Sunday, May 31, 2009

युवा संस्कृति संसद की गोष्ठी


बीते 16 मई को दिल्ली में कथा यू.के. के सौजन्य से युवा संस्कृति संसद की पहली गोष्ठी हुई, जिसमें युवा लेखकों, कवियों, फिल्म समीक्षकों ने अपनी सक्रिय भागीदारी दी।

समारोह की शुरुआत में युवा कथाकार और कला-समीक्षक अभिषेक कश्यप ने संस्कृति संसद के उद्देश्य के बारे में बात करते हुए कहा—'हमारा मकसद प्रतिभाशाली युवाओं का एक ऐसा समूह तैयार करना है जो साहित्य के साथ-साथ शास्त्रीय संगीत, शास्त्रीय नृत्य, थियेटर और सिनेमा सरीखे कला-माध्यमों में गहरी रुचि रखता हो।

इसके पश्चात दिल्ली विश्वविद्यालय के शोध छात्र मिहिर ने फिल्मकार दिवाकर बैनर्जी की चर्चित फिल्म 'खोसला का घोंसला पर बोलते हुए कहा—'इस फिल्म में इंडिया गेट, कुतुब मीनार सरीखे दिल्ली के लोकेल नजर नहीं आते, फिर भी यह फिल्म दिल्ली के बारे में है। इस फिल्म में दिल्ली खुद एक किरदार है। यह फिल्म दिल्ली के उच्च मध्य वर्ग (संसाधनों पर जिसका कब्जा है) व निम्र मध्य वर्ग के बीच वर्ग-संघर्ष और निम्र मध्य वर्ग के भीतर वर्गांतरण की ललक को भी दर्शाता है। चंद्रप्रकाश तिवारी ने समकालीन सांगीतिक परिदृश्य में ध्रुपद गायन के उभार पर चर्चा की।

इससे पहले आकांक्षा पारे ने अपनी कहानी 'प्रश्न' और शिखा गुप्ता व अभिषेक सिंह ने अपनी कविताओं का पाठ किया। गोष्ठी में उपस्थित चर्चित कला-समीक्षा अजित राय ने कहा कि ऐसी गोष्ठियां युवा रचनाकर्मियों की सृजनात्मकता को बढ़ावा देगी और उन्हें साहित्य व कला-माध्यमों पर निरंतर नए ढंग से सोचने के लिए प्रेरित करेगी।

प्रस्तुति- नुपुर शर्मा और पूनम अग्रवाल

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पाठक का कहना है :

Deep Jagdeep Singh का कहना है कि -

बहुत ही खुशी हुई इस आयोजन की, अफसोस हम उसमें ग़ैर हाज़िर रहे। नुपूर और पूनम जी ने बहुत ही कम शब्दों में भरपूर जानकारी दे दी है। मेरे ख्याल से इस वाक्य 'गोष्ठी में उपस्थित चर्चित कला-समीक्षा अजित राय ने कहा कि' में कला समीक्षा की जगह कला समीक्षक होना चाहिए था। कोशिश रहेगी, भविरष्य में ऐसे आयोजनों में भाग ले सकें।

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