पीसी शर्मा
श्री मोहम्मद अहसन, वरिष्ठ अधिकारी, उत्तर प्रदेश वन विभाग एवं श्री प्रदीप कपूर, वरिष्ठ पत्रकार लगभग ढाई वर्षो से नियमित रूप से लगभग तीन माह के अंतराल में लखनऊ में काव्य गोष्ठी आयोजित करते आ रहे है। इन गोष्ठियों में मुख्यतः गैर पेशेवर कवि/शायर आमंत्रित किये जाते है, जो विभिन्न सेवाओं/व्यवसाय में रहते हुए कविता लिखने का शौक/हाबी के रूप में अपनाये हुए है, और वे मुशायरो/गोष्ठियों में भाग नही लेते है। एक-आध बार अपवाद स्वरूप पेशेवर कवि/शायरों की शिरकत हुई है किन्तु पूर्णतः अव्यवसायिक तौर तरीके से। भाग लेने वाले कवि अधिकतर सरकारी अधिकारी, टेक्नोक्रेटर्स, डाक्टर्स, विद्यार्थी या अन्य किसी व्यवसाय से जुडे हुए होते है। इन कवि गोष्ठयों में श्रोताओं का भी लगभग यही प्रोफाइल होता है। कविता में हिन्दी व ऊर्दू को प्राथमिकता दी जाती है किन्तु कभी-कभी अपवाद स्वरूप अंग्रेजी को भी स्वीकार कर लिया जाता है।
दिनांक 24-05-2009 को आयोजित कवि गोष्ठी इसी क्रम में दसवीं थी और सामुदायिक हाल, सूर्योदय कालोनी, राणा प्रताप मार्ग में आयोजित की गयी थी। इससे पूर्व इसी स्थान पर माह अक्टूबर-2008 व मार्च-2009 में भी आयोजित की गयी थी। अन्य स्थलों पर जहां इस प्रकार के आयोजन हो चुके है वे है अवध जिमखाना क्लब, आर्यन रेस्टोरेंट का बेसमेंट हाल, संगीत नाटक एकेडमी, यूनिवर्सल बुक डिपो इत्यादि।
इस प्रकार के आयोजन पूर्णतया सहभागिता के आधार पर आयोजित किये जाते है। इन्हें कम से कम खर्चीला तथा अधिक से अधिक अनौपचारिक रखने के साथ ही साथ गरिमाशील बनाये जाने का प्रयास किया जाता है। इन गोष्ठियों में अनेक संभ्रांत भद्रजनों के अतिरिक्त पूर्व मेयर, हाई कोर्ट के कार्यरत न्यायाधीश, अवकाश प्राप्त व कार्यरत वरिष्ठ नौकरशाहो ने भी भाग लिया है। आयोजन की सूचना मुख्यतः ई-मेल, एस0एम0एस0 के माध्यम से दी जाती है तथा लिखित निमंत्रण कभी भी नही दिया जाता है। मीडिया से जुडे पत्रकार बंधु भी इन गोष्ठियों में कवि एवं रिपोर्टर के रूप में भाग ले चुके है। गोष्ठियों को अखबारों में प्रमुखता से स्थान प्राप्त हुआ है।
वर्तमान गोष्ठी के होस्ट सूर्योदय कालोनी का सम्मानित टंडन परिवार थे।
गोष्ठी का संचालन लखनऊ विश्वविद्यालय की भाषाविद प्रो0 साबिरा हबीब द्वारा किया गया। गोष्ठी का आरम्भ करते हुए श्री प्रदीप कपूर ने गोष्ठी के उद्देश्यों से लोगों को परिचित कराया तथा लोगों से प्राप्त हुए सहयोग के लिए धन्यवाद दिया।
कविता पाठ के क्रम को प्रारंभ करते हुए प्रो0 साबिरा हबीब ने मु0 अहसन को नज्में सुनाने की दावत दी। श्री अहसन ने श्री प्रदीप कपूर व अन्यों को धन्यवाद देते हुए आशा जताई कि भविष्य में भी इस प्रकार के आयोजन चलते रहेंगे। उन्होंने नज्म के स्थान पर अपनी हिन्दी की कुछ “प्रेम कविताएं“ सुनाने का अनुरोध किया। श्री अहसन द्वारा 4 “प्रेम कविताएं“ “उस वर्ष“, “जब कभी“, “कैसे प्रीत जुडे़“ तथा “क्या अन्तर“ सुनाई गयीं। कविताओं की भाषा व नई कल्पानाओं के कारण इन कविताओं का काफी सराहा गया। कविता “जब कभी“ निम्न प्रकार थी जो विशेष रूप से सराही गयी-
जब किसी आंगन में पल्लवित तुलसी दिखी,
जब किसी उपवन में धरा हरसिंगार के झरे पुष्पों से भर गई,
जब किसी रात के शांत आकाश से नक्षत्र टूट कर गिरता दिखा,
जब कभी थक कर वट वृक्ष की नीचे विश्राम करने को गयर,
न जाने क्यों बरबस तुम्हारी याद आई
इसके पश्चात सुश्री गजाला अनवर को ग़ज़लें पढ़ने की दावत दी गयी। सुश्री गजाला अनवर ने दो ग़ज़लें सुनाई तथा समिचित प्रंशसा पाई। उनकी निम्न पंक्तिया विशेष रूप से सराही गयी-
कैसा अंदर से है यह हुस्न का पैकर देखें।
चांदनी रात में हम चांद में जाकर देखें।।तत्पश्चात श्री सोम ठाकुर, जो कि संयोगवंश अतिथि के रूप मे उपस्थित थे, द्वारा 25 शेरों की गजल तरून्नुम से पढ़ी गयी। निम्न शे'रों पर उन्हें विशेष सराहना प्राप्त हुई-
सारे कौल करार बदल के
लोग चल दिये आंख मल के
इतना खून बहा शहरों में
होश फाख्ता हैं जंगल के
छोटे-छोटे खेत न लहरे
कितने वादे थे बादल के श्री सोम ठाकुर के पश्चात श्री आलोक शुक्ला जो कि पेशे से पत्रकार है को कविता पाठ करने का निमंत्रण दिया गया। श्री शुक्ला द्वारा वर्तमान राजनीतिक व सामाजिक परिदृश्य पर 2 कविताएं पढ़ी गयी। निम्न पंक्तियां विशेष उल्लेखनीय हैं-
बलई मिसिर का नन्हा बेटा सोच रहा था
बहुत से अनुत्तरितन प्रश्नों के उत्तर खोज रहा था
ये कैसा धर्म है जो दुःख में तो नही जाएगा
लेकिन सुख के समय खोपड़ी पर चढ़ जाएगा इन्हीं तेवरों में श्री विनीत वाल जो कि एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी मे कार्यरत है द्वारा अंग्रेजी की दो कविताओं के माध्यम से वर्तमान सामाजिक व राजनीतिक परिदृश्य का जायजा लिया गया।
इसी क्रम में श्री जमील अहमद जमील द्वारा 2 ग़ज़लों का पाठ किया गया। उल्लेखनीय पक्तियां निम्न प्रकार रही-
बना ही लूंगा उसे आईना कभी न कभी
कि रंग लाएगी मेरी वफा कभी न कभी श्री साबिरा हबीब द्वारा इस क्रम को आगे बढाते हुए श्री पी0सी0शर्मा, अवकाश प्राप्त वरिष्ठ आई0ए0एस0 अधिकारी से अपनी रचनाये सुनाने का आग्रह किया गया। श्री शर्मा द्वारा अपने कविता संकलन से 2 कविताएं सुनाई गयी जिनको उनकी सवेदनशीलता के कारण काफी सराहा गया। निम्न पंक्तियां विशेष उल्लेखनीय है-
तुम्हारे पूर्वसंचित संस्कार, तुम्हारे संकल्प,
तुम्हारी निष्ठाएं, तुम्हारे विश्वास, तुम्हारी मान्यताएं,
तुम्हारी आस्थाएं, तुम्हारे सम्बन्ध, तुम्हारी प्रार्थनाएं,
तुम्हे यही तक ला सकती थी,
जहां जब कुछ ठहरा हुआ है
सभी मार्ग यहीं तक आते हैइसके पश्चात बारी आयी श्री देवकी नन्दन शांत, अवकाश प्राप्त अभियंता जिन्होंने तरन्नुम में 2 गजले सुनाई। निम्न पंक्तियों ने खूब ताली बजवाई-
यादो की इक हाट सी लगती है शाम से
बिकते है मेरे गम जहां गीतों के नाम से दो युवा कवि श्री अनूप पाठक, छात्र इलाहाबाद विश्वविद्यालय तथा ध्रुव सिंह द्वारा संवेदनशीलता से भरी 2-2 कविताएं सुनाई गयी तथा विशेष रूप से सराही गयी-
मेरी इन प्यारी बहनों ने मेरी इन बूढ़ी माओं ने
मुझे तो जिंदा रखा है बुर्जगो की दुआओं ने। ( श्री अनूप पाठक)
हाल सभी को मालूम है कश्मीर के अत्याचारों का
बम फटता है हर रोज वहां जिन्दा इंसान .................
(श्री ध्रुव सिंह)
अंत में युवा शायर श्री मनीष शुक्ला (उत्तर प्रदेश वित्त एवं लेखा सेवाओं में अधिकारी) को ग़ज़लें सुनाने की दावत दी गयी। श्री शुक्ला ने 2 ग़ज़लें सुनाई और भूरि-भूरि प्रंशसा पायी। गजल का एक शे'र कई श्रोताओं के मस्तिष्क में चिपक गया-
रफ्ता रफ्ता रंग बिखरते जाते हैं
तस्वीरों के दाग उभरते जाते है।
समयाभाव के कारण कविता पाठ का दूसरा चक्र नहीं हो सका। प्रो0 साबिरा हबीब की वाकपटुता, हाजिर जवाबी तथा उच्च कोटि के शेर पाठन ने डेढ़ घन्टे से भी लम्बे कार्यक्रम की जीवन्तता बनाये रखी। अंत में श्री प्रदीप कपूर द्वारा कवियो व श्रोताओं को धन्यवाद देते हुए कार्यक्रम समाप्ति की औपचारिक घोषणा की गयी।
तत्पश्चात टंण्डन परिवार के आतिथ्य सत्कार के तहत सूक्ष्म जलपान ग्रहण किया गया।
श्रोता तथा कवियों की कुल संख्या लगभग 50 रही।
कुछ अन्य झलकियाँ-मुहम्मद अहसन
आलोक शुक्ला
गज़ाला अनवर
सोम ठाकुर
देवकी नंदन शांत
जमेल अहमद
ध्रुव सिंह
मनीष शुक्ला
अनूप पाठक
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9 पाठकों का कहना है :
kaash ki hindyugm ke prbudh kavi v gazal kaar bhi aap ke saath hote ,achche v safal aayojan ke liye bahut bahut badhaai ahsan bhaai .
नीलम क्या ये जरुरी है कीआपके हिन्दी युग्मकी गन्दगी हर जगह जाए ? बोलो ?
हर जगह वही देखताहै ?? बोलो
शैलेश जी,
मैं ने कवि गोष्ठी की रिपोर्ट भेजने में जो कोताही की और जिस तरेह से आधी अधूरी और गलत फॉण्ट में भेजी , इस के विपरीत आप ने जिस गति से इसे दुरुस्त कर के अपनी पत्रिका में छापा, वह प्रशंसनीय तो है ही, जिस के लिए मैं आभार प्रकट कर रहा हू, वह कार्य व कर्म के प्रति आप की प्रतिबद्धता भी दर्शाता है. मैं आप को बधाई देता हूँ.
हिन्दयुग्म के मुख्य वाहक के रूप में निश्चित रूप से आप सार्थक साहित्य की दिशा में बड़े अच्छे प्रयास कर रहे हैं.
शुभकामनाओं सहित
अहसन
एनी माउस जी,
ज़रा तमीज से.... तहजीब से कमेंट करें.....
नीलम " जी " कहिये....
पर क्या करें...असल में आपकी कोई आई.डी. भी तो nahi है...
तो ऐसे आप जैसे लोग तो वैसे लिख सकते हैं...जैसे के आपने लिखा....
हम उनकी बात को ज्यादा सिरीयसली nahi लेते..
नीलम जी भी nahi लेंगी....
ओ यार कोई भी nahi लेता इनकी टेंशन....
अब जबरन मजबूर ना करें...
के आपकी घटिया टिप्न्नियो को डिलीट किया जाए.....जैसा के युग्म नहीं करता है....
आप हम से बड़े बद्तमीज कब से हो गए.........??????????????
सभी शे’र नहीं पढ़ पाया लेकिन जितने भी पढे उससे एक बात साफ़ है कि आयोजन बहुत अच्छा हुआ होगा.. अहसन जी को बधाइयाँ...
यादो की इक हाट सी लगती है शाम से
बिकते है मेरे गम जहां गीतों के नाम से
वाह!!!
एनोनीमस यहाँ भी... लेकिन इसमें और बाकियों में एक अंतर है... "जी" जैसा आदरसूचक शब्द इनके शब्दकोष से गायब है.. मेरी बुआ का सात वर्ष का बेटा भी "जी" लगाकर बात करता है...
aap jo bhi hain jaahir hai humse umr me bade hi honge isliye ji bolne n bolne par koi vivaad n ho to behatar hoga .itni kadwaahat hind yugm ke liye jaroor jaane anjane me aapki bhaavnaon ko thes pahunchi hai ,to hindyugm ki taraf se hum aapse maafi maangte hain .
we must encourage new talent,you have a knack of sesitivity and administrative capacity.you are a good man.thanks mr ahsan
बहुत सुंदर पढ़ के अच्छा लगा अहसान जी आपको तो बहुत ही अच्छा लगा होगा .
नीलम जी आप ने तो बहुत सही और प्यार से जवाब दिया
धन्यवाद
सादर
रचना
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