटकुलों आदि ने पूरे परिदृष्य को परिवेष्ठित कर लिया है, यह आयोजन स्तुत्य है।
सादर
अमित
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