Tuesday, June 23, 2009

भारतीय विद्या भवन के सभागार में हिंदी भाषा की धाराओं का संगम



न्यूयॉर्क।

डॉ. कृष्ण कुमार एवं श्री अनूप भार्गव के सम्मिलित प्रयास से २९ मई, २००९ रविवार की सांध्यवेला में न्यूयॉर्क के भारतीय विद्या भवन में अमेरिका की हिंदी विकास मंच और इंग्लैंड की गीतांजलि नामक संस्थाओं के सौजन्य से एक अद्वितीय काव्य-संध्या का आयोजन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। यह कार्यक्रम इस दृष्टिकोण से अद्वितीय था कि यह विश्व के एक भूभाग (इंग्लैंड) के हिन्दी प्रेमियों द्वारा दूसरे भूभाग (उत्तरी अमरीका) की सद्‍भावना यात्रा का एक महत्वपूर्ण अंग था।

भारतीय विद्या भवन के श्री दीपक दवे ने सभागार में उपस्थित व्यक्तियों का स्वागत करते हुए डॉ० जयरामन की ओर से कार्यक्रम के लिये शुभकामनाएं दीं और भविष्य में भी होने वाले ऐसे आयोजनों में भवन की ओर से पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया।

इंग्लैंड से आये इस सद्‌भावना-मण्डल में डॉ० कृष्ण कुमार के नेतृत्व में आये अन्य कवि-कवियित्रियों के नाम इस प्रकार हैं: श्री परवेज़ मुज़फ्फर, डॉ. कृष्ण कन्हैया, श्रीमती नीना पॉल, श्रीमती अरुण सब्बरवाल, श्री नरेन्द्र ग्रोवर, श्रीमती जय वर्मा, श्रीमती स्वर्ण तलवाड़। डॉ० कृष्ण कुमार ने अपने दल के सदस्यों का संक्षिप्त परिचय दिया और गीतांजलि संस्था के विषय में भी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि गीतांजलि एक बहुभाषी साहित्यिक समुदाय है जो मुख्य रूप से बरमिंघम, यू.के., में स्थित है पर अब इसकी शाखायें अन्य शहरों में भी शुरू हो रही हैं। यह संस्था अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर साहित्य के विकास की दिशा में निष्ठा के साथ सेवा करती आई है। हिंदी की सेवा करने का महत्वपूर्ण कार्य साहित्य लेखन के माध्यम से हो रहा है। प्रवासी भारतीय अनेक हिंदी कार्यक्रमों की रूप-रेखा रचते चले आ रहे हैं। उनका अपने देश की मिट्‍टी से प्रेम और हिंदी भाषा व संस्कृति से लगाव प्रशंसनीय है।

डॉ० कृष्ण कुमार ने अपना विश्वास प्रकट करते हुए कहा कि "भारत से दूर रहकर अपनी भाषा को कैसे जीवित रखा जाये, इस प्रयास में आने वाली कठिनाइयों से कैसे जूझा जाय, और संभावनाओं को कैसे साकार किया जाय इस दिशा में प्रवासी भारतीय साहित्यकारों का योगदान सराहनीय है। यही वे भारतीय है जो भारतीयों में बची भारतीयता को बचाने की कोशिश कर रहे हैं"। उन्होंने यह चिंता व्यक्त की कि "हम भारतीय अपनी छोटी समझ के कारण खुद को छोटे-छोटे भागों में बाँट रहे हैं और केवल एकता का नारा पीट रहे हैं"। उनका कहना है कि विचार व्यक्ति से बढ़ता है। गाँधी एक विचार लेकर चले और आज़ादी हासिल की। एक व्यक्ति दीवाली में एक दीपक घर में जलाये, तो घर प्रज्वलित होता है।

हिंदी विकास मंच की ओर से श्री अनूप भार्गव ने समयाभाव के कारण संक्षेप में ही ई‌‌-कविता याहू ग्रुप के सफल प्रयोग के विषय में बताया। अन्तर्जाल पर जाना-माना यह मंच कई वर्षों से हिंदी साहित्य, विशेषकर कविता के क्षेत्र में, प्रगतिशील है और इसके सदस्यों की संख्या लगभग ६०० हो चुकी है। सदस्य विश्व के कोने-कोने से इस गुट से जुड़े हैं। हिन्दी विकास मंच की परिकल्पना हिन्दी के विकास में योगदान दे रही संस्थाओं को एक सूत्र में बाँधने के विचार से की गई है। इंग्लैंड से कवियों को उत्तरी अमेरिका की यात्रा करने का निमंत्रण इसी विचार की पहली कड़ी है। अनूप जी ने बताया कि न्यूयॉर्क के अतिरिक्त कनाडा के टोरंटो शहर में होने वाले कार्यक्रम में भी कवियों का यह दल भाग लेगा।

विचारों के आदान प्रदान के उपरान्त डॉ० कृष्ण कुमार की अध्यक्षता में काव्य पाठ का आरम्भ हुआ। श्रीमती स्वर्ण तलवाड़ ने अपने साथियों का परिचय करवाते हुए उन्हें मंच पर आमांत्रित करने का संचालन-भार बखूबी निभाया। उनके साथ आए हुए यू.के. के सभी साथियों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं। बीच-बीच में श्री अनूप भार्गव ने न्यूयॉर्क, न्यू जर्सी, और फिलाडेल्फिया में रहने वाले स्थानीय कवियों को भी संक्षिप्त परिचय के साथ काव्य पाठ के लिये आमंत्रित किया। इन कवियों में थे डा॰ सरिता मेहता, श्री घनश्याम चंद्र गुप्त, श्रीमती बिन्देश्वरी अग्रवाल, श्री राम गौतम, डा॰ अंजना संधीर, देवी नागरानी, और स्वयं श्री अनूप भार्गव। अंत में अध्यक्ष डॉ० कृष्ण कुमार ने अपनी रचनाओं और उत्कीर्ण विचारों से इस साहित्य सरिता को समेटा। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति की न्यूयॉर्क शाखा के पूर्वाध्यक्ष मेजर शेर बहादुर सिंह भी श्रोताओं में उपस्थित रहे।

कार्यक्रम का समापन भारतीय विद्या भवन के श्री दीपक दवे ने आगन्तुक कवियों और श्रोताओं को धन्यवाद देते हुए किया। श्री दवे ने कहा कि पूरा कार्यक्रम उनके लिये एक सुखद अनुभव था। इस प्रकार एक सफल काव्य-संध्या सम्पन्न हुई। सभागार में श्रोताओं की उपस्थिति शोचनीय रूप से कम रहने के विषय में कई लोग असंतुष्ट दिखाई-सुनाई दिये। इस विषय में विचार और प्रयत्न करने की आवश्यकता है।

प्रस्तुति- देवी नागरानी

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2 पाठकों का कहना है :

Shamikh Faraz का कहना है कि -

हिंदी की सेवा करने का महत्वपूर्ण कार्य साहित्य लेखन के माध्यम से हो रहा है। प्रवासी भारतीय अनेक हिंदी कार्यक्रमों की रूप-रेखा रचते चले आ रहे हैं जो की एक सराहनिये काम है.

Manju Gupta का कहना है कि -

Pravasi bharatiya ka Hindi ko ek sutr mein bandhe rakhana aur karyakarmo ko gatishilta dena uplavdhi hai.
prastuti ke liya badhayi.

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